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गुरूवार, 19 जून, 2025
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दैनिक यात्रियों का जीवन भी अमूल्य है: मुंबई लोकल में सुरक्षित सफर और चुनौतियां

मुंबई की उपनगरीय रेल नेटवर्क में हर साल हज़ारों मूल्यवान ज़िंदगियों का अंत हो जाता है और यह बेहद चिंताजनक बात है जबकि उनकी वजहें और समाधान सबको मालूम हैं.

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हर सुबह की तरह 9 जून की सुबह भी मुंबई कसारा फास्ट लोकल में हर स्टेशन पर भीड़ बढ़ती जा रही थी. हर कोई अपने-अपने दफ्तर, कार्यस्थल, बाज़ार, फैक्टरी पहुंचने की जल्दबाज़ी में था. हर डिब्बा खचाखच भरा था और लोग पायदानों पर भी खड़े होकर सफर कर रहे थे, लेकिन सुबह 9:10 बजे सेंट्रल रेलवे के मुंब्रा और दीवा स्टेशन के बीच हादसा हो गया. इस ट्रेन में पायदानों पर खड़े होकर सफर कर रहे लोग बगल से गुजर रही छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) फास्ट लोकल के डिब्बों से लटके लोगों से टकरा गए. इस ‘दुर्भाग्यपूर्ण घटना’ में चार लोग मारे गए, नौ से ज्यादा लोग घायल हो गए.

ऐसी भीड़ जानी-पहचानी बात है, खासकर मुंबई के सबसे व्यस्त घंटों के दौरान ट्रेनों के डिब्बों में प्रति वर्गमीटर 16 लोग यात्रा कर रहे होते हैं और स्थिति को ‘सुपर डेन्स क्रश लोड’ वाली स्थिति कहा जाता है. यात्री लोग पायदान पर खड़े होकर यात्रा करने के खतरों की अनदेखी करते रहे हैं. इस महानगर में यात्रा करने के सबसे तेज और सस्ते साधन, लोकल ट्रेन से अपनी मंजिल तक पहुंचने की जल्दबाज़ी ट्रेन से गिरने और जान तक गंवाने के जोखिम पर हावी हो जाती है.

मुंबई की उपनगरीय रेल व्यवस्था में मौतें चिंताजनक नियमितता के साथ होती रही हैं, चाहे भीड़भाड़ के कारण हो या गैरकानूनी यात्रा के कारण. दुनिया के दूसरे किसी शहरी परिवहन नेटवर्क में यात्रियों की इतनी घनी भीड़ शायद ही यात्रा करती है. इसलिए आंकड़े रोज़ के ऑपरेशनों के विशाल पैमाने को फीका साबित कर देते हैं.

कुछ दशकों पहले जहां रोजाना औसतन 15 यात्री हताहत होते थे, आज उनकी संख्या घटकर 7 हो गई है, लेकिन इसे भारतीय रेल नामक सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की कोई वास्तविक उपलब्धि नहीं कहा जा सकता. मुंबई के उपनगरीय रेल नेटवर्क में मारे जाने वाले यात्रियों का यह आंकड़ा फिर भी दुनिया में सबसे बड़ा है.

इन्हें सुसाइड नहीं कहा जाएगा. ये जाने-पहचाने और रोके जा सकने वाले कारणों से हुई मौतें हैं. इनके बारे में वर्षों पहले ही आगाह किया जा चुका है, लेकिन पटरियों पर वास्तव में दिखाने लायक कम ही कार्रवाई हुई है.


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विशाल तंत्र और भारी दबाव

मुंबई की उपनगरीय रेल सेवा के बारे में कई अध्ययन किए गए हैं, उस पर फिल्में बनाई जा चुकी हैं और हर पहलू से उस पर शोध किया जा चुका है. ऊपर से नीचे तक का पुराना नेटवर्क दक्षिण मुंबई में चर्चगेट और सीएसएमटी को करीब 50 किमी की लंबाई में फैले उत्तरी और पूर्वी उपनगरों को जोड़ता है. हर रोज़ यह 70 लाख यात्रियों की सेवा करता है. ‘लाइफलाइन’ कहा जाने वाला यह व्यावसायिक महानगर मुंबई को गतिशील रखता है. बसें हों या छिटपुट रूप से उपलब्ध मेट्रो रेल सेवा, परिवहन का दूसरा कोई साधन, कोई भी इतने विशाल उपभोक्ता समुदाय को अपने में समा नहीं सकता.

