काफी समय तक मंदी की बात को नकारने के बाद सरकार अब हरकत में आई है. सरकार ने कारपोरेशन टैक्स की दर 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने, नई विनिर्माण कंपनियों पर कारपोरेशन टैक्स घटाकर 15 प्रतिशत करने सहित कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व का दायरा बढ़ाकर विश्वविद्यालयों व शोध संस्थानों तक करने, गिफ्ट सिटी में आईटी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियों के न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) में कटौती करने, पूंजीगत लाभ पर बढ़े अधिभार से छूट देने, आम बजट से पहले शेयर पुनर्खरीद (बाइ बैक) की घोषणा कर चुकी कंपनियों पर नया पुनर्खरीद वितरण कर नहीं लगाने सहित कई ऐलान किए हैं. इसे चुनाव के पहले पेश अंतरिम बजट और उसके बाद आए पूर्ण बजट के बाद इस साल सरकार द्वारा पेश तीसरा बजट करार दिया जा रहा है.
पिछले 2 महीने के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने देश भर का दौरा किया और विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर अर्थव्यवस्था की सेहत का आकलन किया. वित्तमंत्री ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की घोषणाओं के पहले चरण में एफपीआई की आमदनी पर अधिभार वापस लेने तथा सीएसआर मानकों के उल्लंघन पर जेल की सजा का प्रावधान वापस लेने का फैसला किया था. वाहन क्षेत्र को राहत देते हुए एकमुश्त पंजीकरण शुल्क जून 2020 तक टालने तथा 31 मार्च 2020 तक खरीदे सभी वाहनों पर 15 प्रतिशत के अतिरिक्त मूल्य ह्रास की अनुमति देने का फैसला किया था. वहीं, स्टार्टअप पर ऐंजल टैक्स खत्म करने का फैसला किया. छोटे और मझौले उद्यमों (एमएसएमई) के जीएसटी रिफंड के लंबित मामलों का एक महीने के भीतर निपटान करने व भविष्य में रिफंड भुगतान आवेदन के 2 माह के भीतर करने की घोषणा की.
घोषणाओं के अगले चरण में बैंक सुधार के तहत 10 सरकारी बैंकों का विलय कर 4 बैंक बनाने, शीर्ष अधिकारियों के अप्रेजल व्यवस्था में सुधार और कमजोर बैंकों में 11,500 करोड़ रुपये डालने की घोषणा की. निर्यात और रियल एस्टेट के लिए 70,000 करोड़ रुपये का पैकेज व आवास क्षेत्र के लिए स्ट्रेस्ड असेट फंड बनाया. एमएसएमई की कोई भी दबाव वाली संपत्ति को मार्च 2020 तक एनपीए घोषित नहीं करने और 400 जिलों में लोन मेला लगाने की घोषणा की. टैक्स दरों में बदलाव को घोषणाओं का तीसरा दौर कहा जा सकता है.
सरकार की यह घोषणाएं बजट के बाद हुई हैं. रियल एस्टेट, विनिर्माण, ऑटो और कुल मिलाकर नए रोजगार और बाजार में मांग तथा खरीदारी में कमी को लेकर ऐसी हालत पैदा हो गई है कि सरकार को भारी-भरकम छूट और पैकेज की घोषणा करनी पड़ रही है.
आइए देखते हैं कि सरकार की इन योजनाओं का क्या असर पड़ने वाला है.
कंपनियों की सेहत दुरुस्त होगी
सरकार की सबसे बड़ी घोषणा कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती है. इससे उद्योग जगत को कुल मिलाकर करीब 1.45 लाख करोड़ रुपये मिलने जा रहे है. यानी कारोबार जगत को इतना टैक्स कम देना पड़ेगा. साथ ही ये दरें 1 अप्रैल 2019 से प्रभावी होंगी, जिसका मतलब है कि सरकार कंपनियों को जमा टैक्स में से रिफंड भी देगी. इस तरह कंपनियों की नकदी में बढ़ोतरी होगी. कुल मिलाकर, इस तरह कारोबारी जगत का मूड बेहतर होगा. इस घोषणा के बाद शेयर बाजार में अचानक आई उछाल की यही वजह थी. इसकी वजह से निवेशकों में भी उत्साह देखा जा सकता है.
लेकिन बाजार में मांग और खरीदारी कहां है?
इस समय बाजार में खरीदारी में भारी गिरावट देखी जा रही है. सामान्य शब्दों में कहें तो पारले कंपनी बिस्कुट, हिंदुस्तान यूनिलीवर साबुन और मारुति सुजूकी कंपनी कार बना रही हैं, लेकिन लोग खरीदने को तैयार नहीं हैं. बाजार में ओवर सप्लाई की स्थिति है. कंपनियों के गोदामों में ढेर सारा माल रखा है. खरीदारों के पास पैसे नहीं हैं.
