एक वक्त था जब कैलेंडर नहीं थे. उन दिनों अक्सर कोई आदमी मुनादी पीटकर बताया करता था कि कल कौन-सी तिथि और त्योहार आदि होगा. मानव सभ्यता के अलग अलग दौर में विभिन्न सभ्यताओं ने दिन, महीने और साल की गणना के लिए कलेंडर बनाए. ये कलेंडर कहीं याददाश्त में रहे तो कहीं उन्हें पत्थर पर, कहीं, लकड़ी पर तो कहीं कपड़ों पर और बाद में कागज पर छापा गया. प्रिटिंग प्रेस के आविष्कार के साथ ही कलेंडर घर-घर पहुंचने लगे.
कलेंडर के साथ ही कैलेंडर आर्ट भी अपने जन्म से लेकर अब तक विभिन्न पड़ावों से गुजरे. कैलेंडर के साथ सबसे ज्यादा प्रचलन में धर्मों की जुगलबंदी रही. हर धर्म के लोग अपनी मान्यता के हिसाब से कैलेंडर पर अपने ईश्वर के चित्रों को सजाने लगे. भारतीय कलेंडर आर्ट में राजा रवि वर्मा की बड़ी भूमिका रही है. राजा रवि वर्मा शानदार चित्रकार थे और वो कैलेंडर के साथ हिंदू-देवी देवताओं के चित्र बनाने के चलन में लेकर आए. भारत में शुरुआती कलर प्रिंटिंग प्रेस से जुड़े होने के कारण रवि वर्मा का कलेंडर आर्ट पूरे देश में छा गया.
पिछले कुछ वर्षों में कैलेंडर को लेकर एक नया चलन सामने आया, जब आंबेडकरी आंदोलन से जुड़े प्रकाशकों ने कैलेंडर बनाना शुरू किया. इसके साथ ही कैलेंडर पर डॉ. भीमराव आंबेडकर और बुद्ध सहित तमाम बहुजन नायकों के नाम और चेहरे भी नजर आने लगे. यह एक अलग तरह के प्रतिरोधी सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा था. आंबेडकरी आंदोलन से जुड़े प्रकाशकों सम्यक प्रकाशन और गौतम बुक सेंटर ने इन्हें उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाया. आज यह धारा आगे बढ़ चली है. पिछले सात वर्षों (जून 2012) से प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका ‘दलित दस्तक’ और इसके प्रकाशन ‘दास पब्लिकेशन’ ने ‘बहुजन कैलेंडर 2019’ प्रकाशित कर एक नई स्थापना की है.
अब तक प्रकाशित होने वाले बहुजन कैलेंडर में बहुजन नायकों की तस्वीरें और महत्वपूर्ण दिनों की जानकारी होती थी. लेकिन बहुजन आंदोलन से अनजान इंसान के लिए यह पहेली रहती थी कि वो व्यक्ति कौन है. दलित दस्तक ने अपने इस साल के कलेंडर में इसी कमी को दूर करने की कोशिश की है. कैलेंडर की एक झलकी यूं है-
जनवरी- सावित्रीबाई फुले
सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी सन् 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ. वह भारत की पहली महिला शिक्षिका हैं. अपने पति और महान समाज सुधारक ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर उन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए उल्लेखनीय काम किया.
जब समाज में स्त्रियों का पढ़ना प्रतिबंधित था, उन्होंने 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना की. उन्होंने स्त्री शिक्षा के प्रसार के लिए एक के बाद एक 18 स्कूल शुरू किए. महाराष्ट्र में फैले हैजे की महामारी के दौरान रोगियों की सेवा करते हुए वह इसकी चपेट में आ गईं, जिससे 10 मार्च 1897 को उनका परिनिर्वाण (निधन) हो गया. बहुजन समाज उनकी जयंती को ‘शिक्षक दिवस’ घोषित करने की मांग करता रहा है.
