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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमत'दिल्ली सेवा विधेयक' ने मोदी सरकार और SC के बीच दरार पैदा करने की केजरीवाल की योजना को विफल कर दिया है

‘दिल्ली सेवा विधेयक’ ने मोदी सरकार और SC के बीच दरार पैदा करने की केजरीवाल की योजना को विफल कर दिया है

केंद्र सरकार और 'अति महत्वाकांक्षी' व्यक्ति दिल्ली के मुख्यमंत्री को इतिहास नहीं भूलना चाहिए. अहंकार और झगड़े के बजाय अन्य गंभीर समस्याओं के समाधान का प्रयास मिलकर करना चाहिए.

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दिल्ली सेवा विधेयक, जिसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक 2023 के रूप में जाना जाता है, ने लोकसभा में पेश होने से पहले ही लोगों का पर्याप्त ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था. यह विपक्षी पार्टियों की बैठक और सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया था. जहां AAP इस विधेयक को दिल्ली सरकार की शक्तियों में कटौती करने के रूप में सबके सामने प्रस्तुत करती है, वहीं केंद्र सरकार इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री को अनुशासित करने का कदम बताती है. बीजेपी के पास लोकसभा में संख्या को देखते हुए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्र सरकार ने विधेयक को ध्वनि मत से पारित करा लिया.

विधेयक के समर्थन और विरोध से परे, यह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी दलों से मिलने वाले समर्थन की कमी पर प्रकाश डालता है. ये दल उन्हें ‘किसी भी कीमत पर’ पद से हटाने के लिए एकजुट हो रहे हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि वे दिल्ली के सीएम का समर्थन करने में झिझक रहे हैं और कम ही इच्छा दिखा रहे हैं. 

यह विधेयक 19 मई को घोषित पिछले अध्यादेश को लेकर महत्वपूर्ण है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अगली कड़ी है, जिसने सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर, दिल्ली सरकार को स्थानीय प्रशासन और सिविल सेवकों की सेवाओं पर नियंत्रण की शक्ति दी गई थी. अध्यादेश की धारा 3ए में कहा गया है कि प्रावधान “किसी भी अदालत के फैसले, आदेश या डिक्री में कुछ भी शामिल होने के बावजूद” लागू रहेंगे, जो स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने की कोशिश हैं. हालांकि, इस प्रावधान को अंतिम विधेयक में हटा दिया गया था, संभवतः उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्य सरकार की शक्तियों में कथित तौर पर ‘कमी’ करने वाले कानून बनाने के केंद्र के कदम की अस्वीकृति के कारण.

सुप्रीम कोर्ट का इरादा यह सुनिश्चित करना था कि दिल्ली सरकार नीति निर्माण और कार्यान्वयन में अपनी बात रखने के लिए सिविल सेवकों की नियुक्ति और सेवाओं को नियंत्रित कर सके. हालांकि, अध्यादेश में दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह सचिव को शामिल करते हुए एक प्राधिकरण का प्रस्ताव किया गया था, जो उपराज्यपाल की मंजूरी के अधीन ग्रुप A अधिकारियों और DANICS अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश कर सकता था. संभवतः यही वह प्वाइंट है जिसने केजरीवाल की परेशानी बढ़ा दी और उन्हें मोदी सरकार के विरोधी दलों द्वारा शासित राज्यों का दौरा करने के लिए मजबूर किया.


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केजरीवाल के लिए एक सबक

दिल्ली के मुख्यमंत्री को पता होना चाहिए कि भारत का संविधान दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की शक्तियों को स्पष्ट रूप से बताता है. उनके लिए पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सलाह पर ध्यान देना और संघर्षों पर शासन को प्राथमिकता देना बुद्धिमानी होगी. दीक्षित ने सही ही कहा था कि आम आदमी पार्टी की स्थापना दिल्ली के मुख्यमंत्री और तत्कालीन एलजी के बीच ‘संघर्ष’ को जिम्मेदार ठहराया गया था. उन्होंने कहा था, “जब भी हमारे बीच मतभेद होता था, हम हमेशा बात करते थे और उसे सुलझा लेते थे. शासन कभी प्रभावित नहीं हुआ.”

केंद्र और ‘अति महत्वाकांक्षी’ दिल्ली के मुख्यमंत्री दोनों के लिए सबसे अच्छा कदम अतीत को भूल जाना और ऐसी नीतियों को अपनाने और लागू करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो अहंकार के झगड़े को निपटाने के बजाय लोगों के बोझ को कम करेंगे.

विधेयक के पारित होने से कई मुद्दे सुव्यवस्थित हो गए हैं. इस विवाद को उठाने के पीछे अति महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री की मंशा केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच सीधे टकराव को भड़काने वाली लग रही थी, जो दोनों के लिए शर्मनाक हो सकता था. विवादास्पद धारा 3A के बिना पारित विधेयक के साथ, अदालतों के पास अभी भी विधेयक पर कहने का अधिकार है. लेकिन इसमें संदेह है कि क्या कोई अदालत अब इस विधेयक पर मुकदमेबाजी को बढ़ावा देगी.

इस मुद्दे को उठाने का दिल्ली के मुख्यमंत्री का एक अन्य उद्देश्य विपक्षी दलों से समर्थन जुटाना था, जिससे केंद्र सरकार के लिए विधेयक का पारित होना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता. यदि ऐसा कुछ हुआ होता, तो केजरीवाल विपक्षी दलों के मंच के नेता के रूप में उभरे होते और खुद को जीवन से भी बड़े पद की हकदार वाली छवि तक पहुंचा दिया होता. कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इस गेम प्लान को समझा और इसके कुछ प्रावधानों की आलोचना के बाद विधेयक से खुद को अलग कर लिया.

वर्तमान में, ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को अनुशासित कर दिया है और उनके प्रयासों को प्रभावी ढंग से बेअसर कर दिया है. विडंबना यह है कि विपक्षी दल दिल्ली के मुख्यमंत्री को उनकी जगह दिखाने की रणनीति में, स्वेच्छा से या अनिच्छा से, केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखे.

(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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