भारतीय जनता पार्टी नदी सूत्र कहता है कि ‘पवित्र की पवित्रता बनाए रखना मुश्किल है इसलिए उसे खूबसूरत बना दीजिए ताकि पवित्रता का भ्रम बना रहे.’
कांग्रेस के थिंक टैंकर्स नदी को वाटर रिसोर्स से ज्यादा कुछ समझते ही नहीं इसलिए कांग्रेस के कागजों में ‘नदी विचार’ जैसी कोई खुश/गलतफहमी है नहीं.
लेकिन जब बात दिल्ली की हो तो सत्ताधारी पार्टी की ‘नदी गारंटी’ के छुपे या झूठे पहलुओं पर नज़र डालना ज़रूरी है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गारंटी दी है कि यमुना को इतना साफ कर देंगे कि लोग उसमें डुबकी लगाएंगें. लेकिन दिल्ली की यमुना में पानी है ही नहीं. क्योंकि हथनी कुंड बैराज के बाद पानी आगे नहीं बढ़ता. तो डूबकी से शायद उनका मतलब ‘ट्रीटेट सीवेज वाटर’ से होगा. आखिर दिल्ली सरकार ने सीवेज ट्रीटमेंट की दिशा में ना के बराबर ही सही कुछ काम तो किया है. यमुना सफाई की गारंटी पर यकीन करने से पहले यह भी जानना जरुरी है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली जलबोर्ड के अध्यक्ष और जलमंत्री भी है. जलमंत्री और सरकार के मुखिया के नाते उन्होने यमुना की बेहतरी के लिए क्या किया यह सवाल पूछा जाना चाहिए.
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सरकार बनने के बाद यमुना सफाई को लेकर सशक्त एक्शन प्लान तैयार हुआ लेकिन इसे आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने एक बैठक भी नहीं की नतीजा सारा बजट लैप्स हो गया. इसके बाद यमुना में 17 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (नए और पुराने) को लगाने और चलाने के लिए कमेटी का गठन हुआ. कमेटी ने कहा कि अतिरिक्त पैसे की ज़रूरत नहीं, निर्धारित बजट में ही यह काम हो सकता है. आज पांच साल बाद इस मामले में सरकार बमुश्किल दो कदम आगे बढ़ पाई है. कोड़ में खाज यह कि इस चालू साल दिल्ली के बजट में यमुना के लिए कोई फंड ही नहीं रखा गया था.
दिल्ली की यमुना का सच यही है कि वह अपने ही सीवेज से दृश्यमान है. यदि नजफगढ़ सहित सभी नाले यमुना में डालने बंद कर दिए जाए तो यमुना एक सूखा मैदान बन जाएगी जिसके कुछ हिस्सों में दलदल होगा. वैसे हरियाणा लगातार दिल्ली को 1133 क्यूसेक पानी देता है लेकिन वह दिल्ली की ज़रूरतों के हिसाब से बेहद कम है. और इसे राज्य में प्रवेश करते ही उपयोग में ले लिया जाता है.
दिल्ली के मुखिया जिस यमुना में दिल्लीवासियों को डुबकी लगवाना चाहते है वह यमुना सरकारी फाइलों में ‘मृत नदी’ के रूप में दर्ज है.
हरियाणा के ड्रेन नंबर आठ से अमोनिया का बहाव बहुत तेज़ है. पानीपत के इंडस्ट्रीयल सीवेज डिस्चार्ज का रास्ता है ड्रेन नंबर आठ. अमोनिया से दिल्ली में पहले से काम कर रहे एसटीपी खराब हो रहे है लेकिन इस विकराल होती समस्या को समझे बिना केजरीवाल गारंटी कार्ड जारी कर रहे हैं.
यदि बीजेपी के भक्तों को लगता है कि गंगा की तरह यमुना भी नारे लगाने से साफ हो जाएगी तो उनकी योजना पर भी एक नज़र डाल लीजिए.
बीजेपी का यमुनोसा प्लान
सिंगापुर के सिंटोसा के तर्ज पर है यह यमुनोसा. दिल्ली के वज़ीराबाद से ओखला तक यमुना के किनारे विकास का काम होगा. ओखला स्थित बांध को रीडेवेलप कर उसे ऊंचा किया जाएगा. इसके बाद वज़ीराबाद बांध से पानी को छोड़ा जाएगा और ओखला बांध में रोका जाएगा. यानी वज़ीराबाद और ओखला के बीच पानी को रोककर उसे स्वीमिंग पुल की तरह बनाया जाएगा. इस तरह यमुना बन जाएगी एक खूबसूरत नदी. जिन्होने साबरमती को देखा वे समझ पाएगे कि क्या होने जा रहा है. ‘यमुना बहेगी’- यह विचार इस योजना के मूल में ही नहीं है.
योगी आदित्यनाथ ने दावा कर दिया है कि गंगा साफ हो गई है. वैसे ही किसी दिन केजरीवाल घोषणा कर देंगे कि यमुना को आज से साफ माना जाएगा.
और वे मासूम लोग जिन्हे छह साल पहले की कांग्रेस में ही विकास नज़र आता है. वे जान लें कि सुप्रीम कोर्ट के कड़े रवैये का बावजूद कॉमनवेल्थ निर्माण का अधिकांश मलबा यमुना में डाला गया था. यह भी मांग उठी थी सोनिया विहार की तर्ज पर दिल्ली की यमुना को इंदिरा धारा कहा जाए. पिछले साल प्रियंका गांधी ने गंगा के एक छोटे से हिस्से की यात्रा की थी. और उन्हे यहीं नहीं पता था कि गंगा पर बात क्या की जाए. कुल मिलाकर देश की सबसे पुरानी पार्टी का नदी विचार शून्य है.
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दिल्ली सरकार या केंद्र सरकार के तो जेहन में भी नहीं आता कि दिल्ली को पानी के लिए आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम उठाए जाएं. सब जानते है कि यहां नीति नियंता रहते है इसलिए यहां की ज़रूरतें हर हाल में पूरी की जानी चाहिए. चाहे इसके लिए यमुना को सुखाना पड़े या गंगा का मूंह मोड़ना पड़े.
द्वापर में कृष्ण ने जब यमुना को प्रदूषण मुक्त किया था तो कालिया एक सांप के रूप में उनके सामने था. आज के कालिया को यमुना को बरबाद करने के लिए नदी में रहने की ज़रूरत नहीं है. वह बाहर रहकर ही उसे प्रदूषित करता है, अपनी ज़रूरत का पानी लेता है और खुद को कृष्ण बनाकर पेश भी करता है. वह नदी सफाई के नारे लगाता है और समाज को समझाता है कि बच्चों को गेंद से नदी किनारे खेलना है तो नदी को मैनेज करना होगा. आज कालिया सत्ता में है और उसका कोई एक नाम भी नहीं है. आप यमुना की चिंता करते हैं तो कालिया के किसी भी मुख को वोट मत दीजिए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)