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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतअर्णब पर हमला नेहरू की विरासत है, अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाना पार्टी के डीएनए में है

अर्णब पर हमला नेहरू की विरासत है, अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाना पार्टी के डीएनए में है

रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्णब गोस्वामी ने सोनिया गांधी की पालघर मामले में चुप्पी पर सवाल उठाया था. इसके बाद जो हुआ वो कांग्रेस ने वर्षों तक जो किया है, उसकी याद दिलाता है.

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सोनिया गांधी की आलोचना के बाद रिपब्लिक टीवी के अर्णब गोस्वामी पर हमला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर महत्वपूर्ण सवाल उठाता है- विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी ने वर्षों से इसका प्रयोग किया है.

श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ में अपने मौलिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी की अवधारणा की समग्र समझ के लिए तीन पहलू मौलिक हैं. वे ‘चर्चा’, ‘पक्ष रखना’ और ‘उकसावे’ हैं.चर्चा या पक्ष रखना वाक एव अभिव्यक्ति की आज़ादी का केंद्र बिंदु है, इसमें कोई अलोकप्रिय राय भी हो सकती है.

भाषण पर अंकुश लगाने का इतिहास

पिछले सात दशकों में जवाहरलाल नेहरू से अब सोनिया गांधी के नेतृत्व तक, कांग्रेस पार्टी ने हमेशा अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का प्रयास किया है. उस समय भी अभिव्यक्ति की आजादी, चर्चा या पक्ष रखने के दायरे तक ही सीमित थी.

पहला उदाहरण, भारतीय संविधान लागू होने के एक साल बाद जून 1951 में शुरू हुआ. अनुच्छेद 19 (2), जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाता है, में संशोधन किया गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा ‘विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध’ शब्दों को संविधान में डाला. ये शब्द विशुद्ध रूप से भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा किए गए भाषणों से निपटने के लिए डाले गए थे, जो ‘अखंड भारत’ की वकालत कर रहे थे. दिलचस्प बात यह है कि ‘विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध’ शब्द का उपयोग दुर्लभ मामलों में किया जाता है, यह आश्चर्यचकित करता है कि क्या यह संशोधन मुख़र्जी के विचारों के प्रति कांग्रेस की असहिष्णुता का परिणाम था.

सबसे बड़ा हमला

अभिव्यक्ति की आजादी के हमले पर दूसरी लहर 1962 में आई. प्रख्यात हिंदी कवि केदारनाथ सिंह ने कांग्रेस की आलोचना की, उन पर मुकदमा चलाया गया. उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह का आरोप लगाया गया था, जो ‘सरकार के प्रति घृणा को उत्तेजित करने के लिए’ या अवमानना करने के लिए आजीवन कारावास की मांग करता है. केदार नाथ सिंह के खिलाफ की गई कार्रवाई ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की मानसिकता को प्रतिबिंबित किया था.

अगर कांग्रेस के पहले अभिव्यक्ति की आजादी पर लक्षित व्यक्तियों पर अंकुश लगाने का प्रयास देखें तो क्लैंपडाउन की तीसरी लहर का भारत भर में प्रभाव था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू कर दिया था और 21 महीने तक बोलने और अन्य मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया था. उस युग के कई उदाहरणों में भारत के सबसे प्रिय गायकों में से एक किशोर कुमार के साथ अपमानजनक व्यवहार था. सरकार चाहती थी कि इंदिरा गांधी के 20-सूत्रीय कार्यक्रम को बढ़ावा देने से किशोर कुमार ने मना कर दिया और बाद में उनके गानों को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन से प्रतिबंधित कर दिया गया. हालांकि, किशोर कुमार की आवाज समय की कसौटी पर खरी उतरी, लेकिन आपातकाल नहीं खरा उतरा. आपातकाल के दबदबे का एक और शिकार इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित एक राजनीतिक ड्रामा फिल्म ‘आंंधी’ थी, जिसे सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था.

विरासत जारी है

कांग्रेस पार्टी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1988 में संसद में एंटी डिफेमेशन बिल पेश किया, जिसमें सरकार को बदनाम करने वाले पत्रकारों को श्रेणीबद्ध किया गया था. यह प्रेस की स्वतंत्रता पर एक सीधा हमला था और उस समय सरकार ने पत्रकारों के खिलाफ आरोप लगाने के लिए ‘घोर अशोभनीय’ या ‘भयावह’ जैसे अस्पष्ट भावों का इस्तेमाल किया गया था. लेकिन, संपादकों द्वारा सार्वजनिक दबाव के कारण राजीव गांधी को बिल वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. बिल ऐसे समय में आया है जब सरकार को बोफोर्स घोटाले को लेकर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा था.

अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने की कांग्रेस की कोशिश 21वीं सदी में भी जारी रही. 2012 में, युवा कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर देश में व्यापक भ्रष्टाचार पर टिप्पणी करने वाले व्यंग्यात्मक कार्टून प्रकाशित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और राष्ट्रीय प्रतीक अधिनियम के तहत अपराध के साथ-साथ राजद्रोह का भी आरोप लगाया गया था.

कुछ बदल गया है

लेकिन, पिछले छह वर्षों से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस ने टेलीविजन एंकर अर्णब गोस्वामी के शो में हुए हमले के कुछ सबक सीखे हैं. अर्नब ने महाराष्ट्र के पालघर जिले में लिंचिंग पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाया था. राष्ट्रीय टेलीविज़न पर उनके सवालों का जवाब एक प्रतिक्रिया के साथ मिला, जिसका मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक प्रभाव पड़ सकता है. उनके खिलाफ विभिन्न कांग्रेस शासित राज्यों में अभद्र भाषा के लिए मुकदमा चलाने के लिए कई एफआईआर दर्ज की गईं. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस तरह के अपराध के लिए किसी पर मुकदमा चलाने की सामग्री स्पष्ट रूप से गायब है और यह कांग्रेस पार्टी के असंतोष पर भारी प्रहार करने का प्रयास है.

कांग्रेस पार्टी को अपने तरीके से सही करने की बहुत कम उम्मीद के साथ हमारे पास महात्मा गांधी के शब्दों में समाधान खोजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. गांधी ने 1921 में 36 वें कांग्रेस सत्र में बोला था कि ‘मत की स्वतंत्रता और संघ की स्वतंत्रता दो फेफड़े हैं, जो एक आदमी के लिए स्वतंत्रता की ऑक्सीजन क लेने के लिए बिल्कुल आवश्यक हैं.’ यह विवादास्पद है कि कांग्रेस पार्टी ने अनादिकाल से अभिव्यक्ति की आजादी पर अपने हमले के साथ भारत के नागरिकों को धोखा दिया है.

(लेखक बीजेपी के प्रवक्ता, मुंबई बीजेपी के उपाध्यक्ष और परिनाम एसोसिएट के प्रबंध भागीदार हैं. यह उनका निजी विचार है.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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