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Monday, 6 May, 2024
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परिसंपत्तियों से लेकर चुनावी बॉन्डों तक नेताओं की एक ही रट- ‘हम कागज़ नहीं दिखाएंगे’

सीएए या एनपीआर के नाम पर भारत के लोगों से दस्तावेज़ मांगने से पहले मोदी सरकार उन कागज़ातों को निकाले जो कि राजनीतिक दल छुपाए बैठे हैं.

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जैसे वरुण ग्रोवर की कविता ‘हम कागज़ नहीं दिखाएंगे’ को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध प्रदर्शन करने वालों ने हाथों-हाथ लिया है. इस कानून का समर्थन करने वालों ने उसी तर्ज पर प्रदर्शनकारियों को ‘कागज़ दिखाने के लिए
तैयार रहने’ की चेतावनी दी है. लेकिन जहां तक ‘कागज़ दिखाने’ की बात है तो भारत की राजनीतिक पार्टियां और नरेंद्र मोदी सरकार खुद सूचना साझा करने की अपनी विधिक और नैतिक प्रतिबद्धताओं में पिछड़ गई हैं.

भारत में राजनीतिक दलों की फंडिंग हमेशा से अपारदर्शी रही है. पार्टियां कानून के तहत इस बारे में जानकारी सार्वजनिक करने का प्रतिकार करती हैं और इससे बचने के तरीके ढूंढते रहती हैं. वर्ष 2017 तक राजनीतिक दलों की फंडिंग के संदर्भ में आम नागरिकों को सबसे कम जानकारी नकद चंदे की होती थी.

जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक राजनीतिक दलों को 20 हज़ार रुपये से अधिक के सारे चंदों की जानकारी सार्वजनिक करनी होती है, बहुत से दल ये दावा करते हुए व्यवस्थित तरीके से इस अनिवार्य प्रावधान की अवहेलना करते हैं कि उन्हें
मिले चंदे का बड़ा हिस्सा उन लोगों से मिला है जिन्होंने 20 हज़ार रुपये से कम का योगदान किया है. उदाहरण के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उपलब्ध वित्तीय आंकड़ों के अनुसार पार्टी ने पिछले 13 वर्षों में 20 हज़ार रुपये से अधिक के एक भी चंदे की घोषणा नहीं की है. हालांकि, अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों के बड़े दानदाताओं की पूरी जानकारी सार्वजनिक की जाती है और इसीलिए हम जान पाए कि 2017-18 में दो प्रमुख दलों को सर्वाधिक चंदा प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने दिया था, जिसमें कि भारती एंटरप्राइजेज और अन्य कंपनियां शामिल हैं.

चित्रण : सोहम सेन/ दिप्रिंट

चुनावी बॉन्ड से बदली स्थिति

पर, पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड की शुरुआत किए जाने के बाद से मोदी सरकार ने राजनीतिक दलों पर वित्तीय जवाबदेही के भार को काफी कम कर दिया है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की 29 अधिकृत शाखाओं में से किसी से खरीदे जा सकने वाले चुनावी बॉन्ड पूर्णतया गोपनीय होते हैं. जनता इनके बारे में सिर्फ इतना भर जान सकती है कि किस पार्टी को कितनी राशि प्राप्त हुई है. हमें अब ये जानने का कानूनी अधिकार नहीं है कि राजनीतिक दलों को बड़े चंदे कौन दे रहा है. साथ ही, चुनावी बॉन्ड के ज़रिए राजनीतिक दलों को मिल रहे चंदे की मात्रा बढ़ती जा रही है और बढ़ रहा है पार्टियों को इस गुप्त स्रोत से प्राप्त चंदे का अनुपात. 2017-18 और 2018-19 के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को चुनावी बॉन्डों से मिलने वाले चंदे की मात्रा बढ़कर तीन गुना हो गई, जबकि कांग्रेस के कुल चंदे में इस स्रोत का अनुपात 2.5 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया. यानि, संक्षेप में कहें तो राजनीतिक दल अपनी आमदनी के उत्तरोत्तर बड़े हिस्से को सार्वजनिक छानबीन के दायरे से बाहर करते जा रहे हैं.


