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Thursday, 25 April, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावक्या सपा को लगता है कि शालिनी यादव मोदी को बराबरी की टक्कर दे पाएंगी?

क्या सपा को लगता है कि शालिनी यादव मोदी को बराबरी की टक्कर दे पाएंगी?

नरेंद्र मोदी के खिलाफ सपा-बसपा गठबंधन कोई मजबूत कैंडिडेट दे सकता था. लेकिन जाने किस मजबूरी में गठबंधन ने एक कमजोर प्रत्याशी यहां उतार दिया.

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लोकसभा चुनाव में जिस एक सीट की सबसे अधिक चर्चा है वह है वाराणसी. वाराणसी से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में हैं. लोगों, खासकर बीजेपी विरोधियों को ये आशा थी कि पिछली बार की तरह इस बार भी बनारस में मोदी के खिलाफ केजरीवाल के कद का ही कोई नेता विपक्ष की तरफ से उतारा जाएगा, पर समाजवादी पार्टी ने अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी शालिनी यादव को टिकट देकर ऐसे लोगों की आशाओं पर पानी फेर दिया.

आपको बता दें कि शालिनी यादव पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेसी नेता श्यामलाल यादव की पुत्रवधू हैं. शालिनी यादव ने कांग्रेस के टिकट पर वाराणसी से पिछला मेयर का चुनाव भी लड़ा और बमुश्किल अपनी जमानत बचा पाईं. हाल ही में शालिनी यादव सपा में शामिल हुई हैं और अब उनको पीएम मोदी के खिलाफ महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा जा रहा है.

सपा नेतृत्व पर आरोप है कि शालिनी यादव को टिकट देकर सपा एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी की मदद कर रही है. कहा तो ये भी जा रहा है कि भाजपा ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह के खिलाफ मैनपुरी से प्रेम सिंह शाक्य के रूप में एक डमी प्रत्याशी लड़ाया है. तो इसी एहसान को चुकाने के लिए सपा ने भी बनारस से पीएम मोदी के खिलाफ शालिनी यादव के रूप में एक डमी प्रत्याशी उतार दिया.

यदि सपा इस सीट पर किसी यादव को ही पीएम मोदी के खिलाफ उतारना चाहती है तो उसे पूर्व सैनिक तेजबहादुर यादव को मोदी के खिलाफ वाराणसी के रण में उतारना चाहिए था. तेजबहादुर ने अर्धसैनिक बल के जवानों के खाने में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था. इस वजह से उनको बर्खास्त कर दिया गया था. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तेज बहादुर मोदी पर भारी साबित हो सकते थे. इसके अलावा तेज बहादुर खुद अर्धसैनिक बल के जवान रहे हैं और देश के कई हिस्सों से तमाम रिटायर्ड सैनिकों और अर्धसैनिक बल के जवानों के तेजबहादुर के समर्थन में आने की उम्मीद है, जिससे पीएम मोदी पुलवामा और देशभक्ति के मुद्दे पर भी घिर सकते थे.

सोशल मीडिया पर भी तेज बहादुर के पक्ष में कुछ सामाजिक चिंतक आवाज उठा रहे हैं. खुद तेजबहादुर ने भी बीते दिनों वाराणसी में पीएम मोदी के खिलाफ अपनी उम्मीदवारी को लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात भी की थी, पर अखिलेश यादव ने तेज बहादुर को टिकट न देकर शालिनी यादव को टिकट थमा दिया, जबकि ये साफ है कि तेज बहादुर शालिनी यादव के मुकाबले पीएम मोदी के खिलाफ कहीं अधिक मजबूत उम्मीदवार साबित होते.

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हालांकि, सपा समर्थक इस बात से इंकार कर रहे हैं कि मोदी को वाक ओवर दिया गया है. सपा समर्थकों का कहना है कि मोदी के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में प्रियंका गांधी के नाम पर विचार चल रहा है. कांग्रेस के मन में किसी तरह का कोई संशय न रहे इसीलिए सपा ने शालिनी यादव के रूप में एक डमी प्रत्याशी उतारा है. हालांकि, सपा समर्थकों का ये तर्क खारिज करने लायक है. क्योंकि अगर सपा वाराणसी सीट से मोदी को हराने को लेकर वाकई गंभीर है तो उसे इस सीट पर प्रियंका गांधी के खिलाफ उम्मीदवार ही नहीं देना चाहिए था या फिर कोई सवर्ण उम्मीदवार देना था.

कहा तो ये भी जा रहा है कि बनारस में सपा-बसपा महागठबंधन अपने बूते पर ही भाजपा के प्रत्याशी पीएम मोदी को कड़ी चुनौती दे सकता है. आपको बता दें कि वाराणसी लोकसभा में पांच विधानसभाएं आती हैं. जिनमें रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा में पटेल मतदाता अच्छी खासी संख्या में है. चुनावी जानकारों का मानना है कि यदि महागठबंधन की तरफ से किसी तेजतर्रार पटेल नेता को उम्मीदवार बनाया जाता तो वाराणसी में मोदी की राह मुश्किल हो जाती.

इसके अलावा वाराणसी में अच्छी खासी संख्या मुसलमानों की भी है. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से बसपा के टिकट पर मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशी मुख्तार अंसारी चुनाव लड़े थे और 16 हजार के मामूली अंतर से भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी से चुनाव हारे थे. कहने का मतलब ये है कि यदि मुस्लिम, यादव, पटेल और दलित वोटर मिल जाएं तो मोदी के लिए बनारसी पान का जायका खराब हो सकता है.

इसके अलावा स्थानीय निषाद वोटर भी भाजपा से नाराज है. दरअसल, निषाद समाज वाराणसी में भी बड़ी संख्या में मछली पकड़ने का काम करता है. वाराणसी में भाजपा सरकार ने गंगा में बड़ी-बड़ी नौकाएं चलवाई हैं, नौका चालक मछुआरों को जाल डालने से रोकते हैं. जिसके चलते कई बार निषादों और बड़ी नौका मालिकों के बीच विवाद भी हो चुका है. इसके अलावा गंगा में बड़ी नौकाओं का पर्यटन के रूप में इस्तेमाल होने से छोटी नौका वाले मल्लाह भी नाराज हैं. इसके अलावा बनारस में सौंदर्यीकरण के नाम पर शहर के कई मंदिरों को जमींदोज कर दिया गया, जिससे सवर्णों में भी नाराजगी है. स्पष्ट है कि बनारस में बीजेपी विरोधी वोटर काफी हैं.

खैर, तमाम राजनीतिक विश्लेषक अभी भी इस सवाल का जवाब खोजने में अपनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं कि जब जमीन पर पीएम मोदी के खिलाफ इतनी बड़ी परिस्थितियां मौजूद हैं. तो सपा मोदी के खिलाफ शालिनी यादव के रूप में एक डमी प्रत्याशी उतारकर मोदी को क्यों वाक ओवर देना चाहती है?

(लेखक भारत जनमत यूट्यूब चैनल के संपादक हैं.)

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