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Monday, 23 December, 2024
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फ्रांसीसी राष्ट्रपति, शैम्पू, कॉस्मेटिक सब पाकिस्तान में हराम है, सिर्फ फ्रांसीसी रक्षा उपकरण नहीं

फ्रांस पर परमाणु हमले से लेकर मैक्रों का पुतला फूंकने तक पाकिस्तान ‘ईश निंदा’ को बर्दाश्त करने के मूड में कतई नहीं है.

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मुझे अच्छी तरह याद है कि कैसे 2001 में अफगानिस्तान पर हमले के विरोध में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की तस्वीरों को लाहौर के एक शॉपिंग सेंटर की फर्श पर चिपकाया गया था. वही जंग जिसमें पाकिस्तान अमेरिका का सहयोगी था. यहां तक कि कुछ दुकानों में पूर्व इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की तस्वीरें जमीन पर लगा दी गई थीं और लोग अपमान स्वरूप इस पर चलते नजर आते थे. आज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की तस्वीरें बिगाड़कर उन्हीं बाजार की सड़कों पर लगाई जा रही हैं ताकि लोग उन्हें अपने कदमों से कुचल सकें. इस बार विरोध प्रदर्शन ‘ईश निंदा’ के कारण फ्रांसीसी सरकार और चार्ली हेब्दो के विवादास्पद कार्टून को पुनः प्रकाशित करने के खिलाफ है.

विरोध प्रदर्शन का आह्वान लाजिमी था. आखिरकार विरोध के मोर्चे पर अगुआई करने वाली पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली ही थी, जिसने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके इमरान खान सरकार से फ्रांस से अपना राजदूत वापस बुलाने के लिए कह दिया था. एकबारगी तो यह कठोर निंदा की तरह लगा, यह बात अलग है कि वापस बुलाने के लिए कोई पाकिस्तानी राजदूत था ही नहीं. राजदूत नदारद होना काफी रोचक मामला है क्योंकि इस बारे में असेम्बली में शायद किसी को कोई स्पष्ट जानकारी ही नहीं थी.

फ्रांस पर परमाणु हमले की मांग किए जाने में भी कुछ नया नहीं था. पाकिस्तान हमेशा ही ‘चलो एटमी हमला कर दें’ वाले भाव में रहता है—फिर चाहे फ्रांस का मामला हो या भारत का. कभी-कभी तो इसे दोहराने का कोई कारण होता है पर अमूमन ऐसा होता है जैसे किसी ने गलती से दरवाजे की घंटी बजा दी हो और वह उस पर हमले के लिए परमाणु बम बैठे हों. हमेशा ट्रिगर दबाए तैयार बैठे खादिम हुसैन रिजवी तो फ्रांस को धरती के नक्शे से ही मिटा देना चाहते हैं, फिर चाहे इस सबमें हम खुद भी क्यों न मारे जाएं.

इस सप्ताह पाकिस्तान कुछ इसी स्थिति में रहा है.


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रक्षा उपकरण बहिष्कार के लिए नहीं

सोशल मीडिया पर जहां ‘मैक्रों शर्म करो’ ट्रेंड करता दिखा, वहीं इस्लामाबाद के कुख्यात जामिया हफसा मदरसे (लाल मस्जिद वाले) में ‘मैक्रों-कटिंग’ सेरेमनी का आयोजन किया गया. एक रिकॉर्डिंग में यहां का एक शिक्षक राष्ट्रपति मैक्रों के पुतले का सिर काटते नजर आ रहा है जबकि पीछे युवा छात्राओं की आवाज गूंज रही है, ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक ही सजा, सर तन से जुदा.’

‘बॉयकॉट फ्रांस’ अभियान तो यहां ऐसे शुरू किया गया है कि मानो पाकिस्तान अकेले अपने दम पर ही फ्रांस को दिवालिया करके छोड़ेगा. यह मत पूछो कि कैसे.

पाकिस्तान जिसका बहिष्कार नहीं कर रहा वह हैं फ्रांसीसी रक्षा उपकरण, जैसे अगोस्टा और डैफ्ने श्रेणी की पनडुब्बियां, मिराज लड़ाकू जेट का बेड़ा जिसे उसने मिस्र से खरीदा था, और यहां तक कि फ्रांस निर्मित एक्सोसेट मिसाइलें भी इसमें शामिल हैं. इसलिए, फ्रांस पर परमाणु हमले की बात करने वाले कृपया शांत बैठ जाएं. एटम बम-ईटीए किसी भी तरह हमारे पक्ष में नहीं है. करीब 6,000 किलोमीटर दूर होने के कारण फ्रांस पर पाकिस्तान की सबसे लंबी मारक क्षमता वाली मिसाइल शाहीन-3 से भी निशाना नहीं साधा जा सकता है. या फिर हो सकता है कि पाकिस्तान की फ्रांसीसी एयरबस उन्हें ले जा पाए!

