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Friday, 22 November, 2024
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कूड़े के ढेर से गोल्फ कोर्स तक- इंदौर कैसे भारत का सबसे स्वच्छ शहर बन गया

इंदौर के पूर्व कलेक्टर लिखते हैं कि भारत को स्वच्छ बनाने की कोशिश ने इस शहर के सरकारी अधिकारियों और नागरिकों को कैसे जोड़ दिया.

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इंदौर को इस साल लगातार चौथी बार देश के सबसे साफ शहर के खिताब से नवाज़ा गया है. इंदौर के इस खिताब जीतने के पीछे सबसे बड़ी वजह है शहर के लोगों, उनके नुमाइंदों और सरकारी अधिकारियों के मिले जुले प्रयास. इंदौर का सफर प्रेरणदायक रहा है और इसने जो कदम उठाए, भारत और दुनिया के बहुत से शहर उनका अनुकरण कर रहे हैं.

इंदौर ने 2016 में जब इस दिशा में काम करना शुरू किया तो उसके सामने बहुत चुनौतियां थीं. नगरपालिका के पास कचरा प्रबंधन सिस्टम और प्रोसेस नहीं थे और इंफ्रास्ट्रक्चर नाम मात्र का था. मटीरियल रिकवरी सुविधाएं, ट्रांसफर स्टेशंस और प्रोसेसिंग यूनिट्स नदारद थे. खाद बनाने की सुविधाएं भी चालू हालत में नहीं थीं.

असंगठित ट्रेंचिंग ग्राउंड्स में विरासत में मिला हुआ 13 लाख टन कचरा था जिसमें मिथेन की वजह से आग लग जाती थी, बदबू उठती थी और उस पर बीमारी फैलाने वाले कीड़े आकर्षित होते थे. शहर के सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्से में, दर-दर से कचरा एकत्र किया जाता था जिसे सोर्स से अलहदा नहीं किया जाता था. मल अपशिष्ट को भी असंगठित तरीके से उठाया, ढोया और डंप किया जाता था.

शहर को इस अवांछनीय स्थिति से बाहर आना था जिसके लिए नागरिकों और समुदायों के सहयोग और सहायता की ज़रूरत थी. नगरपालिका कर्मचारी और सफाईकर्मी अपनी भरपूर क्षमता पर काम करने के लिए प्रेरित और संगठित नहीं थे. इसकी वजह थी निगरानी व्यवस्था का न होना और नागरिक शिकायत निवारण प्रणाली का बेअसर होना.

इसके अलावा सफाई का लक्ष्य हासिल करने के लिए कोई राजनीतिक जागरूकता नहीं थी. ठोस कचरा प्रबंधन प्रक्रिया के बारे में न तो स्थानीय मीडिया में कोई जागरूकता थी और न ही स्थानीय प्रशासन और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) में.


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सफाई तक का धीमा सफर

2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन ने भारत के हर शहर के सामने गंदगी पर काबू पाने की चुनौतियां पेश कीं. स्वच्छ बनने के लिए शहरों को राष्ट्रीय स्तर के एक प्रतियोगी कार्यक्रम में शामिल कराया गया. 2016 में इंदौर ने इस चुनौती में 25वीं रैंक हासिल की.

इस उपलब्धि ने इंदौर के नगरपालिका प्रशासन को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने अपने सामने अपने शहर को देश में सबसे साफ बनाने की चुनौती रखी. नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह और बाद में आशीष सिंह ने पूरे निगम को इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित किया.


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प्रक्रिया

सबसे बड़ी चुनौती थी घर पर कचरे को अलग करने के प्रति, इंदौर के नागरिकों के बर्ताव में बदलाव लाना- जिसमें उन्हें सूखा, गीला और खतरनाक कचरा (जैसे सैनिटरी नैपकिंस, डायपर्स वगैरह) रखने के लिए अलग-अलग बिन रखने थे. उनमें एक जागरूकता ये भी पैदा करनी थी कि सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी न फैलाएं.

