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Thursday, 25 April, 2024
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मांग बढ़ाने, अर्थव्यवस्था में तेज सुधार लाने के लिए बजट में करों को कम करें और सरल बनाएं

हाउसिंग में मांग बढ़ाने के लिए करों में छूट और स्टैंडर्ड डिडक्शन को बढ़ाने, शेयर बाजार संबंधी निरर्थक करों को खत्म करके परिवारों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने जैसे उपायों की भी घोषणा आगामी बजट में की जा सकती है.

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वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में अगर परिवारों के लिए टैक्स दरों को घटाने और टैक्स व्यवस्था को सरल बनाने की घोषणा की जाए तो मांग में तेजी आ सकती है और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है.

अर्थव्यवस्था में सुधार गति पकड़ रही है और कई संकेतकों में भी सुधार दिख रहा है. ऐसी स्थिति में परिवारों और निवेशकों को ऐसा बजट दिया जाना चाहिए, जो आर्थिक वृद्धि पर ज़ोर देता हो और मांग को और मजबूत करता हो.

करों में कटौती यानी मांग में वृद्धि

उपभोग अभी महामारी से पहले वाली स्थिति में नहीं पहुंचा है, ऐसी स्थिति में मांग बढ़ाने के लिए टैक्स दरों में कटौती करने पर भी बजट में विचार किया जाना चाहिए. सरकारी खर्च बढ़ाने से मांग में जितनी तेजी आ सकती है उससे ज्यादा तेजी टैक्स दरों में कटौती करने से आएगी. जब कि जीएसटी के मद में अच्छी-ख़ासी उगाही हो रही है, सरकार आयकर दरों में कटौती करके परिवारों को कुछ राहत देने पर विचार कर सकती है. महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान जीएसटी के मद में उगाही में गिरावट आई थी मगर चालू वित्त वर्ष 2022 में इस मद में मासिक उगाही 1.18 लाख करोड़ रुपये के अधिकतम स्तर पर पहुंच गई. 2018-19 में 98,000 करोड़ रु. की औसत मासिक उगाही के मुक़ाबले यह बड़ी उछाल है. यह सरकार को आयकर दरों में कटौती करने की सुविधा देती है.

दोहरी टैक्स व्यवस्था पर पुनर्विचार

अप्रैल 2020 में सरकार ने एक नयी वैकल्पिक टैक्स व्यवस्था शुरू की थी, जिसमें व्यक्तियों के लिए टैक्स की दरों में कमी करने का प्रस्ताव था बशर्ते वे विशेष कटौतियों और छूटों का लाभ न लें. इस नयी व्यवस्था में मकान किराया भत्ता के मद में रियायत, धारा 80सी और 80डी के तहत छूट, होम लोन के ब्याज भुगतान में छूट जैसी रियायतों और कटौतियों की सुविधा नहीं हासिल है.
पुरानी व्यवस्था में तीन स्लैब हैं और दरें ऊंच हैं; नयी व्यवस्था में छह स्लैब हैं और दरें नीची हैं. टैक्स संबंधी जानकारों के मुताबिक, नयी व्यवस्था को बहुत कम करदाताओं ने चुना है. अधिकतर परिवार सामाजिक सुरक्षा के मद में धारा 80सी के तहत हासिल कटौतियों को खोना नहीं चाहते. इस बजट में नयी टैक्स व्यवस्था को सरल बनाने और उसे परिवारों के लिए आकर्षक बनाने का मौका है, ताकि एक ही टैक्स व्यवस्था की ओर लौटा जा सके.

टैक्स में छूट से हाउसिंग में बढ़ेगी मांग

होम लोन के मूल धन और ब्याज के भुगतान पर टैक्स में छूट देने से हाउसिंग सेक्टर में मांग बढ़ सकती है. फिलहाल मूल धन के भुगतान पर धारा 80सी के तहत छूट मिलती है. इस धारा के तहत, जीवन बीमा पॉलिसियों से लेकर प्रोविडेंट फंड (पीएफ) और पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीएफ) में कुल 1.5 लाख रु. के अधिकतम निवेश पर भी छूट मिलती है. ऐसे में मकान खरीदने वाले के लिए इस धारा के तहत छूट हासिल करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए होम लोन के भुगतान पर छूट देने के लिए अलग धारा बनाने की जरूरत है. इसके अलावा, होम लोन के सालाना अधिकतम 2 लाख रु. के ब्याज भुगतान पर ही टैक्स में छूट मिलती है. चूंकि होम लोन का आकार बहुत बड़ा होता है इसलिए खरीदार इस छूट का लाभ नहीं उठा पाते.

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स्टैंडर्ड डिडक्शन

वेतनभोगी वर्ग के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन वित्त वर्ष 2005-06 में खत्म कर दिया गया था लेकिन 2018-19 से इस मद में 40,000 रु. की कटौती शुरू की गई, जिसे बाद में 50,000 रु. कर दिया गया. महंगाई और कोविड के कारण बढ़े घरेलू खर्चों के मद्देनजर यह राशि भी छोटी है. परिवारों को राहत देने के लिए बजट में इसकी सीमा बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए. ज्यादा मौलिक सुधार यह होगा कि स्टैंडर्ड डिडक्शन को महंगाई से जोड़ दिया जाए. उदाहरण के लिए, अमेरिकी सरकार (आंतरिक राजस्व सेवा) ने स्टैंडर्ड डिडक्शन समेत टैक्स के 60 प्रावधानों को वार्षिक मुद्रास्फीति से जोड़ दिया है.

शेयर बाजार से जुड़े टैक्स

अच्छी-ख़ासी संख्या में परिवार अब शेयर बाजार के गंभीर निवेशक बन गए हैं. दीर्घकालिक कैपिटल गेन्स टैक्स की जगह 2004 में जिस सिक्युरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) को 2018 में लागू किया गया था उसे खत्म किया जाना चाहिए. अब दीर्घकालिक कैपिटल गेन्स टैक्स (एलटीसीजी) और एसटीटी, दोनों लागू हैं. कई तरह के करों के कारण भारतीय बाज़ारों में कारोबार की लागत ऊंची है. शेयर बाजार के और विस्तार के लिए सरकार एलटीसीजी और एसटीटी को या तो कम करे या खत्म करे.

फिलहाल, शेयरों और म्यूचुअल फंड की बिक्री से एक वित्त वर्ष में 1 लाख रु. से ज्यादा एलटीसीजी हासिल होता है तो उस पर 10 फीसदी की दर से टैक्स लगता है. 1 लाख रु. की छूट सीमा को इस बजट में बढ़ाया जाना चाहिए ताकि शेयर बाज़ारों में खुदरा क्षेत्र की भागीदारी बढ़े.

इन उपायों से माहौल मजबूत होगा, भारत में व्यवसाय करने की सुविधा बढ़ेगी और निवेश को बढ़ावा मिलेगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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