scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतअलागिरी से लेकर दिनाकरन तक, तमिलनाडु की चुनावी बिसात में भाजपा के लिए स्थिति साफ होती जा रही है

अलागिरी से लेकर दिनाकरन तक, तमिलनाडु की चुनावी बिसात में भाजपा के लिए स्थिति साफ होती जा रही है

अमित शाह तमिलनाडु में कई परियोजनाओं का शुभारंभ करने जा रहे हैं, लेकिन केवल रजनीकांत से उनकी संभावित मुलाक़ात ही सुर्खियों में आने की संभावना है.

Text Size:

कैलेंडर में दिख रही चुनाव की तारीखें वास्तव में कहीं अधिक करीब हैं – राजनेता इस चेतावनी को अच्छी तरह समझते हैं. तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई 2021 में होने हैं, लेकिन राज्य में राजनीतिक हलचल पहले ही तेज़ हो चुकी है. जे जयललिता और एम करुणानिधि के बिना हो रहे इन चुनावों से पहले खुशबू सुंदर ने कांग्रेस को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है और अब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के एमके अलागिरी अपनी अलग पार्टी शुरू करने के लिए तैयार दिखते हैं, जबकि शनिवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तमिलनाडु पहुंच रहे हैं. आप इसे संयोग कह सकते हैं या फिर साफ होती राजनीतिक तस्वीर.

लेकिन असल डार्क हॉर्स हैं अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (एएमएमके) के कर्ताधर्ता टीटीवी दिनाकरन. उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु में ये एकमात्र पार्टी है जिसके नाम में ‘द्रविड़’ नहीं जुड़ा हुआ है. ये अपने आप में राज्य के लिए एक बड़ा परिवर्तनकारी राजनीतिक संकेत है. जयललिता के निधन के बाद उनकी मित्र और वफादार सहयोगी वीके शशिकला द्वारा स्थापित एआईएडीएमके के धड़े का नेतृत्व करने वाले दिनाकरन आने वाले दिनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. आध्यात्मिक रुझान वाले दिनाकरन, जो एक पक्के गौभक्त भी हैं (कहा जाता है कि उन्होंने कभी भी सुबह की गौपूजा नहीं छोड़ी है), ने कथित रूप से उत्तर-दक्षिण विभाजन और आर्य-द्रविड़ सिद्धांत का भी विरोध किया है. यदि ठीक ढंग से संभाला जाए तो टीटीवी (समर्थकों के बीच दिनाकरन इसी नाम से लोकप्रिय हैं) राज्य में राजनीतिक संतुलन को भाजपा के पक्ष में झुका सकते हैं.


यह भी पढ़ें: तमिलनाडु में भाजपा का खाता खुलने के लिए खुशबू सुंदर ही काफी नहीं, स्टार पॉलिटिक्स का दौर खत्म


भाजपा और एएमएमके के बीच खूब वैचारिक आत्मीयता रहने की संभावना है. दिनाकरन की बुआ शशिकला, जो आय से अधिक संपत्ति के मामले में चार साल की सज़ा काट रही हैं, ने निचली अदालत द्वारा थोपे गया और फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सही ठहराया गया 10 करोड़ रुपये का जुर्माना भर दिया है. वह इस साल के अंत तक या 2021 के आरंभ में जेल से बाहर आ सकती हैं, जो तमिलनाडु में जारी राजनीतिक नाटक में शामिल होने के लिए बिल्कुल सही समय होगा. भ्रष्टाचार का टैग लगे होने के बावजूद वह जेल में बिताए अपने समय को ‘जयललिता की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए दिए गए बलिदान’ के रूप में पेश कर ‘अम्मा’ के नाम पर सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर सकती हैं.

अपनी खुद की पार्टी शुरू करने की सोच रहे अलागिरी के पास भाजपा में शामिल होने का भी प्रस्ताव है. याद रहे कि 2014 में उन्होंने अपने डीएमके छोड़ने संबंधी सारी अटकलों का खंडन किया था. तब पार्टी के संरक्षक करुणानिधि ने एमके स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी चुना था, और स्टालिन की बहन कनिमोझी भी उनके खेमे में ही आ गई थीं. अलागिरी को पार्टी में कोई पद नहीं दिया गया था. महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार में चले भाइयों के संघर्ष के समान दिखते इस मामले में अलागिरी के अलग रास्ता पकड़ने पर डीएमके दो धड़े में विभाजित हो जाएगा, और उसका फायदा एआईएडीएमके-भाजपा गठजोड़ को मिलेगा. भाजपा डीएमके की सत्ता में वापसी नहीं होने देने के लिए कृतसंकल्प है. और, विडंबना देखिए कि उसे ज़्यादा कुछ करने की भी ज़रूरत नहीं है. 1967 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने वाली पार्टी डीएमके का प्रभाव आज अतीत की तुलना में कुछ भी नहीं है.

