सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही वक्त पर हस्तक्षेप किया है और इस हस्तक्षेप से आज़ाद भारत के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण चुनाव से ठीक ऐन पहले ईवीएम को लेकर चले विवाद को विराम देने का सुनहरा मौका हाथ आया है. ज़रूरत बस अब इतनी भर है कि चुनाव आयोग अदालत में बेमतलब अड़ियल रुख ना अपनाये.
बीते कुछ वक्त से मैं कहता आ रहा हूं कि ईवीएम को लेकर जारी विवाद गैर-ज़रूरी और नुकसानदेह है. मेरा मानना है कि ईवीएम में गलती ढूंढ़ने की जगह हमें मतदान की मौजूदा प्रक्रिया में हल्का-फुल्का सुधार करना चाहिए ताकि पारदर्शिता बढ़े और लोगों का ईवीएम पर विश्वास और ज़्यादा दृढ़ हो. इसी मनोभाव से मैंने पांच सुझाव दिये थे. एक सुझाव यह था कि ईवीएम को काम में लाने से पहले राजनीतिक दल के नुमाइंदों को मौका दिया जाना चाहिए कि वे उसकी अच्छी तरह जांच-परख कर लें.
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दूसरी बात कि किस निर्वाचन क्षेत्र में कौन-कौन से ईवीएम भेजे जायेंगे- इसका फैसला रैंडम तरीके से किया जाय और यह फैसला राजनीतिक दलों की मौजूदगी में लिया जाय. तीसरी बात यह कि अगर मतदाता ने जिस प्रत्याशी को वोट डाला है उससे कागज़ की पर्ची (पेपर स्लिप) मेल नहीं खाती तो फिर मतदाता को इसकी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार होना चाहिए. इस सिलसिले में चौथा सुझाव था कि ईवीएम में खराबी होने पर उसे 30 मिनट के भीतर बदल दिया जाय. पांचवां सुझाव था कि अभी हर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में एक ही मतदान केंद्र पर वीवीपैट ऑडिट (अंकेक्षण) का चलन है, सो इसके दायरे का विस्तार करते हुए हर विधानसभा क्षेत्र में 14 मतदान केंद्रों पर वीवीपैट ऑडिट का इंतज़ाम किया जाना चाहिए.
मेरे लिए निजी तौर पर सुखद आश्चर्य की एक बात यह हुई कि चुनाव आयोग की तरफ से प्रतिक्रिया आयी. आयोग के सचिव ने मुझे सूचित किया कि मेरे पहले तीन सुझाव चुनाव से जुड़े नियमों का ही हिस्सा हैं और इनका पालन किया जा रहा है. राजनीतिक दलों की नुमाइंदों की मौजूदगी में हर ईवीएम की प्राथमिक स्तर की जांच होती है और ऐसा करने का अब एक चलन सा बन गया है. किस मतदान केंद्र पर कौन सा ईवीएम भेजा जाय इसकी भी एक क्रियाविधि है- ईवीएम का दो चरणों में रैंडमाइज़ेशन किया जाता है. चुनावों से संबंधित एक खास प्रावधान की मुझे जानकारी नहीं थी- इस विशेष प्रावधान (रुल 49 एमए ऑफ कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रुल्स,1961) में मतदाता को आपत्ति जताने की अनुमति दी गई है- मतदाता को अगर शक हो कि जिस पार्टी को उसने वोट किया है, पेपर स्लिप उससे मेल नहीं खाती तो वह इस पर आपत्ति उठा सकता है.
आपत्ति जताये जाने पर मतदान केंद्र का पीठासीन पदाधिकारी का खास ‘टेस्ट वोट’ (परीक्षण मतदान) का आदेश दे सकता है. अगर टेस्ट वोट में भी पेपर स्लिप मेल खाती नहीं दिखती तो उस मतदान केंद्र पर मतदान को रोक देने का प्रावधान है. मुझे एक सेवारत वरिष्ठ नौकरशाह ने भी फीडबैक भेजी है और मेरी कुछ शंकाओं का समाधान किया है. तो अब इसके बाद सिर्फ एक मुद्दा रह जाता है और वही असल मुद्दा है कि वीवीपैट ऑडिट किस संख्या में हो और उसकी प्रक्रिया क्या हो.
