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Monday, 25 November, 2024
होममत-विमतसमुद्र में तेजी से पैर पसार रहा है ड्रैगन, नेवी को मजबूत करने के लिए भारत को कुछ बाधाओं को दूर करना होगा

समुद्र में तेजी से पैर पसार रहा है ड्रैगन, नेवी को मजबूत करने के लिए भारत को कुछ बाधाओं को दूर करना होगा

चीन जबकि हिंद महासागर की परिधि में नौसैनिक अड्डा समेत कई तरह के ठिकाने बना रहा है तब भारतीय नौसेना को जल्दी ही अपने समुद्री क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

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पिछले कुछ सप्ताह भारतीय नौसेना के लिए काफी व्यस्तता भरे रहे. अभी-अभी उसने 7,400 टन के विध्वंसक पोत आइएनएस मर्मुगाओ को अपने बेड़े में शामिल किया. तीन महीने पहले प्रधानमंत्री ने देश में पहली बार बनाए गए 45,000 टन वाले विमानवाही पोत विक्रांत को बेड़े में शामिल किया था.

नौसेना जल्दी ही परमाण्विक बैलिस्टिक मिसाइल से लैस अपनी दूसरी पनडुब्बी आइएनएस अरिघात को बेड़े में शामिल करेगी. इसकी तारीख गुप्त रखी जाएगी.

इस बीच पांचवीं पारंपरिक स्कॉर्पीन पनडुब्बी आइएनएस वागीर नौसेना को सौंप दी गई है और वह इसे अगले साल के शुरू में नयी श्रेणी के पहले जंगी जहाज के साथ बेड़े में शामिल करेगी.

पहले कभी ऐसा दौर नहीं आया था जब नौसेना ने कम समय में ही कई बड़े, अग्रिम मोर्चे पर तैनात होने वाले युद्धपोत और पनडुब्बियां हासिल की हों. 2021 में भी वह काफी व्यस्त रही, जब उसने दो स्कॉर्पीन पनडुब्बियों और एक विध्वंसक पोत को शामिल किया था.

जाहिर है, नौसेना के विस्तार की गति तेज हो रही है. लेकिन हमें दीर्घकालिक नजरिया अपनाना होगा. 2021 और 2022 के मुक़ाबले इनसे पहले के दो साल में केवल एक पनडुब्बी और 3,300 टन का एक युद्धपोत शामिल किया गया था, 2018 में बेड़े में कोई बड़ा इजाफा नहीं किया गया था. यानी साल में दो बड़े युद्धपोत शामिल करने का सिलसिला कायम है.

यह एक दशक पहले की स्थिति से बेहतर है, लेकिन एक युद्धपोत (विध्वंसक, फ्रीगेट या कोर्वेट) को बनाने में सात से नौ साल तक लग जाते हैं, जबकि चीन इससे आधा समय लेता है.


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इसके बावजूद, बेड़े में शामिल करते समय कई प्रमुख चीजें नहीं जुड़ी रहती हैं, जैसे लंबी दूरी तक मार करने वाली एअर-डिफेंस मिसाइलें, भारी टोरपीडो, पनडुब्बी पर हमला करने वाले हेलिकॉप्टर, यहां तक कि पोत पर रहने वाले विमान.

सोवियत संघ से हासिल विमानवाही युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य 2013 में बेड़े में शामिल किया गया था मगर वह सूखे बंदरगाह पर ही खड़ा है और इसकी यह अवधि फिर बढ़ा दी गई है. एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले दो वर्षों में भारत के किसी पोत पर किसी विमान को उतारा नहीं गया है.

फिर भी आप कह सकते हैं कि भारत अपनी नौसैनिक ताकत बढ़ा रहा है. 6,600 टन वाले सात फ्रीगेट्स में मॉडुलर निर्माण तकनीक लागू की जाएगी जिससे पोत निर्माण में दो साल कम समय लगेगा.

मझगांव बंदरगाह अगर विध्वंसकों और फ्रीगेटों का मुख्य निर्माता है तो गार्डेन रीच शिपबिल्डर्स ऐंड इंजीनियर्स, कोचीन शिपयार्ड और गोवा शिपयार्ड विशाल, जटिल पोत बनाने में सक्षम है जबकि विशाखापत्तनम कॉम्प्लेक्स परमाण्विक पनडुब्बियां बनाने में सक्षम है. इस सूची में चेन्नै के पास लार्सन ऐंड टूब्रो द्वारा तैयार की गई पोत डिजाइन और यार्ड की व्यवस्था को जोड़ा जा सकता है.

लेकिन ये सब नौसैनिक जरूरतों के निर्माण में चीन की तेजी का मुक़ाबला नहीं करते. उसने पिछली गर्मियों में अपना तीसरा विमानवाही पोत बेड़े में शामिल किया, जो भारत के दोनों पोतों को मिलाकर उससे भी बड़ा है और उस अत्याधुनिक तकनीक से लैस है जो विमानों को जल्दी-जल्दी उड़ान भरने की सुविधा देती है और जिस पर ज्यादा ईंधन तथा भारी वजन वाले हथियार लादे जा सकते हैं.

जबरदस्त तेजी से बेहद शक्तिशाली विध्वंसकों का निर्माण कर चुका चीन अब मारक ड्रोनों और मानव रहित ऐसे युद्धपोतों से समुद्री लड़ाई लड़ने और नेटवर्क केंद्रित हमले की तैयारी कर रहा है जो मानव सहित पोतों से जुड़ सकें.

चीन जबकि हिंद महासागर की परिधि में नौसैनिक अड्डा समेत कई तरह के ठिकाने बना रहा है तब भारतीय नौसेना को जल्दी ही अपने समुद्री क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

लेकिन सीमित रक्षा बजट के कारण शिपयार्डों को इतने ऑर्डर नहीं मिले हैं कि वे निरंतर सक्रिय रहें, हालांकि पनडुब्बियों की लड़ाई में काम आने वाले छोटे पोतों के निर्माण की ऑर्डर मिले हैं.

पनडुब्बियों के छोटे बेड़े में मुख्यतः 1980 के दशक के पुरानी नौकाएं शामिल हैं, लेकिन मझगांव के पनडुब्बी शेड के पास छठी और अंतिम स्कॉर्पीन पनडुब्बी के निर्माण के बाद कोई ऑर्डर नहीं होगा.

अगली छह पनडुब्बियों के लिए ऑर्डर देना बार-बार टाला जा रहा है क्योंकि संभावित बोली लगाने वालों को शर्तें स्वीकार नहीं हैं. इस बीच, रक्षा मंत्री ने यह कहकर आश्चर्य में डाल दिया कि भारत ने अपने बेड़े के तीसरे पोत ‘केरियर’ का निर्माण शुरू कर दिया है.

इस ऑर्डर के बारे इससे पहले या बाद और कुछ नहीं सुना गया है. मलेशिया, ब्राज़ील, और फिलीपींस से निर्यात के ऑर्डर प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ने के कारण नहीं मिल सके.

इसलिए भारतीय नौसेना के सामने आज कई चुनौतियां हैं—अपर्याप्त बजट, ऑर्डर देने और निर्माण में देरी, डेलीवरी के कार्यक्रम में तालमेल की कमी, चीन से चुनौती.

नौसेना जबकि बड़े युद्धपोतों और पनडुबीयोन को जल्दी-जल्दी बेड़े में शामिल किए जाने का जश्न माना रही, इन सभी मसलों पर विचार-विमर्श करने की जरूरत है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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