भारतीय रेलवे के कुल यात्रियों में अकेले मुंबई के उपनगरीय यात्रियों का अनुपात 40 फीसदी है. 2023-24 में कुल 69, 470 मिलियन यात्रियों ने भारतीय रेल से सफर किया, इनमें अकेले मुंबई के उपनगरीय रेल यात्रियों की संख्या 40, 260 मिलियन थी. अकेले मुंबई नेटवर्क ने रोज़ाना 75.6 लाख यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाया, जबकि कोविड से पहले के रोज़ाना 80 लाख यात्री रोज़ाना इसमें यात्रा करते थे. इनमें से करीब 35 लाख यात्री वेस्टर्न रेलवे (WR) के थे और 45 लाख यात्री सेंट्रल रेलवे (सीआर) के थे.

चित्रण: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट
चित्रण: श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

रोजाना 3,000 से ज्यादा (चर्चगेट से दहाणू तक के लिए WR की 1,300 और सीएसएमटी से कसारा/पनवेल और ठाणे-वाशी सेक्शन पर CR की 1,700) लोकल ट्रेन सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. इनमें से केवल करीब 80 ट्रेनों के डिब्बे एसी वाले हैं. यह नेटवर्क विभिन्न सेक्शनों पर 9/12/15 डिब्बों वाली ट्रेन चलाता है. 2017 में शुरू की गईं एसी ट्रेनें बहुत लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि उनके डिब्बों में सीमित संख्या में यात्री सफर कर सकते हैं और उनमें किराया भी ज्यादा लगता है. 2022 में उनका किराया कम किया गया जिसके कुछ बेहतर परिणाम निकले.

ये ट्रेनें घनी आबादी वाले उपनगरों और व्यावसायिक केंद्रों से होकर गुज़रती हैं. इनकी रफ्तार 100 किमी प्रति घंटा होती है और ये व्यस्ततम घंटों में 3 से 4 मिनट के अंतराल पर चलती हैं. मुंबई का भूगोल लंबाई में संकरा है, इसलिए इसकी परिवहन सेवाओं पर दबाव बढ़ता है. दफ्तरों और व्यावसायिक केंद्रों को मध्य, पूर्वी, और उत्तरी मुंबई में स्थानांतरित किया जा रहा है, इसके बावजूद उत्तर-दक्षिण की ट्रैफिक पर दबाव बना हुआ है.

पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया जा रहा है और ट्रेनों के बीच न्यूनतम संभावित गुंजाइश का उपयोग किया जा रहा है. इसका नतीजा यह है कि व्यस्ततम घंटों के दौरान उपनगरीय स्टेशनों पर भारी अफरा-तफरी मची रहती है. अभी भी 9 या 12 डिब्बों वाली ट्रेनों में भारी भीड़भाड़ होती ही है.

पायदान पर खड़े होकर सफर करने वाले यात्री दरवाजों पर लगे हैंडल और एक-दूसरे को पकड़कर अपने कंधों से लटके थैले और लंचबॉक्स को संभालते हुए खतरनाक तरीके से यात्रा करते हुए देखे जा सकते हैं. यह उनकी मजबूरी भी होती है. ये ट्रेनें सबसे तेज़ और सबसे सस्ती यात्रा की सुविधा देती हैं. ट्रेन टिकट 20 रुपये में भी मिल जाता है. दूसरे दर्जे का मासिक पास केवल 15 एकतरफा यात्राओं के कुल भाड़े के बराबर की रकम में मिल जाता है, बेशक इससे ज्यादा यात्राएं करने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है.

