scorecardresearch
Saturday, 5 October, 2024
होममत-विमतदुविधा में G-22: कांग्रेस में रहकर टमाटर के हमले झेले या ममता की TMC का रुख करें

दुविधा में G-22: कांग्रेस में रहकर टमाटर के हमले झेले या ममता की TMC का रुख करें

जी-22 के सदस्यों की फिलहाल जो हालत है वह फिल्मी खलनायक अजित के मशहूर डायलॉग ‘लिक्विड इसको जीने नहीं देगा, और ऑक्सीज़न इसको मरने नहीं देगा’ वाली है, गांधी परिवार उन्हें कांग्रेस में रहने नहीं देगा और उनकी वफादारी तथा वैचारिक निष्ठा उन्हें पार्टी छोड़ने नहीं देगी.

Text Size:

जी-23वें जितिन प्रसाद जब भाजपा में शामिल हो चुके हैं, तब बाकी जी-22 का कांग्रेस में अब क्या भविष्य है? इस सवाल का मोटे-मोटे अक्षरों में जवाब है- धूमिल!

कपिल सिब्बल ने सीमावर्ती राज्य पंजाब में घालमेल के बारे में पार्टी आलाकमान से जवाब मांगा. जवाब में मिला- अपनी कार की तोड़फोड़, टमाटरों से हमले और अपने निवास के बाहर युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा ‘पार्टी छोड़ो’ की मांग करती तख्तियों के साथ विरोध प्रदर्शन.

जाने-माने वकील को अपनी कार की फिक्र नहीं होगी. 2019-20 में उन्होंने पार्टी फंड में 3 करोड़ रुपये का दान दिया था, जबकि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 50 हजार रुपए का दान दिया था. और पार्टी के वास्तविक अध्यक्ष राहुल गांधी ने, जो चार्टर विमानों से हवाई उड़ान भरना पसंद करते हैं, 54 हजार रुपए दान दिए थे. 2021-22 में सिब्बल गांधी परिवार से दोगुना ज्यादा दान दे सकते हैं और फिर भी उनके पास अपनी कार की मरम्मत करवाने के लिए पर्याप्त पैसे बचे होंगे. लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा यह बात परेशान कर रही होगी की युवा कांग्रेस के उपद्रव पर गांधी परिवार ने चुप्पी साधे रखकर उसका मानो समर्थन किया.

सोनिया को जी-23 ने एक साल पहले पत्र लिखा था और मांग की थी कि पार्टी संगठनों के चुनाव करवाए जाएं और पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष दिया जाए. उसके बाद से जो कुछ हुआ वह सब दीवार पर लिखी इबारत जैसा है. गुलाम नबी आज़ाद तमिलनाडु से राज्य सभा में पुनः नामजद हो सकते थे. द्रमुक ने कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में मात्र 25 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने के आभार स्वरूप राज्य सभा की एक सीट देने का वादा किया था. लेकिन वह यह वादा भूल गया.

करुणानिधि के जमाने से द्रमुक के नेतृत्व के साथ आज़ाद के अच्छे रिश्ते रहे हैं. अगर कांग्रेस ने उन्हें वहां से राज्य सभा के लिए उम्मीदवार बनाया होता तो एम. के. स्टालिन उनके लिए एक सीट जरूर छोड़ते. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने दिलचस्पी नहीं दिखाई.

जी-22 के सदस्य और पुराने कांग्रेस नेता मुकुल वासनिक और मिलिंद देवरा महाराष्ट्र से राज्य सभा सीट के दावेदार माने जाते थे लेकिन आलाकमान ने उनकी जगह रजनी पटेल को चुना.

तो अब जी-22 के लिए क्या विकल्प बचे हैं? सिब्बल के निवास के बाहर युवा कांग्रेस की नारेबाजी, पी. चिदंबरम (जो अभी जी-22 के सदस्य नहीं हैं) की ‘लाचारगी’ यही संदेश देती है कि चुप रहना ही ‘सुरक्षित’ है. उन्हें यह भी मालूम है कि अब पीछे हटना मुमकिन नहीं है. गांधी परिवार अप्रत्याशित रूप से उनकी मांग आंशिक तौर पर मान भी ले तो वे गांधी भाई-बहन की मर्जी पर ही रहेंगे. पार्टी की बागडोर तो परिवार के हाथ में ही रहेगी.


