scorecardresearch
Tuesday, 7 May, 2024
होमराजनीतिकांग्रेस में गांधी परिवार के वफादार राहुल के खिलाफ क्यों हो रहे हैं

कांग्रेस में गांधी परिवार के वफादार राहुल के खिलाफ क्यों हो रहे हैं

पार्टी के आंतरिक सूत्रों के अनुसार, 200 से अधिक कांग्रेस नेता और यहां तक कि मुख्यमंत्री भी उन 23 लोगों का समर्थन करने को तैयार हैं, जिन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी की कार्यप्रणाली और नेतृत्व में बदलाव की मांग की है.

Text Size:

नई दिल्ली: कांग्रेस के कई पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी के 200 से अधिक वरिष्ठ नेता, जिनमें कई मुख्यमंत्री और संसद सदस्य शामिल हैं, तथाकथित लेटर-बम तैयार करने वालों के साथ हाथ मिलाने को तैयार है. वरिष्ठ नेताओं के एक धड़े ने अगस्त के शुरू में सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी की कार्यप्रणाली और उसके नेतृत्व में बदलाव की मांग की थी.

इस पत्र में उन्होंने पूर्णकालिक अध्यक्ष, ब्लॉक से लेकर कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) के स्तर तक चुनाव और ‘सामूहिक नेतृत्व’, जिसमें गांधी परिवार अभिन्न हिस्सा होगा, की मांग की थी.

2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद राहुल गांधी के इस्तीफा दे देने के कारण पिछले साल अगस्त से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रही हैं.

पार्टी नेतृत्व को झकझोरकर रख देने के ताजा प्रयास में कांग्रेस के चार वरिष्ठ नेता अग्रणी रहे हैं. इनमें हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और तीन पूर्व केंद्रीय मंत्री- कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और गुलाम नबी आजाद शामिल हैं.

हुड्डा ने दिप्रिंट से कहा कि वह ‘पार्टी के आंतरिक मामलों’ पर चर्चा नहीं करना चाहते हैं, जबकि अन्य तीन नेताओं ने उनकी टिप्पणी के लिए की गई फोन कॉल का कोई जवाब नहीं दिया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढ़ें: सीडब्ल्यूसी की बैठक के पहले कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर फिर गर्माया मुद्दा, राहुल को प्रेसीडेंट बनाने की मांग हुई तेज


खड़गे का राज्यसभा पहुंचना एक बड़ी वजह

व्यापक जनाधार वाले नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री की राहुल गांधी से नाराजगी की वजहें है, जो पिछले छह वर्षों से उन्हें कमतर आंक रहे हैं. गुलाम नबी आजाद, जिनका राज्यसभा का कार्यकाल अगले साल फरवरी से पूरा हो रहा है, लोकसभा में नेता विपक्ष रहे मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी आलाकमान द्वारा जून में उच्च सदन भेजे जाने के बाद से ही नाखुश हैं.

कांग्रेस के एक पदाधिकारी का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में कोई जनाधार नहीं होने और खड़गे के राज्यसभा में नेता विपक्ष के तौर पर उनकी जगह लेने की संभावना को देखते हुए हमेशा से ही गांधी परिवार के वफादार रहे आजाद ने निशाना साधने के लिए राहुल गांधी को चुना है.

राज्यसभा में उपनेता आनंद शर्मा, जिन्होंने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा और गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में कोई बड़ा जनाधार नहीं रखते हैं, भी इसी वजह से परेशान बताए जा रहे हैं क्योंकि खड़गे के आने से सदन में उनका कद बढ़ने की संभावनाएं क्षीण हो सकती हैं.

यद्यपि, इन चार नेताओं की तरफ से तैयार लेटर बम कथित तौर पर राहुल और प्रियंका गांधी द्वारा पिछली कुछ सीडब्ल्यूसी बैठकों में दिग्गज नेताओं को ‘अपमानित’ करने के प्रयासों की पृष्ठभूमि में आया है, पार्टी सूत्रों का कहना है कि ये चारों नेता ‘पिछले कम से कम पांच महीनों’ से विभिन्न राज्यों के दर्जनों नेताओं के संपर्क में थे.

