पिछले हफ्ते कोलकाता में एक रोगी के सगे-संबधियों ने एक डॉक्टर के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट की. उस घटना ने सारे देश के अस्पतालों और डॉक्टरों में विस्फोटक स्थिति पैदा कर दी. अपने साथी डॉक्टर की पिटाई से नाराज देश के तमाम डॉक्टर देशभर में आंदोलन कर रहे हैं. इनकी मांग है कि इन्हें पर्याप्त सुरक्षा मिले. यह मांग गलत तो कतई नहीं मानी जा सकती. उधर, रोगियों और उनके संबंधियों का भी आरोप है कि डॉक्टरों का अब एक सूत्रीय एजेंडा रह गया है, मात्र येन-केन- प्रकारेण पैसा कमाना. वे रोगी को हर वक्त लूटने पर आमादा रहते हैं, मरीजों का बेवजह टेस्ट पर टेस्ट करवाते ही रहते हैं. टेस्ट खत्म होने के बाद वे रोगी से कहते हैं कि सर्जरी करा लो.
सबको पता है कि डॉक्टरों और अस्पतालों की कमाई तो रोगी से मंहगे टेस्टों और उसकी सर्जरी करने के चलते ही होती है. दवाई लिखकर दे देने से और मामूली फ़ीस ले लेने से डॉक्टरी की पढ़ाई जो उन्होंने प्राइवेट मेडिकल कालेजों में करोड़ों खर्च करके की है, उसकी भरपाई कैसे कर पाएंगे वे? इस आरोप-प्रत्यारोप के दौर में मेडिकल का पेशा ही तो कलंकित हो रहा है. पर रोगियो और उनके संबंधियों को भी धैर्य रखना होगा. वे किसी डॉक्टर के साथ मारपीट तो कदापि नहीं कर सकते. अब लगभग हर दूसरे दिन ही ऐसी खबरें आ जाती हैं कि फलां-फलां जगह पर मरीजों के संबंधियों ने किसी डॉक्टर को पीट दिया, क्योंकि ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर सही तरह से उनके रोगी को नहीं देख रहा था.
अब यह कैसे पता चलेगा और मरीज के सम्बन्धी भला यह कैसे पता कर लेंगे कि किसी रोगी को सही तरह से देखा जा रहा था या नहीं? और अब जरा बात कर लें रोगियों के संबंधियों के गुस्से की भी. यह सही है कि मरीजों के तीमारदार गंभीर रूप से तनावग्रस्त अवस्था में रहते हैं. परन्तु, उन्हें भी धैर्य तो रखना ही होगा. वे किसी भी परिस्थिति में किसी डॉक्टर के मुंह में कालिख पोतने, मारपीट करने और सिर फोड़ने जैसे घिनौनी हरकत तो नहीं कर सकते. उन्हें कानून अपने हाथ में लेने का किसी ने अधिकार तो नहीं दिया है. उनकी इन हरकतों से भ्रष्ट डॉक्टरों के खिलाफ मुहिम कमजोर पड़ती है.
दरअसल रोगी और डॉक्टर के संबंधों में मिठास घोलने की जरूरत है. लेकिन इसकी पहल डॉक्टरों को ही करनी होगी. ग्राहक को भगवान का दर्जा दिया गया है. डॉक्टरों के लिए भी उनके मरीज और उनके सम्बन्धी ही तो ग्राहक रुपी भगवान हैं. मरीजों के लिए तो डॉक्टरों को पहले से ही भगवान का दर्जा प्राप्त है. लेकिन, उन्हें अपने व्यवहार में विनम्रता लाने की भी सख्त जरूरत है. वे भी रूखा व्यवहार और बदतमीजी नहीं कर सकते.
यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान से साल 2017 में 55,681 रोगी इलाज के लिए भारत आए.
बहरहाल, यह कहना तो सरासर गलत होगा कि सारे ही डॉक्टर खराब हो गए हैं या सभी पैसे के पीर ही हो गए हैं. अब भी बड़ी संख्या में डॉक्टर निष्ठा और लगन से ही अपने पेशे के साथ ईमानदारीपूर्वक न्याय कर रहे हैं. सुबह से देर रात तक कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हां, लेकिन कुछ धूर्त डॉक्टरों ने अपने गैर-ईमानदारी पूर्ण और अपारदर्शी क्रिया-कलापों से अपने पेशे के साथ न्याय तो नहीं ही किया है.
भारत में मेडिसिन के पेशे से जुड़े सभी लोगों को यह तो मानना ही पड़ेगा कि उनकी तरफ से देश में कोई बड़े अनुसंधान तो हो नहीं रहे, जिससे कि रोगियों का स्थायी भला हो. पर उन पर फार्मा कंपनियों से माल बटरोने से लेकर पैसा कमाने के दूसरे हथकंडे अपनाने के तमाम आरोप लगते ही रहते हैं. क्या ये सारे आरोप मिथ्या हैं? क्या फार्मा कम्पनियों से पैसे लेकर उनकी ही ब्रांडेड दवाइयां लिखने वाले डाक्टरों के प्रति मरीजों और उनके सगे-सम्बन्धियों में कभी ऐसे डॉक्टरों के प्रति सम्मान का भाव जागेगा?
