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Tuesday, 19 November, 2024
होममत-विमतराहुल गांधी के निष्कासन में, मोदी-शाह ने कांग्रेस के लिए चुनावी जाल बिछाया

राहुल गांधी के निष्कासन में, मोदी-शाह ने कांग्रेस के लिए चुनावी जाल बिछाया

रेणुका चौधरी की मानहानि के मुकदमे की धमकी तो बस शुरुआत है. आने वाले हफ्तों में, उम्मीद है कि गांधी परिवार को इंप्रेस करने के लिए कांग्रेस के कई नेता मोदी के खिलाफ टिप्पणी करेंगे.

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2009 में, जब लोकसभा चुनाव समाप्त हो गए थे और परिणाम का इंतजार था, तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली आए थे. जब वो सोनिया गांधी से मिल लिए उसके बाद मैं आंध्र भवन में उनसे मिलने पहुंचा. “आपने उन्हें कितनी सीटें बताईं?” मैंने उनसे पूछा. उन्होंने जवाब दिया- तैंतीस. “क्या सचमुच? 42 में से 33! क्या आपने सच में उन्हें ऐसा बताया? मुझे विश्वास नहीं हो रहा था इसलिए मैंने उनसे चौंकते हुए पूछा. “मैंने 34 कहा होता, लेकिन मैं खम्मम के बारे में निश्चित नहीं हूं,” उन्होंने रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा. खम्मम में कांग्रेस उम्मीदवार रेणुका चौधरी थीं, जो रेड्डी की विरोधी थीं और जो सोनिया गांधी से वफादारी दिखाया करती थीं.

जब नतीजे आए, तो रेड्डी ने धमाका किया. कांग्रेस ने ठीक 33 सीटें जीतीं और रेणुका चौधरी हार गईं. बाद में सोनिया गांधी ने उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया. 2018 में राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, चौधरी राजनीति के हाशिये पर आ गईं. वह गुरुवार को राजनीतिक सुर्खियों में फिर से आईं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “क्लासलेस मेगालोमैनियाक” कहा और 2018 में राज्यसभा में एक बहस के दौरान उन्हें रावण की बहन सूर्पनखा के रूप में संदर्भित करने के लिए उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने का इरादा जताया.

उन्हें पता है कि गांधी परिवार को किस तरह से खुश करना है क्योंकि पीएम ने कभी सूर्पनखा शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. भले ही उन्हें ऐसा लगता हो, लेकिन उन्होंने संसद में काफी समय बिताया है और उन्हें अनुच्छेद 105 जो सांसदों को संसद में उनके कहने के लिए किसी भी न्यायिक कार्यवाही से छूट देता है के बारे में पता है.

रेणुका चौधरी की मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी और मानहानि के मुकदमे की धमकी तो बस शुरुआत है. आने वाले दिनों और हफ्तों में, हो सकता है कि गांधी परिवार को खुश और इंप्रेस करने की कोशिश करने के लिए कई कांग्रेस नेता मोदी के खिलाफ और तीखी टिप्पणियां करेंगे.

पहली नजर में, राहुल गांधी की सजा के बाद लोकसभा सदस्य के रूप में निष्कासन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक जोखिम भरा जुआ लग सकता है. इसने कांग्रेस को भड़का दिया है, लगभग पूरे विपक्ष को एक साथ ला दिया है और विपक्ष को मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर लोकतांत्रिक विरोध को दबाने का आरोप लगाने के लिए और अधिक गोला बारूद दिया है. भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद की बात में थोड़ा दम हो सकता है कि राहुल गांधी कर्नाटक चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के लिए एक “शहीद” के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि कांग्रेस ने अयोग्यता से बचने के लिए उनकी सजा पर रोक लगाने की कोई तत्परता नहीं दिखाई.

वो अनाड़ी तो हैं नहीं कि वो सोचें पीएम मोदी और अमित शाह इतने अति आत्मविश्वास और अहंकारी हो गए हैं कि उन्होंने इन पर विचार नहीं किया. फिर उन्होंने गांधी को ‘शहीद’ क्यों बनने दिया? इसके कम से कम पांच कारण हैं.


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कर्नाटक चुनाव

दक्षिणी राज्यों में भाजपा की हालत इतनी ठीक नहीं है. पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत चेहरे बीएस येदियुरप्पा के बारे में अभी भी कुछ कहना मुश्किल है. क्योंकि पार्टी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर उन्हें संदेश दिया है.

बोम्मई के खराब शासन रिकॉर्ड को देखते हुए, भाजपा जाति अंकगणित सही करने की पूरी कोशिश कर रही है, मुसलमानों की कीमत पर वोक्कालिगा और लिंगायत का आरक्षण कोटा बढ़ा रही है. मुसलमानों का 4 प्रतिशत कोटा शुक्रवार को खत्म कर दिया गया है.

यह पार्टी की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रणनीति में भी फिट बैठता है, जो अब तक टीपू सुल्तान, तथाकथित ‘लव जिहाद’ आदि पर केंद्रित था. हालांकि भाजपा नेतृत्व आश्वस्त महसूस नहीं कर रहा है. अधिकांश अन्य राज्यों के विपरीत, डीके शिवकुमार के नेतृत्व वाली कांग्रेस भ्रष्टाचार, कुशासन और अन्य मुद्दों पर बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार पर दबाव बनाए रखते हुए एक चुनौती बनी हुई है. भाजपा शिवकुमार बनाम सिद्धारमैया की प्रतिद्वंद्विता के बढ़ने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन अभी तक उन्होंने सत्ताधारी पार्टी को उपकृत करने का कोई संकेत नहीं दिया है.

