राजधानी दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान (जीपीएफ) की पहली मंजिल का कमरा नंबर 11. इसी कमरे में देश के चोटी के गांधीवादी कार्यकर्ता एसएन सुब्बाराव पिछले 51 सालों से रहते थे. वे यहां पर 1970 के मध्य में रहने लगे थे. इस आधी सदी के दौरान उन्होंने अपना कभी कमरा नहीं बदला. वे यायावर थे. देश भर में घूमते थे. पर उनका घर जीपीएफ का कमरा नंबर 11 ही रहा. यहीं उनसे दुनियाभर के गांधीवादी विचारक, लेखक, कार्यकर्ता मिलने के लिए आते थे. उनका 92 वर्ष की उम्र में बुधवार को निधन हो गया. इस उम्र में भी वे सीधे खड़े होकर बोलते और चलते थे.
हाफ पैंट और खादी की शर्ट एसएन सुब्बाराव की विशिष्ट पहचान थी. नेशनल यूथ प्रोजेक्ट के माध्यम से सुब्बाराव ने देश के हर प्रांत में एकता शिविर लगाये और युवाओं को एक दूसरे के निकट लाये.
गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली का कमरा नंबर 11 सुब्बाराव से मिलने की जगह रही. जीवन भर में उन्हें सम्मान स्वरूप जो स्मृति-चिह्न मिले उनसे वह कमरा अटा रहता था. वह सब मुरैना जिले के जौरा स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम से आ गये हैं और एक सुंदर संग्रहालय के स्वरूप में मौजूद हैं. वे पिछले दो साल से यहां पर नहीं आए थे. इसकी एक वजह कोविड भी थी.
सुब्बाराव कम बोलते और ज्यादा सुनने वाले मनुष्यों में से थे. उनकी विनम्रता अनुकरणीय थी. वे गांधी शांति प्रतिष्ठान में अपने कमरे से कैंटीन में भोजन करने खुद आते थे.
गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़ीं अमृता शर्मा ने बताया, ‘सुब्बाराव जी को खिचड़ी खाना ही पसंद था. वे कभी यह स्वीकार नहीं करते थे कि कोई उनके कमरे में उन्हें भोजन देने के लिए आए.’
उन्होंने बताया, ‘सुब्बाराव की 1948 में मुलाकात गांधीवादी एन.एन हार्डिकर से एक शिविर में हुई. उसके बाद वे युवाओं के बीच रचनात्मक काम करने लगे. वे 1951 में 7, जंतर मंतर स्थित दफ्तर में बैठने लगे. वे पंडित जवाहर लाल नेहरू के संपर्क में आए.’
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‘एक घंटा देह को, एक घंटा देश को’
सुब्बाराव का जन्म बेंगलुरू में 7 फरवरी 1929 को हुआ. उनका परिवार स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ा हुआ था. उनके पिता वकील थे.
सुब्बाराव को करीब से जानने वाले राजघाट के पूर्व प्रभारी रजनीश कुमार ने बताया, ‘वे अपनी स्कूली जीवन से महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होने लगे थे. उन्होंने लगभग तब ही से ही खादी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए थे.’
सुब्बाराव अभी स्कूल में ही थे जब 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन हुआ था. उन्होंने तब अपने स्कूल की क्लासेज का बहिष्कार किया था. वे तब बेंगलुरू की दीवारों पर ‘भारत छोड़ो’ लिख रहे थे. उन्हें तब गिरफ्तार भी कर लिया गया था. पर तब उनकी उम्र सिर्फ 13 साल की थी इसलिए उन्हें पुलिस ने छोड़ दिया था.
सुब्बाराव ने एक बार गांधी शांति प्रतिष्ठान में आए अपने परिचितों से कहा था, ‘श्रम के अभाव में शरीर कमजोर हो रहा है. इस कारण देश भी कमजोर हो रहा है. उन्होंने नारा दिया कि एक घंटा देह को, एक घंटा देश को. युवाओं का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा था कि युवा शक्ति इस बात को अपना लें, तो कई समस्याओं का हल आराम से हो जाएगा.’
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चंबल में बागियों के समर्पण में अहम भूमिका निभाई
देश ने सुब्बाराव को पहली बार तब जाना जब चंबल के बहुत से दस्युओं ने आत्मसमर्पण किया था. जो लोग पचास साल पहले किशोर हुआ करते थे उनके मन पर सुब्बाराव ने गहरा असर डाला और बागी समस्या से पीड़ित इस इलाके के लोगों के व्यवहार-परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभाई.
सबको पता है कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चंबल में बागियों का सामूहिक समर्पण हुआ तब धरातल पर संयोजन का काम सुब्बाराव ने ही किया था. सुब्बाराव बागी समर्पण के दिनों में पुनर्वास का महत्वपूर्ण काम देख रहे थे. पर वे दस्यु समर्पण से जुड़ी बातों को करने से बचते थे.
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सुब्बाराव यानि भाईजी
गांधीवादी विचारधारा के पैरोकार सुब्बाराव को कई दिग्गज अपना आदर्श मानते थे. सुब्बाराव का जाना शांति की दिशा में अपने ढंग से प्रयासरत व्यक्तित्व का हमारे बीच से विदा होना है. उनसे जुड़ी अनेक स्मृतियां देशवासियों के मन को आलोकित करती रहेंगी. उनकी सद्भावना रेल यात्रा और असंख्य एकता शिविर सबको याद आते रहेंगे.
आज देश के विश्वविद्यालयों में एनसीसी की तरह जो राष्ट्रीय सेवा योजना है वह भी सुब्बाराव की पहल का परिणाम है. ‘करें राष्ट्र निर्माण बनायें मिट्टी से अब सोना ‘ युवाओं के कंठ में और मन में उन्हीं के कारण बैठा.
देश भर के गांवों में सरकार से बहुत पहले श्रमदान से अनेक सड़कें और पुल सुब्बाराव की पहल से बने. वह एक अलग ही दौर था. वातावरण बदलने में सुब्बाराव और उनके सहयोगियों की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है वह अब पता नहीं कितने लोग महसूस कर पाते हैं.
सुब्बाराव की मृत्यु का समाचार जीपीएफ में पहुंचा तो यहां पर काम करने वालों को लगा मानो उन्होंने अपने किसी वयोवद्ध परिजन को ही खो दिया. यहां से बहुत सारे लोग जौरा स्थित गांधी सेवा आश्रम में पहुंच रहे हैं. वहीं गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
देश भर में डॉ सुब्बाराव को उनके साथी भाईजी ही कहते थे. सुब्बाराव ने जौरा में गांधी सेवा आश्रम की नींव रखी थी, जो अब गरीब व जरूरतमंदों से लेकर कुपोषित बच्चों के लिए काम कर रहा है. आदिवासियों को मूल विकास की धारा में लाने के लिए वह अपनी टीम के साथ लगातार काम करते रहे हैं.
राजघाट के प्रभारी रहे रजनीश कुमार ने बताया कि सुब्बाराव दिल्ली प्रवास के दौरान राजघाट जरूर जाते थे. उन्हें यहां टहलना और बैठना पसंद था. वे राजघाट में आए बच्चों और युवाओं से भी बात करते थे और गांधी जी से जुड़े सवालों के जवाब देते.
(विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार और Gandhi’s Delhi के लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(कृष्ण मुरारी द्वारा संपादित)
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