ऐसे समय में जब हम सब भारतीय कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के भयावह अनुभव से गुजरने के बाद थोड़ी सी राहत की सांस ले रहे थे, इसका एक नया संस्करण, ओमीक्रॉन, हर किसी से उसकी उम्मीदों और आशावादिता के ‘हरियाली’ (ग्रीन शूट्स) को छीन लेने के लिए आ धमका है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों को बुखार और गले में खराश के मामलों को ओमीक्रॉन के लक्षणों के रूप में इलाज करने की सलाह दी है.
कोविड संक्रमण के मामलों में अचानक आई वृद्धि के साथ ही अब तक दर्ज किए गए मामलों की कुल संख्या साढ़े तीन करोड़ से अधिक तक पहुंच गई है. इसने इस महामारी की एक और नयी काली छाया की शुरुआत कर दी है और इसके साथ लगने वाले सभी प्रतिबंध, जैसे कि लॉकडाउन और सामान्य गतिविधियों पर लगने वाले अन्य प्रतिबंध, फिर से लौट आये हैं. मिल रही ख़बरों के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि गुरुवार तक इसके सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 2,85,401 हो गई थी. ऐसा लगता है कि ओमीक्रॉन ने महामारी की एक खास दहलीज को पार कर लिया है, जो आम तौर पर एक ऐसी अवस्था होती है जब कोई वायरस एक एंडेमिक स्टेज में म्यूटेट होता है और किसी विशेष क्षेत्र या इस क्षेत्र के भीतर की बड़ी आबादी में तेजी से फैलता है. अब ओमीक्रॉन आबादी के एक बड़े हिस्से में फैलने और एक वैश्विक महामारी में बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
इस बीच, फ्रांस की सरकार द्वारा जारी की गयी एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां कोविड के एक नए स्वरूप ‘आईएचयू’ का पता चला है. इसे ओमीक्रॉन की तुलना में कहीं अधिक संक्रामक माना जा रहा है. जब दक्षिण अफ्रीका में एक नए संस्करण का पता चला था तो इससे सभी प्रकार के सम्बंधों और इस देश से आने-जाने पर प्रतिबंध लगाने की वैश्विक चेतावनी जारी की गयी थी. अभी यह संदेह के घेरे में है कि क्या विकसित दुनिया फ्रांस के साथ भी ऐसा ही करेगी? जो भी हो, तात्कालिक आवश्यकता विदेश यात्रा को प्रतिबंधित करने और विदेशी मूल के यात्रियों को तब तक के लिए अलग-थलग करने हेतु पर्याप्त और सख्त सावधानी बरतने की है, जब तक कि उन्हें संक्रमण से सुरक्षित और इसके वायरस को फ़ैलाने में अक्षम (नॉन- कर्रिएर्स ऑफ वायरस) घोषित नहीं किया जाता है.
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अर्थव्यवस्था का भविष्य
दुर्भाग्य से, ओमीक्रॉन ऐसे समय में सामने आया है जब हमारी अर्थव्यवस्था फिर से वृद्धि की ओर लौटती हुई दिख रही थी. औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन – आईआईपी) के अनुसार, कई राज्यों और उत्पादन केंद्रों में विनिर्माण गतिविधि फिर से शुरू हो गई है, हालांकि इसकी गति धीमी ही है. अर्थव्यवस्था के 23 में से 15 सेक्टर महामारी के पहले से ऊपर के स्तर पर हैं. त्योहारी सीजन ने भी खपत को बढ़ाने में मदद की है. अर्थव्यवस्था की असली परीक्षा पूर्ण उत्पादन को फिर से शुरू करने की इसकी क्षमता और महामारी से पहले के स्तर की खपत की पुनःप्राप्ति की होगी. फ़िलहाल यह संभव लगता है क्योंकि बाजार, विनिर्माण जगत और उपभोक्ता, सभी निर्धारित प्रतिबंधों के भीतर अपने संबंधित कार्यों का समन्वय करने के लिए तैयार हैं.