रक्षा उपकरण बहिष्कार के लिए नहीं है, और अगर फ्रांस बहुचर्चित राफेल भारत भेजने के बजाय पाकिस्तान को दान में देना चाहे तो उस पर भी विचार किया जा सकता है. हमने सुना है कि भारत को बालाकोट के समय पर इन विमानों की कमी खली थी.

इसके अलावा विरोध के तौर पर पाकिस्तान यह भी कह सकता है कि पेशावर में रैपिड बस सेवा के लिए इमरान खान सरकार को फ्रांस से कर्ज के तौर पर मिले 19.5 बिलियन रुपये का एक भी पैसा नहीं लौटाया जाएगा. प्रधानमंत्री खान फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग को फ्रांसीसी ऋण की स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए एक पत्र लिख सकते हैं. उन्होंने हाल में सोशल मीडिया पर बढ़ते ‘इस्लामोफोबिया’ पर उन्हें लिखा है.

फ्रेंच फ्राइज से फ्रेंच किस तक

पाकिस्तान जैसे छोटे देशों में होता क्या है कि जब किसी उत्पाद के बहिष्कार की घोषणा की जाती है तो सबसे ज्यादा नुकसान स्थानीय उद्योग को उठाना पड़ता है. जैसा फ्रेंच पेट्रोल स्टेशन टोटल के बहिष्कार के मामले में हुआ है. जौहर टाउन स्थित एक टोटल स्टेशन पर पेट्रोल और डीजल की बिक्री 60 फीसदी गिर गई है. इसी तरह बहिष्कार अभियान का असर कई ऐसे उत्पादों पर पड़ रहा है जो फ्रांसीसी हैं भी नहीं. एलयू बिस्किट कंपनी को उसके विरोधी एक फ्रांसीसी कंपनी के रूप में प्रचारित कर रहे हैं जबकि यह एक स्थानीय ब्रांड है जिस पर एक पाकिस्तानी व्यापारी और एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी का सह-स्वामित्व है.

आइए उन चीजों पर ध्यान दें जिनका पाकिस्तानी लोगों द्वारा ‘बहिष्कार किया जाना चाहिए.’ सभी फ्रांसीसी चीजें हराम हैं, चाहे यह शैम्पू, डाई हो या गार्नियर, लोरियल और अन्य कंपनियों के सौंदर्य प्रसाधन. फ्रेंच फ्राइज, जो फांसीसी नहीं हैं, और फ्रेंच मैकरून, जो फ्रेंच है, को भी सूची में होना चाहिए. फ्रेंच टोस्ट के बहिष्कार का आह्वान ज्यादा कारगर होगा क्योंकि पाकिस्तान में अंडे वैसे भी 200 रुपये प्रति दर्जन बिक रहे हैं, इसलिए इसका बहिष्कार फ्रांस पर कोई असर डालने से ज्यादा आपके पैसे बचाने के काम आएगा. फैशन के मोर्चे पर फ्रेंच चोटी बनाने और फ्रेंच कट दाढ़ी रखना छोड़ने का समय आ गया है.

क्या इसका मतलब यह भी है कि लाहौर स्थित एफिल टॉवर की प्रतिकृति पर इस बार नए साल की पूर्व संध्या पर कोई आतिशबाजी नहीं होगी? आखिरकार, हममें से जो लोग वास्तविक एफिल टॉवर को देखने के लिए वीजा नहीं ले पाते थे, कम से कम लाहौरी प्रतिकृति के सामने खड़े होकर पोज बनाने का लुत्फ उठा सकते थे. नए साल की शाम की बात आती है तो फ्रेंच किस का भी बहिष्कार करें.

फ्रांस का सांकेतिक बहिष्कार कुछ समय तक जारी रहेगा, लेकिन पाकिस्तान में जो कुछ लगातार चलता रहेगा वह है ईश निंदा के नाम पर पहरेदारी. बुधवार को पंजाब के खुशाब में कथित तौर पर ‘ईश निंदा’ के कारण एक बैंक प्रबंधक की गोली मारकर हत्या कर दी गई. तत्काल ही नायक बनकर उभरे गार्ड को थाने की छत से अपने ‘समर्थकों’ को संबोधित करते देखा गया. क्या यह वही है जिसे पाकिस्तान चाहता कि पश्चिम ईश निंदा के नाम पर अपनाए?

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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