कश्मीर के पहलगाम से दो किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित बैसारन घाटी में, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है, कायरतापूर्ण आतंकी हमले ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है. जम्मू-कश्मीर में उठी अलगाववादी लहर के 36 साल के इतिहास में सैलानियों पर यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है. इसमें 28 लोग मारे गए हैं और 17 लोग घायल हुए हैं.
धार्मिक दृष्टि से देखें तो पवित्र अमरनाथ गुफा के तीर्थयात्रियों पर पहले भी हमले किए जाते रहे हैं लेकिन सैलानियों को बख्श दिया जाता रहा है क्योंकि इससे कश्मीरियों की आजीविका प्रभावित होती. साफ है कि इस बार आतंकवादी और पाकिस्तान एक संदेश देना चाहता था. और यह संदेश बड़े दुस्साहस और बड़ी क्रूरता के साथ दिया गया है.
हमले के लिए समय का चुनाव भी प्रतीकात्मक है—अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस भारत के दौरे पर आए थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दौरे पर रवाना हुए थे. जाहिर है, सुरक्षा के मामले में गंभीर चूक हुई है.
हमले की आशंका तो थी ही
इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाना चाहिए कि पाकिस्तान भले ही आर्थिक मुसीबतों से घिरा है लेकिन जम्मू-कश्मीर में छद्मयुद्ध छेड़ने की उसकी क्षमता घटी नहीं है, न ही जम्मू-कश्मीर को हड़पने के लिए भारत को हजारों घाव देने की उसकी रणनीति में कोई बदलाव आया है. जो रणनीतिक माहौल है, जम्मू-कश्मीर की जनता का जो मूड है, और घुसपैठ रोकने तथा आतंकवादियों का मुक़ाबला करने की दृष्टि से सुरक्षाबालों की जिस तरह की तैनाती है उन सबके मद्देनजर पाकिस्तान आज सामरिक दृष्टि से आतंकवादियों के प्रवाह को अपने नियंत्रण में रखने की स्थिति में है.
अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद घाटी में बढ़ी सुरक्षा, रजौरी-जम्मू-डोडा क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी ग्रिड की कमजोरी, और जम्मू तथा पठानकोट के बीच खुली अंतरराष्ट्रीय सीमा के कारण पीर पंजाल के दक्षिण के क्षेत्र पर ज्यादा ज़ोर देना कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए. शहरी इलाकों में और सड़कों पर सुरक्षाबालों की ज्यादा तैनाती के कारण आतंकवादियों ने जंगल और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों की ओर रुख कर लिया है. आतंकवादियों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन वे बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त हैं, और बेहतर हथियारों तथा साजोसामान से लैस हैं.
चूंकि कश्मीर में लोग अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद बेहतर आर्थिक स्थिति का लाभ उठा रहे हैं, फाइनांशियल एक्शन टास्क फोर्स जांच कर रहा है, आंतरिक सुरक्षा की स्थिति में गिरावट आई है, और आईएमएफ से कर्ज लेने की जरूरत पैदा हो गई है इन बातों के मद्देनजर पाकिस्तान ने मुख्यतः पीर पंजाल के दक्षिण के क्षेत्र पर ही ज़ोर देने के मकसद से आतंकवादियों की संख्या 100-150 तक ही सीमित रखी है.
पहलगाम में हमला कई कारणों से किया गया. एक तो पाकिस्तान कश्मीर घाटी में अपनी मौजूदगी जताना चाहता था, ताकि वहां के लोग कहीं बेहतर विकल्प को न चुन लें. भारत ‘नया कश्मीर’ का जो सपना दिखा रहा है उसे भी वह तोड़ना चाहता है. केवल गैर-मुसलमानों को ही निशाना बनाने का मकसद देश के बाकी हिस्से में दक्षिणपंथी दबाव झेल रहे दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ हिंसा को भड़काना, और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यकों के अंदर अलगावादी भावना पैदा करना है. पाकिस्तान भारत पर आरोप लगा रहा है कि वह अफगानिस्तान के तालिबान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और बलूच आतंकवादी गुटों की मिलीभगत से बलूचिस्तान में आतंकवाद को भड़का रहा है. बोलन सुरंग घेराबंदी, जिसमें बड़ी संख्या में सैनिक और उनके परिजन मारे गए थे, पाकिस्तानी फौज के लिए बड़ा झटका था. आईएसआई के लिए यह बड़ी शर्म की बात है कि भारत लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के नेतृत्व को निशाना बना रहा है. इसलिए उसने बदले की कार्रवाई करने का आह्वान किया. और सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तानी फौज की आलोकप्रियता बढ़ रही है.
