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Saturday, 2 November, 2024
होममत-विमत4 वजहें जिनके चलते योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में 7 नये मंत्रियों को शामिल किया

4 वजहें जिनके चलते योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में 7 नये मंत्रियों को शामिल किया

सात नये मंत्रियों में जितिन प्रसाद से लेकर छत्रपाल गंगवार तक हर नया मंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए एक-न-एक मकसद पूरा करता है.

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब अपने मंत्रिमंडल के विस्तार की घोषणा की, जो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले का शायद अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार है, तब उन्हें इन चार मसलों का उपाय ढूंढ़ना था— क्षेत्रीय संतुलन कैसे साधा जाए, भाजपा में शामिल हुए नये नेताओं को कैसे संतुष्ट किया जाए, सोशल इंजीनियरिंग को कैसे साधा जाए, और नया वोट आधार कैसे बनाया जाए.

योगी आदित्यनाथ ने इन सात नये चेहरों को चुना— जितिन प्रसाद, संगीता बिंद, छात्रपाल सिंह गंगवार, दिनेश खटीक, संजीव कुमार उर्फ संजय गोंड, धरमवीर प्रजापति और पलटू राम. पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को छोड़ बाकी सभी को राज्यमंत्री बनाया गया है.

क्षेत्रीय संतुलन

उत्तर प्रदेश को मोटे तौर पर पांच क्षेत्रों में बांटा जाता है— पश्चिमी उत्तर प्रदेश, रुहेलखंड, अवध, पूर्वांचल और बुंदेलखंड. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन सभी क्षेत्रों से नेताओं को चुना— धरमवीर प्रजापति (आगरा) और दिनेश खटीक (मेरठ) पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. छात्रपाल सिंह गंगवार (बरेली) रुहेलखंड के, जितिन प्रसाद (शाहजहांपुर) और पलटू राम (गोंडा) अवध के. संगीता बिंद (गाजीपुर) पूर्वांचल की और संजीव कुमार उर्फ संजय गोंड (सोनभद्र) बुंदेलखंड के हैं.

ब्राह्मण नेताओं का तुष्टीकरण

जितिन प्रसाद को शामिल किए जाने का अर्थ है कि पार्टी ऊंची जातियों में अपना आधार मजबूत बनाए रखने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती. प्रसाद ने ब्राह्मणों की उपेक्षा का दावा करते हुए ब्राह्मण युवाओं को साथ लेकर योगी सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था. प्रमोद तिवारी के साथ प्रसाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरे माने जाते थे. ब्राह्मण युवाओं में प्रसाद की बढ़ती लोकप्रियता से निकट भविष्य में भाजपा को नुकसान हो सकता था.

इसी रणनीति के तहत पार्टी ने कभी मजबूत पिछड़े नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, नरेंद्र कश्यप और एसपी सिंह बघेल को विरोधी बसपा और सपा से तोड़कर अपने में शामिल किया था. कहा जाता है कि इन नेताओं के आने से पिछड़े वोट भाजपा खेमे में आए हैं.


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सोशल इंजीनियरिंग

नये मंत्रियों की सामाजिक पृष्ठभूमि बताती है कि भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के मामले में बढ़त ले ली है. सात नये चेहरों में से तीन पिछड़ी जतियों के हैं, दो अनुसूचित जातियों (एससी) के और एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) का है. छत्रपाल गंगवार को शामिल करके बरेली क्षेत्र के कुर्मियों को संतुष्ट करने की कोशिश की गई है, जो नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल से संतोष गंगवार को हटाए जाने से नाराज बताए जाते हैं. मंत्रिमंडल में शामिल किए गए पिछड़ी जाति के दो अन्य मंत्री राजनीतिक रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों से हैं. पिछले दो दशकों से भाजपा पिछड़ी जातियों में प्रबल बनाम निर्बल समूह का विमर्श शुरू कराने में सफल रही है. प्रबल पिछड़ी जातियां वे हैं जो राजनीतिक रूप से ताकतवर हैं. वैसे, राजनीति के अलावा जातियां रिवाजों, और साधनसंपन्न होने के कारण भी वर्चस्व हासिल कर लेती हैं.

