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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतभले ही इज़रायल खत्म हो जाए, फिर भी मुसलमान यहूदियों के प्रति दुश्मनी का भाव रखेंगे- यही समस्या है

भले ही इज़रायल खत्म हो जाए, फिर भी मुसलमान यहूदियों के प्रति दुश्मनी का भाव रखेंगे- यही समस्या है

ऐसे युग में जब इस्लामोफोबिया शब्द से हर कोई परिचित है, यहूदी विरोधी इस्लामी भावना एक अज्ञात बीमारी बनी हुई है.

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इज़राइल-फिलिस्तीन शत्रुता की शुरुआत से लेकर अंत तक सब कुछ ज़मीन या एरिया के बारे में नहीं है, बल्कि धर्म और आपस में जुड़े कबायली संप्रदायवाद से संबंधित है. यह दो इब्राहीमी वंशों और उनके संबंधित धर्मों के बीच की दुश्मनी है – कहें तो चचेरे भाइयों कौरव-पांडव के युद्ध के रीमिक्स जैसा.

यहूदी विरोधी इस्लामी भावना

ऐसे युग में जब इस्लामोफोबिया शब्द काफी प्रचलित हो गया है, यहूदी विरोधी इस्लामी भावना एक अज्ञात बीमारी बनी हुई है, हालांकि, यह इस्लाम जितना ही पुराना है. आम तौर पर प्रचलित राय के विपरीत, यहूदी विरोधी इस्लामी भावना ज़ायनिज़म या इसराइल राज्य की प्रतिक्रिया के रूप में नहीं आई. भले ही इसराइल ख़त्म हो जाए, मुसलमान यहूदियों के प्रति शत्रु बने रहेंगे.

इस्लाम के मूल ग्रंथ, कुरान और हदीस, यहूदियों के लिए सज़ा से भरे हुए हैं. यहूदियों को इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. एक मुसलमान के लिए, जो कि कुछ खास लोकगाथाओं कहानियां सुन के बड़ा हुआ है, उसके लिए यहूदियों के प्रति वस्तुपरक दृष्टिकोण रखना कठिन है. यहूदियों की बौद्धिक उत्कृष्टता पर व्यंग्य करते हुए, मुसलमान उन्हें उनके षड़यंत्र या साज़िश करने के कौशल के लिए आलोचना करते हैं.

‘यहूदी षडयंत्र’ वाली बात मुस्लिमों की लोकप्रिय संस्कृति के मुख्य तत्वों में से एक है, और इस्लाम के इतिहास में अधिकांश आपदाओं के लिए इसे जिम्मेदार ठहराया जाता है. इतना कि बहुसंख्यक सुन्नी संप्रदाय शियावाद को एक यहूदी, अब्दुल्ला बिन सबा की साजिश मानता है. इसके अलावा, यहूदियों को नैतिक पतन के बराबर माना जाता है. कवि इक़बाल मुसलमानों को उनके मनमौजीपन के लिए ऐसे शब्दों में धिक्कारते थे जैसे ‘ये मुसलमां हैं जिनमें देख कर शर्माएं यहूद’, यानी, मुसलमान इतने बुरे हैं कि यहूदियों को शर्मसार कर देते हैं.

यह रवैया इतना सामान्य है, यहां तक कि धार्मिक भी कि इसे यहूदी विरोधी भावना के रूप में भी मान्यता नहीं दी जाती है. और यह तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक इस्लामी धार्मिक विचार में सुधार नहीं किया जाता और मुसलमानों को धर्मनिरपेक्ष नहीं बना दिया जाता.

ईसाइयों का भी यहूदी विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है. लेकिन यूरोप ने खुद को धर्मनिरपेक्ष बना लिया है और बड़े पैमाने पर यहूदी विरोधी भावना से छुटकारा पा लिया है. यह सच है कि मुसलमानों ने यहूदियों का नरसंहार नहीं किया, लेकिन फिर भी उन्होंने उनके साथ बुरा व्यवहार किया, और ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक वे उनके खिलाफ धार्मिक पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं हो जाते. और इसके लिए, कुरान और हदीस यहूदियों के बारे में जो कहते हैं उसकी केवल फिर से व्याख्या करना ही पर्याप्त नहीं है.

वैचारिक एवं वंशावली विवाद की उत्पत्ति

मुसलमानों और यहूदियों के बीच स्थायी झगड़े को समझने के लिए, जो जितना वंशावली है उतना ही वैचारिक भी है, आइए अब्राहमिक विरासत का एक सिंहावलोकन करें.