यह भी पढ़ें: व्हाट्सऐप चैट्स से जाहिर होता है कि आर्यन खान और अन्य लोग ड्रग्स की खरीद में शामिल थेः एनसीबी


प्रियंका गांधी की भूमिका

इसके अलावा जी-22 को प्रियंका गांधी की भूमिका पर भी गौर करना पड़ेगा. राहुल तो परिवार के वफादारों के खिलाफ सख्त कदम उठाने या उन्हें दरकिनार करने के लिए अपनी मां सोनिया गांधी को राजी नहीं कर पाए. वे चाहें तो खीज कर विपासना की शरण ले सकते हैं या विदेश दौरे पर जा सकते हैं. उनकी बहन ने सब कुछ बदल दिया है.

तेरह साल पहले 2008 में प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने पिता राजीव गांधी के हत्यारों में से एक नलिनी से वेल्लोर जेल में मुलाकात की थी और दोनों मिलकर खूब रोए थे. राजीव की बेटी को करुणा और क्षमा की मूर्ति माना गया था. ‘हिंदू’ अखबार ने खबर दी थी कि प्रियंका ने नलिनी से पूछा था, ‘तुमने ऐसा क्यों किया? जो भी वजह रही हो, मसले को बातचीत से सुलझाया जा सकता था.’

वे तब 36 साल की थीं. मसलों को बातचीत से सुलझाने की अपनी मजबूत आस्था को उन्होंने एक दशक से ज्यादा समय तक बनाए रखा. पार्टी के भीतर भी राहुल जब पुराने नेताओं को एकमुश्त हटाने की कोशिश में जुटे थे, तब प्रियंका उन नेताओं से मिलतीं और कोई रिश्ता बनाए रखने की कोशिश करतीं.

लेकिन जनवरी 2019 में जब वे राजनीति के मैदान में उतरीं और उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी का महासचिव बनाया गया, उसके बाद से पार्टी वालों ने उनमें भारी बदलाव देखा. उस साल अप्रैल में पार्टी के एक प्रमुख चेहरे, प्रियंका चतुर्वेदी ने जब उन्हें धमकाने वाले नेताओं का निलंबन रद्द करने के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए ट्वीट किया तो उन्हें प्रियंका गांधी से फोन पर खासी झिड़की सुननी पड़ी थी. मुझे बाद में पता चला कि चतुर्वेदी ने अपने ट्वीट के पक्ष में बड़े संयत और विनम्र भाव से समझाने की कोशिश की थी.

2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के चलते राहुल के इस्तीफे के बाद जब कांग्रेस कार्यकारी समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक हुई तो प्रियंका ने पुराने पार्टी नेताओं को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि उन सबने उनके भाई को लड़ाई में अकेला छोड़ दिया.

आज प्रियंका अपने परिवार का सिक्का फिर जमाने को कृतसंकल्प नजर आ रही हैं. और जैसा कि पंजाब प्रकरण से स्पष्ट है, वे इसके लिए कांग्रेस को भी दांव पर लगाने से परहेज नहीं करने वाली हैं.


यह भी पढ़ें: संजय दत्त, सलमान खान और अब आर्यन, कौन हैं बॉलीवुड के ‘स्टार वकील’ सतीश मानशिंदे


ममता का संदेश

जी-22 के सदस्यों की फिलहाल जो हालत है वह फिल्मी खलनायक अजित के मशहूर डायलॉग ‘लिक्विड इसको जीने नहीं देगा, और ऑक्सीज़न इसको मरने नहीं देगा ’ वाली है. गांधी परिवार उन्हें कांग्रेस में रहने नहीं देगा और उनकी वफादारी तथा वैचारिक निष्ठा उन्हें पार्टी छोड़ने नहीं देगी. ऐसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन्हें सहारे का हाथ दिखा रही हैं. ‘दिप्रिंट’ ने शुक्रवार को खबर दी कि उनकी तृणमूल कांग्रेस जी-22 वालों के किस तरह संपर्क में है.

