भारतीय सेना ने ‘भारत के सैन्य मामलों में क्रांति लाने’ के लिए तीन साल पहले चार शोध करवाए थे, ताकि भविष्य की लड़ाइयों के बारे में जीत के नये सिद्धांतों और उभरती सैन्य टेक्नोलॉजी के आधार पर एक समग्र सैन्य परिकल्पना तैयार की जा सके. शोध ने रणनीति और सैन्यबलों के पुनर्गठन की जरूरत पर ज़ोर दिया ताकि वे भविष्य की जंग लड़ने के लिए तैयार हो सकें.
पहले शोध में सेनाओं के पुनर्गठन और मोर्चे पर तैनात टुकड़ियों को पुनर्गठित करने और उनका नया ढांचा बनाने पर ज़ोर दिया गया ताकि वे अधिक शीघ्रता और तेजी से कार्रवाई कर सकें, और ऊपर से नीचे तक के उनके अनुपात में सुधार हो. दूसरा शोध सेना मुख्यालय के पुनर्गठन के बारे में किया गया ताकि एकता मजबूत हो और निरर्थकताओं पर रोक लगे. तीसरा शोध सेना अधिकारियों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उनके काडर की समीक्षा पर केन्द्रित था और चौथा शोध साधारण फ़ौजियों की सेवा शर्तों की समीक्षा, सेना में उनकी सेवा अवधि बढ़ाने तथा प्रमुख कमानों को युवा स्वरूप देने, और सैनिकों का जोश बढ़ाने के उपायों पर केन्द्रित था.
चारों शोधों की सिफ़ारिशों को 9 अक्तूबर 2018 को हुए आर्मी कमांडर सम्मेलन में मंजूरी दी गई थी. उन सिफ़ारिशों को लागू करने का काम चल रहा है. ये सुधार बिना किसी रणनीतिक समीक्षा के, और बिना औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के शुरू किए गए और सैन्य मामलों में क्रांति (आरएमए) लाने के ऊंचे लक्ष्य को हासिल करने में चूक गए. ये सुधार न तो सरकारी थे और न इनमें बजट का कोई हिसाब रखा गया, जो कि सेना के आकार को अनुकूल बनाने के लिए जरूरी तकनीकी बदलाव और आधुनिकीकरण पर निर्भर करता है. लक्ष्य शायद पुनर्गठन और निरंतर उच्च तकनीक अपनाना था.
जो भी हो, मोर्चे पर तैनात फौज के पुनर्गठन के लिए जरूरी लीक तोड़ने वाले सुधारों को संकल्प तथा उत्साह से आगे बढ़ाया गया. भविष्य की लड़ाइयों के लिए बनाए जाने वाले युद्धक समूहों के रूप में ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ के गठन के लिए इन सुधारों में हुई प्रगति का मैं यहां विश्लेषण करने की कोशिश कर रहा हूं.
सेना के लिए ‘डिफ़ाल्ट फाइटिंग फॉर्मेशन’
दो सदियों से सेना के ‘डिवीजन’ ही अपने विभिन्न स्वरूपों में स्वतंत्र कार्रवाई करने में सक्षम ‘डिफ़ाल्ट फाइटिंग फॉर्मेशन’ रहे हैं. तीन-चार डिवीजनों को मिलाकर एक कोर बनता है जिसमें 10 से 20 हजार के बीच सैनिक होते हैं और तीन-चार पराक्रमी ब्रिगेड भी शामिल होते हैं जिन्हें केंद्रीय नियंत्रण के अधीन कम्बेट/लॉजिस्टिक्स सपोर्ट फॉर्मेशन का सहारा हासिल होता है. एक डिवीजन फौजी कार्रवाई के लिए तीन/चार ब्रिगेड के आकार के सैन्य समूहों को भेज सकता है. इस आकार के समूह के साथ अंतिम युद्ध पहली तथा अंतिम खाड़ी युद्ध में लड़े गए थे.
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पिछले दो दशक से अधिकतर देश इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि निर्णायक जीत के लिए पूर्ण युद्ध की संभावना बहुत कम हो गई है. भविष्य के युद्ध, खासकर परमाणु शक्ति से लैस देशों के बीच, सीमित समय में सीमित स्थान लड़े जाएंगे और उनमें सटीक और निर्णायक मार करने वाली सैन्य तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इस युद्ध में पहला वार करने वाला बड़े फायदे में रहेगा. ऐसे युद्धों में कोर और डिवीजन बहुत बोझिल और जवाबी कार्रवाई में सुस्त साबित हो सकते हैं. इसके चलते कोर के सीधे कमान में ब्रिगेड आकार के छोटे संयुक्त बैटल ग्रुप बनाए जाने लगे. संचार और नेटवर्किंग की आधुनिक व्यवस्थाओं ने डिवीजन की जरूरत को खत्म कर दिया है. इनके उपयोग की मिसाल पिछले साल पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की शुरुआती कार्रवाइयों में मिलती है, जिसमें छह संयुक्त आर्म्स ब्रिगेड तैनात किए गए थे.