यहूदी इब्राहीम की कुलीन पत्नी सारा से उसके बेटे इसहाक या इशहाक के वंशज हैं, और अरब उसके मिस्र की दास-लड़की हाजिरा से उनके बेटे इश्माएल या इस्माइल के माध्यम से उसके कथित वंशज हैं. भविष्यवक्ता की इब्राहीम परंपरा उनके बेटे इसहाक की वंशावली में जारी रही, जिनके बेटे जैकब (याक़ूब) को इज़राइल के नाम से जाना जाता था. याकूब के 12 पुत्रों के वंशज – इस्राएल के बारह गोत्र – बेनी इस्राएल के नाम से जाने गए.


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बेनी इस्माइल

अरब में बसे इस्माइल के वंशज अपनी अधिक प्रतिष्ठित शाखा के समान आध्यात्मिक और बौद्धिक उन्नति प्राप्त नहीं कर सके. बेनी इज़रायल की तुलना में, बेनी इस्माइल कथित रूप से दैशिक चचेरे भाई बने रहे. वे यहूदियों को विस्मय और प्रशंसा की दृष्टि से देखते थे, और उन्हें अहल-ए-किताब (पुस्तक के लोग, अर्थात् ईश्वरीय मार्गदर्शन वाले) कहते थे क्योंकि उनके पास तोरा था. अरब स्वयं को उम्मी कहते थे.

अरबी में उम्म का मतलब मां होता है. इसका तात्पर्य यह था कि उम्मी नवजात शिशुओं की तरह अपनी प्राकृतिक अवस्था में थे, सांस्कृतिक उन्नति के बिना क्योंकि उनके पास बेनी इज़राइल की तरह दिव्य मार्गदर्शन की कोई प्रकट पुस्तक नहीं थी.

और फिर, उनमें से एक, मोहम्मद ने, अपने पैतृक इब्राहीम एकेश्वरवाद को पुनर्जीवित करने का दावा करते हुए, पैगंबर होने की घोषणा की. वे ऐसे लोग थे जो एक ईश्वर में विश्वास करते थे, लेकिन कई देवताओं की मूर्तियों की भी पूजा करते थे, जो उनके अनुसार, दुनिया के दैनिक मामलों को चलाते थे. मुहम्मद और उनके अनुयायियों को अपनी ही जनजाति, मक्का के क़ुरैश से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. उत्पीड़न से बचने के लिए, वे यत्रिब (मदीना) चले गए.

पैगंबर और यहूदी

मक्का छोड़ने से कुछ समय पहले, मुहम्मद को अपना सर्वोच्च आध्यात्मिक अनुभव हुआ जिसे इसरा (रात की यात्रा) और मेराज (स्वर्गारोहण) के नाम से जाना जाता है. उन्हें मस्जिद अल-हरम (इसके केंद्र में काबा के साथ मक्का का केंद्र) से मस्जिद अल-अक्सा (काफी दूर मस्जिद, यानी, सोलोमन के मंदिर का स्थान, यरूशलेम में टेम्पल माउंट) में ले जाया गया था. यह यात्रा यहूदी धर्म और उसकी पैग़म्बरी पद्धति के साथ इस्लाम के गहरे संबंध का प्रतीक थी. कुरान में उल्लिखित अल-अक्सा मस्जिद यहूदी मंदिर है, जो टेम्पल माउंट पर स्थित है, न कि उस परिसर में मौजूदा गोल्डन डोम ऑफ द रॉक या इस नाम की कोई मस्जिद. रात्रि यात्रा के समय इस्लामी मस्जिद अभी भी भविष्य के गर्त में थी.

यत्रिब में, मोहम्मद और उनके अनुयायियों की मेजबानी करने वाले अरब जनजातियों के अलावा, कुछ यहूदी भी थे. मोहम्मद ने उनके साथ एक अस्थायी समझौता किया. दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपने धर्म के स्रोत को उजागर करने के लिए यरूशलेम के टेम्पल माउंट (अल-अक्सा) को किबला या प्रार्थना की दिशा के रूप में चुना.

पैगंबर निराश हो गए. उन्होंने अपने अनुयायियों को एक समुदाय में एकजुट करने और उनके लिए एक अलग पहचान स्थापित करने के लिए तैयार किया, जो यहूदियों और अरब मूर्तिपूजकों दोनों से अलग था. उन्होंने इस परिवर्तन को येरूशलेम में अल अक्सा (टेम्पल माउंट) से मक्का में काबा तक किबला को बदलकर चिह्नित किया. अगर पैगंबर ने क़िबला को नहीं बदला होता, तो इस्लाम यहूदी धर्म का एक संप्रदाय बन जाता. इस दिन तक, मुसलमान येरूशलेम को अपने पहले क़िबला के रूप में मानते हैं, हालांकि इसे पूर्व क़िबला कहना अधिक उचित होगा.