उन्होंने इसकी पुष्टि इस लेखक से भी की, ‘हां, कई लोग इस कोशिश में लगे हैं.’ जल्द ही उनमें से कई नेता कांग्रेस छोड़ सकते हैं. गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरिओ की तरह उन सबका मानना है कि तृणमूल के नेता बनकर भी वे कांग्रेसी बने रह सकते हैं, विचारधारा तो वही रहेगी, भले ही नेता दूसरी (ममता) होंगी, जो भाजपा को हराना जानती हैं. ममता, शरद पवार, जगन मोहन रेड्डी, अमरिंदर सिंह, के. चंद्रशेखर राव सरीखे पुराने नेताओं को साथ लाकर कांग्रेस परिवार को एकजुट करने का फलेरिओ का सपना एक राजनीतिक खामखयाली लगती है मगर इसके बारे में सोचें तो लगेगा कि यह भला क्यों नहीं मुमकिन हो सकता.

वे मिलकर एक ऐसा समूह बनाते हैं जो आस्थाओं के साझेपन पर आधारित होगा, न कि सत्ता के लालच में बनाया गया कोई अवसरवादी गठबंधन होगा जिसे मतदाता नापसंद करते हैं. गांधी परिवार की यह सोच कुछ हद तक सही हो सकती है कि जी-22 के नेताओं और इससे अब तक न जुड़े कई और ऐसे नेताओं के पास पार्टी से बाहर कोई विकल्प नहीं है. अपने वैचारिक/राजनीतिक आग्रहों के कारण उनमें से अधिकतर नेता भाजपा में नहीं जा सकते और जो जाएंगे भी उन्हें देने के लिए भगवा पार्टी में बहुत कुछ है भी नहीं. चंद नेता ही इतने सक्षम हैं कि एक नई पार्टी खड़ी कर सकें. इसलिए ममता उनके लिए एक उपयुक्त विकल्प दिखती हैं.

इसके अलावा यह भी विचार कीजिए कि गांधी परिवार अगर दूसरे राज्यों में नेतृत्व के झगड़े– राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पाइलट, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल बनाम टी. एस. सिंहदेव, कर्नाटक में डी. के. शिवकुमार बनाम सिद्धारमैया, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, केरल में रमेश चेन्निठला और ओमान चांडी, पंजाब में अमरिंदर सिंह, आदि-आदि- को निपटाने में विफल रहा तो कांग्रेस का यह पुराना परिवार कितना बड़ा बन सकता है.

जब भी ममता का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उछाला जाता है, एक जवाबी तर्क यह पेश किया जाता है कि पश्चिम बंगाल के बाहर भला उन्हें कौन वोट देगा? यही सवाल हम राहुल के नाम पर उठाएं तो कौन ऐसा राज्य है जहां वे निश्चित जीत हासिल कर सकते हैं? एक तर्क यह भी है कि कांग्रेस अभी भी भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती दे सकती है क्योंकि लोकसभा चुनाव में उसे कुल 20 फीसदी हासिल होते हैं. असली सवाल यह है कि ये लोग कांग्रेस को वोट देते हैं या गांधी परिवार को? इस सवाल को सवाल ही रहने देना बेहतर है.

क्या ममता उपरोक्त क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ मिलकर भविष्य में उसी का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं? गांधी परिवार सोच सकता है कि वह पार्टी के वर्तमान और शानदार अतीत के बीच की कड़ी है. लेकिन मोदी की भाजपा ने उसे वंशवाद, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, तानाशाही, यानी देश के साथ जो भी गलत हुआ है उस सबके प्रतीक के रूप में पेश कर चुकी है. बेशक यह अनुचित है. गांधी परिवार कह सकता है कि उसे निरंतर सुसंगठित प्रोपेगेंडा का निशाना बनाया जाता रहा है. वह एकदम गलत भी नहीं हो सकता है. लेकिन तथ्य यही है कि वह इस दुष्प्रचार का जवाब देने में बुरी तरह नाकाम रहा है.

कांग्रेस के पुराने परिवार के, अगर वह एकजुट हो पाया, साथ कम-से-कम यह तोहमत नहीं जुड़ी होगी.

वैसे, जी-22 के लिए एक पेंच बना हुआ है. अगर गांधी परिवार असहमति को अपराध मानता है, तो ममता इसे बगावत मानती हैं. उनके पार्टी के कार्यकर्ता इसका जवाब टमाटर से नहीं बल्कि और उग्र तरीके से देना पसंद करते हैं.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कौन है कन्हैया? कांग्रेस में शामिल किए गए JNU के पूर्व छात्र नेता की क्यों अनदेखी करेगी RJD


 

share & View comments