अब यह केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वे इस अवसर के अनुसार आगे बढ़ कर काम करें तथा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सुधारों की एक नयी श्रृंखला पेश करें और नाटकीय घोषणाओं के लिए बजट तक की प्रतीक्षा करने से बचें. दुर्भाग्य से, यही वह बिंदु है जहां सरकारों की तरफ से होने वाली प्रतिक्रिया की कमी है. और इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि राजनीतिक सभाओं, रैलियों और प्रचार की सभाओं को आयोजित करने की खतरनाक रूप से जल्दबाजी की जा रही है. चूंकि चुनाव घोषित होने के बाद किये गए खर्च पर कई तरह की सीमाएं लागू हैं, अतः गोवा, पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आसन्न विधानसभा चुनावों के लिए मतदान कार्यक्रम की घोषणा के पहले-पहले हर राजनीतिक दल सामूहिक सभाओं को आयोजित करने की होड़ में लगा हुआ है.
राजनीतिक रैलियां बंद की जाएं
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी स्वयं प्रधानमंत्री की चेतावनियों से बेपरवाह दिखते हुए रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन करती जा रही है, जिसमें भारी भीड़ शामिल हो रही है. चुनाव आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय को राजनीतिक दलों की इस तरह की सभाओं को गंभीरता से देखना चाहिए और उन्हें प्रतिबंधित करना चाहिए. वास्तव में, पहले के कुछ मौकों पर कलकत्ता उच्च न्यायालय और मद्रास उच्च न्यायालय ने रैलियों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए राज्य चुनाव आयोगों की जमकर खिंचाई भी की है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ओमीक्रॉन की स्थिति को देखते हुए चुनाव को एक महीने के आसपास के लिए स्थगित करने का भी सुझाव दिया है, हालांकि, यह कोई व्यवहार्य अथवा स्वागत योग्य समाधान नहीं मालूम पड़ता.
ओमीक्रॉन राजनीतिक भावनाओं का सम्मान नहीं करता है, और न ही यह लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा की वजह से दूर रहने वाला है. लेकिन पार्टियों और चुनाव आयोग को अपना-अपना काम करना चाहिए.
जब तक यह वायरस संचारित होने, अपने आप को दोहराने और लोगों को संक्रमित करने (ट्रांसमिट, रेप्लिकेट एंड इन्फेक्ट) में सक्षम है, तब तक इसके और अधिक संस्करणों का विकास होता ही रहेगा. किसी भी वायरस के नए रूप में विकास को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका इसके प्रसार और लोगों को संक्रमित करने की इसकी क्षमता को सीमित करना है. इसे सबसे अच्छी तरह से तभी किया जा सकता है जब भीड़भाड़ – चाहे वह सामाजिक, धार्मिक या फिर राजनीतिक किसी भी कारण से क्यों न हो – से बचा जाये.
ख़बरों के अनुसार कांग्रेस पार्टी ने कथित तौर पर अगले पंद्रह दिनों तक रैलियां नहीं करने का फैसला किया है. कांग्रेस की रैलियों में नगण्य जन-उपस्थिति को देखते हुए, यह निर्णय एक वास्तविक महामारी विरोधी उपाय के बजाय अपनी इज्जत बचाने की कवायद अधिक प्रतीत होती है. फिर भी, पार्टी की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए. अभी इस बात में संदेह है कि क्या अन्य राजनीतिक दल भी इस चलन का अनुसरण करेंगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में पंजाब में एक बड़ी रैली की थी, जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए थे. उनकी इस रैली का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वे बिना मास्क पहने खांसते नजर आ रहे हैं. उनके द्वारा अपने हालिया ट्वीट में अपने-आप को कोविड से प्रभावित घोषित करना और उनके संपर्क में आने वाले लोगों को अलग-थलग करने के लिए कहना, एक बड़ी लापरवाही और गैर-जिम्मेदार होने से कम नहीं है.
(लेखक ‘ऑर्गनाइजर’ पत्रिका के पूर्व संपादक हैं. वे @seshadrichari से ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.)
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