पत्र तैयार किए जाने और उसे अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष को भेजे जाने से पहले उनके बीच कई बार बैठकें और टेलीफोनिक बातचीत हुई थी.


य़ह भी पढ़ें: ‘वंशवाद विरोधी’ नीतीश की जदयू ने 3 राजद विधायकों को पार्टी में शामिल किया, सभी ताकतवर राजनीतिक परिवारों से हैं


पार्टी कैसे काम करे पर हस्ताक्षरकर्ता बंटे

पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले कुछ नेता दिप्रिंट के साथ बातचीत के दौरान पार्टी नेतृत्व से अपनी अपेक्षाओं के संदर्भ में बंटे नजर आए. ज्यादातर नेता चाहते हैं ‘आजमाए और खारिज हो चुके’ राहुल गांधी ‘मोदी की राजनीति को समझने वाले राजनेता’ के लिए रास्ता साफ करें, वहीं कुछ नेता तब तक उनके साथ काम करने को तैयार हैं जब तक कि वह ‘बेहतर सिस्टम’ विकसित नहीं कर लेते.

आंतरिक चुनावों की उनकी मांग अंतत: राहुल के करीबी सहयोगियों को मात देने की ओर ले जाती है जिनकी संगठन में थोड़ी-बहुत ही पकड़ है. कांग्रेस संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन की मांग के पीछे उनका यह आकलन है कि इससे बुजुर्ग नेताओं को भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने का मौका मिलेगा.

एक बार टलने के बाद अब सोमवार को होने जा रही सीडब्ल्यूसी की बैठक से पहले पार्टी के पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि 200 से अधिक नेता किसी भी समय ‘जरूरत पड़ने’ पर उक्त पत्र लिखने वालों का समर्थन करने को तैयार है, हालांकि उन्होंने मौजूदा स्तर पर हस्ताक्षर न करने का फैसला किया है.

पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले एक नेता ने बताया कि अगर हस्ताक्षरकर्ताओं की आवाज को दबाने या उनकी चिंताओं को नजरअंदाज करने की कोशिश की गई, तो अन्य लोग भी इसमें शामिल हो जाएंगे. निलंबित कांग्रेस नेता संजय झा, जिन्होंने पिछले सोमवार को ही 100 नेताओं की तरफ से सोनिया गांधी को पत्र लिखे जाने की जानकारी सार्वजनिक की थी, ने रविवार को अपनी संख्या बढ़ाकर 300 कर दी है.

राहुल का बुजुर्गों को किनारे करना पत्र की वजह

यद्यपि पार्टी नेताओं को कांग्रेस में आए ठहराव और यथास्थितिवाद की चिंता सता रही है लेकिन ऐसा लगता है कि राहुल गांधी की मंशा के अनुरूप बुजुर्ग नेताओं को किनारे करने की गांधी परिवार की कोशिशें बगावत के पीछे असल वजह हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि इस्तीफा देने के बाद भी वह अपनी मां को ‘रबर स्टैंप’ बनाकर पार्टी चला रहे हैं.

उनका दावा है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के इच्छुक थे लेकिन पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं से छुटकारा पाने के बाद जो अब भी अपनी पारी खत्म करने के इच्छुक नहीं हैं.

इस पत्र को राहुल और विशेष पृष्ठभूमि से आने वाले नौसिखिये राजनीतिकों की उनकी सशक्त कोटरी पर ‘लगाम’ कसने की कोशिशों के तौर पर देखा जा रहा है. वह पार्टी के उन दिग्गजों को कमतर आंकने और उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने उनके माता-पिता–स्वर्गीय राजीव गांधी और सोनिया की सेवा की थी.