फरवरी- गुरु रविदासजी महाराज – संत गाडगे
गुरु रविदास का जन्म संवत 1433 (1376 ईं.स) में माघ पूर्णिमा को बनारस के नजदीक मांडुर गढ़ (महुआडीह) में हुआ था. समकालीन संतों में सदगुरू रैदास का स्थान श्रेष्ठ है. इसी कारण उनको संत शिरोमणि भी कहा जाता है. पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव द्वारा संकलित सिक्ख धर्मग्रंथ में उनके 41 पद शामिल किए गए हैं. संत रविदास को मीरा बाई के आध्यात्मिक गुरु के रुप में भी जाना जाता है जो कि राजस्थान के राजा की पुत्री और चित्तौड़ की रानी थी.
अपनी कविताओं में रविदास जी द्वारा बेगमपुरा शहर को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहां सभी लोग बिना किसी भेदभाव, गरीबी और जाति अपमान के एक साथ रहते हैं.
संत गाडगे का जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के शेणपुर जिले में 23 फरवरी 1876 को धोबी परिवार में हुआ था. वो स्वच्छ भारत के सच्चे ब्रांड एम्बेसडर थे. उन्होंने सवच्छता के लिए जीवन भर काम किया और लोगों को प्रेरित किया. 20 दिसंबर 1956 को उनका परिनिर्वाण हो गया.
मार्च- कांशीराम
कांशीराम का जन्म 15 मार्च, 1934 को पंजाब के रोपड़ जनपद में खवासपुर गांव में एक रामदसिया चमार परिवार में हुआ. उन्हें साहब या मान्यवर भी कहा जाता है. उन्होंने वंचित समाज को सत्ता में आने के डॉ. आंबेडकर के सपने को पूरा किया. बहुजन आंदोलन को बढ़ाने के लिए डीएस-4, बामसेफ, बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर और बहुजन समाज पार्टी (14 अप्रैल 1984) की स्थापना की.
बसपा ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल कर दलितों के लिए राजनीति में शीर्ष पद तक जाने का रास्ता खोला. मान्यवर ने अप्रैस्ड इंडियन, बहुजन टाइम्स और बहुजन संगठक नाम के पत्रों का प्रकाशन किया. चमचा युग नाम से एक किताब भी लिखी. 09 अक्टूबर 2006 को कांशीराम का परिनिर्वाण हो गया.
अप्रैल- बाबासाहब डॉ. आंबेडकर
डॉ. भीमराव आंबेडकर ही वह व्यक्ति हैं, जिनकी वजह से दलित/पिछड़ा एवं आदिवासी समाज सम्मान से दो जून की रोटी खा पा रहा है. उनके पास सुंदर कपड़ा, शानदार घर, गाड़ियां, नौकरी, शिक्षा आदि इसलिए है क्योंकि इसके लिए डॉ. आंबेडकर ने जीवन भर संघर्ष किया और संविधान में वंचित वर्ग को तमाम हक दिलवाए.
उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 में इंदौर के महू छावनी में हुआ था. वह स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान के निर्माता थे. उनके पास 32 डिग्रियां थीं और वे 9 भाषाओं के जानकार थे. उन्होंने अक्टूबर 1956 में करीब 5 लाख अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध दीक्षा ली. 6 दिसंबर 1956 को उनका परिनिर्वाण हुआ. 1990 में वीपी सिंह सरकार ने उन्हें भारत रत्न दिया.
मई- स्वामी अछूतानंद ‘हरिहर’
स्वामी अछूतानंद ‘हरिहर’ का जन्म 6 मई 1879 को मैनपुरी के सिरसागंज स्थित उमरी गांव में हुआ था. उनका मूल नाम ‘हीरालाल’ था. वह 1912 से लेकर 1922 तक जाति सुधार, सामाजिक सुधार के साथ-साथ धर्म की खोज में लगे रहे. उन्होंने ‘आदि-हिंदू’ आंदोलन चलाया. वह काबिल पत्रकार थे. उन्होंने ‘अछूत’ और ‘आदि हिंदू’ नामक पत्र का संपादन किया.
