प्रवासी वोट वैसे तो हरेक राज्य में दिलचस्पी का विषय होता है, पर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में यह बेहद महत्वपूर्ण है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी का सामना करने के लिए भाजपा उत्तर प्रदेश के प्रवासी नेता मनोज तिवारी पर भरोसा क्यों कर रही है? दिल्ली के दस में से करीब चार निवासी प्रवासी हैं. किसी अन्य राज्य की आबादी में प्रवासियों का इतना बड़ा अनुपात नहीं है.
दिल्ली में वर्चस्व
जहां आज़ादी के बाद के शुरुआती दशकों में देश के बंटवारे के कारण बने शरणार्थियों और पंजाब के प्रवासियों ने दिल्ली के जनसांख्यिकी स्वरूप को निर्धारित किया, वहीं पिछले कई दशकों से दिल्ली की आबादी में उत्तरप्रदेश (यूपी) और बिहार के प्रवासियों का प्रभुत्व है. दिल्ली के प्रवासी समुदाय में हर तीन में से दो प्रवासी या तो यूपी से या बिहार से आए हैं.
यह पैटर्न आगे कुछ समय के लिए जारी रह सकता है- क्योंकि जनगणना के उपलब्ध नवीनतम दशकीय आंकड़ों में भी दिल्ली के नए प्रवासियों में से दो तिहाई प्रवासी यूपी और बिहार के थे. बिहारी प्रवासियों का अनुपात खास तौर पर बढ़ा है.
दिल्ली के तीन जिलों नई दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और दक्षिण पश्चिम दिल्ली में 40 प्रतिशत आबादी प्रवासियों की है. उत्तर पश्चिम, उत्तर पूर्व और दक्षिण जिलों में यूपी से आए पांच लाख से अधिक प्रवासी रहते हैं, वहीं उत्तर पश्चिम, दक्षिण पश्चिम और दक्षिण जिलों में बिहार के दो लाख से अधिक प्रवासी रहते हैं.
पर इन प्रवासियों की बसावट एकसमान नहीं है- यूपी के प्रवासी सभी जिलों में है, पर उत्तर पूर्व जिले में उनका पूर्ण वर्चस्व है. इस जिले में गरीब श्रमिक वर्ग और झुग्गी बस्तियों की बहुतायत है जिनमें सीलमपुर, सीमापुरी, बुराड़ी और तिमारपुर शामिल हैं. सीलमपुर भारत का सबसे सघन इलाका है जहां प्रति वर्ग किलोमीटर 36,000 लोग रहते हैं. उत्तर पूर्व दिल्ली की प्रवासी आबादी में करीब 75 प्रतिशत यूपी से आए लोग हैं.
दिल्ली के उत्तर पश्चिम और दक्षिण पश्चिम जिलों में हरियाणा के प्रवासी बड़ी संख्या में हैं, वास्तव में इन दो जिलों में पंजाब और हरियाणा के प्रवासियों की सम्मिलित संख्या बिहारी प्रवासियों से कहीं अधिक है. दक्षिण भारत के प्रवासी अपेक्षाकृत कम संख्या में हैं और वे पूर्व (मयूर विहार और पटपड़गंज जैसे इलाके) और मध्य जिलों में केंद्रित हैं.
राजनीति और प्रवासी भूगोल
निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं पर प्रशासनिक और राजनीतिक रेखाएं परस्पर मिलती हैं. दिल्ली के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) में लोकनीति कार्यक्रम के पूर्व निदेशक और समाज विज्ञानी संजय कुमार ने अपनी किताब ‘चेंजिंग इलेक्टोरल पॉलिटिक्स’ में दिल्ली में प्रवासी समुदाय और राजनीति के घालमेल वाले इलाकों की पहचान के लिए 2003 के सीएसडीएस के एक सर्वे का उपयोग किया है. कुमार ने किताब में यूपी और बिहार के प्रवासियों के प्रभुत्व वाले 16 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का उल्लेख किया है. जिनमें बुराड़ी, आदर्श नगर, वज़ीरपुर, बदरपुर और सीलमपुर शामिल हैं. वैसे तो पंजाबी समुदाय के मतदाताओं का आबादी में अनुपात कम हुआ है, फिर भी दक्षिण, पश्चिम और नई दिल्ली जिलों की 17 सीटों पर उनकी खासी तादाद है. इसी तरह उत्तर पश्चिम और पश्चिम जिलों की 11 सीटों पर राजस्थान और हरियाणा के जाट और गुज्जर समुदायों का दबदबा है. जबकि 27 निर्वाचन क्षेत्र ‘मिश्रित’ आबादी वाले हैं.
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कुमार के अनुसार आबादी में प्रवासियों के इस प्रभुत्व का दिल्ली की राजनीति पर खासा प्रभाव पड़ा है. उनके अनुसार, ‘शहर की राजनीति पर अब भी जाटों और पंजाबी खत्रियों की पकड़ है, लेकिन समय के साथ, विभिन्न राजनीतिक दलों ने प्रवासियों को वोट बैंक के रूप में देखा है और समर्थन के लिए उन्हें लुभाने की कोशिश की है.’
