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Wednesday, 12 November, 2025
होममत-विमतवोट चोरी पर ECI का रिएक्शन सिर्फ ठंडा गुस्सा और कोई कार्रवाई नहीं, मीडिया भी यही कर रही है

वोट चोरी पर ECI का रिएक्शन सिर्फ ठंडा गुस्सा और कोई कार्रवाई नहीं, मीडिया भी यही कर रही है

विपक्षी पार्टियों ने अपने स्तर पर पूरी कोशिश की है, साफ-साफ सबूत भी इकट्ठा किए हैं, लेकिन सामने से सिर्फ चुप्पी और बचने की कोशिश हो रही है.

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यह बात अब साफ है कि लोकतंत्र के रक्षक कहे जाने वाले भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की प्रतिक्रिया, देश में करोड़ों नकली वोटरों के खुलासे पर दी गई, बस टालने वाली, रूखी, फिल्मी डायलॉग जैसी और बिना किसी कार्रवाई के है.

भारत के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी अब यही कर रहा है. वो बड़े-बड़े हेडलाइन लगा रहे हैं—जैसे द इंडियन एक्सप्रेस ने जिससे यह लगे कि “वोट चोरी” के आरोप सिर्फ बातें हैं. जबकि हर रिपोर्ट, जिसने हरियाणा के होडल जिले में कथित फर्ज़ी वोटरों की जांच की, यहां तक कि द इंडियन एक्सप्रेस की अपनी रिपोर्टों ने भी, कांग्रेस के इस दावे की पुष्टि की है कि हरियाणा की वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ है.

5 नवंबर को विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के ही आंकड़ों का इस्तेमाल करके दिखाया कि हरियाणा में 2 करोड़ वोटरों में से 25 लाख वोटर संदिग्ध हैं. यानी हर आठ में से एक वोटर. ये नाम या तो:

(1) कई बूथों, सीटों या राज्यों में दोहराए गए हैं,
(2) जिनके पते स्पष्ट रूप से गलत या अवैध हैं, या
(3) एक ही पते पर असंभव रूप से बहुत बड़ी संख्या में वोटर दर्ज हैं.

तीसरे प्रकार को समझाने के लिए गांधी ने हरियाणा के तीन घरों का उदाहरण दिया, जहां क्रमशः 66, 501 और 108 वोटर रजिस्टर्ड थे.

कई मीडिया संस्थानों ने तुरंत रिपोर्टरों को हरियाणा भेजा और, जैसा उम्मीद थी, उन्हें काफी गड़बड़ियां मिलीं.

द इंडियन एक्सप्रेस की पहली रिपोर्ट (6 नवंबर) में कहा गया कि होडल जिले के ये दोनों पते—हाउस नंबर 150 (66 वोटर) और हाउस नंबर 265 (501 वोटर)—असल में बड़े प्लॉट हैं, जिनमें कई घर हैं. यानी अखबार यह साबित करना चाह रहा था कि कांग्रेस ने बात बढ़ा चढ़ाकर कही.

7 नवंबर की दूसरी रिपोर्ट में, अखबार ने राहुल गांधी के डुप्लिकेट वोटरों के दावे का विरोध करने की कोशिश की, यह दिखाकर कि चरनजीत कौर नाम की महिला, जिनकी फोटो वोटर लिस्ट में 223 नामों के साथ लगी है, उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ एक ही बार वोट डाला और यह भी कि उन 223 में से कम से कम 17 लोगों ने इस गलती की शिकायत चुनाव आयोग को पहले ही कर दी थी.

लेकिन इन बातों को सीधे सही मान लेना, कई समस्या पैदा करता है.

सच्चाई साफ करना

पहला, दूसरे न्यूज़ रिपोर्ट इन दावों को गलत बताते हैं. दैनिक भास्कर के एक रिपोर्टर को पता चला कि मकान नंबर 265 में सिर्फ 7 लोग रहते हैं और उसके मालिक, जो एक पूर्व बीजेपी पार्षद हैं, बताते हैं कि उनके बड़े परिवार में सिर्फ 80 लोग हैं. इस परिवार के लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि 2016 के बाद से बाहरी लोगों के नाम इस पते पर वोटर लिस्ट में जोड़े जाने लगे. यह साफ है कि पूरी जांच की ज़रूरत है—जो कि चुनाव आयोग कर भी नहीं रहा है—ताकि सच सामने आए.

