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Thursday, 21 November, 2024
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कॉमन एंट्रेंस टेस्ट हाई कट-ऑफ का मसला तो हल करता है, लेकिन कई दूसरे सवाल खड़े कर देता है

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से हम अपनी परीक्षाएं डिज़ाइन करते हैं, उससे कोचिंग उद्योग को फलने-फूलने का मौक़ा मिलता है; NEET, JEE और अन्य दाख़िला परीक्षाओं में यही हुआ है.

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कॉलेज दाख़िलों के लिए चिल्ला-चिल्लाकर 100 प्रतिशत कट-ऑफ की बात करने वाली सुर्ख़ियां अब शांत हो जाएंगी. इसके साथ ही साल दर साल भारत के शीर्ष संस्थानों में एक सीट के लिए, इस दौड़ में हिस्सा लेने वाले लाखों पेरेंट्स और छात्रों का फोकस, चिंता, और जुनून एक परीक्षा पास करने की ओर मुड़ जाएगा. केंद्रीय यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट या सीयूईटी का आगमन हो चुका है.

2020 की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसकी घोषणा करने के बाद, नरेंद्र मोदी सरकार ने आख़िरकार सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाख़िले के लिए, एक कॉमन दाख़िला परीक्षा लागू करने का फैसला किया है, जिनमें दिल्ली यूनिवर्सिटी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, और इलाहबाद यूनिवर्सिटी आदि शामिल हैं.

दिमाग़ को चकरा देने वाले कट-ऑफ अंक, अब कॉलेज में दाख़िले के इच्छुक छात्रों को ख़ौफज़दा नहीं करेंगे, और उसकी बजाय एक ऐसी दाख़िला परीक्षा उन्हें सीट दिलाएगी, जो केवल उनकी योग्यता के आधार पर उनका आंकलन करेगी. लेकिन पुरानी प्रणाली की जगह जो नया सिस्टम आया है, वो आवश्यक रूप से सभी बुराइयों से पाक नहीं है. एक बड़े सुधार के तौर पर सीयूईटी के, भारत के उच्च शिक्षा ईकोसिस्टम के लिए दूरगामी प्रभाव होंगे. और यही कारण है कि ये दिप्रिंट का न्यूज़मेकर ऑफ दि वीक है.

एक और दाख़िला ‘परीक्षा’ हो सकता है

हालांकि सीयूईटी हाई कट-ऑफ की समस्या का सबसे तर्कसंगत समाधान नज़र आता है, लेकिन एक क़दम पीछे हटकर फिर से सोचिए, कि क्या हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में एक और दाख़िला परीक्षा जोड़ने की ज़रूरत है? मेडिकल कॉलेजों में दाख़िले के लिए नेशनल एलिजिबिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट), इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए ज्वॉयंट एंट्रेंस एग्ज़ाम (जेईई), हॉस्पिटैलिटी कोर्सेज़ के लिए एक होटल प्रबंधन परीक्षा, क़ानूनी शिक्षा के लिए लॉ स्कूल एडमिशन टेस्ट (एलसैट), क्या हमें अब बीए, बीएससी, और बीकॉम आदि के लिए भी एक इम्तिहान चाहिए?

देश में दो सबसे बड़ी दाख़िला परीक्षाएं नीट और जेईई, पहले ही एक हालिया गड़बड़ी से गुज़र चुकी हैं. नीट को इस आधार पर बैन करने की मांग उठी, कि ये छात्रों के एक ख़ास वर्ग- मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम- की हिमायत करती है जो कोचिंग का ख़र्च वहन कर सकते हैं, और जेईई परीक्षा एक चीटिंग घोटाले में फंस गई थी.

औसतन, क़रीब 13 लाख छात्र नीट, और 12 लाख जेईई परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन हर साल क़रीब 1 करोड़ छात्र 12वीं की बोर्ड परीक्षा पास करते हैं. इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए, अगर नई परीक्षा व्यवस्था सही से नहीं चली, तो उसका असर भी उतना ही बड़ा होगा.

बहुत लोगों को याद नहीं होगा लेकिन सीयूईटी के जैसी एक और परीक्षा- सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीयूसीईटी)- अभी हाल तक वजूद में थी. वो 2010 में 12 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाख़िलों के लिए शुरू की गई थी. इसलिए, सीयूईटी एक तरह से सीयूसीईटी का ही एक संशोधित रूप है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

तो क्या सीयूईटी भारत की शिक्षा प्रणाली में कुछ इज़ाफा करती है? विशेषज्ञ इसकी प्रासंगिकता को लेकर बंटे हुए हैं.

शिक्षाविदों ने एक बड़ी चिंता ये जताई है, कि ये परीक्षा कोचिंग उद्योग के लिए गुंजाइश पैदा कर सकती है, क्योंकि छात्रों को 12वीं क्लास की बोर्ड परीक्षाओं के बाद तैयारी करनी होगी.

गुरुग्राम की एक निजी स्कूल शिक्षिका, जिन्हें हाई स्कूल के छात्रों को पढ़ाते हुए एक दशक हो गया है, कहती हैं, ‘बोर्ड परीक्षा में बैठने के बाद छात्रों को, कॉलेज में दाख़िले के लिए एक और परीक्षा देने की ज़रूरत नहीं है. इससे सिर्फ उनकी चिंता में इज़ाफा होगा, और वो कोचिंग कक्षाओं का सहारा लेंगे, जैसा वो नीट और जेईई के लिए करते हैं, और हम ऐसा नहीं चाहते’.