स्थानीय मुद्दों पर लड़ा गया चुनाव और राज्य के नेताओं पर केंद्रित चुनाव भाजपा को उपयुक्त नहीं पड़ता . इसलिए उसे राहुल गांधी के “शहीदी” (उन्हें लोक सभा से अयोग्य बनाने के कारण) पर केंद्रित चुनाव से समस्या नहीं होगी. उत्तेजित कांग्रेसियों से भी मोदी को निशाना बनाने के लिए चुनिंदा शब्दों का इस्तेमाल करने की उम्मीद की जा सकती है. ‘पीड़ित’ राहुल गांधी बनाम ‘भ्रष्ट’, ‘कायर’, ‘निरंकुश’ मोदी- कांग्रेस नेताओं द्वारा अब तक इस्तेमाल किए गए शब्द- एक चुनावी आख्यान है जिसे भाजपा इस कर्नाटक चुनाव में देखना पसंद करेगी.

राहुल का अडाणी पर फोकस

इस साल कर्नाटक या उसके बाद के विधानसभा चुनावों में जीत या हार, राहुल गांधी के 2024 के लोकसभा चुनाव तक मोदी-केंद्रित अभियान को जारी रखने की संभावना है. यदि यह 2019 में राफेल सौदा था, तो यह 2024 में हिंडनबर्ग रिपोर्ट होगी. यदि निशाना 2019 में अनिल अंबानी थे, तो यह 2024 में गौतम अडाणी होंगे. अगले लोकसभा चुनाव में पुराने ‘चौकीदार चोर है’ अभियान की एक नई विविधता की अपेक्षा करें.

राहुल गांधी को एक बार यह विश्वास हो जाने के बाद हार मानने के लिए नहीं जाना जाता है कि वह सच्चाई और न्याय के लिए लड़ रहे हैं. लोकसभा से अयोग्यता मोदी के खिलाफ लड़ने के उनके संकल्प को केवल बढ़ावा देगी. मोदी-शाह द्वारा गांधी को ‘शहीद’ होने देने का यह दूसरा कारण है. उन्हें कांग्रेस पार्टी के 2019 के चुनाव अभियान को दोहराने की उम्मीद करनी चाहिए.

तीसरे कारण में ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है. मोदी-बनाम-राहुल चुनाव अभियान सरकार की विफलताओं को अनदेखा करना सुनिश्चित करेगा. किसानों की आय दोगुनी करने के वादे, बेरोजगारी, महंगाई या यहां तक कि लद्दाख में चीनी घुसपैठ के बारे में कोई सवाल नहीं पूछेगा. वे व्यक्तित्वों की लड़ाई में परिधीय मुद्दे बन जाएंगे. जाहिर है, मोदी-शाह को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

राहुल गांधी की ‘शहादत’ पर मोदी-शाह के फैसले का चौथा कारण यह तथ्य हो सकता है कि कांग्रेस नेता द्वारा ओबीसी का कथित अपमान विपक्षी नेता के अपनी सजा के कारण पीड़ित होने के दावे की तुलना में अधिक आकर्षक चुनावी रणनीति बनाता है. एक अदालत द्वारा और निर्धारित कानूनों के अनुसार अयोग्यता.

‘नकली’ विपक्षी एकता

गांधी की अयोग्यता के बाद ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे प्रतिद्वंद्वियों द्वारा दिए गए समर्थन से कांग्रेस को प्रोत्साहन मिला है. भाजपा के रणनीतिकारों को पता होगा कि यह धारणा कितनी गलत है. गांधी के कथित उत्पीड़न ने उन्हें फिर से विपक्षी खेमे में मोदी के प्रमुख चुनौतीकर्ता बना दिया है और ये बनर्जी और केजरीवाल को नागवार गुजरेगा. गांधी के दोषी ठहराए जाने से पहले ही बनर्जी को यकीन हो गया था कि बीजेपी उन्हें हीरो बनाने की कोशिश कर रही है.

इससे पहले कि हम समाप्त करें, आइए यह भी सोचें कि अडाणी पर राहुल गांधी का ध्यान महाराष्ट्र में उनके प्रमुख सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार को किस तरह मुश्किल में डाल देगा. अडाणी को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के विरोध से एनसीपी दूर रही है.

अब गांधी के मोदी-अडाणी और उसके प्रमुख सहयोगी एनसीपी पर केंद्रित कांग्रेस के चुनाव अभियान की अगुवाई करने के बारे में सोचें, जो कवर के लिए डक रहा है.

मोदी और शाह बहुत खुश हैं क्योंकि कांग्रेस राहुल गांधी की सजा और लोकसभा सदस्यता से निष्कासन पर बाजीगरी करने की तैयारी कर रही है. पीएम मोदी के लिए यह चित-भी-मेरी-पट-भी-मेरी तरह की स्थिति है.

(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन:पूजा मेहरोत्रा)


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