गंगा कह रही है पानी दे दो, सरकार कह रही है पैसा ले लो, सहमति बनने का इंतजार है. सीधा सा गणित है पर सरकारें समझना ही नहीं चाहतीं, आप पानी से पैसा बना सकते हैं लेकिन पैसे से पानी नहीं बना सकते, चाहे पैसा पानी की तरह ही क्यों ना बहा दिया जाए.
एक महान नीलामी जारी है. प्रधानमंत्री को भावनाओं, राजनीतिक स्वार्थों और औपचारिक तौर पर दिए गए उपहारों की नीलामी हो रही है. अब तक करोड़ों रूपए जमा हो चुके हैं, यह पैसा नमामि गंगे के स्वच्छ गंगा कोष को दिया जाएगा जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे इस मद में कुछ लाख रूपए और जुड़ जाएंगे. बेशक इस महान कृत्य पर अभिभूत हुआ जाना चाहिए लेकिन साथ ही उस पैसे पर भी एक नज़र मार लीजिए जो अब तक नमामि गंगे को दिया गया है.
सीजीएफ यानी क्लीन गंगा फंड में वह राशि मौजूद है जो व्यापारियों, संस्थाओं और व्यक्तियों ने गंगा सफाई के लिए दी है. इस फंड में दो सौ करोड़ रूपए से ज्यादा की राशि जमा है और आज तक एक रूपया भी खर्च नहीं किया गया है. खुद सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इस पैसे के उपयोग ना होने पर सवाल उठाए हैं.
नमामि गंगे के लिए सरकार ने पहले पांच साल के लिए 20 हजार करोड़ रूपए का बजट बनाया था. आपको आंकड़ों की भाषा पसंद नहीं तो सिर्फ यह जान लीजिए सरकार बनने के छह साल बाद भी नमामि गंगे अपने बजट का पच्चीस फीसद भी खर्च नहीं कर पाया. मंत्रियों के सामने समस्या यह है कि पैसा कहां खर्च करें और कैसे करें. क्योंकि पैसे से गंगा साफ होनी होती तो राजीव गांधी ही कर चुके होते. सरकार अब मुक्तिधाम, घाट और नदी तट के सौंदर्यीकरण पर पैसा खर्च कर रही है लेकिन यह सब तो इंसानी जरूरतें है इसमें नदी की जरूरत कहां है ? उसकी जरूरत सिर्फ पानी है, उसके हक का पानी, जो हम देना नहीं चाहते.
यह भी पढ़ें : आइए ग्रेटा थनबर्ग पर निहाल हों ताकि सानंद को भूला जा सके, सत्ता भी यही चाहती है, सब यही चाहते हैं
2014 से अप्रैल 2019 तक 28451.29 करोड़ रूपए के प्रोजेक्ट पास हुए है इनमें से एक चौथाई प्रोजेक्ट भी पूरे नहीं हो पाए हैं और कुल 6838.67 करोड़ रूपए खर्च हुए हैं. 2018-19 के लिए कुल स्वीकृत राशि 2300 में मात्र 700 करोड़ खर्च हुए हैं.
इसके अलावा पूर्व गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने देशी – विदेशी व्यापारियों से गंगा सफाई के लिए मदद मांगी थी और उन्हे 1500 करोड़ रुपए का वादा मिल गया था , इस राशि का क्या हुआ, कोई नहीं जानता. यह भी बात जानने वाली है कि गंगा पथ पर चल रहे कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट वर्ल्ड बैंक द्वारा पोषित हैं.
सरकार ने गंगा सफाई की डेडलाइन एक बार फिर बढ़ा दी हैं, चौथी बार बढ़ाकर अब इसे 2021 किया गया है. इसके पहले 2016 और 2018 और 2020 में गंगा सफाई कार्य पूर्ण होने का दावा किया गया था. वास्तव में गंगा सफाई एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है और यह तारीखों में नहीं कोशिशों में नजर आनी चाहिए. गंगा सफाई की दिशा में पैसा कोई समस्या नहीं है, कभी थी ही नहीं. उसे पानी जरूर चाहिए लेकिन एक साल पहले ई- फ्लो नोटिफिकेशन अब तक लागू नहीं किया जा सका है. क्योंकि बांध कंपनियां उस पर विरोध जता रही है.
इस बीच नमामि गंगे की एक पेंटिंग, जो प्रधानमंत्री को उपहार में मिली थी, नीलाम हो गई है, कुछ लाख रूपए में.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)