भारतीय रेल इन उपनगरीय सेवाओं पर प्रति यात्री 75 फीसदी लागत के बराबर सब्सिडी देती है. इतनी बड़ी सब्सिडी देने के कारण उपनगरीय सेवाएं केवल 24 फीसदी लागत ही वसूल कर पाती हैं जिसके चलते ये भारी घाटे वाली यात्री सेवा में शुमार हैं.

‘दुर्भाग्यपूर्ण घटना’

रेल हादसा मैनुअल में सभी रेल हादसों का तकनीकी वर्गीकरण किया गया है. मोटे तौर पर उन्हें ‘परिणामी’ और ‘परिचायक’ दो वर्गों में बांटा गया है. ‘रेल हादसे’ में रेलगाड़ी का शामिल होना ज़रूरी है. मसलन उसकी टक्कर हुई हो या वह पटरी से उतर गई हो. चलती ट्रेन से गिरकर या रेल पटरी पर अवैध रूप से चलते हुए कोई दुर्घटनाग्रस्त हुआ हो या उसकी मौत भी हो गई हो तो उसे मैनुअल के मुताबिक रेल हादसा नहीं बल्कि ‘दुर्भाग्यपूर्ण घटना’ माना जाएगा. इसके लिए रेल विभाग की ज़िम्मेदारी सीमित होगी.

‘इंडियन रेलवेज़ एक्ट 1989’ की धारा 147 के अनुसार निषिद्ध प्रवेश और निषिद्ध प्रवेश न करने से मना करना एक दंडनीय अपराध माना जाएगा जिसमें जुर्माना और जेल दोनों हो सकती है. चलती ट्रेन से गिरने के मामले को धारा 123-सी यानी ‘दुर्भाग्यपूर्ण घटना’ के अंतर्गत आएंगे. ऐसे मामलों में धारा 124 और 124-ए रेल विभाग को मौत या चोट के लिए मुआवजा देना होता है, बशर्ते वह सुसाइड या आपराधिक कार्रवाई न हो.

विभिन्न रिपोर्टों से ज़ाहिर है कि 2002 से 2012 के बीच मुंबई की सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे लाइनों पर 36,000 से ज्यादा ट्रेन यात्रियों ने जान गंवाई. कुछ वर्षों में प्रतिदिन औसतन 15 यात्रियों की मौत हुई. 2024 में भारतीय रेल की ओर से मुंबई हाइकोर्ट में दायर हलफनामे के अनुसार 2005 से 2024 के बीच मुंबई की उपनगरीय रेल सेवाओं में हादसों में कुल 51.802 लोगों ने जान गंवाई और लगभग इतने ही लोग घायल हुए. इनमें से अधिकतर मौतें निषिद्ध प्रवेश, ट्रेनों से गिरने, या खंभों से टकराने के कारण हुईं. इस अवधि में वेस्टर्न रेलवे में 22,481 और सेंट्रल रेलवे में 29,321 मौतें हुईं. इस हलफनामे में यह भी कहा गया कि मुंबई उपनगरीय रेल सेवा में 2023 में 2,590 और 2024 में 2,468 मौतें हुईं.

यात्री अत्यधिक भीड़भाड़ के कारण हादसों में मारे जाते हैं या घायल होते हैं. स्टेशनों में आने-जाने वाले यात्रियों के नियंत्रण या नियमन की कोई व्यवस्था न होने, लोकल ट्रेनों के डिब्बे खुले होने, और अति भीड़भाड़ के कारण लोग प्रायः पायदानों पर खड़े होकर यात्रा करते हैं. दौड़ती ट्रेनों से गिरकर यात्रियों की मौत चिंताजनक नियमितता से होती रहती है. रोज़ाना औसतन 7 मौतों में से 2 या 3 मौतें इसी वजह से होती हैं. बाकी 3-4 मौतें रेल पटरियों पर निषिद्ध प्रवेश या प्लेटफॉर्म बदलने या पटरियों के बीच से शॉर्टकट रास्ते पर चलने के कारण होती हैं.

