पिछले तीन महीनों में नरमी के बाद, जनवरी के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति की दर भारतीय रिज़र्व बैंक के टॉलरेंस बैंड की ऊपरी सीमा को पार कर गई. दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति में 5.7 प्रतिशत से जनवरी में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि काफी हद तक खाद्य कीमतों, विशेष रूप से खाद्यान्न की वजह से थी. जनवरी में अनाज की महंगाई दर 16.1 फीसदी पर पहुंच गई. इसके साथ ही दूध, अंडे और मांस जैसी प्रोटीन युक्त वस्तुओं की कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति 4.58 प्रतिशत से बढ़कर 6.19 प्रतिशत हो गई.
कोर मुद्रास्फीति 6.2 प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई है. पिछले हफ्ते, आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने संकेत दिया था कि मुख्य मुद्रास्फीति की दृढ़ता को तोड़ने के लिए और अधिक दरों में वृद्धि की आवश्यकता हो सकती है. जनवरी में सीपीआई मुद्रास्फीति में वृद्धि के साथ, जनवरी-मार्च तिमाही के लिए आरबीआई के 5.7 प्रतिशत के पूर्वानुमान में उल्टा जोखिम हो सकता है.
इसके विपरीत, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में गिरकर दो साल के निचले स्तर 4.73 प्रतिशत पर आ गया. यह लगातार चौथा महीना है जब थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति लगातार 18 महीनों तक दहाई अंकों में रहने के बाद एक अंक में बनी हुई है. मुद्रास्फीति में गिरावट मुख्य रूप से ईंधन और विनिर्मित उत्पादों की कीमतों में नरमी की वजह से थी. विनिर्मित उत्पादों में मुद्रास्फीति, जो डब्ल्यूपीआई बास्केट के 64 प्रतिशत से अधिक का निर्माण करती है, दिसंबर में 3.37 प्रतिशत से जनवरी में 2.99 प्रतिशत तक कम हो गई.
खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति दिसंबर में -1.25 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी में 2.38 प्रतिशत हो गई. वेट्स के कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि का WPI की तुलना में CPI पर अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव पड़ेगा. WPI बास्केट में फूड आइटम्स का वेटेज लगभग 25 प्रतिशत है, जबकि CPI बास्केट में इसका वेटेज 46 प्रतिशत है.
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सीपीआई और डब्ल्यूपीआई की कमोडिटी संरचना
सीपीआई और डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति के बीच विचलन का एक प्रमुख कारण वस्तुओं के बास्केट और उनके वेटेज में अंतर से उत्पन्न होता है. जबकि ओवरऑल CPI एक औसत शहरी या ग्रामीण परिवार द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की एक रिप्रेजेंटेटिव बास्केट की लागत का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि WPI घरेलू बाजार में थोक बिक्री के फर्स्ट प्वाइंट के सभी ट्रांजेक्शन को कैप्चर कर लेता है.
चूंकि दो सूचकांक अलग-अलग चरणों में कीमतों को कैप्चर करते हैं, इसलिए उनकी संरचना अलग-अलग होती है. उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (सीईएस) से प्राप्त एक भारतीय परिवार के औसत मासिक उपभोक्ता व्यय के आधार पर सीपीआई सीरीज में वस्तुओं के बास्केट और उनके वेटेज को प्राप्त किया जाता है. सीईएस परंपरागत रूप से सरकार के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा आयोजित एक पंचवार्षिक (हर पांच साल में होने वाले) सर्वेक्षण है. सर्वेक्षण को शहरी और ग्रामीण दोनों ही तरह के देश भर के परिवारों के उपभोक्ता खर्च पैटर्न पर जानकारी एकत्र करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. वर्तमान में, बास्केट जुलाई 2011 से जून 2012 की संदर्भ अवधि के साथ CES के 68वें राउंड पर आधारित है.
सीएसओ संशोधित मॉडीफाइड मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (एमएमआरपी) का उपयोग करके मदों और उनके वेटेज की सीपीआई बास्केट तैयार करता है. इस तरीके का इस्तेमाल करके, खाद्य पदार्थों और कुछ अन्य वस्तुओं के लिए, पिछले सात दिनों के दौरान किए गए व्यय का डेटा एकत्र किया जाता है. टिकाऊ वस्तुओं, कपड़ों और जूतों के लिए पिछले 365 दिनों के दौरान किए गए व्यय का डेटा एकत्र किया जाता है. कुछ अन्य वस्तुओं जैसे ईंधन और प्रकाश, कई वस्तुओं और सेवाओं के लिए संदर्भ अवधि 30 दिन है. इस पद्धति को खपत पैटर्न का अधिक सटीक प्रतिबिंब देने के लिए समझा जाता है.