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खरीदारों के पास पैसे न होने की कुछ बड़ी वजहें हैं. इनमें मनरेगा जैसी योजनाओं को यूपीए सरकार की विफलताओं का स्मारक कहकर मार देने की कवायद, नोटबंदी से आम आदमी के गुल्लक तक का पैसा खींच लिया जाना, जिन मंत्रालयों के माध्यम से आम जनता को पैसे जाते हैं, उन्हें कम आवंटन और आवंटित राशि भी खर्च किए बगैर वित्त मंत्रालय को वापस कर दिया जाना शामिल है. यह नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले 5 साल के कार्यकाल में लगातार हुआ है, जिसकी वजह से आम आदमी की खरीदने की शक्ति छिन गई है. साथ ही इस दौरान प्राइवेट नौकरियों का सृजन नहीं हुआ. सरकारी नौकरियों में भर्ती की भारी भरकम घोषणाएं चुनाव के पहले हुईं. सिर्फ रेलवे में 4 लाख नौकरियां देने की घोषणा हुई, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
सरकार ने चुनाव के पहले पीएम-किसान के माध्यम से हर किसान को साल में 6,000 रुपये देने की घोषणा की. चुनाव के पहले लोगों के खातों में फटाफट पैसे भी पहुंचे. लेकिन अब उस योजना की चर्चा ही बंद है. इस योजना से सरकार किसानों को एक लाख करोड़ रुपये भी नहीं बांट पा रही है. यानी जिसे बाइक से लेकर साबुन और बिस्कुट तक खरीदना है, उनकी जेब में किसी भी तरीके से पैसे नहीं पहुंच रहे हैं. न नौकरी है, न पीएम-किसान है, न मनरेगा है.
कोई भी ऐसी व्यवस्था काम नहीं कर रही है कि खरीदारों की जेब में पैसे पहुंचे
सरकार का एक तर्क यह है कि कॉर्पोरेट टैक्स में कमी किए जाने, खासकर 1 अक्टूबर 2019 के बाद और 31 मार्च 2023 के पहले लगने वाले विनिर्माण संयंत्रों पर आधार कर 25 से घटाकर 15 प्रतिशत करने से विदेशी निवेश बढ़ेगा. यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका और चीन के बीच तनाव के कारण जो कंपनियां चीन का विकल्प तलाश रही हैं वे भारत में संयंत्र लगाने को प्रोत्साहित होंगी. अब सवाल यह है कि अगर मौजूदा कंपनियां ही अपनी क्षमता के करीब 75 प्रतिशत पर काम कर रही हैं और उन्हें उत्पादन में कटौती करने से लेकर अस्थाई व स्थाई कर्मचारियों की छंटनी जैसे कदम उठाने पड़ रहे हैं तो 25 की जगह 15 प्रतिशत टैक्स किए जाने पर नया संयंत्र कौन लगाएगा? फिलहाल तो कंपनियां पूंजीगत व्यय कम करने में लगी हैं. खासकर ऐसी स्थिति में, जब सऊदी अरब में संयंत्रों पर हमले के बाद पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं और अमेरिका चीन के कारोबारी जंग और तमाम देशों के संरक्षणवादी कदमों की वजह से भारत लगातार दुबला हो रहा है, निवेश कौन करेगा, यह देखने की बात है.
शेयर बाजार पर असर
शेयर बाजार अटकलबाजियों और संभावनाओं पर चलता है. उसमें निवेशक कितना निवेश कर रहे हैं और कितना निकाल रहे हैं, यह केवल एक खेल है. शेयर बाजार के निवेशकों के लिए टैक्स दरों में कटौती इस हिसाब से सकारात्मक हो सकती है कि कंपनियां टैक्स में बचत से होने वाले लाभ का फायदा अपने निवेशकों को भी देंगी. यह ज्यादा लाभांश (डिविडेंड) देकर या बाईबैक के माध्यम से हो सकता है. कंपनियों को मुनाफा होने से उनके मूल्यांकन में सुधार होगा. यही वजह लगती है, जिसके कारण टैक्स छूट की घोषणा के बाद जब बाजार खुले तो सेंसेक्स 1921 अंक चढ़कर बंद हुआ. कमाई में वृद्धि भी 15 साल के शीर्ष स्तर पर पहुंचने के अनुमान लगाए जा रहे हैं.
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अर्थव्यवस्था पर असर
सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है, जिससे खरीदार के हाथ में पैसे आएं. इसका दीर्घकालिक तरीका बिजनेस बढ़ाना है. साथ में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचा में निवेश बढ़ाना जरूरी है, जिससे ठेकेदारी, रोजगार और लोगों की कमाई बढ़े. नौकरियों का सृजन और बेरोजगारी कम करना मांग बढ़ाने के लिए अहम है. यह दीर्घकालिक ढांचागत व्यवस्था है, जिसे पिछले 5-6 साल में बाधित कर दिया गया है. मौजूदा संकट की स्थिति में मांग बढ़ाने का उपाय यही हो सकता है कि सरकारी कर्मचारियों को बोनस देकर, निजी कर्मचारियों को टैक्स में भारी कटौती के माध्यम से राहत देकर, किसानों को पीएम-किसान जैसी योजनाओं से भारी मात्रा में धन देकर उनकी खरीदने की क्षमता बढ़ाई जाए.
बाजार का चक्र बहाल करने के लिए सरकार को उसी तरह से लोगों के हाथ में पैसे पहुंचाने होंगे, जैसे उसने पिछले 5-6 साल के दौरान खींच लिए हैं.
(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)