सन् 1914 से 1917 के दौरान अपनी रचनाओं के जरिये समाज को उद्वेलित किया. 1917 में उन्होंने दिल्ली में अखिल भारतीय अछूत महासभा की स्थापना की. 1922 में प्रिंस वेल्स के भारत आगमन के दौरान स्वामी अछूतानंद ने उनके समक्ष 17 मांगें रखीं, जो सामाजिक आजादी का आधार हैं. 20 जुलाई 1933 ई. को मात्र 54 वर्ष की उम्र में ही उनका परिनिर्वाण हो गया.
जून- संत कबीर
कबीर 15वीं शताब्दी के विद्रोही कवि, संत और समाज सुधारक थे. उनका जन्म 1440 में जेठ महीने में पूर्णमासी को काशी में माना जाता है. आडंबर और अंधविश्वास से उनको सख्त नफरत थी. कबीर हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं; जो आजीवन आडंबरों और ढोंग पर कुठाराघात करते रहे. वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे.
यही वजह रही कि मोक्ष भूमि माने जाने वाले वाराणसी में जीवन भर रहने के बाद ‘मोक्ष’ वाले आडंबर को तोड़ने के लिए आखिरी वक्त में वह मगहर चले गए, जहां सन् 1518 में उनका निर्वाण हो गया. गुरुग्रंथ साहिब में भी कबीर की वाणी को शामिल किया गया है. कबीर की वाणी का संग्रह ‘बीजक’ (Bijak) नाम से है. वह हिंदू-मुस्लिम एकता के भी प्रतीक रहे.
जुलाई – छत्रपति शाहूजी महाराज
छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था. वह कोल्हापुर रियासत के राजा थे. उन्हें आरक्षण का जनक भी कहा जाता है. उनके प्रशासन में ज्यादातर ब्राह्मण जाति के लोग ही थे. इस एकाधिकार को समाप्त करने के लिए उन्होंने आरक्षण का कानून बनाया और बहुजन समाज के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था थी.
देश में आरक्षण की यह पहली व्यवस्था थी. वह महात्मा फुले से प्रभावित और डॉ. आंबेडकर के मददगार थे. उन्होंने 1912 में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और मुफ्त करने का कानून बनाकर शूद्रों एवं दलितों के लिए शिक्षा का दरवाजा खोला. 1917 में पुनर्विवाह का कानून भी पास किया. 6 मई 1922 को राजा छत्रपति शाहू महाराज का परिनिर्वाण हुआ.
अगस्त – नारायण गुरु
नारायण गुरु का जन्म दक्षिण (केरल) में 26 अगस्त 1854 को हुआ था. जिस दौर में उनका जन्म हुआ, केरल जातिवाद और रूढ़िवाद में बुरी तरह जकड़ा हुआ था. दलित औरतों को स्तन ढंकने का अधिकार नहीं था. तब उन्होंने एक अलग तरह का आंदोलन चलाया.
अरुविप्पुरम में उन्होंने एक मंदिर बनाकर एक इतिहास रचा. यह मंदिर भारत का पहला मंदिर है, जहां बिना किसी जातिभेद के कोई भी पूजा कर सकता था. नारायण गुरु के इस क्रांतिकारी कदम से उस समय जाति के बंधनों में जकड़े समाज में हंगामा खड़ा हो गया था. ब्राह्माणों ने इसे महापाप करार दिया. जबकि नारायण गुरु का कहना था कि सभी के लिए एक ही जाति, एक ही धर्म और एक ही ईश्वर होना चाहिए.
सितंबर – पेरियार
17 सितंबर 1879 को जन्मे ईवी रामासामी ‘पेरियार’ इस देश के इतिहास में एक ऐसे क्रांतिकारी विचारक थे, जिन्होंने समाज के दलित-पिछड़े समुदाय को सम्मान से जीने और समाज में बराबर के अधिकार पाने का रास्ता सफलतापूर्वक दिखाया. पेरियार दक्षिण भारत के प्रमुख राजनेता थे. उन्होंने तामिलनाडु में ब्राह्मणवाद के पैर उखाड़ दिये और समाज व्यवस्था तथा राजनीति में दलित-पिछड़े समाज को शिखर पर बैठा दिया.
