scorecardresearch
Thursday, 31 October, 2024
होममत-विमतपाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत की बढ़ती दूरी को कम करने में क्रिकेट मददगार हो सकता है

पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत की बढ़ती दूरी को कम करने में क्रिकेट मददगार हो सकता है

वक़्त आ गया है कि भारत खासकर पड़ोसी देशों के मामले में अपनी विदेश नीति में ‘पार्टी-पॉलिटिक्स’ के घालमेल के खिलाफ सख्त रुख अपनाए.

Text Size:

‘भारत से माफी मांगते हुए हम कहना चाहेंगे कि पाकिस्तान के क्रिकेट प्रेमी इससे ज्यादा के हकदार हैं और उन्हें यह मिलना भी चाहिए. एक भीड़ मुल्क की राजधानी की तरफ बढ़ती आ रही है, फौज और नागरिकों के बीच टकराव के आसार हैं, हाल में ‘पेट्रोल बम’ गिरा दिया गया है, बिजली की दरें छप्पर फाड़ रही हैं, आगे गैस संकट के बादल मंडरा रहे हैं, ‘फाइनांशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (एफएटीएफ) हमें सांस नहीं लेने देगा, और पड़ोसी अफगानिस्तान में उथलपुथल मची है… इन सबके बीच क्रिकेट में भारत पर जीत ने पूरे मुल्क को रोजाना की मुसीबतों को भूलने का एक मौका दिया है….’

यह दुबई में क्रिकेट के टी-20 विश्वकप के पहले मैच में भारत पर पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की जीत की अगली सुबह ‘डॉन’ अखबार में छपे कुमैल ज़ैदी के लेख ‘फाइव टेकअवेज़ फ्रोम पाकिस्तान्स हिस्टोरिक हंबलिंग ऑफ इंडिया’ का एक अंश है. यह भारत की पश्चिमी सीमा पर स्थित देश के 20 करोड़ लोगों की नब्ज का सही जायजा कराता है कि वे पाकिस्तान की जीत पर कैसा महसूस कर रहे हैं. यही नहीं, यह इस हार-जीत के 36 घंटे के भीतर काफी आत्म-चिंतन भी हुआ है.

इस बीच, भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्वी सीमा पर स्थित बांग्लादेश की चित्रकार रोकैया सुलताना की नई दिल्ली और कोलकाता में प्रदर्शनी को बिलकुल अंतिम समय में रद्द कर दिया. इस कदम ने एक बार फिर उजागर कर दिया कि वह उग्र दक्षिणपंथी तत्वों के दबाव के आगे न झुकने और सरकार तथा पार्टी के बीच घालमेल न करने में कितनी असमर्थ है.

इसलिए मैं इस प्रसंग में अपनी ओर से इन पांच सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करती हूं— ‘आखिर ऐसा क्यों होता है?’, ‘भारत-पाकिस्तान के बीच खेल का कोई मुक़ाबला जंग की शक्ल क्यों ले लेता है?’, ‘भारत अपने सबसे दोस्ताना पड़ोसी बांग्लादेश के मामले में खुद पहल क्यों नहीं करता?’

आखिर ऐसा क्यों होता है?

पहली बात यह है कि भारत-पाकिस्तान संबंध हमेशा तमाम तरह की खींचतान और दबावों को झेलता रहा है. जब भी किसी सरकार ने अपना फतवा जारी किया तब-तब खेल, संगीत, सिनेमा की दुनिया को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पाकिस्तान से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था और लाहोर-दिल्ली हवाई सेवा बंद कर दी थी. मनमोहन सिंह के राज में पाकिस्तानी कलाकारों के म्यूजिक शो को रद्द कर दिया गया था.