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सूचना के अधिकार (आरटीआई) से जुड़ी कार्यकर्ताओं अंजली भारद्वाज और अमृता जौहरी ने जब एक करोड़ रुपये से अधिक राशि के चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों के नाम मांगे तो एसबीआई की 23 शाखाओं से पिछले सप्ताह उन्हें मिले जवाब की शुरुआत इस तरह थी, ‘यह सूचना सार्वजनिक नहीं की जा सकती है क्योंकि ये परस्पर विश्वास से जुड़ी जानकारी है और आरटीआई कानून, 2005 की धारा 8(1)(ई) एवं 8(1)(जे) में जिसे प्रकट नहीं करने की छूट है.’ इस पर दोनों सूचना कार्यकर्ताओं ने बयान जारी कर कहा है कि ‘यह जानकारी हासिल करने के जनता के अधिकार का उल्लंघन है. अधिकारियों ने इस विषय में व्यापक सार्वजनिक हितों पर गौर नहीं किया, जो कि हर उस मामले में अनिवार्य है जिनमें कि आरटीआई की धारा 8 के तहत सूचना देने से इनकार किया जाता हो.’

अब न सिर्फ राजनीतिक दलों को अनुग्रहीत करने वाले व्यावसायिक हितों की जानकारी पाना मुश्किल हो गया है, बल्कि ये जानना भी आसान नहीं रह गया है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के हित किन बातों में हैं, और परिणामस्वरूप हितों
के टकराव का अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया है.

आदर्श नहीं है सांसदों से जुड़ी सूचनाओं की व्यवस्था

राज्यसभा के सांसदों को इन पांच मदों में प्राप्त पैसे की जानकारी सार्वजनिक करनी होती है. कंपनी निदेशक का लाभकारी पद, सामान्य लाभकारी गतिविधियां, नियंत्रणात्मक प्रकृति की शेयर हिस्सेदारी, शुल्कयुक्त सलाहकारी सेवा और/या कोई पेशेवर काम. सांसदों के निजी हितों का रजिस्टर सार्वजनिक होना चाहिए था, पर ऐसा एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा आरटीआई आवेदन दाखिल करने के बाद ही हो पाया. सीमित जानकारी देने की बाध्यता (यहां देखें अन्य देशों में लागू इससे कहीं अधिक व्यापक प्रावधान) होने के बावजूद सचमुच में कुछ नहीं हो रहा है. भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के किंगफिशर एयरलाइंस का मालिक रहते नागरिक विमानन से जुड़ी संसदीय समितियों का सदस्य होना एकमात्र उदाहरण नहीं है, बल्कि ऐसे कई अन्य उदाहरण हैं.


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लोकसभा में तो स्थिति और भी खराब है. सांसदों को सिर्फ अपने चुनावी हलफनामे में परिसंपत्तियों और देनदारियों की जानकारी देनी होती है, वे इसे अपडेट करने के लिए बाध्य नहीं हैं और उन्हें हितों के टकराव संबंधी कोई जानकारी देने
की भी बाध्यता नहीं है. बीड़ी के व्यवसाय से जुड़े प्रमुख उद्योगपति और भाजपा सांसद श्यामाचरण गुप्ता तंबाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनी का आकार बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार करने वालों में शामिल थे और आश्चर्य नहीं कि उनका मत
इसके खिलाफ था, साथ ही वह कैंसर और तंबाकू के बीच के संबंध पर भी सवाल उठाने से नहीं चूके. ऐसे मामलों को उजागर करने की जिम्मेदारी पत्रकारों पर टिकी हुई है. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ‘मिंट’ अख़बार ने ऐसे 100 नेताओं और उनके व्यावसायिक हितों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया था.

पारदर्शिता बढ़ाई जाए

मोदी सरकार को अपने फैसलों पर जनता को भरोसे में लेने के लिए और अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है. आरटीआई कानून के भाग 4 में कहा गया है ‘प्रत्येक सरकारी प्राधिकारी. महत्वपूर्ण नीतियां बनाते हुए या जनता को प्रभावित करने
वाली घोषणाएं करते हुए सभी प्रासंगिक तथ्यों को सार्वजनिक करेगा. प्रभावित लोगों को अपने प्रशासनिक या अर्ध-न्यायिक फैसलों के कारण बताएगा.’

इसके बावजूद, जैसा कि सार्वजनिक डेटा पोर्टल फैक्ट्ली के संस्थापक एवं सूचना कार्यकर्ता राकेश रेड्डी डुब्बुडू कहते हैं, अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने जैसे अहम नीतिगत फैसले की निर्णय-प्रक्रिया के बारे में भी स्वेच्छा से कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है. इसके उलट फैसले की अचानक घोषणा की जाती है, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर चर्चा के लिए सांसदों को महज कुछ घंटे ही दिए जाते हैं और तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में संचार माध्यमों को ठप कर दिया जाता है, जिससे संबंधित औपचारिक आदेश को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.

(लेखिका चेन्नई स्थित डेटा पत्रकार हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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