वे हिंदू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही गई बातों का परस्पर विरोध तथा बेतुकी बातों का माखौल भी उड़ाते रहते थे. उन्होंने तमिल में एक पुस्तक ‘सच्ची रामायण’ लिखी जिससे हिंदू समाज में बवाल मच गया. बाद में हिंदी में ललई सिंह यादव ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया. 24 दिसंबर 1973 को उनकी मृत्यु हो गई.
अक्टूबर – ज्योतिबा राव फुले
महात्मा ज्योतिबा राव फुले महान विचारक तथा समाज सेवी थे. उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के पुणे में माली परिवार में हुआ. उन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना की जड़ता को ध्वस्त करने का काम किया. महिलाओं एवं वंचितों की अपमानजनक जीवन स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे. शिक्षा और खासकर महिला शिक्षा के क्षेत्र में उनका काफी योगदान था.
सन् 1873 में उन्होंने सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया. उनकी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ ने अपने वक्त में बड़ा सवाल खड़ा किया. डॉ. आंबेडकर ने तथागत बुद्ध तथा कबीर के बाद महात्मा फुले को अपना तीसरा गुरु माना है. 28 नवंबर 1890 को उनका परिनिर्वाण हो गया. बहुजन समाज ज्योतिबा फुले को ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा देता है.
नवंबर – बिरसा मुंडा
आदिवासी समाज के बीच बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा हासिल है. बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को वर्तमान झारखंड के उलिहातु में हुआ. उन्होंने अंग्रेजों की हुकूमत के सामने कभी घुटने नहीं टेके, बल्कि जल, जंगल और जमीन के हक के लिए ‘उलगुलान’ अर्थात क्रांति का आह्वान किया.
वे जल, जंगल और जमीन पर आदिवासी हक की वकालत करते थे. उन्होंने ‘अबुआ दिशोम रे अबुआ राज’ यानि ‘हमारे देश में हमारा शासन’ नारा देकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. इस विद्रोह ने अंग्रेजी हुकूमत को झकझोर दिया. इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. जेल में रहने के दौरान ही बिरसा मुंडा को हैजा हो गया. अंतत: 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा ने जेल में अंतिम सांस ली.
दिसंबर – गुरु घासीदास
गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 में वर्तमान छत्तीसगढ़ (तब मध्य प्रदेश) के जिला बलौदा बाजार के ग्राम गिरौदपुरी में एक साधारण परिवार में हुआ था. छत्तीसगढ़ में उनका स्थान सबसे बड़ा और ऊंचा है. जिस समय भारतीय हिंदू समाज में जातिवाद और छुआछूत चरम सीमा पर थी, ऐसे काल में गुरु घासीदास ने सतनाम पंथ की नींव रखी और वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार किया.
उनके द्वारा स्थापित सतनाम पंथ में हजारों दलित, शोषित व पिछड़ा वर्ग राहत की सांस ले रहा है. गुरु घासीदास ने सतनाम पंथ का प्रचार प्रसार करते हुए लोगों को 7 संदेश और 42 अमृतवाणी दिया. इसमें आडंबर और अंधविश्वास से निकलने की बात कही गई थी. सन् 1850 में उनका परिनिर्वाण हो गया.
सिक्स शीटर (फ्रंट-बैक प्रिंट) इस कैलेंडर की एक खास बात यह भी है कि यह मोटे पेपर पर स्पाइरल बाइंड की हुई है. इसका साइज 18X22 है. इस कैलेंडर को ऑनलाइन बुकिंग के द्वारा मंगवाने की सुविधा दी गई है. इसे दलित दस्तक की वेबसाइट के इस लिंक के जरिए मंगवाया जा सकता है. साथ ही यह 5 जनवरी से 13 जनवरी तक दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले विश्व पुस्तक मेले के दौरान दलित दस्तक के स्टॉल, हॉल नंबर 12A में स्टॉल नंबर 331 पर भी उपलब्ध रहेगा.
(अशोक दास दलित दस्तक पत्रिका के संपादक हैं.)
Mai bhi isse judna chahta hu. Ek patrakar ke taur per.