भारत-पाकिस्तान एशिया कप क्रिकेट मैच के बाद लंदन के विभिन्न मुहल्लों में भडक़ी झड़पें गंभीर रूप लेती जा रही हैं. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो क्लिप के मुताबिक मुसलमानों की एक टोली, जिसमें कुछ मास्क पहने हुए हैं, एक हिंदू मंदिर के सामने इकट्ठा होती है और तोड़-फोड़ करती है. इसका खंडन अभी तक पुलिस वगैरह की तरफ से नहीं आया है. कुछ हिंदू गुटों ने विरोध में रैली निकाली लेकिन उसमें बहुत थोड़े लोग थे और वे किसी तरह की हिंसा नहीं कर रहे थे. लंदन में भारतीय उच्चायोग ने अधिकारियों से पीडि़तों और हमले की आशंका वाले पूजा स्थलों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग की.
ऐसी भी खबरें हैं कि तनावग्रस्त मुहल्लों में पड़ोस के शहरी इलाकों से भीड़ जुट रही है, जिससे हिंदुओं और मुसलमानों की मिलीजुली आबादी वाले मुहल्लों में शांति भंग होने और कानून-व्यवस्था की गंभीर समस्या पैदा होने का खतरा है. इन घटनाओं पर पुलिस अधिकारियों और लीसेस्टर के मेयर ने चिंता व्यक्त की है. लीसेस्टर के मेयर सर पीटर सोल्सबी ने कहा, ‘वे ज्यादातर किशोरवय और प्रारंभिक बीसेक वर्ष की उम्र के हैं और मैंने अटकलें सुनी हैं कि बाहर से लोग (शहर में) आए हैं…यह उस मुहल्ले के लिए बहुत चिंताजनक है, जहां यह सब हुआ.’ लीसेस्टर की पुलिस हालात को काबू में रखने के लिए सभी सावधानियां बरत रही है और उसने चेताया है कि वह शहर में ‘हिंसा या अव्यवस्था बर्दाश्त’ नहीं करेगी.
ये चेतावनियां और सतर्क बयान हालात को किस कदर काबू कर पाएंगे, यह कहना मुश्किल है. तोडफ़ोड़ पर उतारू हिंसक भीड़ आसानी से स्थानीय पुलिस से संख्या में भारी पड़ सकती है.
बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता
ब्रिटेन के गृह विभाग के मुताबिक, ‘इंग्लैंड और वेल्स की जेलों में कैद विदेशी अपराधियों में सबसे ज्यादा सातवीं संख्या पाकिस्तानी नागरिकों की है, उनकी तादाद विदेश अपराधियों में करीब 3 फीसदी है.’ मामला इतना गंभीर है कि हाल में ब्रिटेन ने पाकिस्तान के द रिटर्न्स एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जिससे वह पाकिस्तानी अपराधियों, नाकाम शरणार्थियों, वीसा खत्म होने के बाद भी रुके हुए लोगों और इमिग्रेशन नियम तोड़ने वालों को वापस भेज सके.
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मार्च 2012 में फ्रांस के तौलूस में यहूदी प्राथमिक स्कूल में गोलीकांड और जनवरी 2015 में व्यंग्य पत्रिका चार्ली हब्दो की संपादकीय टोली के 12 लोगों की निर्मम हत्या के बाद फ्रांस में यहूदी समुदाय अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो उठा, लोग इसराइल में चले जाने की सोच रहे हैं. इन घटनाओं का असर ब्रिटेन में भी पड़ा, जहां पुलिस ने कहा कि यहूदी लोगों पर खतरे को लेकर ‘भारी चिंताएं’ हैं.
तब बीबीसी ने इसकी रिपोर्ट की थी. तब गृह मंत्री थेरेसा मे और लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन ने यहूदी समुदाय के भीतर डर पर चिंता व्यक्त की थी. ये दोनों ही बाद में प्रधानमंत्री बने. फिर भी ब्रिटेन में यहूदी समुदाय पर हमले बढ़े. हालांकि मुसलमान और यहूदी दोनों समुदायों के लोगों ने मिलकर अपनी ‘गहरी जड़ों’ की बात की और एक-दूसरे की सुरक्षा और समर्थन के तरीके खोजे.
यह कहना आसान होगा कि जो लोग सिन्गॉग और हिंदू मंदिरों पर हमलों को जोडक़र देख रहे हैं, वे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. अगर एंटी-सेमिटिज्म इतिहास की सच्चाई है तो हिंदूफोबिया के मौजूदा अफसाने को कल्पना की उड़ान कहकर खारिज नहीं किया जा सकता.
ब्रितानी शिक्षा संस्थाओं में हिंदू विरोधी भावनाओं के बढने की खबरें हैं. वॉल स्ट्रीट जनरल के रिपोर्टर डैनियल पर्ल की हत्या का जिम्मेदार उमर शेख लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) का पूर्व छात्र था. ब्रिटेन में कॉलेज और यूनिवर्सिटी में ऐसी कई घटनाएं हुईं कि ‘हिज्ब-उत-तहरीर’ जैसे उग्रवादी गुट छात्रों को कट्टरता का पाठ पढ़ा रहे हैं. कहा जाता है कि यह गुट ब्रिटेन के 500 से ज्यादा कॉलेजों में सक्रिय है.
कार्रवाई, पड़ताल है अहम
अक्सर ‘छिट-पुट’ घटना की तरह मान लिए जाने वाले ‘ब्रिटेन से लौटे छात्रों’ के आतंकी हमले इतने गंभीर तो हैं ही कि ब्रिटेन और भारत की दोनों सरकारें उनकी पड़ताल करें. उन्हें द टाइम्स हायर एजुकेशन सप्लीमेंट ने ‘लंबी मीनार का हिस्सा’ कहा था. उसमें शिक्षा संस्थाओं में इस्लामी कट्टरता पर अध्ययन के अभाव पर अफसोस जताया गया था.
नई दिल्ली को सिर्फ देश के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में ही नहीं, कई विदेशी यूनिवर्सिटियों में भी कट्टर तत्वों की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी. अब विदेश मंत्रालय के पास विदेश में पढ़ रहे भारतीय छात्रों का डेटाबेस है. जुलाई 2016 में बनाए गए एमएडीएडी पोर्टल पर ‘छात्र पंजीकरण मॉड्यूल’ छात्रों के स्वत: पंजीकरण में मदद करता है. यह पंजीकरण छात्रों को आपात स्थितियों में मदद करता है, लेकिन सरकार को सुरक्षा के लिहाज से कोई जानकारी मुहैया नहीं कराता. यह जरूरी है कि पंजीकरण को अनिवार्य प्रक्रिया बनाया जाए और उसे विदेशों में भारतीय दूतावासों से जोड़ा जाए.
भारत को अपने दूतावासों के जरिए विदेश में हिंदू आबादी को यह संदेश भी भेजना चाहिए कि वे सहिष्णु, कानून का पालन करने वाले और शांत समुदाय की अपनी साख को बनाए रखें, जिनका अपने नए या अपनाए देशों में योगदान बेहद खास है.
(लेखक ‘आर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrichari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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