इस बीच, चूंकि बिहार में आजकल एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) नामक बीमारी से 125 बच्चों की मौत हो चुकी है, तो इस गंभीर विषय पर भी बात करना आवश्यक हो गया है. इस पर बातें की गई थीं, पर किसी रोग का कहर बरपाना देश के मेडिकल क्षेत्र के लिए शर्मनाक घटना है. अब तक एईएस के कारणों का पता तक नहीं चल सका है.
बड़ा सवाल यह है कि एईएस को हम पराजित क्यों नहीं कर सके? इसे मात देने की कोशिशों का क्या हुआ? पिछले वर्ष गोरखपुर में भी इसी महामारी से अनेकों बच्चों की जानें गई थीं, पर इसकी रोकथाम की कोई कारगर कार्रवाई ही नहीं हुई. हालांकि बिहार में एईएस रोग के कारण बच्चों की मौत पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने देश को भरोसा अवश्य दिलाया है कि अब एईएस पर लगातार शोध होगा.
यह भी पढ़ें: अगर नहीं मिली डॉक्टरों को सुरक्षा की गारंटी तो डॉक्टर जाएंगे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
यही नहीं, केन्द्र और राज्य सरकार संयुक्त रूप से संसाधन और तकनीकी पक्षों पर काम कर रही है. उन्होंने भी माना कि लंबे शोध के बाद भी इसके किसी एक ठोस कारण का पता नहीं चल सका है. उनके इस कथन के बाद एईएस पर विजय पाने के लिए और सघन शोध की जरूरत है. अगर बात एईएस से हटकर करें तो बिहार के औरंगाबाद, गया और कुछ अन्य जिलों में लू की चपेट में आने से भी लगभग 125 लोगों की की मौत हो चुकी है. यह खुलासा इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) की तरफ से किया गया है. अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल है.
अब इन घोर निराशाजनक हालातों में अगर रोगी और डॉक्टरों के संबंध भी तनावपूर्ण रहेंगे तो फिर कहने को क्या बचेगा है. इसलिए जरूरी है कि डॉक्टर अपने धूर्त साथियों को खुद एक्सपोज करें और रोगियों के सगे-संबंधी भी थोड़ी समझदारी और संयम दिखाएं. सरकार और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) उन डॉक्टरों को भी कसें जो रोगियों से गैर-जरूरी टेस्ट कराते हैं. सबको पता है कि वे टेस्ट पर टेस्ट पैसा ज्यादा से ज्यादा खर्च कराने के इरादे से ही कराते हैं. उन्हें पैथ लैबों से मोटा हिस्सा मिलता है. भगवान के लिए डॉक्टर रोगियों को ग्राहक मात्र न मानें. ये अस्वीकार्य है.
इस बीच, देश के मेडिकल क्षेत्र में आजकल जो कुछ घटित हो रहा है उससे देश के मेडिकल टूरिज्म पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है. मेडिकल टूरिज्म यानी विदेशों से इलाज के लिए आने वाले रोगी इससे हतोत्साहित होंगे. अगर हमारे यहां इसी तरह के हालात बने रहे तो फिर विदेशी रोगी इलाज के लिए थाईलैंड, सिंगापुर, चीन और जापान जैसे देशों का रुख करने लगेंगे. ये सभी देश विदेशी रोगियों को अपनी तरफ खींचने की चेष्टा कर ही रहे हैं. मेडिकल टूरिज्म सालाना अरबों डॉलर का कारोबार है.
इस पर भारत को अपनी पकड़ मजबूत बनानी होगी. इस क्षेत्र में भारत के सामने तमाम संभावनाएं वर्तमान में हैं. अभी भारत में इलाज अमेरिका या यूरोप की तुलना में काफी सस्ता है. यहां पर अब भी उन डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है जिनका लक्ष्य सिर्फ पैस कमाना ही नहीं है. भारत में हर साल बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, अरब और अफ्रीकी देशों से लाखों रोगी इलाज के लिए आते हैं.
अकेले अफगानिस्तान से 2017 में 55,681 रोगी इलाज के लिए भारत आए. भारत में ओमान, इराक, मालदीव, यमन, उज्बेकिस्तान, सूडान वगैरह से भी रोगी आ रहे हैं. भारत में हृदय रोग, अस्थि रोग, ट्रांसप्लांट और आंखों के इलाज के लिए सबसे अधिक विदेशी हैं. दुनियाभर में बसे भारतवंशी भी अब यहीं पर अपना और अपने परिवार के इलाज के लिए आते हैं.
पर क्या मौजूदा निराशाजनक परिस्थितियों में हम अपने देश के मेडिकल टूरिज्म को गति दे ही सकते हैं? जाहिर है इस सवाल का जवाब हां में तो नहीं ही दिया जा सकता है. बहुत साफ है कि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र की सेहत को सुधारने की तत्काल जरूरत है.
(लेखक भाजपा के राज्य सभा सदस्य हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)