‘सिर्फ आपके समर्थकों, गुंडों और ठगों ने हिंसा को अंजाम दिया.’
महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद जब लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की थी तो पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कुमार संगकारा ने उन पर इसी तरह जोरदार निशाना साधा.
The only violence was perpetrated by your “supporters” – goons and thugs who came to your office first before going on to assault the peaceful protestors. https://t.co/MxrCgcenEl
— Kumar Sangakkara (@KumarSanga2) May 9, 2022
बीते दिनों महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया था जिस वजह से कई लोगों की जानें भी गईं.
श्रीलंका का संकट उस स्थिति में पहुंच गया था कि लोग अपने पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक को छोड़ नहीं रहे थे. हाल ही में महिंदा राजपक्षे के हंबनटोटा स्थित पैतृक घर को आग लगा दी गई जिसके बाद उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा.
रक्षा मंत्रालय के सचिव कमल गुणरत्ने ने जानकारी दी है कि पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को त्रिंकोमाली स्थित नौसेना अड्डे पर ले जाया गया है जहां वह सुरक्षा घेरे में हैं. और फिलहाल श्रीलंका में बीते एक महीने के भीतर दो बार आपातकाल लग चुका है.
हालांकि, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस बीच राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि जल्द ही नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति की जाएगी जो राजपक्षे परिवार से नहीं होगा.
और उसके बाद श्रीलंका में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे देश के 26वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को स्थिरता प्रदान करने के लिए बृहस्पतिवार को उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गयी. भारत ने विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने का स्वागत करते हुए कहा कि वह नयी सरकार के साथ काम करने के लिए आशान्वित है. इसने श्रीलंका के लोगों के वास्ते अपनी प्रतिबद्धता दोहराई.
भारत से एक साल बाद यानी कि 1948 में आजाद हुआ श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. आर्थिक संकट ने श्रीलंका को ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से दुनियाभर के देश खासकर दक्षिण एशियाई मुल्क सबक ले सकते हैं.
भारतीय बैंकर उदय कोटक ने भी अपने हालिया ट्वीट में इस ओर इशारा किया कि एक ‘जलता लंका’ हम सबको बताता है कि क्या नहीं करना चाहिए.
The Russia Ukraine war goes on and the going gets tough. True test of nations is now. Strength of institutions like the judiciary, regulators, police, Government, Parliament will matter. Doing what is right and not populist is crucial. A “burning Lanka” tells all what not to do!
— Uday Kotak (@udaykotak) May 10, 2022
लेकिन श्रीलंका अचानक से ऐसी भयानक स्थिति में कैसे पहुंचा और कुछ समय पहले तक जो जनता राजपक्षे बंधुओं (महिंदा राजपक्षे और गोटबाया राजपक्षे) की पुरजोर समर्थक हुआ करती थी, उसने कैसे और क्यों बगावत कर दी?
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भाषायी श्रेष्ठता और अतीत का गौरव बना संकट
आसमान छूती महंगाई श्रीलंका में परेशानी का सबब बनी हुई है. एक तरफ जहां देश का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की कगार पर है वहीं जरूरी चीज़े जैसे की खाना, दवाई और ईंधन का भी संकट है.
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के प्रमुख नंदलाल वीरसिंघे ने कहा है कि अगर जल्द ही देश में राजनीतिक स्थिरता बहाल नहीं की जाती है तो अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगी.
श्रीलंका में राजनीतिक फायदे के लिए लोगों को भाषायी श्रेष्ठता और धार्मिक आधार पर भड़काने का लंबा इतिहास रहा है जिसका प्रतिफल आज दुनियाभर के सामने है. 1983 से 2009 के बीच चले लंबे गृह युद्ध में धर्म की काफी भूमिका रही.
श्रीलंका के उत्तर और पूर्वी हिस्से में तमिल अल्पसंख्यक रहते हैं लेकिन देश में सिंहला समुदाय बहुसंख्यक है जो कि बौद्ध धर्म को मानता है. अंग्रेजों के समय देश में तमिल बोलने वाले लोगों का वर्चस्व था लेकिन जैसे ही श्रीलंका आजाद हुआ वहां सिंहला राष्ट्रवाद ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया जिसने आगे चलकर गृह युद्ध जैसी भयावह स्थिति पैदा कर दी.
आजादी के बाद श्रीलंका में सिंहला भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाया गया और 1972 में बौद्ध धर्म को देश का प्राथमिक धर्म मान लिया गया जिस कारण तमिल बोलने वाली अल्पसंख्यक आबादी में असंतोष बढ़ा जिसके बाद 1976 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (एलटीटीई) का जन्म हुआ. यह संगठन तमिलों के हक की बात करता था.
भाषायी श्रेष्ठता को लेकर यह गृह युद्ध काफी लंबे समय तक चला जिसका अंत 2009 में हुआ. इस बीच लाखों लोगों की जान गई. जिसमें श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति प्रेमदासा समेत भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी शामिल हैं.
2009 में एलटीटीई के साथ खत्म हुई भाषायी श्रेष्ठता की जंग के बाद श्रीलंका में धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर मुस्लिमों को निशाना बनाया जाने लगा.
