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Thursday, 25 April, 2024
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नवजीवन की नगरी पर संकट, तमिलनाडु के ओरोविल समुदाय पर दिल्ली के सत्ताधीशों की पड़ी नजर

अरबिन्दो की सहयोगी मीरा अल्फासा (दि मदर) ने ओरोविल की स्थापना 1968 में की थी. इसके अंदरूनी क्षेत्र में क्राउन रोड का निर्माण होगा. जिसमें 1,50,000 पेड़, झाड़ियों के कटने और जलमार्ग के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है.

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लगभग 50 बरस पुराने अंतर-सांस्कृतिक, अंतरराष्ट्रीय जीवन का अनोखा प्रयोग खतरे में है. दिसंबर के पहले सप्ताह में तमिलनाडु के ओरोविल समुदाय को उस समय धक्का लगा जब उन्होंने उनके जंगल में बुल्डोजर को आते देखा. शांतिपूर्ण विरोध की अनदेखी करते हुए 900 पेड़ गिरा दिए गए और युवा केन्द्र के कुछ अंश को ढहा दिया गया. लेकिन यहां पेड़ काटने और ढांचे गिराने से आगे बहुत कुछ दांव पर लगा है. शांतिपूर्ण और टिकाऊ समुदाय का उभरता सपना, जिसे सांस्कृतिक विविधता और पारिस्थितिकीय मेधा के उत्सव के रूप में देखा जाता है, अब उस पर दिल्ली के सत्ताधीशों के दुःस्वप्न का साया पड़ रहा है, जो एकरूपी सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं.

अरबिन्दो की सहयोगी मीरा अल्फासा (दि मदर) ने ओरोविल की स्थापना 1968 में की थी. नवजीवन की नगरी, मानवीय एकता को सुदृढ़ करती है, जो अरबिन्दो की कल्पना के अनुरूप है. यहां करीब 60 देशों के लोग रहते हैं. यह टिकाऊ खेती, देसी वास्तुशिल्प, जल प्रबंधन, जल संचयन,अक्षय ऊर्जा, स्वास्थ्य देखभाल, हस्तशिल्प, वैकल्पिक शिक्षा, उपहार अर्थव्यवस्था, कचरा प्रबंधन इत्यादि के कई प्रयोग किए गए हैं. यह भारत में पारिस्थितिकीय वापसी का भी अच्छा उदाहरण है, जहां 1,300 एकड़ का उष्ट कटिबंधीय सूखा जंगल (जो विलुप्त होने के कगार पर था) जी उठा, जहां पहले बंजर जमीन थी. वैसे ओरोविल की छवि कुछ चंद अमीर लोगों की नगरी की है, जो कुछ हद तक मायने रखती है, लेकिन पिछले कई सालों में यहां के नागरिकों के काम से आसपास के गांवों के लोगों को टिकाऊ आजीविका, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण, और सामुदायिक स्वास्थ्य इत्यादि के मौके भी मिल रहे हैं.

ताजा संकट प्रस्तावित क्राउन रोड के निर्माण से है, जो ओरोविल के अंदरूनी क्षेत्र में गोलाकार में बनेगा. इससे 1,50,000 पेड़ और झाड़ियों के कटने और जलमार्ग के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है. ओरोविल के संचालक मंडल, जिसे केन्द्र सरकार ने नियुक्त किया है, के अनुसार सड़क बनाने का विचार दि मदर का था. लेकिन यहां लम्बे समय के निवासी, जिन्होंने उनके साथ काम किया है, का कहना है कि यह मदर के दृष्टिकोण और ओरोविल मास्टर प्लान (1999-2000) की तोड़-मरोड़ कर व्याख्या की जा रही है, जो न तो स्थिर था और न ही सख्त. जब मैं हाल ही में ओरोविल पहुंचा, तो मैंने पाया कि जंगल वाला क्षेत्र जो जेसीबी मशीन से साफ हो गया था, उसमें ज्यादातर पेड़ों को बचाकर मार्ग बनाने के लिए यहां के निवासियों ने कुछ प्रस्ताव दिए थे, जिन्हें अनसुना कर दिया गया.


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तीन गंभीर मुद्दे

यहां पारिस्थितिकीय के अलावा, कम से कम तीन और गंभीर मुद्दे जुड़े हैं. ओरोविल फाउंडेशन एक्ट 1988 के तहत तीन संचालक मंडल होने चाहिए- निवासी सभा (फिलहाल लगभग 2500 की जनसंख्या), संचालक मंडल और अंतरराष्ट्रीय सलाहकार परिषद. यह अधिनियम इनमें से किसी को भी दूसरे से ज्यादा अधिकार नहीं देता. दशकों तक सरकार ने भी सहयोगी भूमिका निभाई. लेकिन अब निवासी और सरकार का संतुलन बिगड़ने लगा है, क्योंकि सरकारी संचालक मंडल द्वारा सख्ती बरती जा रही है. अब नए प्रस्ताव के संबंध में निवासी सभा से कोई परामर्श नहीं किया गया और ओरोविल के लम्बे समय से कार्यरत मीडियाकर्मी और व्यक्तिगत निवासियों का मुंह बंद करने की कोशिश की गई. यह स्पष्ट तौर पर केन्द्र सरकार के कार्य-कलाप का सत्तावादी रवैये की झलक है.

