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Thursday, 21 November, 2024
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निर्मला सीतारमण को 2020 के बजट में हकीकतों से तालमेल बिठाना जरूरी है

वित्त मंत्री को अपने बजट भाषण में बताना चाहिए कि सुस्त होती अर्थव्यवस्था की 7 प्रतिशत वाली गति हासिल करने के लिए वे वाकई क्या करने जा रही हैं.

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अगला बजट तैयार करते समय वित्त मंत्री को पहला काम यह करना चाहिए कि आगामी साल के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान प्रस्तुत कर दें. राजस्व घाटा और दूसरे आंकड़ें इस बुनियादी आंकड़े के सही अनुमान पर निर्भर करते हैं. उदाहरण के लिए, चालू वर्ष में राजस्व के अनुमान में गंभीर खामी से बचा जा सकता था अगर जीडीपी की ‘नौमिनल’ वृद्धि (वास्तविक वृद्धि और मुद्रास्फीति दरों का योग) का सही अनुमान लगाया जाता. अब अगले साल क्या होगा?

सही अनुमान पिछले रुझानों की सही समझ पर निर्भर करता है. 2020 तक के दशक में अर्थव्यवस्था में लगभग दोगुनी वृद्धि हो जानी चाहिए थी, यानी औसत वार्षिक वृद्धि दर करीब 7 प्रतिशत हो जानी चाहिए थी. दशक के मध्य वाले वर्षों में तेल के दामों में गिरावट से वृद्धि दर में आई तेजी के कारण अर्थव्यवस्था को जो लाभ पहुंचा वैसा बार-बार नहीं होगा.

इसके अलावा, विश्व अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत कोई उत्साहवर्धक नहीं है. घरेलू अर्थव्यवस्था में भी वित्तीय क्षेत्र समेत कई चीजों को दुरुस्त करने की जरूरत है. निर्यात स्थिर है, वित्तीय या मौद्रिक नीति में नयी पहल करने की गुंजाइश भी कम ही है. पिछली तिमाही में अर्थव्यवस्था के गैर-सरकारी पहलुओं में 3 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि नहीं हुई, इसे देखते हुए अगले साल के लिए लगभग 5 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर का ही यथार्थपरक अनुमान लगाया जा सकता है. इसमें आधा प्रतिशत इधर या उधर हो सकता है.


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यह उस अर्थव्यवस्था के लिए कोई अच्छी बात नहीं है जिसने पिछले दशक में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की हो और उससे पहले के दशक में इससे भी तेजी से वृद्धि की हो. आर्थिक वृद्धि की मामूली दर को कबूल करने का एक नतीजा यह है कि आपको कठोर विकल्प चुनने को मजबूर होना पड़ता है. कोई औसत दर हासिल करने का अनुमान लगाने के बाद उस राजस्व की अपेक्षा कैसे कर सकता है, जो 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्था में हासिल होता है. अगर पैसा नहीं होगा, तो हकीकत का सामना करना ही बेहतर है, खासकर बजट की हकीकत का जिसमें घाटे को जीडीपी के 2 प्रतिशत-अंक के बराबर कम करके दर्शाया जाता है. हर बजट को संसाधन की दिक्कत का सामना करना पड़ता है लेकिन आगामी बजट को इस दिक्कत का भारी सामना करना पड़ेगा.

बजट के आगे, वृद्धि दर अपेक्षित 7 प्रतिशत के आंकड़े को छूने में अगर देर लगाती है तो मध्यवर्ती हालात निश्चित रूप से धुंधले नज़र आते हैं. वित्त मंत्री को अपने बजट भाषण में बताना चाहिए कि 7 प्रतिशत वाली गति हासिल करने के लिए वे वाकई क्या करने जा रही हैं, और उन्हें यह भी बताना चाहिए कि सुस्त होती अर्थव्यवस्था जब तक वृद्धि की गति नहीं पकड़ती तब तक उसकी वास्तविकताओं से तालमेल बिठाने के लिए वे क्या कड़े फैसले करने वाली हैं. सरकार के कदमों का अंदाज़ा लगना भी अपने-आप में एक अच्छी बात होती है.


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जहां तक राजस्व में कमी का मामला है, खर्चों में कटौती करनी ही होगी, भले ही अर्थशास्त्री लोग मंदी के दौर में इसकी सलाह नहीं देंगे. बजटीय अनुशासन लागू होता दिखना चाहिए. इसलिए खर्चों को कम करना होगा या उन्हें मौजूदा स्तर पर रखना होगा. जो पैसा खर्च नहीं हुआ उसे लैप्स होने देना चाहिए. जिन क्षेत्रों ने सार्वजनिक निवेश का इतना सारा पैसा लिया है उन्हें नतीजे दिखाने चाहिए- मसलन रेलवे की कमाई, हाइवे टोल, बिजली की ऊंची दरें, आदि (नियोजन के स्वर्णयुग में जिन्हें आंतरिक और बजटेतर संसाधन कहा जाता था). अगर वित्त मंत्री ज्यादा ध्यान से देखें तो वे टैक्स से इतर राजस्व के ज्यादा विकल्प ढूंढ सकती हैं. उदाहरण के लिए, सरकारी बैंकों के लिए ताज़ा पूंजी उनमें से एक-दो का निजीकरण करके जुटाई जा सकती है, करदाता पर बोझ नहीं डाला जाना चाहिए.

सबसे अहम बात यह है कि बजट प्रक्रिया के आधुनिकीकरण का समय आ गया है. इसका मुख्य अर्थ यह होना चाहिए कि कैश अकाउंटिंग से अक्रूअल अकाउंटिंग की ओर बढ़ा जाए ताकि जिन बिलों का भुगतान होना है और वे बकाया हैं तो उनकी अकाउंटिंग हो. इसी तरह, सरकार बैलेंसशीट से इतर उन मसलों की सूचना जारी करे जो बजट में नहीं हैं. यह सीएजी को गुप्त खर्चों के बारे में रिपोर्ट देने से रोकेगा, जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के द्वारा खाद्य सब्सिडी के बिलों का भुगतान करने के लिए बैंकों से लिया गया कर्ज़, या रेलवे अकाउंट में घाटा दिखने से बचने के लिए रेलवे संगठनों से लिया गया अग्रिम भुगतान. ज्यादा विश्वसनीय आंकड़ें अपने आप में अच्छे होते हैं, वे सरकार को ज्यादा पारदर्शिता से काम करने में मदद करते हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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