भाजपा की रीति राजनीतिक रूप से प्रबल पिछड़ी जातियों के खिलाफ हाशिये पर पड़ी पिछड़ी और दलित जातियों को आगे बढ़ाने की रही है. इस रणनीति पर राजनीतिक टीकाकारों की नज़र उसके हिंदुत्ववाद के शोर के कारण नहीं पड़ी है. इस कारण भाजपा पिछड़ी जातियों को अपने समर्थन में जुटाने के लिए ओबीसी या बहुजन या दलित के रूप में उनकी पहचानों को आधार बनाने की जगह अलग-अलग जातियों के तुष्टीकरण की नीति पर अमल करती रही है. वह इन मतदाताओं को यह भी संदेश देती रही है कि ‘भाजपा के राज में राजनीतिक रूप से प्रबल जातियों के उत्कर्ष की गति धीमी हुई है.’

वोट के नये आधार

संजीव कुमार उर्फ संजय गोंड को राज्यमंत्री बनाया जाना यह संकेत देता है कि भाजपा को जनजातीय समुदाय से बड़े लाभ की उम्मीद है. हालांकि उत्तर प्रदेश में इस समुदाय का आबादी महत्वपूर्ण नहीं है और वह बिखरी हुई है. उनमें प्रमुख हैं थारू, गोंड, खरवार आदि. गोंड और उसकी उप-जातियां धुरिया, नायक, ओझा, पथरी, राज गोंड को इन जिलों में अनुसूचित जातियों की सूची में रखा गया है—महाराजगंज, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी और सोनभद्र. लेकिन दूसरे जिलों में इन जातियों को ही अनुसूचित जातियों की सूची में रखा गया है. भाजपा ने 2002 में ही वादा किया था कि गोंड और उसकी उप-जातियों को पूरे प्रदेश में एसटी की सूची में शामिल कर दिया जाएगा. इसकी कोशिश भी की गई लेकिन इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी.

पूरे प्रदेश में इन सामाजिक समूहों का समर्थन हासिल करने की रणनीति भाजपा के पास है. इसलिए इस अमुदाय का समर्थन जुटाने के लिए उसने डॉ. संजय गोंड के अध्यक्षता में एक एसटी शाखा शुरू की है. वास्तव में, प्रदेश में भाजपा ही अकेली पार्टी है जिसने अलग एसटी शाखा बनाई है.

ठोस से ज्यादा दिखावटी प्रतिनिधित्व

योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल के ताजा विस्तार के बाद उनके मंत्रियों की सामाजिक पृष्ठभूमि के विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा ने दलितों और पिछड़ों को ठोस की जगह दिखावटी प्रतिनिधित्व देने की रणनीति अपनाई है. योगी आदित्यनाथ ने उन्हें केवल राज्यमंत्री का दर्जा दिया है, जो निर्णय प्रक्रिया में शायद ही कोई दखल रखते हैं.

उम्मीद की जा रही थी मंत्रिमंडल विस्तार से कुछ अप्रत्याशित परिवर्तन होगा. अटकलें थीं कि मोदी के विश्वासपात्र अरविंद शर्मा और किसी दलित नेता को उप-मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लखनऊ के राजनीतिक हलक़ों में कृष्णा राज, लक्ष्मण आचार्य और बेबी रानी मौर्य के नाम भी चर्चा में थे. उन्हें शामिल न किया जाना बताता है कि अपने मंत्रिमंडल के गठन और ढांचे पर योगी आदित्यनाथ का पूरा नियंत्रण है और वे पार्टी के व्यापक रणनीति से अलग रास्ता नहीं पकड़ने वाले.

(लेखक @arvind_kumar__ रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं .ये लेखक के निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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