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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतसीपेक चीन-पाकिस्तान का भ्रष्टाचार गलियारा है, यह भारतीय सुरक्षा को नए तरीके से चुनौतियां दे रहा है

सीपेक चीन-पाकिस्तान का भ्रष्टाचार गलियारा है, यह भारतीय सुरक्षा को नए तरीके से चुनौतियां दे रहा है

पैंगोंग में पहली झड़प हंदवाड़ा हमले की तीन दिन बाद हुई. ये एक संयोग हो सकता है. पर पाकिस्तान की निर्णय प्रक्रिया पर चीन की विशिष्ट छाप संभव है.

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पाकिस्तान में एक समिति ने हाल ही में इमरान ख़ान सरकार को चीनी कंपनियों की व्यापक भागीदारी वाले देश के बिजली सेक्टर के बारे में 278 पृष्ठों की एक सनसनीखेज जांच रिपोर्ट पेश की. इसमें भ्रष्टाचार, सांठगांठ और राजनीति के गंदे खेल को उजागर किया गया है. जांच समिति में इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस या आईएसआई के शामिल होने की बात से स्पष्ट है कि मामला कितना गंभीर है और क्यों रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.

बिजली कंपनियों से लेकर एयरपोर्ट और राजमार्गों के निर्माण और सुरक्षित नगर परियोजनाओं तक, अब कई स्तरों पर पाकिस्तान में चीन का हित है- निजी लाभ, कंपनी प्रोफाइल और राज्य सत्ता. उसे पैसे बनाने हैं तथा भारत और अमेरिका दोनों की अफगानिस्तान और ईरान संबंधी गतिविधियों के बारे में सूचनाएं जुटानी है. पाकिस्तान और चीन के पहले से ही करीबी संबंध रहे हैं और कारगिल संघर्ष के बाद से उनमें प्रगाढ़ता आई है.

पाकिस्तान पर चीन का कर्ज़ तब के 818 मिलियन पाकिस्तानी रुपये से बढ़कर पिछले वित्तीय वर्ष में 506,062 मिलियन रुपये तक पहुंच चुका था. इस आंकड़े में कर्ज से जुड़ी ‘रियायतें’ शामिल नहीं हैं जो कि करार किए जाते वक्त तय की जाती हैं. कुल मिलाकर वाणिज्यिक ऋणों के रूप में पाकिस्तान पर चीन की 6.7 बिलियन डॉलर की देनदारी बनती है, जो उस पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की बकाया राशि से भी अधिक है. भारत हंदवाड़ा से पैंगोंग तक इससे प्रभावित है.


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चीन-पाकिस्तान मित्रता की गहरी काली परछाई

तथ्यों पर गौर करें. जांच रिपोर्ट के अनुसार ट्रांसमिशन लाइन से जुड़ी एक विशाल परियोजना, जो कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की एक प्रमुख परियोजना है, के भारत में उसी तरह की परियोजना के मुकाबले 234 प्रतिशत अधिक महंगी होने का अनुमान है, जबकि भारत में बेहतर प्रौद्योगिकी का उपयोग होता है. रिपोर्ट में दो अन्य उदाहरण कोयला आधारित बिजली कारखानों के हैं, जहां चीन ने संयंत्र और उपकरणों की अधिक लागत दिखाकर 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक की अतिरिक्त कमाई की है.

इन परियोजनाओं में पाकिस्तान का राष्ट्रीय विद्युत ऊर्जा नियामक प्राधिकरण (नेपरा) हर स्तर पर शामिल रहा है. इससे भी गंभीर आरोप इस व्यापक घोटाले में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के दो सहयोगियों रज़ाक दाऊद और नदीम बाबर के लाभांवित होने को लेकर है.

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उदाहरण के लिए, बाबर एक स्वतंत्र बिजली उत्पादन कंपनी ओरिएंट पावर में एक बड़ा हिस्सेदार हैं, जो सरकार को भुगतान के मामले में सबसे बड़ी डिफॉल्टर है. बाबर को पेट्रोलियम के मामलों में इमरान ख़ान का विशेष सहायक नियुक्त किया गया है. पहले वह एनर्जी टास्क फोर्स के चेयरमैन के रूप में विभिन्न बिजली कंपनियों के बोर्डों में सदस्यों की नियुक्ति समेत विभिन्न प्रमुख फैसलों में शामिल रहे हैं. ज़ाहिर तौर पर ‘पहाड़ों से ऊंची’ बताई जाने वाली पाकिस्तान-चीन दोस्ती की एक गहरी काली परछाई भी है.

