आज दूसरा नवरात्र है—यह त्योहारों का मौसम है जिसमें उत्सव, व्रत और आस्था का संगम होता है और यह आगे दीवाली तक जाता है, जो सबसे ज़्यादा मनाया जाने वाला हिंदू त्योहार है. पहले नवरात्र की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि वे राष्ट्र को संबोधित करेंगे. लोगों को पिछली बार का संबोधन याद आ गया और थोड़ा घबराहट भी हुई. देश पहले से ही भारी कूटनीतिक दबाव झेल रहा है—ट्रंप के टैरिफ से लेकर उनके नए एच1बी वीज़ा नियम तक, साथ ही सऊदी-पाकिस्तान गठबंधन भी. ऐसे में जब पीएम ने शाम 5 बजे भाषण शुरू किया, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वे क्या कहने वाले हैं.
लेकिन 19 मिनट के अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने जीएसटी सुधारों को विस्तार से समझाया और ‘स्वदेशी’ और ‘मेक इन इंडिया’ के फायदे गिनवाए. उन्होंने कहा, “जो भी हम भारत में बना सकते हैं, हमें बनाना ही चाहिए.” यह उनका पहला संबोधन था जब से ट्रंप ने भारतीय माल पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है. अगर ये टैरिफ वित्तीय वर्ष 2026 तक जारी रहते हैं, तो अमेरिकी निर्यात में 30–35 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, अगस्त में अमेरिका को भेजा गया निर्यात घटकर 6.7 अरब डॉलर रह गया, जो जुलाई से 16.3 प्रतिशत कम है—यह 2025 की सबसे बड़ी मासिक गिरावट है.
रॉयटर्स के अनुसार, विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की जीडीपी में 0.3 से 0.8 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ये टैरिफ कितने समय और कितने व्यापक पैमाने पर लागू रहते हैं.
नवीनीकरण का मौसम
नवरात्र सिर्फ धार्मिक त्योहार नहीं है. यह नवीनीकरण, एकजुटता और बांटने की भावना का प्रतीक है. पूरे भारत में परिवार नए सामान खरीदते हैं, दीये जलाते हैं, तोहफे बांटते हैं और स्थानीय कारीगरों को सहारा देते हैं. इस साल, यह उत्सव एक और बड़े बदलाव के साथ मेल खा रहा है—सरल किए गए जीएसटी ढांचे की शुरुआत, जिसका मकसद है नियमों को आसान बनाना, खपत बढ़ाना और आम नागरिकों की जेब में ज्यादा पैसा डालना. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ हफ्ते पहले ही जीएसटी 2.0 के लागू होने का ऐलान किया था, लेकिन यह आधी रात को, पहले नवरात्र की शुरुआत के साथ ही लागू हुआ. पीएम मोदी इसे “बचत उत्सव” यानी बचत का त्योहार कहते हैं.
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जटिलता से सादगी तक
जीएसटी 2.0 का मतलब है ‘एक देश, एक टैक्स स्लैब’. प्रधानमंत्री ने 21 सितंबर को देश को संबोधित करते हुए कहा कि अब नया जीएसटी सिर्फ दो स्लैब में होगा. पहले का जटिल सिस्टम आम लोगों और छोटे कारोबारियों दोनों के लिए मुश्किलें पैदा करता था, यह कदम उससे बड़ा बदलाव है.
ज़रूरी सामान पर टैक्स घटाकर और नियम आसान बनाकर जीएसटी 2.0 लोगों को राहत देगा. सरकार का अनुमान है कि इस साल परिवारों को मिलाकर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है. यह योजना ‘वोकल फॉर लोकल’ से भी जुड़ी है, जिससे लोग भारत में बने सामान खरीदें और छोटे कारीगरों व उद्योगों को सहारा मिले. कम जीएसटी दरें घरेलू खरीद बढ़ाएंगी और अमेरिका के टैरिफ से घटे निर्यात के असर को कुछ हद तक संभालेंगी.
