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Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतदिल्ली में प्रदूषण राजनीतिक मुद्दे में बदला गया है और यह केजरीवाल के लिए अच्छी ख़बर नहीं

दिल्ली में प्रदूषण राजनीतिक मुद्दे में बदला गया है और यह केजरीवाल के लिए अच्छी ख़बर नहीं

शीला दीक्षित ने 2003 में अपने प्रदूषण ट्रैक रिकॉर्ड की वजह से जीत हासिल की थी. क्या केजरीवाल भी 2020 में ऐसा कर पाएंगे?

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दिल्ली-एनसीआर के लोगों का वीकेंड प्रदूषणनुमा और खतरनाक हवा की चादर से ढंका हुआ बीता है. इसने अरविंद केजरीवाल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रकाश जावड़ेकर और मायवती जैसे नेताओं को बोलने पर मज़बूर कर दिया है.

एक स्वाभिक सवाल उठता है – क्या वायु प्रदूषण भारत में राजनीतिक मुद्दा है और क्या दिल्ली की सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल पर्यावरण को लेकर जागरूक नेतृत्व करने की जगह बना रही है? और भी सवाल है कि क्या हवा की खराब स्थिति 2020 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में एक अहम मुद्दा होने वाला है.

जैसे कि दिल्ली के स्कूल बंद हैं और केजरीवाल के नेतृत्व में चल रही आप सरकार ने एक बार फिर से राज्य में ऑड-ईवन नियम लागू किया है. बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगा कि दिल्ली का प्रदूषण संकट सामाजिक मुद्दे से राजनीतिक मुद्दा बनता है कि नहीं. मुद्दा राजनीतिक हो रहा है ये अच्छा है लेकिन ये चुनावी मौसम में पक्षपातपूर्ण राजनीति में फंस सकता है. जो कि राज्य के लोगों के लिए राहत की बात नहीं है.

क्या वायु गुणवत्ता वोटरों को अपनी तरफ मोड़ पाएगी

दो साल पहले ही हरियाणा के कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा था कि देश में प्रदूषण की जगह पद्मावत राजनीतिक मुद्दा है.

एक समाज में वायु प्रदूषण को मुद्दा बनने से पहले उसे लोकतंत्र की दहलीज को पार करना होगा. और अब लगता है कि दिल्ली वहां तक पहुंच गई है.

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दिल्ली प्रदूषण जैसे मुद्दे पर राजनीतिक बहस का सामना कर रही है. यह मुद्दा बैलेट बॉक्स से सिर्फ एक कदम की दूरी पर है. बसपा प्रमुख मायावती ने इस मुद्दे की तुलना नोटबंदी और बेराज़गारी से की है. पंजाब के मुख्यमंत्री ने नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर पराली जलाने वाले किसानों को मुआवजा देने की बात की है. उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री सुनील भराला ने इस मुद्दे के लिए सरकार को यज्ञ करने की सलाह दी है.

इसी दौरान राजनीतिक व्हॉट्सएप ग्रुप में मीम भी शुरू हो चुके हैं.

2003 नहीं है 2020

यह पहला मौका नहीं है जब वायु प्रदूषण को दिल्ली चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है. 1998 और 2003 के बीच पहली बार शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने प्रदूषण संकट का सामना किया था.

1998 के चुनाव में कांग्रेस भाजपा शासित दिल्ली को देश की प्रदूषण राजधानी कह कर हमला करती थी. कांग्रेस चुनावों में जीती और शीला दीक्षित ने दिल्ली के परिवहन सेवा को बदल कर रख दिया. उस दौरान खरबा ईंधन और पुरानी गाड़ियों के इस्तेमाल की वजह से होने वाला प्रदूषण सबसे ज्यादा था. सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में बसों, टैक्सी और ऑटो को सीएनजी में बदलने के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था. बड़े विरोध के मद्देनज़र शीला दीक्षित ने सीएनजी की शुरुआत की थी.

2003 के चुनाव में कांग्रेस का चुनावी नारा साफ हवा था. कांग्रेस ने एक कैंपेन फिल्म भी जारी किया था जिसमें यह दिखाया गया था कि दिल्ली के निवासियों की सफेद शर्ट पहले प्रदूषण के कारण काली पड़ जाती थी. ये सब शीला दीक्षित द्वारा उठाए गए सुधारों से पहले की स्थिति थी.

पर्यावरणविद सुनीता नरायण ने लिखा, 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल सीएनजी की क्रेडिट के लिए भिड़े हुए थे. दिल्ली का लोकतंत्र परिपक्व हो गया था.

हवा में हुए सुधार को काफी स्वीकार किया गया और शीला दीक्षित की जीत के कारणों में से यह एक थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने प्रदूषण को अपने घोषणापत्र का हिस्सा बनाया था.


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लेकिन 2020 की स्थिति 2003 की तरह नहीं है.

सीएनजी एक आसान और अच्छा उपाय है कि इसकी तुलना में दूसरे राज्यों के किसानों को पराली जलाने से रोका जाए. अरविंद केजरीवाल भी भाजपा और उसके सोशल मीडिया के खिलाफ हैं. केजरीवाल ने दावा किया है कि 24 घंटे बिजली सप्लाई ने राज्य में जेनरेटर के इस्तेमाल को कम किया है और सामुदायिक दीवाली उत्सव एक अहम कदम है. रेडियो पर वो प्रचार करते रहे कि प्रदूषण के स्तर में 25 फीसदी की कमी आई है.

लेकिन लोगों के लिए दीवाली के बाद की शर्दियों का आसमान एक असल परीक्षा है.

राज्य में स्मॉग ने भाजपा को कैंपेन चलाने के लिए अच्छा मौका दे दिया है.

2020 के दिल्ली चुनाव प्रचार में अरविंद केजरीवाल को चुनौती देने के लिए एक करिश्माई स्थानीय नेता या एक मुद्दे के साथ आने के लिए पार्टी अब तक लड़खड़ा रही है. अब उनके पास उस पर हमला करने के लिए एक मुद्दा है.

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर पर पर्यावरण से जुड़ी बैठकों को आगे खिसकाने पर निशाना साधा है. वहीं जावड़ेकर केजरीवाल सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं कि उन्होंने ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के लिए 3500 करोड़ रुपए नहीं दिए जिससे दिल्ली में गाड़ियों का दबाव कम हो सके. कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद ने भाजपा और आप दोनों पर निशाना साधा है.

सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा जिस पर सहयोग से काम करना चाहिए वो अब ध्रुवीकृत राजनीति में फंस चुका है.


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आने वाले चुनाव के मद्देनजर सभी दलों को मिल कर इस समस्या से निपटना चाहिए. लेकिन चुनाव का विपरीत प्रभाव भी हो सकता है – एक बहाना सहयोग या कुछ करना नहीं है. भाजपा नेता विजय गोयल की तरह, जो प्रदूषण विरोधी धरने पर बैठे थे, लेकिन उन्होंने दो दिन बाद ही इसे चुनावी स्टंट कह दिया.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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