पाकिस्तान में चीनी ताक़त

पाकिस्तान में चीनी कंपनियों द्वारा सेना सहित देश में सत्ता से जुड़े रसूखदार लोगों की निष्ठा खरीदे जाने के अन्य उदाहरण भी हैं. जैसे, इस्लामाबाद में नए अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के निर्माण की 2.6 बिलियन डॉलर की परियोजना चाइना कंस्ट्रक्शन थर्ड इंजीनियरिंग ब्यूरो कंपनी लिमिटेड को दिए जाने के मामले को ही लें. यह इस चीनी कंपनी द्वारा विदेशों में हासिल सबसे बड़ा अनुबंध था. एयरपोर्ट के उद्घाटन से पहले ही उसकी इमारत के कुछ हिस्से गिरने से परियोजना सवालों के घेरे में आ गई.

जब जांच हुई तो सेना और वायु सेना के 13 सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा गबन किए जाने का खुलासा हुआ. घोटाले में शामिल अधिकारियों में लेफ्टिनेंट जनरल और एयर मार्शल स्तर के एक-एक अधिकारी शामिल थे.

अभी हाल ही में, पाकिस्तानी सेना के फ़्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइज़ेशन ने एक चीनी कंपनी को डायमर भाषा बांध बनाने का ठेका नहीं देने के अपने पूर्व के फैसले को उलट दिया. दरअसल, चीनी कंपनी बांध के स्वामित्व की और ऐसे ही एक और परियोजना के निर्माण के अधिकार की मांग कर रही थी लेकिन जब बांध निर्माण के लिए क्राउड फंडिंग से पैसे जुटाने की इमरान ख़ान की कोशिश कामयाब नहीं हुई तो आखिरकार मई 2020 में उसके निर्माण का ठेका चीनी कंपनी को दे दिया गया जो परियोजना की लागत का 70 प्रतिशत उपलब्ध कराएगी.

इसका मतलब ये हुआ कि उस इलाके में और भी चीनी श्रमिक लाए जाएंगे, जहां कराकोरम राजमार्ग बनने के बाद से चीनी दखल निरंतर बढ़ती रही है. हमेशा की तरह इस परियोजना से संबंधित शर्तें, जैसे 2.8 बिलिनय डॉलर के कर्ज़ पर ब्याज आदि के बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है.

पाकिस्तान में सुरक्षित नगर परियोजना जैसी अन्य बड़ी चीनी परियोजनाओं को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं. ये पाया गया कि इस्लामाबाद में 13 बिलियन रुपये की परियोजना के तहत हुवावे कंपनी के लगाए निगरानी कैमरे घटिया क्वालिटी के थे. परियोजना पूरी होते-होते कैमरों को ‘लगभग खराब’ घोषित किया जा चुका था. इसके बाद एक संसदीय समिति ने चीनियों द्वारा हस्तांतरण से पहले परियोजना की तकनीकी समीक्षा कराने का निर्देश दिया. समिति में शामिल सांसदों का मानना था कि परियोजना की लागत अनुचित रूप से बहुत अधिक है और चीनियों ने सरकार से बहुत अधिक पैसे वसूले हैं. कराची और पेशावर में भी इस परियोजना का काम अधर में लटक गया.

सीपीईसी (सीपेक) और भ्रष्टाचार

सीपीईसी के तहत पाकिस्तान ने चीनी कंपनियों को और भी कई संदिग्ध ‘रियायतें’ दी हैं, जैसे ग्वादर ‘फ्री ज़ोन’ स्थित तमाम परियोजनाओं में 23 वर्षों के लिए टैक्स से छूट लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों पर दो कारणों से विराम लग गया है.

पहला, चीन ने लगातार आने वाली भ्रष्टाचार की रिपोर्टों के बाद करोकोरम राजमार्ग जैसी सड़क परियोजनाओं के लिए पैसे देना बंद करने की धमकी दी. दूसरे, पाकिस्तान में मीडिया को इस समय इतना दबाकर रखा गया है कि पहले जैसी साहसिक रिपोर्टिंग लगभग बंद हो चुकी है.