बराबरी के साथ विकास
“विकास भी और विरासत भी”—यानी तरक्की हमारी परंपराओं और मूल्यों के साथ आगे बढ़े. त्योहारों के मौके पर शुरू हुआ यह जीएसटी सिर्फ अर्थव्यवस्था की बात नहीं है, यह भारतीय सोच और मूल्यों से भी जुड़ा है. इसका मकसद है कि विकास का फायदा आखिरी व्यक्ति तक पहुंचे। यही संविधान की सोच भी है.
संविधान कहता है: “राज्य आय और सुविधाओं में असमानता को कम करने की कोशिश करेगा, न सिर्फ व्यक्तियों के बीच, बल्कि अलग-अलग इलाकों और कामकाज करने वाले समूहों के बीच भी.”
आवश्यक चीज़ों पर टैक्स घटाकर यह सुधार असमानता कम करेगा और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को खरीदारी और अर्थव्यवस्था से जोड़ देगा. असल में जीएसटी 2.0 एक संतुलन है, जहां सरकार आर्थिक अनुशासन और सामाजिक न्याय, दोनों का ख्याल रख रही है.
आगे की राह
जीएसटी 2.0 एक अच्छा और आसान बदलाव है, लेकिन यह सुधारों की लंबी यात्रा का सिर्फ पहला कदम है. कॉरपोरेट टैक्स ढांचा, सरचार्ज और व्यक्तिगत आयकर की जटिलताएं अभी भी सुलझाई जानी बाकी हैं. नई आयकर संहिता, जो अप्रैल 2026 से लागू होगी और ज़्यादा सरलता और संरचनात्मक सुधार लाने का वादा करती है, ताकि व्यवस्था और न्यायपूर्ण और पारदर्शी बने.
पीएम मोदी ने कहा, “पिछले बजट में आयकर राहत (यानी सालाना 12 लाख रुपये तक की आय वालों के लिए प्रभावी रूप से शून्य टैक्स) के साथ मिलाकर, अब जीएसटी सुधारों से भारतीयों को 2.5 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी.”
भारत को अपने ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए ज़रूरी है कि सुधार सिर्फ कागज़ों पर असरदार न दिखें, बल्कि व्यवहार में भी न्यायपूर्ण हों. इसका मतलब है पोषण और स्वास्थ्य जैसी ज़रूरी चीज़ों पर शून्य टैक्स वाले दायरे को बढ़ाना, लक्ज़री खर्चों को कॉरपोरेट खर्च दिखाकर टैक्स बचाने की कोशिशों पर सख्ती करना और उच्च आय वाले लोगों से प्रगतिशील टैक्स व्यवस्था के ज़रिए उचित योगदान सुनिश्चित करना.
साझा त्योहार, साझा भविष्य
“भारत की आर्थिक यात्रा एक सामाजिक यात्रा भी है.”
नवरात्र-दीवाली का मौसम रोशनी, नएपन और सामूहिक खुशी का प्रतीक है. इस सांस्कृतिक पल को आर्थिक सुधारों से जोड़ना सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, यह एक गहरा संदेश देता है कि भारत की आर्थिक यात्रा, समाज की यात्रा भी है.
जब परिवार ज़्यादा बचत करते हैं, कारीगरों की बिक्री बढ़ती है और कारोबारियों के लिए नियम मानना आसान हो जाता है, तो इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था में फैलता है. इस दीवाली जब हर घर में दीये जलेंगे, वे इस उम्मीद के साथ जलेंगे कि हमारी व्यवस्था और सरल, और न्यायपूर्ण होगी, ऐसी व्यवस्था जिसमें हर नागरिक को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा.
पीएम मोदी ने पिछले महीने कहा था, “स्वदेशी हमारा जीवन मंत्र बनना चाहिए. हमें गर्व के साथ स्वदेशी अपनाना चाहिए. यहां जापान द्वारा बनाई गई चीज़ें भी स्वदेशी हैं.” यह बात उन्होंने अपने गृह राज्य और महात्मा गांधी की भूमि से सुजुकी eVitara को हरी झंडी दिखाते समय कही. त्योहारों के इस मौसम में हमें भी इस सोच को अपनाना होगा.
(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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