लंबी ट्रेनें समाधान हो सकती हैं

स्टेशनों पर निषिद्ध प्रवेश की वजहें सबको मालूम हैं: फुट ओवरब्रिज की कमी या दोनों तरफ खुले प्लेटफॉर्म, रेल पटरियों के बीच अपर्याप्त बाड़.

कुछ सुधार तो किए जा रहे हैं मगर धीमी गति से, लेकिन तीन प्रारंभिक उपाय पूरे ध्यान के साथ समयबद्ध तरीके से नहीं किए जा रहे हैं : स्टेशन में प्रवेश पर नियंत्रण, 15 बंद डिब्बों वाली ट्रेनें और पूरे उपनगरीय रेल नेटवर्क में काफी मजबूत बाड़बंदी जिसे तोड़ पाना मुश्किल हो.

वेस्टर्न और सेंट्रल, दोनों रेलवे की सेक्शनल क्षमता का 100 फीसदी इस्तेमाल कर लिया गया है और ट्रेनों के परिचालन में 3-4 मिनट का अंतर हासिल कर लिया गया है और ज्यादा ट्रेनें चलाने की शायद ही कोई गुंजाइश बची है.

तो, अब एक ही संभव समाधान बच गया है : ट्रेनों के डिब्बों को बढ़ाना. सभी ट्रेनों को 15 डिब्बों वाला बनाया जाए. ऐसी लंबी ट्रेन की क्षमता 12 डिब्बों वाली ट्रेन से 25 फीसदी ज्यादा होती. वेस्टर्न रेलवे ऐसी 200 ट्रेनें चलाती है मगर सेंट्रल रेलवे मात्र दो दर्जन.

सभी ट्रेनों को 15 डिब्बों वाली बनाने की प्रस्तावित परियोजना को लागू करना बाकी है.


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चेतावनियों की अनदेखी और सुस्त कार्रवाई

संसद की लोक लेखा कमिटी (पीएसी) ने भारतीय रेल की उपनगरीय रेल सेवाओं पर 2017 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेल पटरी पार करने, दौड़ती ट्रेनों से गिरने के कारण मारे जाने या घायल होने वाले यात्रियों की संख्या “वास्तव में दुखद” हैं. गौरतलब है कि इन 15,000 मौतों में से 6,000 तो “अकेले मुंबई की उपनगरीय रेल सेवा के अंतर्गत हुईं”.

पीएसी ने उपनगरीय रेल सेवा के अंतर्गत यात्रियों की मौतों का अपनी सिफारिशों में खास ज़िक्र किया है. इन सिफारिशों में फुट ओवरब्रिज (एफओबी), एस्केलेटर के निर्माण का संज्ञान लिया गया और निषिद्ध प्रवेश तथा रेल पटरियों को पैदल पार करने को रोकने के लिए एफओबी, फुट अंडरब्रिज (एफयूबी) रेल पटरियों के दोनों तरफ बाड़ लगाने या दीवार खड़ी करने, अतिक्रमणों को हटाने के सुझाव भी दिए गए. दौड़ती ट्रेन से यात्रियों के गिरने को रोकने के लिए पीएसी ने रेल मंत्रालय को उपनगरीय ट्रेनों के डिब्बों का डिजाइन बदलने, उनमें ऑटोमैटिक दरवाजे फिट करने और हर एक ट्रेन को 15 डिब्बों वाला बनाने के लिए शीघ्र कदम उठाने की सिफारिश की है.

मुंबई उपनगरीय रेल सेवाओं में इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े सभी विकास पर पूंजीगत खर्च रेल मंत्रलाय के अधीन सार्वजनिक उपक्रम मुंबई रेल विकास निगम (एमआरवीसी) कर रहा है. यह मुंबई अर्बन ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (एमयूटीपी) के रेल संबंधी पहलू को लागू करता है.