लेकिन मोदी सरकार के सात वर्षों में दोनों देशों के रिश्ते सबसे शुष्क रहे हैं क्योंकि उसने ‘जब तक आतंकवाद बंद नहीं होता तब तक कोई बात नहीं करेंगे’ वाला सख्त रुख अपना लिया. इसलिए, नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट पर हवाई हमले के बीच यह रिश्ता बिलकुल ठंडा रहा. दो साल से कोई उच्चायुक्त नहीं तैनात किया गया है; भारत ने 2014 के बाद से कोई ‘सार्क’ सम्मेलन नहीं होने दिया है.

इसका नुकसान क्रिकेट के साथ और भी बहुत कुछ को उठाना पड़ा है क्योंकि दोनों टीमों ने एक-दूसरे के देश में नहीं बल्कि केवल अंतरराष्ट्रीय मैदान पर ही मुक़ाबला किया है. इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय टीम चाहे कितनी भी शानदार क्यों न हो, उसे पाकिस्तानी टीम की मजबूती और कमजोरियों का, जीतने और दुनिया भर की तारीफ हासिल करने की उसकी भूख का कोई अंदाजा नहीं है.


यह भी पढ़ें: शमी के समर्थन में आए सचिन, सहवाग समेत कई खिलाड़ी, राहुल गांधी ने कहा- ये लोग नफरत से भरे हैं


जंग का स्वरूप

दूसरी बात यह है कि देशों के बीच जब बातचीत बंद हो जाती है तब वे सूचना के अहम स्रोतों को खोने लगते हैं. आपके गुरु चाणक्य हों या मेकियावली, वे यही सिखाते हैं कि ‘अपने दुश्मन को पहचानो’ या यह कि ‘अपने दुश्मन को करीब रखो’. इसीलिए वाजपेयी 1999 में पाकिस्तान गए और इसके महज दो वर्ष बाद उस लड़ाई के सूत्रधार परवेज़ मुशर्रफ को बातचीत के लिए आगरा बुलाया. बातचीत विफल रही मगर वाजपेयी ने कोशिश नहीं छोड़ी. 2002 में, दिल्ली-इस्लामाबाद-श्रीनगर के तरीकों को मलहम लगाने के लिए कश्मीरियों की तरफ हाथ बढ़ाया. मोदी सरकार ने अलग ही रास्ता चुना, अनुच्छेद 370 को खत्म करके जम्मू-कश्मीर को भारत संघ में शामिल करने की कोशिश की है. उसने आलोचनात्मक खबरें देने पर भी रोक लगाने की कोशिश की है, जिसके कारण नयी दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच दूरी बढ़ गई है.

बांग्लादेश-भारत दरार

तीसरे, वक़्त आ गया है कि भारत खासकर पड़ोसी देशों के मामले में अपनी विदेश नीति में ‘पार्टी-पॉलिटिक्स’ के घालमेल के खिलाफ सख्त रुख अपनाए. बांग्लादेश के मामले में, रोकैया की प्रदर्शिनी रद्द करने (अधिकारियों का कहना है कि इसे आगे बढ़ाया गया है) का कोई कारण नहीं बताया गया है. बांग्लादेश की आज़ादी की, जिसमें भारत का भी बड़ा योगदान रहा है, 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित इस प्रदर्शनी में रोकैया अपनी चार दशक की चित्रकारी को प्रदर्शित करने वाली थीं.
सरकारी सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश के कमीला और दूसरी जगहों पर दुर्गा पूजा के दौरान सांप्रदायिक हिंसा में हिंदुओं को जान-माल की क्षति पहुंचाए जाने के विरोध में उग्रपंथी तत्वों द्वारा उनकी प्रदर्शनी में तोड़फोड़ किए जाने डर था. अधिकारियों ने त्रिपुरा में विहिप, हिंदू जागरण मंच, और दूसरे हिंदुत्ववादी गुटों के प्रदर्शनों और बंगाल में भाजपा के असंतोष का हवाला दिया. उनका कहना था कि वे कोई जोखिम नहीं मोल लेना चाहते थे. अगरतला में होने वाले बांग्लादेश फिल्म महोत्सव को भी रद्द कर दिया गया है.