दूसरा, संचालक मंडल ने ओरोविल के शहरी आवास के तीव्र विकास का प्रस्ताव दिया है, जिसमें 50,000 निवासी हों (वर्तमान में 3500 निवासी हैं). यह आंकड़ा दि मदर की एक टिप्पणी से उभरा हैः जब हम 50 हजार हो जाएंगे, तब जरूरतों को पूरा करना मुश्किल होगा, पर इस समय हम कुछ हजार ही हैं. शहरीकरण की जल्दबाजी में ज्यादा वन कटाई और पानी की समस्या होगी. और सरकार की मानसिकता में वैसा ही वाणिज्यिक आध्यात्मिक पर्यटन होता दिख रहा है, जैसा वह उत्तराखंड में चारधाम रोड के माध्यम से प्रोत्साहित कर रही है. यहां इस प्रस्तावित योजना का कोई पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन नहीं हुआ है.

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तीसरा, संभव है यह कपटपूर्ण हिंदुत्व का एजेंडा भी हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त, 2022 में अरबिन्दो की 150वीं जयंती के मौके पर 53 सदस्यीय समिति का गठन किया है. क्या यह भारत के महान लोगों को भाजपा के पाले में लेने का प्रयास है, जैसे पहले गांधी, आम्बेडकर, बुद्ध के साथ किया? और अब अरबिन्दो के साथ हो रहा है. क्या यह भाजपा के सांस्कृतिक एकरूपीकरण के एजेंडा के लिए किया जा रहा है?

प्रतीत हो रहा है कि लद्दाख, कश्मीर, उत्तर-पूर्व, निकोबार और लक्षद्वीप की तरह अब ओरोविल भी विषैले दक्षिणपंथी सांस्कृतिक और पूंजीवादी वाणिज्यिकीकरण का सामना कर रहा है. दुर्भाग्यवश, इस मुद्दे पर यहां भी एकजुटता नहीं है, कुछ निवासी संचालक मंडल के साथ हैं. कुछ लोग अपने स्वार्थी एजेंडा के लिए, जो ओरोविल के दोष (कुछ वास्तव, कुछ काल्पनिक) हैं, उनका इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे भारतीय और गैर भारतीयों के बीच, निवासियों और आसपास की आबादी के बीच, तमिल और गैर तमिलों के बीच तनाव. कई लोगों ने मुझसे बातचीत में माना कि ओरोविल के आदर्शों को पूर्ण स्वरूप देने के लिए समुदाय में रंगभेद, जातिभेद, और वर्ग आधारित गैरबराबरी के मुद्दों का समाधान खोजना पड़ेगा.

2021 दिसंबर की शुरुआत में जंगल के रास्ते ओरोविल में बनता रास्ता | फोटो- अशीष कोठारी.

शहरीकरण समाधान नहीं

लेकिन प्रस्तावित शहरीकरण योजना से इन सबका समाधान नहीं होने वाला है और न ही यह इसका उद्देश्य लग रहा है. एक मौका उत्पन्न हुआ है, नई ‘ड्रीमवीविंग’ के प्रयास से, जिसमें गंभीरता से निवासियों के सपनों को बुनने की पहल, अध्ययन और व्यापक परामर्श किया जा सकता है. समुदाय में ऐसे कई डिजाइनरों ने योगदान किया है, जो इसे साकार कर सकते हैं. दिसंबर के बड़े धक्के के बाद सैकड़ों निवासी काम करने के लिए प्रेरित हुए हैं. सपनों को बुनने की पहल में पड़ोसी गांवों को भी जोड़ना चाहिए, ताकि ओरोविल अपनी विशेषाधिकार वाली छवि को पीछे छोड़ सके. ओरोविल की वैकल्पिक अर्थव्यवस्था और प्रशासन के मूल सवाल को आगे बढ़ाना चाहिए. मुख्य रूप से सार्वजनिक यातायात, साइकिल और पैदल आधारित गतिशीलता, गैर-मौद्रिक और स्थानीय मुद्रा आधारित विनिमय व्यवस्था, और निवासी सभा को मुख्य निर्णायक इकाई बनाने के लिए सशक्त करना, इन सब बिन्दुओं पर काम करने का मौका है. इस तरह की व्यवस्था कायम करने की संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए.

ओरोविल में इनमें से कई पहले से ही व्यवहार में हैं, और कुछ देशभर से भी सीखे जा सकते हैं. ओरोविल में इनको समग्रता से एक धागे में पिरोने में समय लगेगा. पर इसके लिए जरूरी है कि इसे नई दिल्ली के सांस्कृतिक और आर्थिक बुल्डोजर से बचाया जाए.

(अशीष कोठारी, कल्पवृक्ष व विकल्प संगम, पुणे से जुडे हैं, यह लेख बाबा मायाराम द्वारा अनुवादित है. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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