अब जब संघ ने भी समलैंगिकता पर अपने बयान बदल दिए हैं, समलैंगिकों के पूरे समुदाय (एलजीबीटी+) को वामपंथी लिबरल नहीं समझा जाएगा ।
भारत में समलैंगिकता को वैध ठहरने का ज़िम्मा अब सुप्रीम कोर्ट के कन्धों पर रख दिया गया है। और यदि यह मुद्दा मोदी के रहते ही सुलझ जाए, तो भारत में एलजीबीटी समुदाय को बिलकुल ही भिन्न रूप से देखा जाएगा।
फेसबुक पर एक एलजीबीटी+ ग्रुप ‘हार्मलेस हग्स’ में एक पोल डाला गया. इस पोल में यह निष्कर्ष निकला की धारा 377 के हटने से गे या समलैंगिक वोटरों के ऊपर काफी प्रभाव पड़ेगा ।
भारत में मोटे तौर पर एलजीबीटी समुदाय को एक लिबरल, बुद्धिजीवी लोगों का वर्ग जो मोदी से प्यार नहीं करता, समझा जाता था। पर इस समुदाय में सब एक थाली के बैगन नहीं प्रतीत होते। 2014 में मोदी को मिली जीत के बाद कई फेसबुक पोस्ट ये दर्शा रहीं थीं कि मोदी को समलैंगिकों का प्यार और समर्थन प्राप्त था
किन्तु दक्षिण पंथी समलैंगिक लोगों को हमेशा ही इस समुदाय में नाकारा जाता था. मोदी के लिए मर-मिटने को तैयार एक समर्थक ने मुझे बताया कि दक्षिणपंथी हिन्दू समलैंगिकों का अक्सर उनके ‘लेफ्ट लिबरल’ साथियों द्वारा उपहास किया जाता था, और खुद वे मोदी का मज़ाक उड़ाते थे।
लेकिन यदि धारा 377 मोदी के रहते एक अपराध होने का दर्जा गँवा देती है, तो मोदी के समलैंगिक समर्थकों के आखिरकार अच्छे दिन आ ही जाएंगे ।
अमृतसर से एक और समलैंगिक मित्र ने सुब्रमणियन स्वामी की टिप्पणी, जिसमें उन्होंने समलैंगिकता को खतरा बताया था, को भाजपा को नीचे धकेलने वाला बयान ठहराया ।
पर क्या इस सब से धार्मिक लोग जो मोदी का साथ देते हैं खफा होंगे? संघ ने तो पहले ही इसको गैर आपराधिक बनाने के लिए हरी झंडी दे दी है, लेकिन कुछ ईसाई और मुस्लिम धर्म के सम्प्रदायों ने 377 को बचाने के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। और इन सब से तो हिंदुत्ववादी समलैंगिकों का मोदी और संघ के प्रति विश्वास और भी सुदृढ़ हो जाएगा।
अब इसके बाद, व्हाट्सएप पर आने वाले संदेशों में या मोदी के फैन पेजों से शायद ये भी सन्देश सुनने को मिले कि समलैंगिकता के अपराधीकरण को ख़त्म करना भी मोदी का एक मास्टर स्ट्रोक है। वह ‘सत्तर साल में ऐसा कभी न हुआ वाला’ तकिया कलाम इस पर भी बिलकुल फिट बैठेगा। अगर दक्षिणपंथी लोग इस बात को हज़म कर सकते हैं कि नोटबंदी वाकई सफल हुई थी क्योंकि मोदी ने इसे करके दिखाया था, तो उनके गले से यह बात भी आराम से उतर जाएगी कि एक समलैंगिक व्यक्ति होने में कोई बुराई नहीं है।
कांग्रेस पार्टी केंद्रित और उदार होने के बावजूद इस मामले को ना सुलझा पाई, जबकि उसने प्रयास बहुत किये।
और वो ‘लिबरल्स’ जो कह रहे हैं कि समलैंगिकता को गैरकानूनी होने के दर्जे से हटाने का श्रेय सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्ता को जाना चाहिए, मोदी को नहीं, स्मरण रहे ये वही लिबरल्स हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की स्वायत्ता पर तब हो-हंगामा किया था जब 4 सर्वोच्च न्यायाधीशों ने एक ऐतिहासिक प्रेस वार्ता की थी । अगर इस तर्क से भी जाएं, तब भी मोदी सरकार की चुप्पी किसी न किसी तरीके से धारा 377 को हटाने में काफी बड़ा योगदान दे रही है।
और यह सब अगर मोदी के शासनकाल में बदल जाता है तो राजनीतिक विचारधारा और लैंगिक अनुस्थापन (सेक्शुअल ओरिएंटेशन) में गहरा फर्क देखने को मिलेगा। अब इसे किसी भी हालत में वामपंथी लिबरलों का झुण्ड तो बिलकुल नहीं समझा जाएगा। इससे अब कई लोग अपने आप को लिबरल टैग से परे करके भी बाहर निकलेंगे। राजनीतिक विविधता आखिरकार अब अपने पैर पसार सकेगी।
Read in English: Gay Modi fans can finally shut the liberals up if Section 377 is decriminalised