मतदाताओं की निष्ठा
वोट के समय प्रवासियों की प्राथमिकताओं के विश्लेषण में आमतौर पर ये सवाल उठता है कि प्रवासी अपनी पहचान को लेकर की गई अपील के अनुरूप वोट करेंगे या अपने रोजमर्रा के मुद्दों को महत्व देंगे. आम आदमी पार्टी (आप) ने निश्चय ही दूसरे विकल्प को चुना है और विश्लेषण किया है: प्रवासियों समेत गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के वोटरों के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें उनकी पहचान को लेकर की गई खुली अपीलों के मुकाबले अधिक महत्व की होती हैं, और इसलिए पार्टी भाजपा की नीतियों पर केंद्रित मुद्दों- हाल में सीएए के संदर्भ में नागरिकता और मुसलमानों को हाशिए पर डाले जाने के सवाल- पर सार्वजनिक बहस में उलझने से बचती है.
लेकिन ये एकदम ईमानदार स्थिति नहीं है- आप ने पूर्वांचल (पूर्वी यूपी) के मतदाताओं को लुभाने के खुले प्रयास तहत अपने राज्यसभा सांसद संजय सिंह का इस्तेमाल किया है. प्रवासियों को लुभाने के लिए अभियान आरंभ करते हुए उन्होंने कहा कि ‘छठ पूजा की छुट्टी घोषित कर आप सरकार ने पूर्वांचली समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा किया है. हम मैथिली भाषा को मान्यता दे रहे हैं. हमने इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया है. यह उपलब्धि बिहार सरकार तक हासिल नहीं कर पाई है.’ ये पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल के उस बयान के खिलाफ आक्रोश को शांत करने के लिए की गई कवायद भी थी, जिसमें केजरीवाल ने मुफ्त इलाज के लिए बिहारियों के ट्रेन पकड़ कर दिल्ली आने की बात की थी.
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बेशक, वास्तविक समस्याओं पर फोकस करने के भी चुनावी फायदे हैं. दिल्ली में, आमदनी और मूल राज्य के बीच सीधा संबंध है. बंटवारे के शरणार्थियों के बच्चों के परिवारों के आज धनी या मध्यम वर्ग में होने की अधिक संभावना है, जबकि विशेषकर यूपी और बिहार वाले गरीब, कम शिक्षित और कम कुशलता वाली अस्थाई नौकरियों में मिलेंगे.
गृह राज्यों के माहौल का असर
इस विषय का एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि ‘पहचान बनाम मुद्दों’ के कथानक में इस बात को नजरअंदाज़ कर दिया जाता है कि प्रवासी संभवत: अपने गृह राज्यों के राजनीतिक माहौल से भी प्रभावति होते होंगे, भले ही वो राज्य छोड़कर आ चुके हों.
प्रवासियों की वोटिंग प्राथमिकताओं पर ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है, पर सीवोटर के ट्रैकिंग डेटाबेस के हवाले से दिल्ली के प्रवासी मतदाताओं के छोटे से नमूने के संदर्भ में आंकड़े मौजूद हैं. इस अध्ययन से इस बात के संकेत मिलते हैं कि कुछ राज्यों के प्रवासियों की वोट प्राथमिकताओं पर स्पष्ट राय होती है जोकि कतिपय कारणों से उनके गृह राज्यों के राजनीतिक माहौल से प्रेरित होता है. उदाहरण के लिए, सीवोटर के आंकड़ों में (नमूने का आकार बहुत छोटा होने के कारण मात्र सांकेतिक) 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में, और अब भी, भाजपा को सबसे कम वरीयता केरल के प्रवासियों के बीच मिलती दिखी है. वास्तव में, तमाम दक्षिणी राज्यों के प्रवासियों के बीच आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता पूरी दिल्ली के मतदाताओं के औसत के मुकाबले अधिक है. जबकि दिल्ली के मूल निवासियों तथा यूपी और बिहार के प्रवासियों के बीच आप की लोकप्रियता कमोबेश पूरे राज्य के औसत के अनुरूप है.
जनवरी 2020 की शुरुआत तक ऐसा प्रतीत हो रहा था कि आप दिल्ली में सुविधाओं की डिलीवरी पर फोकस किए रहने में सफल रही है और प्रवासियों को लुभाने के पारंपरिक नुस्खों को पार्श्व में रखा है. यदि दिल्ली में प्रवासियों का प्रवाह मौजूदा सामान्य दर से जारी रहा और इस कारण धीरे-धीरे राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव जारी रहा, तो यह प्रतिस्पर्धा दिल्ली की राजनीति में उत्तरोत्तर बड़ी भूमिका निभा सकती है.
(लेखिका चेन्नई स्थित डेटा पत्रकार हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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