अतीत में, एमयूटीपी-1 को 5वीं और 6ठी रेल पटरी बिछाने, 9 डिब्बों वाली ट्रेन हासिल करने और प्यनर्वस एवं पुनर्स्थापन (आर एंड आर) के लिए 4,452 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. एमयूटीपी-2 को 8,087 करोड़ और एमयूटीपी-3 (2015-16 में) 10,947 करोड़ दिए गए. सबसे ताज़ा एमयूटीपी-3ए को 33,690 करोड़ का आवंटन किया गया, पटरियों के बीच निषिद्ध प्रवेश को रोकने के लिए एम यू टी पी ।।। में तो नहीं 551 करोड़ दिए गए.

ज़ाहिर है कि यह सेवा क्षेत्र जबकि घाटे में है, फिर भी इसे पर्याप्त फंड दिया जा रहा है. अब 15 डिब्बों वाली ट्रेनों, उनके दरवाजों को बदलने और दूसरे ऐसे उपायों के लिए फंड बढ़ाने की ज़रूरत है.

भारतीय रेलवे को अपनी मेट्रो सेवाओं को यात्रियों की सुरक्षा तथा सुविधाओं के मामलों में धीरे-धीरे दिल्ली मेट्रो सेवा (डीएमआरसी) के स्तर का बनाने के उपाय करने होंगे. मेट्रो के सभी डिब्बे एसी हैं और दरवाजे ऑटोमैटिक हैं जिसके कारण पायदान पर खड़े होकर यात्रा करना नामुमकिन हो जाता है. पटरियों के साथ बाड़ लगी हुई है या वह जमीन के ऊपर या अंदर हैं जिसके चलते उन पर चलना असंभव है. डीएमआरसी से अब रोज़ 45 लाख लोग यात्रा कर रहे हैं. यह संख्या मुंबई की सेंट्रल/वेस्टर्न रेलवे के यात्रियों की संख्या के बराबर है, जबकि डीएमआरसी में अनधिकार प्रवेश, ट्रेन से गिरने की घटनाएं नहीं होतीं, कभी-कभार सुसाइड के मामले बेशक हो जाते हैं.

पीएसी ने 2017 में ही अपनी सिफारिशों दी थीं, लेकिन हालात में शायद ही कोई सुधार हुआ है. कई उपाय अभी भी अटके पड़े हैं. 9 जून के हादसे के बाद रेल मंत्रालय ने घोषणा की कि अब ट्रेन के नए डिब्बों में ऑटोमैटिक दरवाजे ही होंगे और मौजूदा डिब्बों के दरवाजे बदले जाएंगे. पीएसी ने यह सिफारिश भी 2017 में की थी.

रेल यात्रियों की मौतों को लेकर जनता की चिंता बॉम्बे हाइकोर्ट में 2024 में दायर जनहित याचिका (पीआइएल) नंबर 75 से ज़ाहिर है. इस पीआईएल ने ट्रेनों से गिरने या निषिद्ध प्रवेश के कारण हुईं हज़ारों मौतों के लिए अपर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर और रेल प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. बताया जाता है कि बॉम्बे हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच ने 26 जून को रेलवे के खिलाफ गंभीर टिप्पणियां की : “इस पीआईएल में एक बेहद गंभीर मसले को उठाया गया है, इसलिए इसका निबटारा ज़रूरी है. आप अपनी गलतियों के लिए यह बहाना नहीं बना सकते कि शहर की आबादी बहुत बढ़ गई है.”

पीआईएल को दर्ज कर लिया गया और रेलवे को प्रतिवादी के रूप में अपना हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. इस आदेश में यह भी कहा गया कि रेलवे प्रशासन के उच्चतम स्तर को इस मसले पर फौरन ध्यान देना चाहिए; कि कोर्ट विशेषज्ञों की ऐसी कमिटी नियुक्त करने पर भी विचार कर सकती है जो लागू किए जाने वाले उपायों की सिफारिश करेगी. अंतिम फैसले का इंतज़ार है, जिसमें सख्त लक्ष्य तय किए जा सकते हैं और रेलवे को निर्देश दिए जा सकते हैं.

ज़िम्मेदारी और लीक पर चलने के खतरे

अंत में, सवाल यह है कि आखिर ज़िम्मेदारी किसकी है?