इन तथ्यों के मद्देनजर, बड़े आतंकी हमले का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए था. पुलिस और राष्ट्रीय राइफल्स की आतंकवाद विरोधी ग्रिड की मौजूदगी सड़कों और शहरी इलाकों में ही सीमित है. आतंकवादियों का दबदबा जंगली क्षेत्रों और पहाड़ों में है, जहां वे स्थानीय लोगों पर ज़ोर-जबरदस्ती करके उनसे मदद हासिल करते हैं. एक ऐसे क्षेत्र की कल्पना कीजिए, जो सुरक्षाबलों की सबसे करीब तैनाती से एक घंटे की दूरी पर पहलगाम में है, और जिस क्षेत्र में रोज करीब 1500 सैलानी आते हैं, जिन्हें किसी पुलिस या सुरक्षाबल की सुरक्षा नहीं हासिल है. किसी भी दृष्टि से यह सुरक्षा में भारी चूक है.
क्या-क्या जवाबी कार्रवाई हो सकती है
नव-राष्ट्रवाद की घुट्टी पी चुका, आक्रोश से भरा देश खून का प्यासा नजर आ रहा है. लेकिन सरकार को जन भावना के दबाव में हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए. याद रहे कि पाकिस्तान परमाणु शक्ति संपन्न देश है और उसने परमाणु युद्ध से नीचे के स्तर के सीमित युद्ध करने की पर्याप्त पारंपरिक क्षमता हासिल कर ली है.
मिसाइल, ड्रोन, हवाई या समुद्री ताकत से जुड़ी टेक्नोलॉजी के मामले में भारत इतनी बड़ी बढ़त नहीं रखता है, ताकि वह बदला लेने के लिए जोरदार सर्जिकल स्ट्राइक कर सके. पाकिस्तान जैसे को तैसा जवाब देने की क्षमता रखता है, इसलिए हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए. लेकिन राष्ट्रीय भावना की मांग है कि जवाबी कार्रवाई 48 से 72 घंटे के भीतर की जाए.
फौरी जवाबी कार्रवाई गोलाबारी, स्पेशल फोर्स के हमले, हवाई/ड्रोन/मिसाइल से हमले एलओसी के पार दुश्मन की चुनिंदा चौकियों पर कब्जे के लिए छोटे स्तर के ऑपरेशन के रूप में किए जा सकते हैं. इस तरह के ऑपरेशन सामरिक कार्रवाई के दायरे में आते हैं, जो बड़े युद्ध में नहीं बदलते. लेकिन इनके जवाब में वैसी ही कार्रवाई हो सकती है.
अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार मुरीदके और बहावलपुर में लश्करे तय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गुटों के अड्डों को निशाना बनाना रणनीति के दायरे में आएगा और इसका नतीजा एक सीमित युद्ध के रूप में निकला सकता है.
परमाणु हथियार के इस्तेमाल के बिना एक छोटा और तेज सीमित युद्ध हो सकता है. लेकिन इस तरह की कार्रवाई तभी की जानी चाहिए जब दुश्मन को इसकी आशंका भी न हो. यह फौरी जवाबी कार्रवाई का एक रूप नहीं है. इस विकल्प को अगर जम्मू-कश्मीर तक सीमित किया जाए तो यह परमाणु हथियार के प्रयोग से पहले का एक बड़ा विकल्प हो सकता है. पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की ओर से जो छद्मयुद्ध जारी है वह, और पहलगाम में किए गए हमले के पैमाने पर किया गया आतंकवादी हमला इस तरह के विकल्प को चुनने का पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय औचित्य प्रदान करता है. इसे अंजाम देने का सबसे बढ़िया समय तब होगा जब पहाड़ों पर बर्फ पिघल चुकी हो.
अगर इस विकल्प पर अमल किया जाता है तो जम्मू-कश्मीर के बाहर के क्षेत्र में बचाव की रणनीतिक मुद्रा अपनाना बुद्धिमानी होगी. और दुनिया को इस बारे में बताया जा सकता है. एलओसी को 10 दिन में 10-15 किमी पीछे धकेला जा सकता है ताकि परमाणु हथियारों का प्रयोग शुरू होने से पहले उसके रणनीतिक लक्ष्यों को खतरे में डाला जा सके. घुसपैठ की सुविधा देने वाले सभी अड्डों पर कब्जा किया जा सकता है. यह पाकिस्तान को अमन की मांग करने को बाध्य कर सकता है क्योंकि तब चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर खतरे में आ जाएगा.
हमें अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए जन भावना के दबाव में हड़बड़ी में युद्ध का बिगुल नहीं बजाना चाहिए. भारत सोची-समझी रणनीति को करीने से लागू करते हुए पाकिस्तान को दहशत में रखे ताकि भारत हमले की पहल कर सके, निर्णायक हमला कर सके और बार-बार हमला कर सके जब तक कि वह अपना राजनीतिक लक्ष्य नहीं हासिल कर लेता.
लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.
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