य़ह भी पढ़ें: गैर-गांधी अध्यक्ष वाली प्रियंका की टिप्पणी पर कांग्रेस ने कहा- यह एक साल पुरानी बात है


गांधी- दशकों के लिए

कांग्रेस के पुराने दिग्गजों को जिस बात ने सजग किया, वो है सीडब्ल्यूसी और अन्य बैठकों में उनका ‘अपमान’ होना— जहां प्रियंका गांधी वाड्रा बुजुर्ग नेताओं पर निशाना साधने में राहुल गांधी और उनके सिपहसालारों के साथ आ गई थी और सोनिया गांधी ने मूकदर्शक बने रहना बेहतर समझा.

उदाहरण के लिए, अंतिम सीडब्ल्यूसी बैठक में पुराने दिग्गजों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं बोलने पर भाई-बहन की जोड़ी उठकर चली गई थी. राज्यसभा सांसदों की एक अन्य बैठक में राहुल के सहयोगी राजीव सातव ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उपस्थिति में पार्टी की चुनावी असफलताओं के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती कांग्रेस वर्तमान में अपने भुत और भविष्य को लड़ते हुए दिग्भ्रमित देख रही है किंतु उसके केन्द्रीय में आज इतनी भी छमता नहीं की इस संघर्ष को सार्थक ढंग से रोके जिसका एक उदाहरण राजस्थान का सियासी संकट था पुराने थके कांग्रेसी नेता नये युवा नेताओं का मार्ग प्रसस्त करने के लिए तैयार नहीं राहुल गांधी की अयोग्यता जग जाहिर हो चुकी है वहीं इंदिरा जी और संजय जी के समय से कांग्रेस पूर्ण रूप से एक फॅमिली लिमिटेड पार्टी में बदल गई योग्य गांधी परिवार के नेता हीं इसे एक और कांग्रेसियों को नियंत्रित कर सकते थे संजय जी की असमय मौत और इंदिरा जी की हत्या ने मजबूरी में राजीव ग़ांधी को प्रचण्ड बहुमत से पीएम बने मगर राजीव गांधी में एक राजनीतज्ञ के गुण नगण्य थे वे वीपी सिंह जैसे सहयोगियों को नियंत्रित न कर सके कांग्रेस टूटी फिर नरसिम्हा राव ,सीता राम केसरी के कार्यकाल में तो ये विखंडन तेज हुआ सोनिया जी ने कांग्रेस को सत्ता तो दिलाई किन्तु वफादार पीएम बना रिमोट कंट्रोल की सरकार चलाने की प्रणाली ने गांधी के चाटुकारिता को विभत्स रूप दे दिया वहीं सरकार में भ्रष्टाचार को चरम पर पहुंचा दिया वहीं राहुल गाँधी के यूपीए के दोनों कार्यकाल में कोई पद न लेना ने उन्हें न केवल उन्हें अनुभव हिन् रखा वहीं मोदी और शाह की जोड़ी ने गैरजिम्मेदार साबित सफलता से कर दिया राहुल गांधी ने कांग्रेस में कुछ फेर बदल तो की जिसमें नए चेहरों को जिम्मेदारी के पद दिया। जिसके परिणाम .MP राजस्थान छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की वापिस हुई मगर राजस्थान एवं MP में नए गहलोत और कमलनाथ की वापसी ने सारे करे कराये पर न केवल पानी फेर दी बल्कि नये पुराने जंग को हवा दिया जिसकी कीमत कमलनाथ सरकार के पतन से मिला पायलेट की बगावत भी कुछ इसी की एक कड़ी थी इस कारण अब बूढ़े कांग्रेसी ये सोचते हैं की राहुल उनको वो तरजीह नहीं देते जो सोनिया जी देती थी वहीं कांग्रेस अपने नए चेहरों की भारी कमी से जूझ रही है अपने ऊपर वंशवाद और परिवार के छाया को देख उससे निकालने की चाहत भी है भले दिखावा ही सही हो सकता है कल कोई गांधी परिवार का विश्वस्थ दस जनपथ के रिमोट से पार्टी चलता दिखे किन्तु जनता को शायद ही कोई फायदा हो जनता ये जानती है और उसे कांग्रेस से कोई अब उम्मीदें भी नहीं हैं।

Comments are closed.