इंदौर में सफाई की आदतें अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के वास्ते कई कदम उठाए गए:

. जिन इलाकों में लोग विरोध कर रहे थे उनके वॉर्ड्स और घरों में मुफ्त डस्टबिंस वितरित करना.

. लोगों को घरों पर कचरा अलग करने के लिए समझाने की खातिर नगर निगम अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों के साझा दौरे. एक घटना ऐसी भी हुई जिसमें कई बार अनुरोध करने के बावजूद एक नागरिक के अपना कचरा अलग करने से मना करने पर एक अधिकारी ने खुद उसके डस्टबिन से कचरा अलग किया. इससे उसे इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई कि न सिर्फ उस घर का बल्कि दूसरों का व्यवहार भी बदल गया.

. बहुत से धार्मिक नेता एक आम मंच पर जमा हुए और कई जगह बड़े पैमाने पर सड़कों की सफाई के कार्यक्रम चलाए गए.

. इंदौर नगर निगम (आईएमसी) ने 850 स्व-सहायता समूहों को अपने साथ लगाया जिनमें लगभग 8,500 महिलाएं थीं जिन्होंने घरों पर कचरा अलग करने की जागरूकता फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए.

. जिन क्षेत्रों पर ध्यान देने की ज़रूरत थी वहां ज़ीरो-वेस्ट मार्केट्स, ज़ीरो-वेस्ट परिसर लॉन्च किए गए.

. खाद बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए जिससे 50,000 से अधिक घर रसोई के कचरे को कंपोस्ट में बदलकर घर पर ही खाद बनाने लगे.

. घर पर कचरा अलग न करने और सार्वजनिक जगहों पर गंदगी फैलाने पर जुर्माना.

एक ‘डस्टबिन मुक्त शहर’ की पहल की गई. और वास्तव में कुछ ही समय के अंदर इंदौर एक ‘डस्टबिन मुक्त शहर’ बन गया. बहुत सी एनजीओ को हरकत में लाया गया जो लोगों को घर से अलग किया गया कचरा उठवाने के लिए प्रेरित करती थीं. अगली पंक्ति से अगुवाई करते हुए इंदौर की मेयर मालिनी लक्षमण सिंह गौड़ और दूसरे बहुत से जनप्रतिनिधियों ने इस बात में गहरी रूचि ली कि उनके वॉर्ड्स और इलाके साफ रहें. स्वच्छ शहर बनने की प्रतिस्पर्धा ने पार्षदों के बीच भी सबसे स्वच्छ वॉर्ड बनने की होड़ पैदा कर दी.


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मौजूदा स्थिति

आज इंदौर में 100 प्रतिशत घरेलू कचरा, घर पर ही अलग कर ट्रांसफर स्टेशन्स पर ले जाया जाता है जहां उसकी फाइनल प्रोसेसिंग और निस्तारण होता है. शहर के अलग-अलग हिस्सों में दस अत्याधुनिक मशीन-चालित ट्रांसफर स्टेशंस स्थापित किए गए हैं.

लंबे समय तक चलने वाले एकीकृत ठोस कचरा प्रबंधन सिस्टम के लिए इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर आधारित उपकरण और अनोखे वेनब्रिज मिकेनिज़म्स इस्तेमाल किए गए. बड़े बाइपास, सुपर कॉरिडोर्स और पुलों को साफ करने के लिए अब सड़क साफ करने वाली अत्याधुनिक यांत्रिक मशीनें इस्तेमाल की जाती हैं.

घर पर अलग करने से लेकर कचरे के अंतिम निस्तारण तक पूरी प्रक्रिया को डिजिटाइज़ करने के लिए एक कलेक्शन व ट्रांसपोर्टेशन एप विकसित किया गया. इससे डिजिटल फाइल्स के रूप में डेटा का 100 प्रतिशत मैनेजमेंट सुनिश्चित हो गया जिसमें नागरिकों का फीडबैक भी शामिल था.