यहां बात को समझने के गरज से तनिक व्याख्या की ज़रूरत है. वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (वीवीपैट) मशीन के अमल में आ जाने के बाद अब प्रत्येक मतदान केंद्र के वोट दो अलग रीति से गिने जा सकते हैं. एक तरीका ईवीएम डिस्प्ले बोर्ड का है- बस बटन दबाइए और किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले यह ईवीएम के डिस्प्ले बोर्ड पर दिख जायेगा. दूसरा वीवीपैट मशीन का है- इस मशीन से पर्ची निकलती है और एक सीलबंद बक्से में जमा होते रहती है. बक्से को खोलकर इन पर्चियों को गिनकर तय किया जा सकता है कि किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले.
वीवीपैट मशीन को अमल में लाने के पीछे मुख्य बात यह थी कि मतदान को लेकर कोई शक-शुबहा है तो वो दूर हो जाय- मतदान प्रक्रिया पर राजनीतिक दल, उम्मीदवार तथा मतदाताओं का यकीन और ज़्यादा पुख्ता हो. अब ईवीएम के कामकाज की परख वीवीपैट मशीन से की जा सकती है- वीवीपीएटी मशीन से निकली पर्चियों की गिनती के सहारे यह देखा जा सकता है कि ईवीएम के डिस्प्ले बोर्ड पर दिख रही संख्या संगत है या नहीं. बहरहाल, मौजूदा प्रावधानों में सत्यापन का काम अदालत के जिम्मे रखा गया है. इससे सारी शंकाओं का विवादों का समाधान हो जाता है. लेकिन अभी की स्थिति में इस संभावना का पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हुआ है.
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चुनाव आयोग का आदेश है मतगणना के अंत में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में रैंडम रीति से चुने गये सिर्फ एक मतदान-केंद्र पर पड़े वोटों की गिनती का मिलान वीवीपीएटी मशीन की पर्ची से किया जाय. एक नियम यह भी है कि मतों की गिनती के बाद लेकिन नतीजे के ऐलान से पहले कोई प्रत्याशी चाहे तो किसी एक या फिर सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट से मिलान के लिए अर्जी दे सकता है. लेकिन फैसला रिटर्निंग ऑफिसर के विवेक पर छोड़ दिया गया है. इसलिए, वीवीपैट ऑडिट कितने मतदान केंद्रों पर हो तथा इसकी प्रक्रिया क्या हो- यही बात मसले के मूल में रह गई है.
बीते कुछ महीनों में मसले पर हर तरफ सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं. विपक्षी दल ईवीएम के उपयोग को लेकर अपनी चिढ़ छोड़ चुके हैं- वे अब ये नहीं कह रहे कि मतदान उसी पुराने बैलेट पेपर वाले तरीके से कराया जाय. सुप्रीम कोर्ट में विपक्षी दलों ने जो अर्जियां डाली हैं. उनसे कमोबेश यही समझ झलकती है. विपक्षी दलों की मांग है कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र में 50 प्रतिशत मतदान केंद्रों पर वीवीपैट ऑडिट कराया जाय.
सेवानिवृत्त नौकरशाहों के एक समूह ने बड़ी समझदारी भरी अर्जी लिखी है. इसमें मसले की मूल बात की तरफ ध्यान दिलाया गया है कि मामला ईवीएम बनाम पेपर बैलेट का नहीं बल्कि असली मामला इस बात का है कि वीवीपैट का ऑडिट पर्याप्त रीति और संख्या में हो रहा है या नहीं. चुनाव आयोग ने अदालत में अड़ियल रवैया अपनाया कि किसी एक निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ एक मतदान केंद्र पर वीवीपैट ऑडिट करा लेना पर्याप्त है. ज़ाहिर है, सुप्रीम कोर्ट की बेंच को यह बात ठीक नहीं लगी अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि 28 मार्च तक हलफनाफा दायर करके उसमें बताइए कि ज़्यादा संख्या में वीवीपैट ऑडिट कराये जायेंगे. अदालत में मामले की सुनवाई अब 1 अप्रैल को होगी.
मेरे जानते मौजूदा विवाद को बड़ी आसानी से सुलझाया जा सकता है. चुनाव आयोग का ज़ोर इस बात पर है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में किसी एक मतदान केंद्र पर वीवीपीएटी ऑडिट करा लेना पर्याप्त है- ज़ाहिर है, यह बात को जैसे-तैसे निपटाने देने की मनोवृत्ति का परिचायक है और इससे शक पैदा होता है. लगता है, चुनाव आयोग ने अपनी बात मशहूर सांख्यिकीविदों की एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर कही है. इसमें कहा गया है कि पूरे देश में रैंडम रीति से चुने गये बस 497 मतदान केंद्रों पर वीवीपैट ऑडिट करा लेना पर्याप्त होगा. सांख्यिकीविद् अपने आकलन में गलत नहीं हैं.