कोई भी देश अगर धर्म और भाषायी श्रेष्ठता के स्तर पर लोगों को लामबंद करने की कोशिश करेगा तो उसमें रहने वाले दूसरे समुदायों के बीच असंतोष पनपेगा, जिससे समाज के बीच द्वेष बढ़ेगा.
श्रीलंका के मौजूदा संकट से तो यही साफ होता है कि लंबे समय तक चले भाषायी विवाद से जो देश में स्थिति उत्पन्न हुई उससे बाद के सालों में कोई सबक नहीं लिया गया. और आखिरकार बीते एक दशक बाद फिर से देश गृह युद्ध की स्थिति की तरफ बढ़ता जा रहा है.
श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट को जानकार भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक बहुसंख्यकवाद से जोड़ रहे हैं.
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भारत की भूमिका और चुनौती
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर के देशों को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन श्रीलंका पहला देश है जो इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है. पहले कोविड की मार, फिर बढ़ता कर्ज और फिर खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी स्थिति में ला दिया. वहीं श्रीलंका में राजपक्षे सरकार की चीन से करीबी के बाद वहां कर्जा का संकट और बढ़ा है.
2019 में राजपक्षे ने चुनाव के दौरान टैक्स में कमी करने का वादा किया था जिसने अर्थव्यवस्था पर काफी बोझ डाला वहीं कोविड महामारी के कारण पर्यटकों का भी श्रीलंका आना लगभग बंद हो गया. वहीं जानकार मानते हैं कि उर्वरकों पर प्रतिबंध लगा देने से कृषि क्षेत्र भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
भारतीय रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रही है और जून महीने के आखिर तक इसके 79 रुपए तक जाने की संभावना है. फिलहाल 10 मई तक डॉलर की तुलना में इसकी कीमत 77.53 रुपए तक गिर गई है.
लेकिन अतीत में भी श्रीलंका को बुरी स्थिति से निकालने के लिए भारत ने काफी प्रयास किए हैं और इस बार भी उसे आर्थिक संकट में राशन से लेकर पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई कर रहा है. 1980 के दशक में भी श्रीलंका की समस्या को सुलझाने के लिए भारत ने वहां सेना भेजी थी.
हालांकि जब इस बीच ये अफवाहें उड़नी शुरू हुईं कि भारत फिर से वहां सेना भेजेगा तो भारतीय उच्चायोग ने इसे खारिज कर दिया.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने श्रीलंका की हालिया स्थिति को भारत के लिए चेतावनी करार दिया है. उन्होंने कहा, ‘श्रीलंका एशिया का सबसे समृद्ध देश हो सकता है. उनके यहां साक्षरता, स्वास्थ्य सेवाएं, लिंगानुपात की दरें ऊंची थी लेकिन सिंहला और बौद्ध बहुसंख्यकों की वजह से ये देश बर्बाद हो गया.’
बीते कुछ समय से भारत में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने को लेकर जो बहस चल रही है, इस पर रामचंद्र गुहा ने कहा कि एक धर्म और एक भाषा को ज्यादा महत्व दिया गया तो भारत का हाल भी श्रीलंका जैसा ही होगा.
बीते कुछ समय से भारत में मुस्लिमों के खिलाफ जिस तरह से हिंसा की घटनाएं हो रही हैं और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, उसे लेकर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं. किसी भी देश के लिए ये अच्छा नहीं है कि अल्पसंख्यक समुदाय से भेदभाव किया जाए. ऐसे में श्रीलंका का ऐतिहासिक संकट भारत के लिए सबक है कि समुदायों के बीच विद्वेष पैदा करने से कितने खतरे पैदा हो सकते हैं.
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मुस्लिम विरोधी अभियान
श्रीलंका में रहने वाला मुस्लिम समुदाय मूलत: नस्लीय तमिल हैं जिनकी देश में 10 प्रतिशत की आबादी है. 2009 के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धर्म के नाम पर हिंसा की घटनाओं में तेजी आई. इन घटनाओं के पीछे बौद्ध गुरुओं को जिम्मेदार माना जाता रहा है. गौरतलब है कि बौद्ध धर्म को विश्व भर में शांति और अहिंसा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है.
श्रीलंका में मुस्लिम विरोधी आंदोलन ने बोडू बाला सेना (बीबीएस) के नेतृत्व में जोर पकड़ा जिसमें ज्यादातर बौद्ध संत शामिल हैं. बीते सालों में हिंसा की कई घटनाओं में इस संगठन का हाथ रहा है लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की. 2018 में तो मुस्लिमों और मस्जिदों पर लगातार हुए हमलों के बाद श्रीलंका में आपातकाल लगा दिया गया था.
श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बीते सालों में और भी कई कदम उठाए गए हैं जिनमें बुर्का पर प्रतिबंध और इस्लामिक स्कूलों को बंद करना शामिल है.
अगर ऐसे ही अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा बढ़ती रही तो श्रीलंका की स्थिति और भी बुरी होती जाएगी. किसी भी देश को आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि नस्लीय और धार्मिक आधार पर भेदभाव को बंद किया जाए और सभी समुदाय के लोगों को बराबरी का हक मिले. फिलहाल देश के सामने आर्थिक संकट से निपटने की चुनौती है और इस पूरे घटनाक्रम में भारत की भूमिका बेहद अहम होने वाली है.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
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