वैसे तो पूरे दक्षिण एशिया में ही भ्रष्टाचार से बच पाना मुश्किल है, लेकिन सीपीईसी का मामला सरकारों के बीच के अनुबंधों का होने के कारण अधिक गंभीर है, और विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इनके लिए होने वाली करारों में ही भ्रष्टाचार की गुंजाइश बना दी जाती है.टेंडर में सिर्फ चीन की किसी तीन कंपनियों को शामिल किया जाता है. करार के तहत इन कंपनियों को ही स्थानीय संसाधनों के उपयोग के स्तर के निर्धारण का अधिकार होता है.

जानकारों के अनुसार इन परियोजनाओं से स्थानीय अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं मिलता है क्योंकि चीनी कंपनियां लगभग हरेक सामान ही नहीं बल्कि मज़दूर भी अपने यहां से मंगाती हैं. निविदा की प्रक्रिया के दौरान होने वाली बैठकों में अक्सर मूल शर्तों को कमज़ोर बना दिया जाता है. उदाहरण के लिए, परियोजनाओं में देरी पर लगाया जाने वाले जुर्माने का स्तर 10 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है. इसी तरह परियोजनाएं जल्दी पूरी किए जाने की स्थिति में दिए जाने वाले बोनस की शर्तों में भी बदलाव किया गया है.

पाकिस्तान में कार्यरत कई चीनी कंपनियों, जैसे ग्वादर और कराची में विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रही चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी, को विश्व बैंक ने विभिन्न अनियमितताओं के कारण प्रतिबंधित कर रखा है. उदाहरण के लिए, मलेशिया में इस कंपनी पर परियोजना की लागत बढ़ाए जाने की शर्त पर सरकारी विकास फंड को संकट से उबारने की पेशकश करने का आरोप है.

चीनी कंपनी, दरअसल चीन सरकार की कंपनी होती है

हालांकि, इस तरह की अनुचित गतिविधियों से दक्षिण एशियाई कंपनियां भी अछूती नहीं है लेकिन एक अंतर है. चीन में अब कोई ‘प्राइवेट कंपनी’ नहीं बची है. 2012 के बाद से, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के कारण सरकारी हस्तक्षेप फिर से काफी बढ़ गया है. इस संबंध में 2017 का राष्ट्रीय खुफिया कानून उल्लेखनीय है, जिसके तहत कंपनियों के लिए सरकार की खुफिया गतिविधियों के वास्ते ‘समर्थन, सहायता और सहयोग’ अनिवार्य कर दिया गया है. इस कानून की धारा 2 के तहत सरकारी खुफिया तंत्र ‘व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा’ के दायरे में काम करता है, जिसमें ‘राष्ट्रीय हित’ में सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाएं समेत सब कुछ शामिल है.

अमेरिका ने हुवावे को एक उदाहरण के तौर पर पेश किया है, लेकिन सभी कंपनियां इस कानून के दायरे में आती हैं. इसके अतिरिक्त, ऐसी तमाम प्रमुख कंपनियां एक जटिल तंत्र के ज़रिए से सरकारी निकायों से जुड़ी हैं, जो कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों द्वारा नियंत्रित होती हैं.


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इस पूरे मामले में, जहां फैसले की प्रक्रिया से जुड़े पाकिस्तानी मालामाल हो रहे हैं, वहीं चीन का प्रभाव तेज़ी से बढ़ रहा है.

अब इसके लिए दंडात्मक रणनीति में उस मोर्चे पर विचार करने की जरूरत है, यहां तक ​​कि यह स्वीकार करते हुए कि पाकिस्तानी निर्णय में अब एक अलग चीनी स्वाद हो सकता है.’

इसलिए अब पाकिस्तान का बचाव करने के चीन के पास कई नए बहाने हैं. संभव है कि ये महज एक संयोग हो, पर ये एक तथ्य है कि पैंगोंग में पहली झड़प हंदवाड़ा हमले के तीन दिन बाद और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की बदले की कार्रवाई की धमकी के एक दिन बाद हुई. भारत ने पाकिस्तान से युद्ध की अपनी रणनीति में हमेशा चीनी मोर्चे की आशंका को ध्यान में रखा है लेकिन अब भारत को पाकिस्तान की निर्णय प्रक्रिया पर संभावित चीनी असर की बात को स्वीकार करते हुए अपनी दंडात्मक रणनीति में इस मोर्चे को शामिल करने की ज़रूरत है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय की पूर्व निदेशक हैं. व्यक्त विचार उनके अपने हैं.)

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