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Friday, 8 November, 2024
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भाजपा के चाल चरित्र चेहरे का इस्तेमाल कर केजरीवाल ने कैसे साधी दिल्ली

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल एक सशक्त चेहरा बन के उभरे पर उनके खिलाफ न भाजपा और न ही कांग्रेस कोई चेहरा खड़ा कर सके.

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दिल्ली में आम आदमी पार्टी की राजनीति को एक बार फिर दिल्लीवासियों ने दिल से अपनाया है. भारतीय जनता पार्टी के धुआंधार प्रचार के बावजूद बात नहीं बनी. आप ने भाजपा को सीधे संदेश दे दिया है कि अपने मूल्यों पर रह कर, अपनी राह पर अडिग बने रह कर और एक सशक्त नेतृत्व के तहत चुनाव लड़ कर जीता जा सकता है. 2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा अपने चाल चरित्र और चेहरे के बूते जनता के मन में जगह बना पाई थी और अब लगता है कि केजरीवाल और आप ने इस चुनावी मंत्र को आत्मसार किया और इसी के सहारे अपनी राजनीति को नई चमक दी. वहीं, भाजपा दिगभ्रमित होती दिखी और अपने दल बल के सहारे चुनाव जीतने की जुगत में दिखी. क्या थे वो पांच कारण जिन्होंने आप को सिकंदर बनाया?

जो सीख आम आदमी पार्टी ने विपक्ष को दी है वो है कि अपने चाल चरित्र और चेहरे के सहारे चुनाव लड़ना चाहिए. हांलाकि, अपने चाल चरित्र और चेहरे पर भाजपा दंभ करती रही है, पर इसी फॉर्मूले पर काम करते हुए आप ने जीत का बिगुल बजा दिया. पार्टी ने संदेश सकारात्मक रखा और इस बात पर ज़ोर दिया कि उसकी बात जनता के मन मुताबिक हो. आईए देखें कि केजरीवाल की जीत की कुंजी क्या रही-

चाल 

स्वयं को दिल्ली का बेटा बता कर चुनाव लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल ने चुनाव के कुछ महीनों पहले से ही अपनी चाल सीधी कर ली थी. विश्लेषक इसे प्रशांत किशोर का इफ़ेक्ट मानते हैं. विरोधी के द्वारा तय एजेंडे में फंसने की बजाय अपने रोडमैप पर चले. इस तरह आप विपक्ष के बुने हुए जाल में फंसने से बचती रही और उसके किसी भी बयान पर जबाव देने के चक्कर में अपनी लाइन से नहीं हटी.


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चरित्र

केजरीवाल ने जनता के सेवक के रूप में अपना प्रचार किया और हर सभा में वे पार्टी को दिल्ली की अपनी पार्टी के रूप में पेश करते रहे जिसका सरोकार देश की राजधानी तक सीमित था, जो पूरे दम खम से राजधानी की सेवा में जुटी थी. पार्टी का प्रचार बार-बार यही रहा कि दिल्ली के लिए आप को चुना जाए, जैसे देश के लिए जनता ने लोकसभा में मोदी और भाजपा को चुना था. आप ने राजनीति में हड़बड़ी न करने की सिख पिछले लोकसभा से सीखी थी केजरीवाल 2014 में मोदी के खिलाफ बनारस चुनाव लड़ने पहुंच गए थे और देश भर में पार्टी अपनी पहचान और पहुंच बनाने की कोशिश की और बुरी तरह विफल रही. उससे सीख कर केजरीवाल ने अपना ध्येय भी तय किया और अति महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाई.

चेहरा 

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल एक सशक्त चेहरा बन के उभरे पर उनके खिलाफ न भाजपा और न ही कांग्रेस कोई चेहरा खड़ा कर सके. आम आदमी पार्टी के नेतृत्व से टक्कर लेने वाला कोई चेहरा न दे पाना विपक्ष की बड़ी कमज़ोरी रही.

लोगों तक ये संदेश पहुंचा की केजरीवाल तो उनके साथ पांच साल से है और इतने सालों में भी दिल्ली में भाजपा ये तय ही नहीं कर पाई की उसका चेहरा कौन हौगा- मनोज तिवारी, हर्षवर्धन, परवेश वर्मा या कोई और ये कमी भाजपा को महंगी पड़ी और पार्टी दिल्ली में कोई कद्दावर नेता नहीं दे पायी है, जिसकी वजह से 21 सालों से वो दिल्ली की सत्ता से बाहर है.


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‘फ्री’ की राजनीति

मुफ्त बिजली, पानी, बस की चर्चा दिल्ली ही नहीं पूरे देश में रही. दिल्ली के निचले तबके के लोगों को इससे बड़ी राहत मिली. फिर महिलाओं की मुफ्त यात्रा शुरू करना भी केजरीवाल के लिए तुरुप का इक्का साबित हुआ. जहां तक बिजली का सवाल है – दिल्ली की सरकार ने बिजली के रेट को बढ़ा दिया और फिर कुछ यूनिट सस्ती कर दी. यानि कुछ लोगों से बढ़े बिजली दामों पर मोटी रकम हासिल की और गरीब तबके के कुछ लोगों तक मुफ्त बिजली पहुंचाई. भाजपा इसे मुद्दा नहीं बना पाई ये उसकी कमजोरी रही. मुफ्त की इस राजनीति के खिलाफ बोलना मुश्किल रहा तो वो दिल्ली की जनता को कुछ नया मुफ्त देने का वादा भी नहीं कर पाई. हालांकि, चुनाव की हार के बाद भाजपा के हरियाणा के नेता अनिल विज ने ट्वीट किया कि दिल्ली की जनता को मुफ्त खोरी की आदत हो गई है.

विकास बनाम शाहीन बाग

भाजपा ने चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में ध्रुवीकरण की भरपूर कोशिश की और खुद के ही विकास के एजेंडे पर न चल शाहीन बाग के बहाने ध्रुवीकरण करने की कोशिश की. प्रचार शाहीन बाग बनाम राष्ट्रवाद करने की कोशिश की गई.

लगातार हर सभा में बीजेपी नेताओं ने मुसलमान विरोधी बात की और आप पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया. केजरीवाल ने भाजपा के इस दाव को विकास और सकारात्मक एजेंडे पर रह कर फेल कर दिया. वे लगातार अपने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में मोहल्ला क्लिनिक आदि की चर्चा करते रहे. वीडियो स्टिंग के जवाब में वीडियो जारी कर के अपने एजेंडे से हिले नहीं. केजरीवाल अपने काम गिनाते रहे. जबकि विपक्षी भाजपा सीएए, राष्ट्रवाद, देशद्रोह जैसे मुद्दे उठाते रहें.

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