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Wednesday, 24 December, 2025
होममत-विमतबोंडी बीच की गोलीबारी से लेकर बांग्लादेश लिंचिंग—असली वजह की फिर अनदेखी होगी

बोंडी बीच की गोलीबारी से लेकर बांग्लादेश लिंचिंग—असली वजह की फिर अनदेखी होगी

धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाले लोगों के खिलाफ आज शायद नैतिक ‘जिहाद’ की जरूरत आ पड़ी है.

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बांग्लादेश में एक उन्मादी भीड़ ने ईशनिंदा के आरोप में एक बेकसूर व्यक्ति की बर्बरतापूर्ण हत्या कर दी. यह हमारे पड़ोसी देश के लोगों के लिए हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के लिए एक और बहाने के सिवा और कुछ नहीं था. इस वारदात को ऑस्ट्रेलिया के बोंडी बीच पर हनुक्का समारोह के दौरान भीड़ पर कायरतापूर्ण गोलीबारी के चंद दिनों के भीतर अंजाम दिया गया है. बोंडी बीच पर यहूदी विरोधी इस क्रूर कार्रवाई में धर्मांधों ने 15 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

धार्मिक आस्था जब युद्ध ध्वजा बन जाती है और उसका मकसद सिर्फ असहिष्णुता को बढ़ावा और अंजाम देना बन जाता है तब साधु-संतों को इस पर गौर करना चाहिए कि तथाकथित आस्थावान लोग किधर जा रहे हैं और आस्था किस दिशा में मुड़ रही है. आखिर, उनमें से किसी ने नफरत का पाठ तो नहीं पढ़ाया था. धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाले लोगों के खिलाफ आज शायद नैतिक ‘जिहाद’ की जरूरत आ पड़ी है.

ऐसी हिंसक घटनाओं के बाद उदार लोकतंत्रों में सदमे की लहर फैलती है, उनके नेता ऐसी करतूतों की निंदा करते हैं, समुदाय मारे गए लोगों का शोक करता है, और नेता लोग नागरिकों को आश्वस्त करने में जुट जाते हैं. लेकिन जो असली समस्या है उसकी अनदेखी कर दी जाती है, और हिंसा को जन्म देने वाली वैचारिक शक्तियों का नाम लिये बिना जिंदगी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ जाती है.

ऑस्ट्रेलिया में हुई गोलीबारी ऐसे असुविधाजनक सवाल खड़े करती है जिनका तमाम लोकतंत्रों को जवाब देना चाहिए. क्या किसी को नाराज कर देने का डर हमें दोषी की ओर उंगली उठाने से रोक देता है? धार्मिक संहिताओं के बारे में गलत जानकारी और उनकी गलत व्याख्या के कारण जो कट्टरता जन्म लेती है उसका विश्लेषण करने, और उसका प्रतिवाद करने के लिए सामूहिक बौद्धिक कसरत करने में हम असमर्थ क्यों रह जाते हैं? किसी आधुनिक, समावेशी, लोकतांत्रिक समाज में ऐसी बहिष्करणीय तथा आलोचनात्मक विश्वास प्रणालियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, जो दूसरी विचारधाराओं के प्रति असहिष्णु हों.

गीता का ज्ञान और हिंदू धार्मिकता

गीता का श्लोक 16.2 ‘अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, अ-दोषदर्शिता, सभी प्राणियों के प्रति करुणा, लोभ से मुक्ति, विनम्रता, सौम्यता, संकल्पबद्धता…’ की बात करता है. भगवदगीता का यह उपदेश हिंदू धर्म में निहित बहुलतावाद और सहिष्णुता को प्रतिध्वनित करता है. मेरे पूर्वजों की आस्था सहिष्णुता के सिद्धांत का पालन करती है—जिओ और जीने दो—और ऐसे दर्शन का, जो कट्टर नहीं है, सबको स्वीकार करता है और समावेशी है. शक्ति का प्रदर्शन संयम के जरिए किया जाता है, क्रोध और प्रतिशोध से नहीं. ‘आंख के बदले आंख’ के विचार के लिए हिंदू धर्म में कोई जगह नहीं है.