लेकिन हकीकत यह है कि भारत-बांग्लादेश संबंध गृह मंत्री अमित शाह के उस आपत्तिजनक बयान से लगे झटके से उबरने की कोशिश में है जिसमें उन्होंने बांग्लादेशी शरणार्थियों को ‘दीमक’ कहा था. उस समय बांग्लादेश में भारत की छवि थी उस पर एक काला साया पड़ गया था. इस कूटनीतिक दरार को भरने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है.
कमीला की वारदात की खबरें फैलने के बाद, हिंदुत्ववादी तत्वों ने पिछले सप्ताह अगरतला में बांग्लादेश के वाणिज्य दूतावास के बाहर कई तरह की तख्तियां लगा दीन जिनमें लिखा था– ‘हिंदुओं हथियार उठा लो’, ‘दुर्गा मां के केश उतारे/ बांग्लादेश खून से लाल हो जाएगा’, ‘कुरुक्षेत्र के शस्त्र फिर गरजेंगे’. तख्तियों को तुरंत हटा दिया गया मगर बांग्लादेशियों को भविष्य को लेकर आशंकाएं होने लगीं.

बंटवारे का जख्म

चौथी बात यह कि भारत जब आज़ादी के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है— और यह उपमहादेश भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बंट चुका है—तब शायद वक़्त आ गया है कि विभाजन के जख्म को कुरेदने की जगह उस पर मलहम लगाया जाए. अगर मोदी सरकार एक तो इंडो-पैसिफिक में और दूसरे मध्य-पूर्व में क्वाड गठबंधनों की कार्डधारी सदस्य बन जाती है तो वह अपनी सीमाओं के दोनों तरफ रिश्तों को मजबूत भी कर सकती है.

क्रिकेट का कप

पांचवीं बात यह कि क्या क्रिकेट का इस्तेमाल इस क्षेत्र को एकजुट करने में किया जा सकता है? दक्षिण एशिया के आठ में से पांच देश— भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, और अफगानिस्तान—अपने आप में विख्यात क्रिकेट खिलाड़ी देश हैं, और वे इन दिनों टी-20 विश्वकप प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में जिस तरह दक्षिण एशिया के सभी नेताओं को आमंत्रित किया था, उस तरह 2022 में दक्षिण एशिया क्रिकेट कप प्रतियोगिता का आयोजन करवा सकते हैं. इसका पहला मैच अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में करवाया जा सकता है. कमीला के सांप्रदायिक वारदात पर मार्मिक बयान देने वाले बांग्लादेश क्रिकेट टीम के कप्तान मशरफ़े मुर्तजा सदभावना दूत की भूमिका निभा सकते हैं.

पिछले सप्ताह कुशीनगर में एक हवाई अड्डे के उदघाटन और गौतम बुद्ध की समाधि पर प्रार्थना करने के बहाने मोदी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश को जिस तरह पड़ोसी बौद्ध देशों से जोड़ने की कोशिश की उससे भी हमें समाज में आ जाना चाहिए कि असमान दिखने वाले हलकों के बीच पुल बनाने की कितनी अकूत क्षमता मोदी में है. मुख्तलिफ़ एहसासों को साथ लाने की उनमें चमत्कारी क्षमता है.

क्या वे इस सख्त पड़ोस को उस एक साधन की मदद से एक नया मायने दे सकते हैं, जो इसे स्वाभाविक रूप से एकजुट कर देता है, जिसका नाम है— क्रिकेट?

(लेखिका दिप्रिंट में वरिष्ठ कंसल्टिंग एडिटर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘क्यों भक्तों, आ गया स्वाद?’: कांग्रेस की राधिका खेड़ा को पाकिस्तान भेजने की बात क्यों कर रहे हैं BJP नेता


 

share & View comments