दूसरा, कांग्रेस यह नहीं कह रही कि चरनजीत कौर चुनाव में धांधली कर रही हैं. असली सवाल यह है: जब वोटर लिस्ट पर लगी तस्वीरें और वोटर आईडी की तस्वीरें मेल नहीं खातीं (जिसकी पुष्टि द इंडियन एक्सप्रेस ने खुद की है), तो 5,21,619 लोगों ने वोट कैसे डाला? और अगला सवाल यह है: इनमें से असली मतदाता कितने हैं? ध्यान रखें कि हरियाणा में सरकार सिर्फ 22,779 वोट के अंतर से बनी—जो कि चुनाव आयोग की अपनी लिस्ट में मौजूद संदिग्ध 25,41,144 एंट्रीज़ का 1 प्रतिशत से भी कम है.

तीसरा, सभी रिपोर्ट दिखाती हैं कि ईसीआई ने मैनुअल ऑन इलेक्ट्रोरल रोल्स के नियम 11.2.4(vii)(a) और 11.4.3 को लागू नहीं किया. इन नियमों में कहा गया है कि “असिस्टेंट इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर को उन घरों की फील्ड जांच करनी चाहिए जहां 10 से ज्यादा मतदाता दर्ज हों.” इसके अलावा, वोटर रजिस्ट्रेशन सिर्फ “मकानों” में होता है, “प्लॉटों” में नहीं.

दिप्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मकान नंबर 265 से जुड़े मतदाताओं की संख्या 630 तक भी हो सकती है.

यह द इंडियन एक्सप्रेस की अच्छी रिपोर्टिंग है कि ईसीआई ने सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड एडवांस्ड कम्पयुटिंग (सी-डैक) द्वारा बनाई गई डी-डुप्लिकेशन मशीन का इस्तेमाल नहीं किया, जबकि इसी टूल से 2022 में 3 करोड़ डुप्लीकेट नाम हटाए गए थे, लेकिन वोट चोरी आरोपों को लेकर मीडिया की प्रतिक्रिया दिखाती है कि कैसे बिना गहराई में जाए ऊपर-ऊपर से रिपोर्टिंग की जा रही है. जबकि महीनों की मेहनत से जो रिसर्च सामने आई है, वही तो मीडिया को खुद करनी चाहिए थी.

जैसे कि यह भी मीडिया और हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह चुनाव आयोग से जवाब मांगें. लोकतंत्र में सभी भारतीय बराबर हिस्सेदार हैं. वोटर लिस्ट को मशीन-रीडेबल बनाना और मतदान प्रक्रिया में सीसीटीवी की मौजूदगी तो सबसे बुनियादी पारदर्शिता है, लेकिन ईसीआई ने इसे भी नज़रअंदाज़ कर दिया और अधिकतर मीडिया ने इसे मुद्दा ही नहीं बनाया.

विपक्ष जितना कर सकता है कर रहा है, साफ और पक्के सबूत इकट्ठा कर चुका है, लेकिन जवाब में सिर्फ चुप्पी और टालमटोल मिल रही है. जो लोग सार्वजनिक चर्चा को दिशा देते हैं, वो इस बड़ी समस्या को अनदेखा कर रहे हैं और यह हमारे भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है.

सच में, एक निष्पक्ष और असली जांच की जरूरत है. यह बढ़ते सबूत साफ बताते हैं कि भारत की वोटर लिस्ट्स में भारी गड़बड़ियां हैं—भले ही मुख्य चुनाव आयुक्त ग्यानेश कुमार इसे कितना ही छुपाने या उलझाने की कोशिश करें.

(लेखक अमिताभ दुबे कांग्रेस के सदस्य है. व्यक्त विचार निजी हैं. उनका एक्स हैंडल @dubeyamitabh है.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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