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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत को सोचना चाहिए की सकारात्मक विकास दर के बावजूद वह चीन की तरह गरीबी को क्यों नहीं खत्म कर पा रहा

भारत के लिए प्रगति की रफ्तार में गिरावट ही चिंता की बात नहीं है, वह उन दूसरे देशों से आगे निकलने में भी सुस्त हो गया है जो आर्थिक वृद्धि और विकास के मामले में चीन की दूर-दूर तक बराबरी नहीं करते

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चाहे आप जिस कोण से देखें, चीनी राष्ट्रपति की यह घोषणा बेहद महत्वपूर्ण है कि चीन ने संपूर्ण गरीबी का उन्मूलन कर दिया है. एक समय वह दुनिया के सबसे निर्धन समाजों में गिना जाता था, और भारत तथा उसकी गरीब आबादी मिलकर दुनिया की निर्धन आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा बनती थी. लेकिन आज चीन की प्रति व्यक्ति आय वैश्विक औसत (क्रय शक्ति समानता या पीपीपी के अनुसार) के बराबर है. और उसने 85 करोड़ लोगों को गरीबी से मुक्त कर देने का दावा किया है.

चीन के सभी आंकड़ों के मामले में, जैसा माना जाता है, संख्या को लेकर कुछ तंज़ भी जाहिर कसा जाता है. चीन गरीब देशों के लिए विश्व बैंक द्वारा प्रस्तावित निर्धनता स्तर की आय के आंकड़े को अपने पैमाने के तौर पर इस्तेमाल करता है, जबकि उसे मध्य आय वाले देशों के लिए प्रस्तावित ज्यादा बड़ी संख्या का इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन इस लिहाज से भी देश में गरीबों की आबादी 20 में केवल एक के आसपास होगी. भारत के लिए, यह उच्च स्तर पर कुल आबादी के आधे के, और निचले स्तर पर उसके 10वें हिस्से के बराबर होगी.

भारत चीन की तुलना में अधिक विनम्रता के साथ यह दावा कर सकता है कि अब वह ऐसा देश नहीं रहा, जहां सबसे निर्धन लोगों की सबसे बड़ी संख्या हुआ करती थी. अब यह दर्जा अब नाइजीरिया को मिला है, और कोंगो दूसरे नंबर पर आएगा. वास्तव में, कोविड का प्रकोप (जिसने भारत में संपूर्ण गरीबों की संख्या शायद बढ़ा दी) न हुआ होता तो भारत संपूर्ण गरीबी का संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य वर्ष 2030 तक उन्मूलन करने की राह पर होता.


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जैसा कि निरंतर कहा जाता रहा है, 40 साल पहले भारत और चीन विकास और आमदनी के मामले में तुलनात्मक रूप से समान स्तर पर थे. आज चीन की प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा (पीपीपी डॉलर के हिसाब से) भारत के इस आंकड़े का 2.7 गुना ज्यादा है. अगर बाज़ार की विनिमय दर के हिसाब से ‘नॉमिनल’ डॉलर का प्रयोग किया जाए तो गुणक दोगुना से भी ज्यादा होगा. यह खाई कुछ समय पहले चौड़ी होने लगी थी, जब भारत ने दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली विशाल अर्थव्यवस्था के रूप में चीन को पीछे छोड़ दिया था. लेकिन महामारी वाले साल से पहले ही भारत फिसलने लगा, जबकि चीन की वृद्धि जारी रही.

विभिन्न पैमानों पर चीन आज भारत से 10-15 साल आगे है. भारत की मौजूदा प्रति व्यक्ति आय का स्तर उसने 15 साल पहले ही हासिल कर लिया था. इसी तरह, मानव विकास सूचकांक (जिसमें आय, स्वास्थ्य, और शिक्षा के पैमाने शामिल हैं) के मामले में भी वह भारत से 15 साल आगे है. इससे अधिक जटिल संयुक्त राज्य टिकाऊ विकास लक्ष्यों के सूचकांक (17 पैमानों वाले) के मामले में भी भारत चीन की बराबरी अगले एक दशक तो शायद नहीं ही कर पाएगा.

चीन के साथ ऐसी तुलना भारत (और दूसरे देशों को भी) कमजोर साबित करती है. लेकिन भारत प्रगति कर रहा है, यह मानव विकास सूचकांक में निरंतर बेहतरी से जाहिर है. इसके अलावा, न्यूनतम आवश्यकता सूचकांक (जल आपूर्ति, बिजली, सफाई, आवास आदि शामिल) का उपयोग करते हुए तैयार किए गए ताजा आर्थिक सर्वे से जाहिर है कि हाल के वर्षों में तस्वीर और बेहतर हुई है.


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दूसरे पैमाने या तो सकारात्मक छवि पेश करते हैं या डेटा के अभाव में उनका पता लगाना मुश्किल है. व्यक्तिगत उपभोग सर्वे-2017-18 के आंकड़ों को इसलिए रोक लिया गया है कि वे विश्वसनीय नहीं हैं, लेकिन इसके जो आंकड़े लीक हुए हैं वे बताते हैं कि छह साल पहले वाले स्तर के मुक़ाबले जो गिरावट आई है वह सदमा पहुंचाने वाली है. गरीबों की संख्या के जो आंकड़े आए हैं वे करीब लगभग एक दशक पुराने हैं. रोजगार के विश्वसनीय आंकड़े भी तब तक मिलने मुश्किल थे जब तक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग (सीएमआइई) ने नियमित डेटा जारी करना शुरू नहीं किया. इसके आंकड़े महामारी से पहले से ही रोजगार दर में गिरावट ही दर्शा रहे हैं.

भारत के लिए प्रगति की रफ्तार में गिरावट ही चिंता की बात नहीं है, वह उन दूसरे देशों से आगे निकलने में भी सुस्त हो गया है जो देश आर्थिक वृद्धि और विकास के मामले में चीन की दूर-दूर तक बराबरी नहीं करते. उदाहरण के लिए, टिकाऊ विकास के लक्ष्यों के मामले में भारत 2018 में 112वें पायदान से इसके अगले साल गिरकर 117वें पायदान पर पहुंच गया (हालांकि पूर्ण सूचकांक में सुधार हुआ). इसके विपरीत बांग्लादेश, नेपाल, और म्यांमार समेत कंबोडिया जैसे देशों ने भारत को या तो पीछे छोड़ दिया या उससे और आगे ही निकलते जा रहे हैं. भारत को निश्चित ही इनसे बेहतर करना चाहिए था, जैसे कि उसने गरीबों की संख्या के मामले में नाइजीरिया और कोंगों को पछाड़ दिया है. राहत की बात यह है कि भारत दो तिमाहियों तक आर्थिक गिरावट देखने के बाद फिर से वृद्धि की राह पर चल पड़ा है, और अगले साल अपनी रफ्तार बढ़ाने की उम्मीद कर रहा है.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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