हरियाणा चुनाव हमेशा से जाट एवं गैर जाट राजनीति इर्द-गिर्द होते रहे हैं. 1991, 1996, 1999 के बाद से सभी विधानसभाओं में हमेशा जाट गैर जाट मुख्यमंत्री बनाने तथा जाट, पंजाबी, बनिया और ब्राह्मण जाति ने चुनाव में प्रमुख भूमिका निभाई है. हरियाणा में दलित और पिछड़े हमेशा से पार्टियों के वोट बैंक की तरह ही काम करते रहे और हरियाणा राजनीति में दलित-ओबीसी मुख्यमंत्री की दौड़ में प्रभावी भूमिका में कभी नहीं रहे, लेकिन अशोक तंवर के कांग्रेस अध्यक्ष बनने तथा राहुल गांधी का सहयोग होने से पहली बार दलितों में उत्साह का माहौल रहा लेकिन ठीक चुनाव से पहले हटाने से दलितों में कांग्रेस नेतृत्व के प्रति नाराज़गी भी है.
कांग्रेस नहीं भुना पाई जनता का विश्वास
2004 में कांग्रेस गठबंधन की वापसी 10 सालों के बाद केंद्र सरकार के तौर पर हुई इसका प्रभाव 2005 के हरियाणा विधानसभा के चुनावों में भी हुआ कांग्रेसी चुनाव में भारी बहुमत से 67 सीट जीतकर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई. इस चुनाव में आईएनएलडी चौटाला और बीजेपी गठबंधन के खिलाफ भारी असंतोष का कांग्रेस को फायदा मिला.
2009 के कांग्रेस की केंद्र में दोबारा सरकार बनने से अक्टूबर 2009 के हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस अपना लोकसभा जैसा प्रदर्शन दोबारा नहीं कर पाई. फिर भी कांग्रेस ने दोबारा से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चीफ मिनिस्टर के तौर पर नियुक्त किया, लेकिन हुड्डा के दोबारा मुख्यमंत्री बनने से वरिष्ठ साथियों में भारी नाराज़गी से 2014 के चुनाव से पहले कांग्रेस के प्रमुख लीडर चौधरी वीरेंद्र सिंह, राव इंदरजीत सिंह, धर्मवीर सिंह पार्टी को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए .
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मई 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को भारी पराजय का सामना करना पड़ा , हरियाणा विधानसभा की तैयारी हेतु फरवरी 2014 में अशोक तंवर को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया. जातीय संतुलन बनाने के लिए , अक्टूबर 2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव जाट गैर जाट की रणनीति के तहत बीजेपी ने पहली बार हरियाणा में सरकार बनाने में कामयाबी बहुमत से जीत हासिल की, बीजेपी की जीत में प्रमुख भूमिका मोदी लहर, गैर जाट मतदाताओं का ध्रुवीकरण, 10 साल के हुड्डा सरकार के खिलाफ असंतोष की रही.
बीजेपी ने मारी बाजी
मई 2019 के चुनाव में लोकसभा की सभी सीटों पर हरियाणा में बीजेपी ने जीत हासिल की है इस कारण बीजेपी हरियाणा में अपनी जीत को लेकर उत्साह में है. सबसे बड़ा कारण वर्तमान में हरियाणा में विपक्षी पार्टियों के बिखराव का दौर है.आईएनएलडी करीब-करीब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है दोनों भाइयों के परिवारिक झगड़े ने तथा चौटाला परिवार के जेल में होने के कारण इसके द्वारा कोई भी चुनौती तथा विकल्प बीजेपी का नहीं दे पा रही है. 16 अक्टूबर को अशोक तंवर ने दुष्यन्त को अपना समर्थन देने से जेजेपी की स्थिति थोड़ी मजबूत होगी आईएनएलडी तथा जेजेपी के लीडरों का बीजेपी में जाने का दौर भी पिछले 5 महीनों से लगातार जारी है.
