हमारे देश में आखिर महिलाओं और पुरूषों के विवाह करने की न्यूनतम आयु में अंतर क्यों है? हमारे कानून में विवाह के लिये लड़कों की न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों की आयु 18 साल ही क्यों निर्धारित की गयी है? क्या लड़के और लड़कियों के विवाह करने की न्यूनतम आयु एक समान होनी चाहिए?
इस तरह के कुछ सवाल अब न्यायिक समीक्षा के दायरे में हैं. दलील दी जा रही है कि दुनिया के 125 से भी अधिक देशों में लड़के और लड़कियों की विवाह की आयु एक समान है तो फिर भारत में ही इसमें विसंगति क्यों है?
लड़के और लड़कियों की विवाह की आयु एक समान करने के अनुरोध को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका लंबित है. उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर कानून मंत्रालय से भी जवाब मांगा है. लड़के और लड़कियों के लिये विवाह की समान आयु निर्धारित करने के लिये दायर इस मामले में तर्क दिया गया है कि विवाह की आयु में यह अंतर जहां लैंगिक समानता और लैंगिक न्याय के सिद्धांतों का हनन करता है वहीं यह महिलाओं की गरिमा के भी खिलाफ है क्योंकि यह प्रावधान पक्षपात करता है.
विवाह की समान आयु की दलील देने वाले याचिकाकर्ता का कहना है कि लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र में अंतर रखने के पक्ष में कोई वैज्ञानिक आंकड़े नहीं है लेकिन पुरूष प्रधान सत्ता की पुरातन व्यवस्था के तहत ऐसा किया जा रहा है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में बाल विवाह की कुप्रथा पर अंकुश लगाने के इरादे से सरकार ने अनेक कदम उठाये थे. इन्हीं में बाल विवाह रोकथाम कानून, 1929 है जिसके तहत 21 साल का होने तक कोई भी लड़का बालक है और इसी तरह 18 साल की आयु पूरी होने तक एक लड़की बच्ची मानी गयी है.
यह भी पढ़ें : मोदी सरकार यूनिफार्म सिविल कोड पर काम कर रही है
भारतीय दंड सहिता, किशोर न्याय कानून, हिन्दू विवाह कानून और शरियत कानून में नाबालिग की आयु के बारे में अलग अलग प्रावधान है. यौन अपराध से बाल संरक्षण कानून पोक्सो के तहत 18 साल से कम आयु की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना अपराध है और इसके लिये सात साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है.
इसी तरह, अनैतिक व्यापार निवारण कानून 1986 में 16 साल की उम्र पूरी नहीं करने वाले व्यक्ति को बच्चा बताया गया है और 16 साल की आयु पूरी करने लेकिन 18 साल से कम आयु वाले व्यक्ति को अवयस्क माना गया है. इसी तरह, भारतीय वयस्क कानून, 1875 के अंतर्गत 18 साल की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति को वयस्क माना गया है जबकि किशोर न्याय कानून के अंतर्गत 18 साल से कम आयु का व्यक्ति किशोर की श्रेणी में ही आता है.
समान नागरिक संहिता के संदर्भ में केन्द्र सरकार ने विधि आायोग से विभिन्न कानूनों पर विचार का अनुरोध किया था. विधि आयोग ने करीब दो साल तक इससे जुड़े तमाम बिन्दुओं पर सभी पक्षों की सलाह मांगी और फिर अगस्त 2018 को उसने अपना परामर्श पत्र सरकार को सौंपा था.
इस परामर्श पत्र में आयोग ने विवाह और तलाक से संबंधित कानूनों पर विस्तार से विचार किया था. इसी में आयोग ने विवाह की समान आयु के विषय पर अपनी राय दी थी. इसमें कहा गया था कि यदि वयस्कता के लिये समान आयु को मान्यता है और यह सभी नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार प्रदान करता है तो निश्चित ही वे अपना जीवन साथी चुनने में भी सक्षम होंगे.