हिंदू धार्मिकता को चारित्रिक गुणों से समझा जाता है, कट्टरता या मतांधता से नहीं. समाज अपना दर्शन और मूल्य प्रकृति तथा पर्यावरण से ग्रहण करता है, और कुछ अनुष्ठानों में जो बुतपरस्ती पाई जाती है वह उस जीवन के प्रति सम्मान से ज्यादा कुछ नहीं है जिसे हम जीते हैं. जो 33 करोड़ देवी-देवता हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों के आधार हैं वे प्रकृति देवी की उपासना में निहित हैं. इसलिए सूर्य, वायु, इंद्र, ब्रह्मा-विष्णु-महेश हमारे लिए देवता हैं. नास्तिकों और दूसरे देवताओं में आस्था रखने वालों का हम उतना ही सम्मान करते हैं.

सौम्यता, भावनात्मक स्थिरता और विनम्रता को एक अच्छे मनुष्य के नैतिक गुणों में गिना जाता है. इसका अर्थ यह है कि भारतीय समाज शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, बहुलता और नैतिक आत्मानुशासन को ज़ोर-ज़बरदस्ती और धर्मांतरण से ज्यादा महत्व देता है. आचार-व्यवहार ही इस आस्तिकता की अवधारणा का मूल केंद्र है.

सनातन धर्म एक जीवन शैली

फ्रांस में जन्मे लेखक तथा इतिहासकार मिशेल दानिनो कहते हैं कि “रेलिजन एक पश्चिमी अवधारणा है; भारतीय अवधारणा में न तो रेलिजन है, न हिंदू धर्म है और न कोई और मतवाद है. यह सनातन धर्म है— इस ब्रह्मांड का शाश्वत विधान, जिसे किसी कठोर या अंतिम सिद्धांतों में सीमित नहीं किया जा सकता…” अंग्रेजी शब्द ‘रेलिजन’ की ‘मूल उत्पत्ति’ लातीन शब्द ‘रेलिगेयर’ से हुई है, जिसका अर्थ है बांधना यानी व्यक्ति किसी विशेष ईश्वर या आस्था से बंधा है.

दानिनो कहते हैं कि सनातन धर्म की भारतीय अवधारणा की जड़ें एक जटिल नैतिक व्यवस्था में धंसी हैं जिसमें यह ब्रह्मांड भी एक सदाचारी तथा सच्ची जीवन शैली के नैतिक सिद्धांतों से जुड़ा है. सनातन धर्म और ‘धर्म’ शब्द का अर्थ भारतीय संदर्भ में सदाचारी आचरण ही है; यह करुणा, नैतिकता, सहिष्णुता, और सबको साथ रखने के सिद्धांतों का पालन करता है. सनातन धर्म खुलेपन और स्वाधीनता बढ़ावा देता है इसलिए इसमें किसी एक ईश्वर या किसी निश्चित मान्यता आस्था रखना जरूरी नहीं है.

यह एक सनातन आस्था है जिसका कोई एक प्रवर्तक या कोई एक केंद्रीय सत्ता नहीं है, इसलिए यह व्यक्ति को किसी कठोर धार्मिक विचारों से बांधता नहीं है. बल्कि इसे एक तौर-तरीके के रूप में प्रस्तुत किया गया है, या आधुनिक मुहावरे में कहें तो यह बेहतर जीवन जीने का एक ‘मैनेजमेंट रोडमैप’ है. माना जाता है कि वेद, रामायण, महाभारत आदि पवित्र ग्रंथ ईसा पूर्व 850वीं सदी से वाचिक परंपरा के जरिए हम तक पहुंचे हैं.

धार्मिक कठोरता से कट्टरता पैदा होती है

एक ईश्वर बाकी सभी देवताओं से श्रेष्ठ है, यह मान्यता बहुलतावादी सहअस्तित्व के खिलाफ है. दूसरी आस्थाओं को स्क्रेप करने वाली और किसी एक आस्था के कट्टर अनुयायियों को स्वर्ग या जन्नत का वरदान दिलाने वाली धारणा धार्मिक असहिष्णुता को जन्म देती है और दूसरों के प्रति नफरत को जन्म देती है. ‘परायेपन’ की यह धारणा ही कट्टरता की ओर ले जाती है.

शोध बताते हैं कि 1970 के दशक के बाद से कट्टरतावाद फिर से बढ़ता गया है: पाकिस्तान के इस्लामी गणतंत्र में कट्टरपंथ हावी हुआ, बांग्लादेश में सुन्नी कट्टरवाद का उभार हुआ, और अफगान युद्ध ने इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया. इन सबके कारण कट्टरपंथ के प्रतीकों को मजबूती मिली, जैसे हिजाब का प्रचलन बढ़ा, शरिया कानून का उभार हुआ, स्त्री-पुरुष में भेदभाव बढ़ा.