सार यह कि डिवीजन के पास केंद्रित संसाधन होते थे और उनका उपयोग करके वह ब्रिगेड आकार के बैटल ग्रुप बनाता था. अब ब्रिगेड आकार के संयुक्त बैटल ग्रुप खतरे, इलाके और मिशन का अंदाजा लगाकर उसी की जरूरत के आकार के बनाए जाते हैं. इनमें विभिन्न यूनिटें होती हैं—आर्मर्ड, मेकनाइज्ड इनफैन्ट्री, इनफैन्ट्री और कंबेट/लॉजिस्टिक्स सपोर्ट यूनिट/सब-यूनिट. सभी आधुनिक सेनाओं ने बदलाव कर दिया है या कर रही हैं और ‘डिफ़ाल्ट फाइटिंग फॉर्मेशन’के रूप में ग्रुप तैयार कर रही हैं. भारतीय सेना ने अपने नये ‘डिफ़ाल्ट फाइटिंग फॉर्मेशन’ को इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप (आइबीजी) नाम दिया है.
इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप
यह सुकून देने वाली बात है कि भारतीय सेना ने पिछले तीन वर्षों से बड़े सलीके से इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप के विचार का परिष्कार और परीक्षण किया है और उसे अमली जामा पहनाने जा रही है. सभी आइबीजी को मिशन, खतरे और इलाके के हिसाब से गठित किया जाएगा. डिवीजनों को कोर मुख्यालय के अंदर काम कर रहे ब्रिगेडियर या मेजर जनरल की कमान में दो-तीन आइबीजी में पुनर्गठित किया जाएगा. आइबीजी को जरूरत के मुताबिक संसाधन के साथ कार्रवाइयां करने के लिए कमान, और कंट्रोल और संगठन के बारे में फैसले करने की छूट होगी. आइबीजी भूमिका के मुताबिक मेकनाइज्ड फोर्स हो सकते हैं या मुख्यतः इनफैन्ट्री हो सकते हैं या दोनों का संतुलित मिश्रण हो सकते हैं. कंबेट और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट की यूनिट/सब-यूनिट अलग-अलग हो सकती है. कोर लॉन्ग रेंज और बड़े कंबेट और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट फोरमेशन/यूनिट पर नियंत्रण रखेगा. भूमिका के अनुसरर एक कोर के तहत छह से नौ आइबीजी तक हो सकते हैं.
इस पुनर्गठन से सेना का आकार संतुलित होगा, कम लोगों की जरूरत पड़ेगी और वह ज्यादा कुशल भी होगी. आइबीजी ‘कोल्ड स्टार्ट’ रणनीति को ज्यादा कुशलता से लागू कर सकते हैं. इसके विपरीत, इन्हें दूषन्मन सेना को बढ़त लेने की कोशिश से रोकने के लिए तेजी से तैनात किया जा सकता है. पूर्वी लद्दाख में अपनी टोही और खुफिया व्यवस्था के आधार पर 14 कोर को तीन-चार आइजीबी में पुनर्गठित करके डेप्सांग, गोगरा-हॉट स्प्रिंग-कोंग्का ला, पैंगोंग सो के उत्तर, और चुशूल तथा सिंधु घाटी सेक्टर में कैलाश रेंज या एलएसी के आगे तक के क्षेत्र में पहले पहुंचकर चीनी सेना को रोका जा सकता था. 14 कोर में जो कमी थी उसे मैदानी इलाकों से रिजर्व फॉर्मेशन लाकर पूरा किया जा सकता था.
अब सितंबर के अंत तक दो आइबीजी- एक-एक 9 कोर (मैदानी इलाके) और एक एक ऊंची पहाड़ियों के लिए 17 कोर में—तैनात किए जा सकते हैं. पहले चरण में 2022 के मध्य तक 17, 9, 33 कोर के डिवीजनों को क्रमशः 2, 4, 6 आइबीजी में बदल दिया जाएगा. इसके बाद धीरे-धीरे सभी डिवीजनों को आइबीजी में पुनर्गठित कर दिया जागा.
छूटी कड़ी
सेना ने द्वितीय विश्वयुद्ध के जमाने के पुरातन ढांचे को पुनर्गठित करके लीक से हटकर आंतरिक सुधार करने का यह बड़ा काम किया है. इन सुधारों की शुरुआत जनरल बिपिन रावत ने की है, जो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ हैं. अब उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार पर दबाव डालकर आरएमए को अपनाने और औपचारिक स्वरूप दिलवाने की कोशिश करनी चाहिए.
रणनीतिक समीक्षा के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को आकार दिया जाना चाहिए. आरएमए लगगों करने के लिए जो सुधार किए जाएं वे सर्व-समावेशी, तीनों सेनाओं के लिए हों जिनमें थिएटर कमान बनाना भी शामिल हो. यह सब रक्षा मंत्री के अधीन एक संचालन समिति के मार्ग निर्देशन में हो. यह प्रक्रिया प्रगतिशील हो और उस रक्षा बजट के तहत हो जिसे अर्थव्यवस्था वहन कर सके. आरएमए के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और समग्र तथा आमूल सुधारों की जरूरत होगी. क्रमिक परिवर्तन चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों इस लक्ष्य से पीछे ही रह जाते हैं.
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