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Wednesday, 20 November, 2024
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जनरल नरवणे की विरासत तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन LAC का डायनामिक्स अब बदल चुका है

जनरल नरवणे मुद्दे के हिसाब से कबूतर और बाज़ दोनों हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आखिर में वो एक ‘सर्वोत्कृष्ट सैनिक’ थे और आज भी हैं.

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अप्रैल आने के साथ ही जनरल मनोज मुकुंद नरवणे भारतीय सेना के 27वें प्रमुख के तौर पर रिटायर हो जाएंगे. समय ही बताएगा कि नरेंद्र मोदी सरकार उन्हें भारत का अगला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त करेगी या नहीं. लेकिन एक चीज़ तय है- जनरल नरवणे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़कर जाएंगे, जो ज्यादातर लोग समय के साथ ही समझ पाएंगे.

सेना प्रमुख के तौर पर उन्होंने बिना किसी गाजे-बाजे या प्रचार के अपना काम किया, हालांकि वो निजी रूप से कुछ ऐसे प्रमुख सामरिक और नीतिगत फैसलों के लिए जिम्मेदार थे, जो आने वाले वर्षों में सेना के दृष्टिकोण को आकार देंगे.


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एक्शन से भरा कार्यकाल

जन. नरवणे का कार्यकाल एक्शन से भरपूर रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ चल रहे गतिरोध से लेकर नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम के दोहराव तक, लड़ाई के क्रम (ऑरबैट) को फिर से लिखने से लेकर, सिर्फ आतंकवाद विरोधी अभियानों की बजाय पारंपरिक युद्ध पर फोकस करने तक, बतौर सेना प्रमुख उनके कार्यकाल ने सब कुछ देखा है, जिसमें आधुनिकीकरण पर फोकस भी शामिल है.

जनरल नरवणे मुद्दे के हिसाब से कबूतर और बाज़ दोनों रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आखिर में वो एक ‘सर्वोत्कृष्ट सैनिक’ थे और आज भी हैं. उनके लिए ये शब्द मैंने उस प्रोफाइल में भी इस्तेमाल किया था, जो मैंने उस समय किया था जब 31 दिसंबर 2019 को उन्होंने सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला था.

उन्होंने अपने से बिल्कुल उलट जनरल बिपिन रावत से कार्यभार लिया था, जो इतना खुलकर बोलते थे कि उन पर आरोप लगता था कि कभी कभी वो सेना प्रमुख के अधिकार-क्षेत्र को लांघ जाते हैं.


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जनरल नरवणे, एक शांति प्रिय

कार्यभार संभालने के कुछ दिन बाद ही जनरल नरवणे ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस सेना दिवस के मौके पर की, जो 15 जनवरी को मनाया जाता है. एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि क्या वो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन पर जनरल रावत के बयान से सहमत हैं. जनरल नरवणे ने कहा कि सेना की भूमिका संविधान के ‘बुनियादी मूल्यों को बनाए रखने’ की है.

उन्होंने कहा था, ‘हम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करते हैं. अगर हम इसे याद रखें, तो हम अपने कर्तव्यों के निर्वहन में गलती नहीं करेंगे. हमारी सेना लोगों की सेना है और लोगों के लिए है और हम जो कुछ भी करेंगे, वो उन्हीं के लिए होगा’.

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सशस्त्र बलों की निष्ठा भारत के संविधान के साथ है और वो संविधान की प्रस्तावना में संजो कर रखे गए न्याय, समानता और भाईचारे के बुनियादी मूल्यों को बचाने के लिए ही लड़ती है.

बुधवार को एक टीवी इंटरव्यू में जनरल नरवणे से पूछा गया कि क्या निकट भविष्य में चीन के साथ कोई लड़ाई हो सकती है. उन्होंने शांति के साथ जवाब दिया: ‘सेना के लोग आखिरी लोग होते हैं जो लड़ाई में जाना चाहते हैं. हमेशा बेहतर रहता है कि पूरे देश का एक नज़रिया हो और सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते हों, सभी पड़ोसियों के साथ स्थिर रिश्ते हों, क्योंकि अगर आपके रिश्ते स्थिर होते हैं तो राष्ट्र समृद्ध होता है और वही हमारा लक्ष्य होना चाहिए. उसे राजनीतिक स्तर पर किया जाना चाहिए, कूटनीतिक स्तर पर किया जाना चाहिए लेकिन आपको सेना चाहिए होती है…अगर आप शांति सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो लड़ाई के लिए तैयार रहिए’.

एक सैनिक की भावनाओं को ऐसे खुले तौर पर व्यक्त करना, उनके मज़बूत विश्वास को ऐसे समय में दर्शाता है, जब अति राष्ट्रवाद और युद्ध की वकालत का मौसम चल रहा है.

एक मायने में, कुछ लोग मान सकते हैं कि वो शांति की भाषा बोल रहे थे क्योंकि जैसा कि इंटरव्यू करने वाले ने कहा, बहुत से लोगों का मानना है कि एलओसी पर युद्ध विराम एक गलती थी.