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस-चांसलर और शिक्षाविद, दिनेश सिंह भी परीक्षा को लेकर संशय व्यक्त करते हैं. ‘हमारा पिछला सारा रिकॉर्ड इस बात का संकेत देता है, कि कोचिंग की मांग बढ़ जाने की पूरी संभावना है, लेकिन हम पहले से राय नहीं बना सकते. बहुत कुछ इसपर निर्भर करेगा कि परीक्षा को कैसे डिज़ाइन करते हैं. जिस तरह से हम अपनी परीक्षाएं डिज़ाइन करते हैं, उससे कोचिंग उद्योग को फलने-फूलने का मौक़ा मिलता है. नीट, जेईई, और अन्य दाख़िला परीक्षाओं में ऐसा ही देखने में आया है’.

बिज़नेस स्टैण्डर्ड के एक संपादकीय लेख में, परीक्षा की नेचर के बारे में एक बात की गई है. संपादकीय में कहा गया, ‘सबसे बड़ा मुद्दा जिसे सीयूईटी को देखना होगा, वो है परीक्षा की नेचर. अगर इसे वास्तव में अंडरग्रेजुएट पढ़ाई की योग्यता और क्षमता परखने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, तो इसे एक ही तरह के परिवर्तनशील प्रश्नों के ढर्रे पर चलने से बचना होगा, क्योंकि उससे सवाल-जवाब का एक ऐसा मानदंड तैयार हो जाएगा, जिसे छात्रों को केवल रटकर सीखना होगा’.

सीयूईटी पर टीओआई के एक संपादकीय में भी, इस बात को स्वीकार किया गया है, कि परीक्षा में ‘शुरुआती परेशानियां’ आएंगी, यूजीसी को उन्हें जल्द ही ठीक करना होगा.

लेकिन, इन शंकाओं पर बात करते हुए, कि परीक्षा पास करने के लिए छात्रों को मजबूरन कोचिंग का सहारा लेना पड़ेगा, राष्ट्रीय टेस्टिंग एजेंसी के महानिदेशक विनीत जोशी ने स्पष्ट किया है, कि ये परीक्षा 12वीं कक्षा के सिलेबस पर आधारित होगी, और इसमें ‘मॉडल सिलेबस’ इस्तेमाल किया जाएगा, जिसमें राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटीई) और प्रदेश बोर्ड्स दोनों से सवाल शामिल किए जाएंगे.

यूजीसी अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने भी स्पष्ट किया है, कि परीक्षा में केवल छात्रों के बेसिक ज्ञान और योग्यता को परखा जाएगा.

लेकिन बोर्ड में न्यूनतम अंक पाने के मुक़ाबले, सीयूईटी परीक्षा लिखने का पात्रता मापदंड एक ऐसा फेक्टर है, जिसे अभी भी स्पष्टता की ज़रूरत है. यूजीसी नियमों के मुताबिक़, परीक्षा में बैठने के लिए छात्रों को किसी न्यूनतम पास प्रतिशत की ज़रुरत नहीं है, उन्हें सिर्फ इसे पास करना है. लेकिन अलग अलग विश्वविद्यालय एक न्यूनतम प्रतिशत निर्धारित कर सकते हैं, जिसपर वो किसी छात्र को दाख़िला देंगे, जिसके बहुत नीचा कहने की संभावना है. मसलन, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने यहां दाख़िले के लिए, सीयूईटीअंकों के अलावा 12वीं क्लास में, 40 प्रतिशत अंकों का मानदंड रखने का फैसला किया है.

तो क्या इससे छात्र बोर्ड परीक्षाओं में केवल 40 प्रतिशत अंक लाने पर ध्यान लगाएंगे, और उनकी तवज्जो सीयूईटी की ओर मुड़ जाएगी? विशेषज्ञों का कहना है कि ये एक संभावना है, लेकिन आने वाला समय ही बताएगा कि ये कैसे चलता है.

भोपाल के कार्मेल कॉनवेंट स्कूल की एक टीचर निशा ने कहा, ‘12वीं क्लास में अच्छे अंक लाने का संबंध, सिर्फ किसी अच्छे कॉलेज में दाख़िला लेने से नहीं है, ये भविष्य के लिए छात्रों के अहंकार को भी बढ़ावा देते हैं, और उन्हें लगता है कि उनके भीतर ऐसा कुछ है, कि वो जीवन में सफल हो सकते हैं. तो क्या प्रवेश परीक्षा 12वीं क्लास के अंकों पर उनके फोकस को कम करेगी, मुझे ऐसा नहीं लगता, लेकिन समय ही बताएगा कि ये कैसे चलता है’.

तो फिर सवाल ये उठता है कि अगर परीक्षा नहीं तो फिर क्या? शिक्षा प्रणाली के पास भी इसका कोई परफेक्ट जवाब नहीं है. ऐसा लगता है कि नीति निर्धारक सब कुछ आज़मा लेना चाहते हैं, जब तक कि आख़िरकार कोई तरीक़ा काम नहीं कर जाता. जहां तक सीयूईटी का सवाल है, तो जैसा कि फैज़ कहते हैं…‘हम देखेंगे’.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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