यत्रिब में पैगंबर और उनके अनुयायियों की उपस्थिति ने न केवल यहूदियों के सांस्कृतिक आधिपत्य को नष्ट करना शुरू कर दिया था, बल्कि आदिवासी के बीच पॉवर डायनमिक्स में भी बदलाव शुरू कर दिया, जिसके दूरगामी परिणाम उन पर नहीं पड़े. एक के लिए, यत्रिब को मदीनात-उर रसूल (संक्षेप में मदीना) के रूप में जाना जाने लगा, यानी मैसेंजर का शहर.

उन्होंने इस चुनौती का जवाब, जैसा कि वे मानते थे, एक उन्नत समुदाय से, अपने मक्का दुश्मनों के साथ मिलकर दिया, और इसके लिए भारी कीमत चुकाई. तीन प्रमुख जनजातियों में से दो को मदीना से निर्वासित कर दिया गया, और तीसरे, बानू कुरैज़ा का वध कर दिया गया. ख़ैबर में उनकी बस्तियों पर हमला किया गया और उन्हें अपने अधीन कर लिया गया, और वे अपनी ही ज़मीन पर किरायेदार बनकर रह गए. पैगंबर की मृत्यु के कुछ ही समय बाद, जैसे ही अरब से सभी गैर-मुसलमानों का सफ़ाया कर दिया गया, यहूदियों को भी हमेशा के लिए निष्कासित कर दिया गया.

किसी को आश्चर्य हो सकता है कि पैग़म्बर के क़ुरैशी शत्रुओं के साथ सांठगांठ करने के कारण यहूदियों के साथ इतना कठोर व्यवहार क्यों किया गया, लेकिन जब मक्का पर कब्ज़ा कर लिया गया और क़ुरैशों को वश में कर लिया गया, तो उन्हें न केवल सामान्य माफ़ी दी गई, बल्कि उन्हें इस्लाम के उभरते आभिजात्य वर्ग में शामिल किया गया बल्कि मदीना के उन लोगों पर प्राथमिकता जिन्होंने पैगंबर और उनके अनुयायियों को आश्रय दिया था.

ऐसा इसलिए था क्योंकि अरब, विशेष रूप से कुरैश, पैगंबर के धर्म के लिए अनिवार्य थे, जो उनकी वंशावली, इब्राहिम की बेनी इस्माइल शाखा के थे. जबकि बेनी इज़रायल, यहूदी, पैगंबर की परंपरा की विशेषाधिकार प्राप्त शाखा के होने के नाते, नए धर्म के लिए वैधता की चुनौती पेश करते थे.

झगड़े की शुरुआत

हालांकि, कुरान खुद को इब्राहिम परंपरा के पहले धर्मग्रंथों, तोरा और गॉस्पेल की पुष्टि के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन इस्लाम के लिए कोई इस तरह की मान्यता यहूदियों और ईसाइयों से नहीं आई है. हालांकि, मुसलमान जल्द ही एक शाही शक्ति बनने वाले थे, और उनके धर्मशास्त्र ने पहले के धर्मों, यहूदी धर्म और ईसाई धर्म की वैधता समाप्त होने की घोषणा करके वैधता की इस चुनौती का जवाब दिया. यहूदियों को अधिक गंभीर दंड का सामना करना पड़ा, क्योंकि पैगंबर के साथ संधि करने के बावजूद, उन्होंने इस्लाम की सच्चाई पर संदेह जताया और उनके दुश्मनों के साथ सहयोग किया. कुरान और हदीस उनकी कठोर आलोचना से भरे पड़े हैं.

क्या है रास्ता

यह सत्य है कि धर्मग्रंथों को उनके ऐतिहासिक संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए. इसका मतलब यह है कि हमारा वर्तमान अतीत का कैदी नहीं होना चाहिए जैसा कि शास्त्रों में दर्शाया गया है. इतिहास नहीं बदल सकता, लेकिन धर्मशास्त्र, विचारधारा, दृष्टिकोण और व्यवहार बदल सकते हैं. और उन्हें बेहतर भविष्य के लिए ऐसा करना ही होगा.

(इब्न खाल्दुन भारती इस्लाम के छात्र हैं और इस्लामी इतिहास को भारतीय नज़रिए से देखते हैं. उनका एक्स हैंडल @IbnKhaldunIndic है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

संपादक का नोट: हम लेखक को अच्छी तरह से जानते हैं और छद्म नामों की अनुमति जब चाहते हैं तभी देते हैं.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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