आयोग ने कहा था कि सही मायने में समता के लिये विवाह की आयु में अंतर को मान्यता देने का प्रावधान खत्म किया जाना चाहिए. आयोग ने कहा था कि वयस्क होने की उम्र लड़के और लड़की के विवाह के लिये एक समान अर्थात 18 साल मानी जानी चाहिए.
आयोग का मानना था कि कानून में पति पत्नी की आयु में अंतर का कोई आधार नहीं है क्योंकि वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने वाले दंपत्ति हर तरह से बराबर के साझेदार होते हैं, इसलिए दोनों में समानता होनी चाहिए.
इससे पहले भी फरवरी, 2008 में विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में वैयक्तिक और पूरे समाज के लिये किसी गंभीर नतीजे से बचने के लिये लड़के और लड़कियों दोनों के लिये ही विवाह उम्र 18 साल निर्धारित करने की सिफारिश की थी. आयोग ने यह भी कहा था कि बाल विवाह पूरी तरह से अमान्य घोषित किया जाना चाहिए.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी अक्टूबर, 2018 में लड़के और लड़कियों की विवाह की आयु एक समान निर्धारित करने की संभावनाओं पर विचार करने की केन्द्र से सिफारिश की थी. मानव अधिकार आयोग का कहना था कि दुनिया के 125 से अधिक देशों में लड़के और लड़कियों की विवाह की उम्र एक समान है. विवाह की समान आयु के लिये मानव अधिकार आयोग की सिफारिश देश में बाल विवाह पर प्रतिबंध होने के बावजूद कई हिस्सों में आज भी यह कुप्रथा प्रचलित होने से संबंधित सामाजिक मुद्दे पर आयोजित संगोष्ठी के निष्कर्षो के आधार पर की थी.
यह भी दिलचस्प है कि मानव अधिकार आयोग की इस सिफारिश से चंद दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय ने लड़कों की शादी की उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल करने के लिये दायर एक जनहित याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया था और याचिकाकर्ता पर 25,000 रूपए का जुर्माना भी लगाया था.
हालांकि, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया था कि 18 साल की आयु पूरी करने पर विवाह के इच्छुक किसी लड़के के न्यायालय में आने का इंतजार कीजिये.
यह भी पढ़ें : यूनिफार्म सिविल कोड को अभी 10 साल के लिए टाला जा सकता है
उच्च न्यायालय में लंबित जनहित याचिका भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है. इस मामले में केन्द्र सरकार चाहती है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा विधि मंत्रालय की एक समान राय हो, इसीलिए उसने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिये अदालत से समय लिया है.
उच्चतम न्यायालय द्वारा लड़के की विवाह की आयु 21 साल से घटाकर 18 साल करने के लिये दायर याचिका पर विचार करने से इंकार और इसी दौरान लड़के और लड़की की शादी की उम्र एक समान करने के लिये दायर जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा केन्द्र सरकार से जवाब मांगना नये सवाल खड़े करता है.
इसकी एक वजह भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में प्रदत्त अपवाद-2 की भाषा में शीर्ष अदालत द्वारा 11 अक्टूबर, 2017 को किया गया बदलाव है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि 18 साल से कम आयु की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार है, चाहें वह विवाहित हो या नहीं और धारा 375 में प्रदत्त अपवाद अनावश्यक है.
इसके विपरीत, मुस्लिम लॉ के प्रावधानों के तहत अगर कोई लड़की 15 साल की आयु में रजस्वला जाती है तो वह अपनी मर्जी से अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ विवाह कर सकती है. न्यायपालिका के अनेक फैसलों में इस तरह के विवाह को सही ठहराया गया है.
अब देखना यह है कि केन्द्र सरकार के दो मंत्रालयों का लड़के और लड़की की विवाह की समान आयु के मुद्दे पर क्या रूख होता है? केन्द्र सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट होने के बाद ही संकेत मिल सकेंगे कि विधि आयोग और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की सिफारिशों और विवाह की आयु में अंतर को लेकर दायर याचिका पर न्यायपालिका क्या रूख अपनाती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं)