भाजपा शासित गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने दावा किया है कि गोवा में होने वाले अपराधों में से 90 प्रतिशत अपराधों के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मज़दूर ज़िम्मेदार हैं. हालांकि NCRB द्वारा वर्ष 2021 में 31 दिसम्बर 2020 तक के जारी किए गए आंकड़ों के सामने गोवा के मुख्यमंत्री के दावे खोखली, बनावटी, मनगढ़ंत और राजनीति से प्रेरित प्रतीत होती है.
प्रमोद सावंत के बयान पर जद(यू) के एक युवा नेता मनीष कुमार ने पटना सदर न्यायालय में उनके खिलाफ़ बिहारियों और गोवा के लोगों के बीच वैमनस्य फैलने का आरोप लगाकर आपराधिक मुकदमा दायर किया. जिसके बाद सावंत ने अपने बयान पर खेद जताया है.
सावंत द्वारा अपने बयान पर खेद जताने को लेकर मनीष कुमार ने कहा कि प्रमोद के खेद जताने से काम नहीं चलेगा बल्कि उन्हें बिहार के लोगों से माफ़ी मांगनी पड़ेगी.
NCRB प्रति वर्ष देश के अलग अलग राज्यों में सजा काट रहे (कन्विक्टेड) और विचाराधीन (अंडर-ट्रायल) कैदियों की संख्या जारी करती है. इन कैदियों को उनके सामाजिक, धार्मिक आदि पहचान के अनुसार वर्गीकृत भी किया जाता है. इसी तरह प्रत्येक राज्य में कुल सजा काट रहे और विचाराधीन (अंडर-ट्रायल) कैदियों को इस आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है कि वो उक्त राज्य के स्थाई निवासी हैं या देश और दुनियां के किसी अन्य राज्य या देश से आकर स्थाई या अस्थाई रूप से बसे हुए हैं.
वर्ष 2021 में NCRB द्वारा जारी किए गए रिपोर्ट के अनुसार गोवा के विभिन्न जेलों में कुल 105 कैदी सजा काट रहे हैं. जिसमें से मात्र 34 कैदी उत्तर प्रदेश, बिहार समेत देश के अन्य राज्यों के निवासी हैं, जबकि मात्र एक विदेशी ही गोवा के जेल में सजा काट रहा हैं. अर्थात् गोवा में सजा काट रहे कुल कैदियों में से मात्र 32.38 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो गोवा छोड़कर बिहार और उत्तर प्रदेश समेत हिंदुस्तान के 26 अन्य राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों से आए हैं. यह आंकड़ा गोवा के मुख्यमंत्री द्वारा 90 प्रतिशत के दावे से मिलो दूर है.
इससे भी अधिक चौकाने वाले आंकड़े हैं अपराध के उन आरोपियों का जिनके ऊपर गोवा के अलग अलग अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं. ऐसे अपराध आरोपित लोगों को विचाराधीन (अंडर-ट्रायल) अपराधी कहा जाता है. गोवा में कुल 419 अंडर-ट्रायल अपराधी हैं, जिसमें से 175 अपराधी देश के अन्य राज्यों के स्थाई निवासी हैं. जबकि विदेशी अंडर-ट्रायल अपराधियों की संख्या 57 है. अर्थात् गोवा के कुल अंडर-ट्रायल अपराध आरोपियों में से 41.77 प्रतिशत बिहार और उत्तर प्रदेश समेत देश के 26 अन्य राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों से आकर गोवा में रहने वाले लोग हैं.
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अंडर-ट्रायल आरोपी
गोवा के विभिन्न न्यायालयों में सुनवाई के दौरान 98.25 प्रतिशत विदेशी निर्दोष साबित होकर बरी हो जाते हैं. इसी तरह गोवा छोड़कर बिहार और उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य राज्यों के कुल अंडर-ट्रायल आरोपियों में से 80.57 प्रतिशत लोग निर्दोष साबित हो जाते हैं. जबकि दूसरी तरफ़ गोवा के स्थानीय अंडर-ट्रायल आरोपियों में से मात्र 62.56 प्रतिशत गोवा निवासी निर्दोष साबित हो पाते हैं.