कांग्रेस में तनाव, बीजेपी के हाथ में कमान
कांग्रेस की राजनीतिक परिस्थिति इस समय सबसे ज्यादा विकट है. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अशोक तंवर के द्वारा बीजेपी सरकार को हर मोर्चे पर पिछले 5 सालों में घेरकर रखना का प्रयास किया गया लेकिन ठीक चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा अपना प्रदेश अध्यक्ष बदलने तथा हुड्डा को चुनाव की कमान देने से कांग्रेस में आपसी तनाव चरम सीमा पर है.
केंद्रीय कांग्रेस रणनीतिकारों के द्वारा चुनाव में जिस प्रकार से अशोक तंवर को अप्रासंगिक करने का प्रयास किया गया है उससे दलित तथा पिछड़ों के वोट पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि पिछले 5 सालों में अशोक तंवर भावी मुख्यमंत्री के तौर पर हमेशा से दलित और पिछड़ों समुदाय में से बनने हेतु चर्चा का विषय बने हुए थे. कुमारी शैलजा को अध्यक्ष बनाने से भी हरियाणा के दलित वोट पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा. कांग्रेसी रणनीतिकार ने दोबारा हुड्डा को अघोषित सीएम उम्मीदवार के तौर पर आगे करके बीजेपी को दोबारा गैर जाट वोटरों के ध्रुवीकरण का मौका पूरी तौर पर दे दिया है. इस समय हरियाणा में जाट मतदाता पूरी तरह से ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस- आईएनएलडी -जेजेपी – बीजेपी में बिखर चुका है जो कि पिछले सभी चुनाव में एकतरफा मतदान करने के लिए जाना जाता रहा है.
इस समय कांग्रेस रणनीतिकारों को नए जातीय समीकरण तथा नए नेतृत्व के साथ चुनाव में जाना चाहिए था लेकिन 2009 और 2014 की गलतियों से कांग्रेस नेतृत्व ज्यादा सबक नहीं सीख पाया है. इस समय राज्य राजनीति भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अनुकूल बिल्कुल भी नहीं है. कांग्रेस नेतृत्व के द्वारा, इस समय राज्य राजनीति में बीजेपी ने सारे जातीय तथा क्षेत्रीय समीकरणों को बदल कर रख दिया है. वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस को भी नए जातीय तथा सामाजिक समीकरणों के साथ चुनावी मैदान में जाना चाहिए था.
पंजाबी-बनिया की पार्टी
वर्तमान में हरियाणा बीजेपी की पहचान शहरी पंजाबी- बनिया की पार्टी नहीं रही है. सबसे ज्यादा मनोहर लाल खट्टर सरकार का सरकारी नौकरियों के मामले में पारदर्शिता को लेकर चर्चा हो रही है. नौकरियों के मामले में भाई भतीजावाद जातीय प्रभाव तथा खरीद-फरोख्त को लेकर हरियाणा हमेशा से बदनाम रहा है. चौटाला परिवार स्वयं नौकरी घोटाले में 10 साल की सज़ा भी भुगत रहा है. किसी भी बड़े भ्रष्टाचार का मामला भी पांच सालों में मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों पर नहीं हुआ. इसका लाभ भी बीजेपी को वर्तमान विधानसभा चुनाव में मिल रहा है.
इस समय बीजेपी हरियाणा में एक बहुमत के करीब (53- 58 सीट) चल रही है. यदि चुनाव से 2 या 3 दिन पहले मतदाताओं में बीजेपी की गैर जाट मतदाताओं के ध्रुवीकरण लहर तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति काम कर गई , तो हरियाणा विधानसभा में बीजेपी अपनी ऐतिहासिक जीत ( 64-74 सीट ) दर्ज कर सकती है.
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केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व को हरियाणा इलेक्शन भी राजस्थान और मध्य प्रदेश की तर्ज पर लड़ना चाहिए था. जिस प्रकार से ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट ने 5 साल तक मध्यप्रदेश और राजस्थान में ज़मीनी स्तर पर संगठन में कार्य करके कार्यकर्ताओं और युवाओं को जोड़ने कार्य किया उसी प्रकार अशोक तंवर हरियाणा में 5 सालों से कर रहे थे.
(डॉ संजय कुमार जाकिर हुसैन इवनिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं, यह लेख उनके निजी विचार हैं)