रैंडम रीति से चयनित इस छोटे से सैम्पल के जरिये निश्चित ही यह जाना जा सकता है कि ईवीएम के ज़रिये होने वाली मतगणना देशस्तर पर कितनी भरोसेमंद है. लेकिन बहस के केंद्र में यह सवाल तो है ही नहीं. मामला तो मतगणना की व्यवस्था को हर निर्वाचन-क्षेत्र के लिए परखने का है और यह काम कुछ इस तरीके से करने का है कि वह सिर्फ सांख्यिकी की कसौटियों पर खरी ना उतरे बल्कि मतदान-प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा जगाये. चुनाव आयोग ने जो प्रस्ताव किया है उसमें ये दोनों ही बातें नदारद हैं.
लेकिन यहां यह कहना भी ज़रूरी है कि 50 प्रतिशत मतदान केंद्रों पर वीवीपैट ऑडिट कराने की विपक्ष की मांग बहुत थकाऊ और गैर-ज़रूरी है. सांख्यिकीविद् बताते हैं कि सैम्पल की संख्या पर विचार मतदान-केंद्रों की कुल संख्या के प्रतिशत के हिसाब से करना ज़रूरी नहीं. दरअसल मायने यह रखता है कि सैम्पल के तौर पर शामिल किये गये मतदान-केंद्रों की कुल संख्या कितनी है न कि उनका प्रतिशत.
ऐसे में, मुझे यहां अपना पुराना सुझाव दोहराना ज़रूरी लग रहा है. इस सुझाव पर अमल करने से दोनों ही ज़रूरतें पूरी हो जायेंगी. हर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 14 मतदान केंद्रों के लिए वीवीपैट ऑडिट (या फिर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए विधानसभाई इलाके के हिसाब से) कराया जाय. अब यहां 14 की संख्या क्यों ली जा रही है, कोई और संख्या क्यों नहीं- इस बारे में कोई खास कयास लगाने की जरूरत नहीं, यह कोई जादुई आंकड़ा नहीं है. दरअसल, हर विधानसभा क्षेत्र में मतगणना कई चरणों में होती है और हर दौर की मतगणना 14 टेबुल पर की जाती है. अब 14 टेबुलों पर ही क्यों की जाती है, यह बात मैं अभी तक नहीं समझ पाया. इस सिलसिले में दूसरी बात यह कि वीवीपैट ऑडिट, मतगणना के पहले करवाया जाना चाहिए ना कि अंत में.
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रैंडम रीति से चुना गया एक ईवीएम और इससे जुड़ा वीवीपैट खोला जाय और और पर्चियों का मिलान डिस्प्ले बोर्ड पर नजर आती संख्या से 14 टेबुलों पर किया जाय. इसके बाद ही बाकी के ईवीएम से मतों की गिनती हो. अगर वीवीपैट की पर्चियों से डिस्प्ले बोर्ड की संख्या मेल खाती है तो शेष मतगणना करवायी जा सकती है. अगर पर्चियों की गिनती से डिस्प्ले बोर्ड की संख्या मेल नहीं खा रही तो फिर पूरे निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदान केंद्रों पर पेपर स्लिप्स के सहारे मतगणना करवायी जानी चाहिए. तीसरी बात कि मतगणना पूरी हो जाने के बाद हर प्रत्याशी को यह अधिकार होना चाहिए कि वह चाहे तो अपनी पसंद के किसी एक मतदान केंद्र पर वीवीपैट ऑडिट कराने की मांग करे (इसका फैसला रिटर्निंग ऑफिसर पर नहीं छोड़ा जा सकता).
तो आइए, उम्मीद बांधें कि चुनाव आयोग या फिर सुप्रीम कोर्ट ईवीएम विवाद का अब हमेशा के लिए समाधान कर देंगे. एक बात और- मैं दिल से चाहता हूं कि ईवीएम विवाद पर मेरा यह अंतिम लेख हो, दरअसल यह विवाद तो कब का सुलझा लिया जाना चाहिए था.
(योगेंद्र यादव राजनीतिक दल, स्वराज इंडिया के अध्यक्ष हैं.)
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