WPI बास्केट में शामिल वस्तुओं को दिया गया वेटेज शुद्ध आयात के लिए समायोजित आधार वर्ष में उत्पादन के मूल्य पर आधारित होता है. WPI बास्केट में तीन बड़ी चीजें हैं – 22.62 के वेटेज के साथ प्राथमिक वस्तुएं, 13.15 के वेटेज के साथ ईंधन व बिजली और 64.23 के सबसे बड़े शेयर के साथ विनिर्मित उत्पाद.
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सेवाओं की मुद्रास्फीति में हालिया वृद्धि को WPI में शामिल नहीं किया गया है.
हाल के महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले एक अन्य घटक स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्सनल केयर व्यक्तिगत देखभाल और प्रभाव जैसी सेवाओं की कीमतों में वृद्धि रही है. ये CPI बास्केट के प्रमुख घटक हैं, लेकिन WPI के अंतर्गत नहीं आते हैं. वास्तव में, समग्र सीपीआई बास्केट में सेवाओं का संयुक्त वेटेज लगभग 24 प्रतिशत है. जब सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं तो उन्हें सीपीआई में शामिल किया जाता है, लेकिन डब्ल्यूपीआई में नहीं.
वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में हालिया नरमी ने WPI को प्रभावित किया है
WPI आइटम बास्केट में विनिर्माण इनपुट और मध्यवर्ती सामान जैसे खनिज, मूल धातु, मशीनरी आदि शामिल हैं, जिनकी कीमतें वैश्विक कारकों से प्रभावित होती हैं, लेकिन इनका उपभोग सीधे परिवारों द्वारा नहीं किया जाता है. एडमिनिस्टर्ड कीमतों के उदारीकरण के साथ व्यापार एकीकरण ने WPI टोकरी के बढ़ते हिस्से को व्यापार योग्य वस्तुओं में बदल दिया है, जिनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्धारित की जाती हैं. इस प्रकार, WPI वैश्विक कीमतों के साथ तालमेल बिठाने की प्रवृत्ति रखता है. एक उदाहरण के रूप में, वैश्विक धातु की कीमतों में वृद्धि WPI आधार धातु की कीमतों में दिखी. वैश्विक धातु की कीमतों में नरमी से भी WPI धातु मुद्रास्फीति में नरमी आई.
व्यापारिक वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव पर मौद्रिक नीति का कोई नियंत्रण नहीं है. सीपीआई का बास्केट भारतीय परिवारों के लिए प्रासंगिक है. इसमें सेवाओं सहित गैर-व्यापार योग्य वस्तुओं का एक बड़ा हिस्सा है, जिनकी कीमतें घरेलू मौद्रिक नीति कार्रवाइयों से प्रभावित हो सकती हैं. इसलिए CPI को इन्फ्लेशन टारगेटिंग के लिए एक उपयुक्त सूचकांक माना जाता है.
WPI और CPI के बीच विचलन की अवधि
पिछले दस वर्षों में, तीन अलग-अलग चरण रहे हैं, जहां WPI और CPI के बीच भारी अंतर रहा है – अक्टूबर 2014-अक्टूबर 2016, जून 2019-जनवरी 2021 और मार्च 2021-अक्टूबर 2022. पहले दो समय अंतराल में WPI की तुलना में CPI अधिक देखा गया, जबकि तीसरे समय अंतराल में CPI की तुलना में WPI मुद्रास्फीति दर ज्यादा रही.
2015 और 2016 को कवर करने वाली पहली अवधि में WPI में अपस्फीति (Deflation) देखा गया है. यह मुख्य रूप से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट के कारण था.
जून 2019 और फरवरी 2021 के बीच, थोक मुद्रास्फीति सुस्त और खुदरा मुद्रास्फीति की तुलना में कम थी. कोविड-19 महामारी के कारण हुए व्यवधानों के कारण, उत्पादन गतिविधि धीमी या बंद रही और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई. जैसे-जैसे 2021-22 में आर्थिक गतिविधियां तेज हुईं, और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ीं, WPI आधारित मुद्रास्फीति बढ़ने लगी. इसके विपरीत, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं की वजह से उच्च खाद्य कीमतों के कारण 2020 के दौरान सीपीआई मुद्रास्फीति उच्च बनी रही.
मार्च 2021 से, WPI मुद्रास्फीति लोवर बेस और वैश्विक कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि के कारण तेजी से बढ़ी. WPI में ट्रेजेक्टरी वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से प्रभावित होता है. दोनों सीरीज के बीच लगभग 0.8 का मजबूत संबंध है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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