इंदौर में गीले कचरे के प्रबंधन की तकनीकों को इसके सार्वजनिक परिवाहन से भी जोड़ा गया है. 200 टन रोज़ाना की क्षमता का एक बायो-सीएनजी प्लांट भी लगाया गया जो बायोमेथेनाइज़ेशन प्रक्रिया से गीले कचरे को गैस में परिवर्तित कर देता है. आज शहर की 15 बसें इसी बायो-सीएनजी गैस से चल रहीं हैं.

पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की तर्ज़ पर 300 टन की दैनिक क्षमता का एक ड्राई वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित किया गया है. साथ ही 100 टन रोज़ाना की क्षमता का, एक कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलीशन (सीएंडडी) वेस्ट प्लांट भी लगाया गया है जो निगम की सीमाओं के अंदर पैदा हुए कूड़े-करकट को प्रोसेस करता है. सीएंडडी वेस्ट को फिर से इस्तेमाल कर गैर-संरचनात्मक कंक्रीट, पेविंग ब्लॉक्स और सड़क बिछाने में निचली परत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

जैवोपचारण की प्रक्रिया से इंदौर के डंपिंग यार्ड को एक हरित पट्टी में तब्दील कर दिया गया है. पहले से जमा सौ फीसदी कचरे का फिर से निस्तारण कर 300 करोड़ रुपए की कीमत की सैकड़ों एकड़ ज़मीन वापस मिल गई है. वहां एक गोल्फ कोर्स और सिटी फॉरेस्ट बनाने का प्रस्ताव है. जिस जगह से कभी एक भयानक बदबू उठा करती थी वो अब ऐसी हो जाएगी जहां वीआईपी लोग चाय पीने जाया करेंगे.

3आर- रिड्यूस, रीयूज़, और रीसाइकिल पर आधारित, पांच से ज़्यादा पहलकदमियां की गईं हैं जिनका मकसद लंबे समय में इंदौर के कचरे को कम करना और निरंतरता को सुनिश्चित करना है. इनमें बर्तन बैंक, भोजन बैंक, डिस्पोज़ेबल मुक्त आयोजन, कचरे से बनी कलाकृतियां, ‘नेकी की दीवार’ और होटलों व रेस्ट्रॉन्ट्स में (सिंगल यूज़ प्लास्टिक कटलरी की जगह) फिर से काम में आने वाली कटलरी का इस्तेमाल शामिल है.

इंटरनेशनल इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन (आईईसी) की पारंपरिक गतिविधियों के अलावा, बहुत सी दूसरी सोशल मीडिया पहलकदमियां की गईं और यही वजह है कि नागरिकों की शिरकत के मामले में इंदौर का मुकाम हमेशा ऊंचा रहा है. 2017 में लोकप्रिय गायक शान का गाया गीत हो हल्ला, इंदौर के नागरिकों के लिए स्वच्छता गान बन गया. उसी गाने के नए रूप- जैसे हाय हल्ला, हैट्रिक लगाएंगे और चौका लगाएंगे– आगे आने वाले सालों में इंदौर वासियों को प्रेरित करते रहे.

2017 में जब इंदौर सबसे स्वच्छ शहर बन गया तो सारा ज़िम्मा इस तमगे को बचाने पर आ गया. उसके बाद से हर साल पहलकदमियों की संख्या में इज़ाफा ही हुआ है और उन्होंने शहर की सफाई की कहानी को मज़बूत किया है. नंबर एक पर बने रहने के लिए इंदौर खुद को चुनौती देता रहता है. 2020 में सबसे स्वच्छ शहर का खिताब हमें इस दिशा में आगे बढ़ाता रहेगा.

(लेखक एक आईएएस अधिकारी और मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ के प्रबंध निदेशक हैं. वो 2015 से 2017 तक एक कलेक्टर थे, जब इंदौर ने भारत के सबसे स्वच्छ शहर का अपना पहला खिताब जीता था. 2019-20 में वो राज्य स्तर पर नगरीय प्रशासन विभाग में आयुक्त और सचिव के पद पर रहे. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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