कट्टरपंथ का उभार

इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन माध्यमों से युवा वर्ग कट्टरपंथी नारों के बहकावे में आ रहा है. उग्रवादी गुट अब सोशल मीडिया के जरिए सीधे घरों और लोगों के दिलों में घुसपैठ करके रंगरूटों की भर्ती कर रहे हैं, और प्रत्यक्ष व्यक्तियों वाला नेटवर्क प्रायः गैरज़रूरी हो गया है. ऑनलाइन प्लेटफोर्म्स, ऐप्स, गुप्त संदेशों, और डार्क वेब कट्टरपंथी प्रचार और नियुक्ति के सुरक्षित साधन बन गए हैं.

उग्रपंथी सामग्री सीधे आसान शिकार के दिमागों में डाली जा रही है, और अक्सर इस हद तक कि बोंडी बीच पर जनसंहार बाप-बेटे की जिस जोड़ी ने किया उनके बारे में ऐसा लगता है कि उनके परिवार वालों और यहां तक कि उनकी ‘पश्चिमी’ पत्नी को भी उनके इरादों और कामों की जानकारी नहीं थी. उग्रवादी तत्व बड़ी सावधानी से अपनी डिजिटल प्रोपगंडा का इस्तेमाल करते हुए अपने ‘शिकार’ को अपने जाल में फंसाने और भर्ती करने के लिए आकर्षक नरेटिव तैयार करते हैं. इनके शिकार प्रायः वे लोग बनते हैं जो भ्रमित होते हैं. ऐसे लोगों को एक मकसद से लैस किया जाता है और जन्नत के हीरे-मोती से सजे दरवाजे तक जल्दी पहुंचने का रास्ता दिखाया जाता है. यह पता नहीं लगता कि विचार कितनी गहराई तक थोप दिया गया है.

बताया जाता है कि 24 वर्षीय नवीद अकरम ने सिडनी के बाहरी इलाके में स्थित अल मुराद इंस्टीट्यूट से कुरान की पढ़ाई पूरी की थी. जांचकर्ता अभी जांच कर रहे हैं कि उसकी इस दीक्षा में इस पढ़ाई की कोई भूमिका है या नहीं, और क्या इसी ने अकरम को उन 15 लोगों की जान लेने को मजबूर किया जो अपना धार्मिक पर्व मना रहे थे.

आस्था से उपजी हिंसा इस विचार पर आधारित होती है कि मान्यता में एकरूपता होनी चाहिए, मतभेद रखने वालों को दंडित किया जाना चाहिए और व्यक्ति की अंतरात्मा इस धारणा को कबूल करे कि धार्मिक आज़ादी ही अपने आप में धर्मनिरपेक्षता है. जिन सभ्यताओं ने कभी जबरन धर्मांतरण नहीं करवाया वे इसे स्वतः समझते हैं. लेकिन जो लोकतंत्र यह दिखावा करते हैं कि सभी धर्म एक ही स्तर की सहिष्णुता का पालन करते हैं वे इसे नहीं समझते.

‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को भारतीय संविधान में बाद में शामिल किया गया, लेकिन यह देश आधुनिक राष्ट्र-राज्य के अस्तित्व में आने से बहुत पहले से इन मूल्यों पर चलता रहा है. प्राचीन सभ्यता इन सिद्धांतों पर अमल करती रही इसलिए वह उन लोगों को शरण और शांति प्रदान करती रही जिन्हें अपने देश में प्रताड़ित किया गया, जैसे सीरियाई ईसाई, यहूदी, ईरान के शिया, अफगानिस्तान के सुन्नी आदि. लेकिन इतिहास यह भी बताता है कि जिन्होंने इस सहिष्णु समाज का लाभ उठाया उन्होंने इसके खिलाफ भी काम किया, जिसके कारण मजहब पर आधारित दो अलग देश बन गए—पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि धर्मनिरपेक्ष संवैधानिकता—भेदभाव से मुक्त, समान सुरक्षा, धार्मिक आजादी, और अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक अधिकार—इस देश के वैधानिक ढांचे में संविधान के लिखित पाठ से ज्यादा प्रबल है. ये सिद्धांत इस देश की भावना में समाहित हैं, धर्म की अवधारणा के रूप में.

‘एकम सत्य विप्र बहुधा वदंती’, यानी सत्य एक है जिसे ज्ञानी लोग अलग-अलग नाम देते हैं.

मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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