मौजूदा कानूनी प्रावधान (इंडियन रेलवेज एक्ट की धाराएं 147 और 123-सी) ऐसी मौतों और चोटों के लिए यात्रियों को ही साफ तौर पर जिम्मेदार ठहराते हैं, मगर एक ही राहत धारा 124-ए के तहत दी गई है जिसमें कहा गया है कि विशेष परिस्थितियों में ट्रेन से गिरने पर होने वाली मौतों के लिए मुआवजा दिया जा सकता है. ऐसे मामलों का ‘रेलवे दावा ट्रिब्यूनल’ में लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद ही निबटारा हो पाता है.

इसके अलावा, मार्ग का अधिकार रेलवे के पास है और इन मामलों को हादसा भी नहीं घोषित किया गया है बल्कि ‘दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना’ कहा गया है. इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधारों के जरिए रोकथाम की कोशिश की जा रही है, लेकिन जिम्मेदारी का सवाल अभी भी उलझा हुआ है.

राज्य सरकार की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका है. उसे अतिक्रमण हटाने हैं, स्टेशनों पर भीड़ को नियंत्रित करना है, मेट्रो नेटवर्क का तेज़ी से विकास करना है, या दफ्तरों के समय को बदलने पर भी विचार करना है.

लेकिन पूरी ज़िम्मेदारी कोई भी कबूल नहीं करता. हर किसी के पास अपनी सफाई है. अंत में बात यहीं पर आ टिकती है कि किसी को दोष नहीं दिया जा सकता, किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

इन घटनाओं को पूरी तरह खत्म कर पाना संभव नहीं है, लेकिन मुंबई की उपनगरीय रेल नेटवर्क में होने वाली मौतों की इस दुखद तादाद की वजहों को कम करना निश्चित ही संभव है. समय आ गया है कि दो मोर्चों पर समयबद्ध लक्ष्य तय करके कार्रवाई की जाए. पहला काम यह हो कि सभी लोकल ट्रेनों को 15 डिब्बों वाली बनाया जाए. इससे 25 फीसदी ज्यादा यात्रियों को यात्रा कारवाई जा सकती है और भीड़भाड़ में अच्छी कमी आएगी. दूसरे, यात्री दौड़ती ट्रेनों से न गिरें इसके लिए सभी नई और मौजूदा ट्रेनों के डिब्बों में ऑटोमैटिक दरवाजे लगवाए जाएं.

यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए 15 डिब्बों वाली एसी ट्रेनें ही अंतिम समाधान हो सकती हैं. पूरे सेंट्रल और वेस्टर्न उपनगरीय रेलवे नेटवर्क में ऊंची दीवारें बनवाने से रेल पटरियों पर अनधिकार प्रवेश को रोका जा सकता है. फुट ओवरब्रिज बनाने जैसे उपाय भी जारी रखे जा सकते हैं.

मुंबई की उपनगरीय रेल नेटवर्क में हर साल हज़ारों मूल्यवान ज़िंदगियों का अंत हो, यह बेहद चिंताजनक बात है. पहले भी और आज भी इन लोकल ट्रेनों के वरिष्ठ ड्राइवर ऐसे हादसों के कड़वे अनुभव के बाद पूरे दिन काम पर नहीं लौट पाते हैं. ये हादसे चाहे कितने भी गंभीर क्यों न हों, इनका जारी रहना एक रुटीन जैसा है और जो रुटीन बन जाता है उसके खिलाफ कार्रवाई को कभी सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी जाती.

दार्शनिक भाव के साथ यही कहा जा सकता है जो जॉन डोन्न कह गए हैं : “कोई भी व्यक्ति अकेला द्वीप नहीं होता, अपने आप में सिमटा. हर व्यक्ति मानो एक महादेश का टुकड़ा होता है, मुख्य का एक हिस्सा. हर व्यक्ति की मौत मुझे छोटा कर जाती है, क्योंकि मैं मनुष्यता से जुड़ा हूं.”

(मोहम्मद जमशेद सीआरएफ में प्रतिष्ठित फेलो और ट्रैफिक रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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