गोवा में कन्विक्टेड और अंडर-ट्रायल अपराध आरोपियों के अनुपात में अंतर यह दर्शाता है कि गोवा का पुलिस-प्रशासन अन्य राज्यों से आकर गोवा में रहने वाले लोगों के साथ भेदभाव करते है. बाहरी लोगों के प्रति आपराधिक पूर्वाग्रह के कारण गोवा में गोवा से बाहर के निवासियों के ऊपर अधिक झूठे पुलिस केस में फंसाया जाता है लेकिन न्यायिक प्रक्रिया के दौरान वे निर्दोष साबित हो जाते हैं.
गोवा के मुख्यमंत्री की ही माने तो वर्ष 2019 में उनके द्वारा दिए गए एक बयान के अनुसार गोवा की कुल जनसंख्या लगभग 15 लाख है, जबकि गोवा में प्रति वर्ष 60 लाख प्रवासी मज़दूर और 60 लाख पर्यटक आते हैं. हालांकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार गोवा में कुल प्रवासियों की संख्या लगभग 11 लाख है.
गोवा के मुख्यमंत्री द्वारा इस तरह के तथ्य के परे समाज में द्वेष फैलाने वाले बयान यूं ही ज़बान फिसलना (स्लिप ओफ़ टंग) नहीं हो सकता है. बल्कि यह एक सोची समझी राजनीति का प्रतिबिम्ब सा लगता है.
प्रवासियों के साथ भेदभाव
प्रवासियों के प्रति द्वेष और नफ़रत भरे बयान का इतिहास गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के लिए बहुत पुराना है. 1960 और 1970 के दशक के दौरान महाराष्ट्र में दक्षिण भारत, और ख़ासकर आंध्र प्रदेश से आकर महाराष्ट्र में रहने वाले प्रवासियों के ख़िलाफ़ इस तरह के नफ़रती बयान बाला साहेब ठाकरे और शिव सेना की राजनीति के केंद्र में था. आगे चलकर महाराष्ट्र के साथ साथ गुजरात में भी बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मज़दूर इस तरह की नफ़रती राजनीति का शिकार हुए और होते आ रहे हैं.
देश के अलग अलग राज्यों में समय समय पर प्रवासियों के ख़िलाफ़ नफ़रती राजनीति करने वाले व्यक्तियों और राजनीतिक दलों या संस्थाओं में एक समानता यह है कि ये अक्सर उग्रपंथी राजनीति करते हैं. जिसमें समाज के एक ख़ास वर्ग को समाज का दुशमन के रूप में प्रस्तुत कर मतों के ध्रुवीकरण का प्रयास किया जाता है.
गोवा के मुख्यमंत्री का बयान इसी तरह की राजनीति का नवीनतम उदाहरण है. इसके पहले इस तरह की राजनीति का प्रयास अभी हाल ही में तमिलनाडु में भी एक फ़ेक वीडियो के सहारे करने का प्रयास किया गया था.
लेकिन चूंकी तमिलनाडु में वर्तमान सत्ताधारी दल कट्टरपंथी, उग्रपंथी या ध्रुवीकरण की राजनीति में कम विश्वास रखते हैं, इसलिए इस प्रयास को विफल बनाने में तमिलनाडु और बिहार की सरकार सफल रही. इसके अलावा सम्भवतः तमिलनाडु सरकार यह समझती है कि किस तरह उनके राज्य की अर्थव्यवस्था के सफल क्रियान्वयन लिए ये सस्ते प्रवासी मज़दूर महत्वपूर्ण है. सम्भावना है कि जैसे जैसे वर्ष 2024 में लोकसभा का चुनाव नज़दीक आएगा इस तरह की सामाजिक और क्षेत्रीय पहचान के नाम पर कट्टरपंथी और उग्रपंथी राजनीति के सहारे मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने का लगातार प्रयास किया जाएगा.
प्रमोद सावंत ने इससे पहले भी वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री बनने के बाद इस बात पर चिंता ज़ाहिर की थी कि गोवा में गोवा के स्थानीय निवासियों की संख्या लगातार घट रही है जबकि प्रवासियों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
(संजीव कुमार हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘जातिगत जनगणना: सब हैं राज़ी, फिर क्यूं बयानबाज़ी ’ के लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादन: अलमिना खातून)
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