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सेना प्रमुख एक बाज़ के रूप में

जब समय आता है तो सेना प्रमुख एक बाज़ भी बन सकते हैं. पूर्वी सेना कमांडर और मनोनीत वाइस चीफ के तौर पर अगस्त 2019 में जनरल नरवणे ने चीन को एक ‘क्षेत्रीय गुंडा’ कहकर खलबली मचा दी थी और कहा था कि अगर चीन ने एलएसी पर ‘अपरिभाषित ज़ोन’ का 100 बार उल्लंघन किया, तो भारतीय सेना ने 200 मौकों पर ऐसा किया.

उस समय डिफेंस बीट कवर करने वाले पत्रकारों को सेना मुख्यालय से बहुत बेचैनी के साथ कॉल्स आईं थीं कि या तो उस खबर को हल्का कर दें या बिल्कुल ही छोड़ दें.

उस समय बहुत स्पष्ट था कि उनका फोकस ‘चीन की चुनौती’ पर था. अपनी पहली प्रेस वार्ता में जनरल नरवणे ने कहा कि किसी भी तरह के खतरे से निपटने के लिए- चाहे वो पाकिस्तान से हो या चीन से- सेना पश्चिमी, उत्तरी और उत्तरपूर्वी सीमाओं पर अपनी तैनाती और रणनीति को फिर से संतुलित कर रही है. उन्होंने कहा था, ‘पहले हमारा ध्यान केवल पश्चिमी मोर्चे पर था. अब हमें लगता है कि पश्चिमी और उत्तरी दोनों मोर्चे बराबर महत्व के हैं और यही कारण है कि हम फिर से संतुलन कर रहे हैं’.


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चीनी चुनौती

फिर से संतुलन बनाने के बारे में जनरल नरवणे के बयान के बाद चीन ने बिल्कुल वही किया जिसका उन्हें डर था- 14 कोर को पूरी तरह चौंकाते हुए पीएलए एलएसी के इस पार घुस आई और उसने भारत की ओर कई जगहों पर कब्ज़ा कर लिया.

भारतीय बलों ने चीनी चढ़ाई का जवाब दिया और मिरर डिप्‍लॉयमेंट करते हुए बड़ी संख्या में सैन्यकर्मियों और उपकरणों को पूर्वी लद्दाख में लगा दिया.

तनाव बढ़ने के साथ ही जनरल नरवणे पहले ही एक जवाबी कदम की योजना बना रहे थे, जिसके नतीजे में भारतीय सैनिकों ने दक्षिणी रेंज की ऊंचाइयों पर कब्ज़ा कर लिया– जो एक शानदार ऑपरेशन था- जिसके विस्तृत विवरण की बारीकियां, दिप्रिंट सुरक्षा कारणों से रोक रहा है.

सरकारी सूत्रों का कहना है कि ये जनरल नरवणे थे, जिन्होंने अपने प्रमुख कमांडरों के साथ मिलकर दक्षिणी किनारे की ऊंचाइयों पर कब्ज़ा करने की, उस कार्रवाई की योजना की अगुवाई की थी, वो कार्रवाई जिसने चीनियों को हैरान कर दिया था.

उनके कार्यकाल के दौरान, सेना ने लड़ाई के क्रम को फिर से लिखा है और तैनाती के पैटर्न्स में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं, जिनमें भारत की एकमात्र माउंटेन स्ट्राइक कोर की संख्या में इज़ाफा भी शामिल है, जिसकी लंबे समय से उपेक्षा हो रही थी.

रक्षा मंत्री के नाते राजनाथ सिंह ने तीन सेवा प्रमुखों को मुक्त वित्तीय शक्तियां सौंप दी थीं और सेना ने कई तात्कालिक और दीर्घकालिक खरीदारियों को अंजाम दिया, जिनमें अधिक ऊंचाई वाले कपड़ों से लेकर नई राइफलें, वाहन, नौकाएं, निगरानी किट्स और ड्रोन्स के अलावा और बहुत सी चीज़ें शामिल थीं.

सेना प्रमुख द्वारा किए बहुत से दूसरे बदलावों पर अभी भी रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है. मृदु भाषी, संयमी और अपने शब्दों को नापतोल कर बोलने वाले जनरल नरवणे अपनी छवि बनाने की बजाय, लगन के साथ अपने काम पर ध्यान केंद्रित करते रहे.

उन्हें एक ऐसे विचारक के तौर पर जाना जाता है, जो बिना सोचे समझे प्रतिक्रिया देने की बजाय, दृढ़ फैसले लेते हैं और फिर उनपर कायम रहते हैं. लेकिन, शब्दों को सोच समझकर अदा करने की उनकी क्षमता भी एक कारण है कि उनकी विरासत की असली भावना आने वाले वर्षों में ही समझ में आएगी.

इस बात पर अभी भी दो मत हैं कि लद्दाख गतिरोध के दौरान कौन भारी पड़ा- चीन या भारत. लेकिन एक चीज़ स्पष्ट है: एलएसी पर होने वाला व्यवहार अब पहले जैसा नहीं रहेगा. आगे चलकर ये क्षेत्र ध्यान आकर्षण का केंद्र रहेगा.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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