एआईएडीएमके की चिंताएं

इस बीच अपनी यात्रा के दौरान अमित शाह चेन्नई के पांचवे जलाशय के उद्घाटन और करीब 60 हज़ार करोड़ लागत वाली चेन्नई मेट्रो रेल परियोजना के दूसरे चरण के शिलान्यास के अलावा कोयंबटूर-अविनाशी रोड फ्लाईओवर, करूर जिले में कावेरी नदी पर शटर बांध, चेन्नई ट्रेड सेंटर के विस्तार कार्य, वल्लूर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के पेट्रोलियम टर्मिनल, अम्मूलावोयल में ल्यूब संयंत्र और चेन्नई कामराजर पोर्ट पर जेटी निर्माण की नींव भी रखेंगे.

इनमें से कोई भी परियोजना उनके मंत्रालय के तहत नहीं आती है, इसलिए मीडिया में उन्हें ज़्यादा प्रमुखता नहीं मिलने की संभावना है. लेकिन रजनीकांत से उनकी संभावित मुलाकात निश्चय ही सुर्खियों में रहेगी. रजनीकांत अभी तक अपनी राजनीति को लेकर हर पार्टी को उहापोह की स्थिति में रखने में सफल रहे हैं. लगता नहीं कि वह अपनी खुद की पार्टी शुरू करेंगे, या किसी अन्य पार्टी में शामिल होंगे. लेकिन उनका झुकाव निश्चय ही भाजपा की तरफ है और पार्टी के लिए ये अपने आप में एक बड़ी बात है. भाजपा पिछले दिनों अनूठे वेत्रिवेल यात्रा अभियान के ज़रिए अपनी छाप छोड़ने में सफल रही है. देवता मुरुगन का अस्त्र वेल उनके सम्मान में गाए जाने वाले एक भजन के खिलाफ ‘अपमानजनक’ टिप्पणी को लेकर आक्रोश का प्रतीक बन गया है. विवादास्पद टिप्पणी एक वीडियो में की गई है जो कि कथित रूप से डीएमके से संबद्ध एक यूट्यूब चैनल पर जारी किया गया था, हालांकि पार्टी ने इसका खंडन किया है. भाजपा ने इस मौके को भुनाने में तत्परता दिखाई और हिंदू भावनाओं को अपने पक्ष में करने के लिए इस विवाद के बहाने एक लोकप्रिय आंदोलन खड़ा कर दिया.

वैसे तो भाजपा के राज्य प्रमुख एल. मुरुगन ने एआईएडीएमके के साथ गठबंधन पर किसी संकट से इनकार किया है, लेकिन ई. पलानीस्वामी सरकार ने वेत्रिवेल यात्रा की यह कहते हुए कड़ी आलोचना की कि इससे राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ सकता है. यह उसके पूर्व के रवैये के विपरीत है क्योंकि पहले उसने यात्रा का विरोध सिर्फ कोविड-19 महामारी के कारण किया था. शायद एआईएडीएमके को डीएमके के हाथों अल्पसंख्यक वोट खोने का डर सता रहा होगा. उल्लेखनीय है कि पार्टी ने मार्च 2018 में ‘राम राज्य रथ यात्रा’ की अनुमति दी थी, जिसने भाजपा कैडर को एकजुट करने और अनेक हिंदू संगठनों को एक बैनर के तले लाने का काम किया था.

यह किसी से छुपा नहीं है कि दोनों द्रविड़ दलों ने अलग-अलग समय में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से हाथ मिलाकर अपने लोकप्रिय वोट बैंक, लोकप्रिय नेताओं और वैचारिक आधार को खोया है. फिर भी, यह स्पष्ट है कि वे अमित शाह को सफल होते नहीं देखना चाहेंगे और तमिलनाडु में भाजपा को राजनीतिक ज़मीन तैयार करने नहीं देंगे जैसा कि उन्होंने कांग्रेस के साथ किया था. भाजपा के लिए, एक गैर-द्रविड़ पार्टी पर दांव लगाना शायद अधिक सुरक्षित हो. आगे-आगे देखते जाइए, अभी तो खेल बस शुरू ही हुआ है.

(लेखक ‘ऑरगेनाइज़र ‘के पूर्व संपादक है. ये उनके निजी विचार है.)


यह भी पढ़ें: बिहार में नीतीश कुमार को एक महंगी जीत का, जबकि तेजस्वी यादव को सर्वश्रेष्ठ पराजित नेता का खिताब मिला है


 

share & View comments