scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमतCM योगी और अखिलेश के अपने-अपने दावे, क्या लोकसभा चुनाव में UP में ‘चमत्कार’ होगा

CM योगी और अखिलेश के अपने-अपने दावे, क्या लोकसभा चुनाव में UP में ‘चमत्कार’ होगा

सीएम योगी आदित्यानाथ उत्तर प्रदेश की 80 की 80 सीटें जीतने तो अखिलेश यादव दलित, महिलाओं, पिछड़ों और मुसलमानों के दम पर भाजपा के शासन की अंत की बात कर रहे हैं.

Text Size:

लोकसभा के चुनाव अभी कम से कम एक साल दूर हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में सत्तापक्ष व विपक्ष की उनसे जुड़े दांव-पेचों की हडबड़ी देखकर लगता है कि वे सिर पर आ गये हैं. दोनों ही पक्ष उनमें एक ऐसे चमत्कार को सुनिश्चित बता रहे हैं, जो 1977 के बाद से अब तक कभी नहीं हुआ है.

पिछले दिनों राज्य विधानपरिषद की पांच खंड स्नातक व शिक्षक सीटों के चुनाव में विपक्ष का खाता तक न खुलने से जहां सारे भाजपा नेता गदगद हैं, वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी ने भी दावा कर दिया है कि लोकसभा चुनाव जब भी हों, भाजपा राज्य की सभी 80 सीटें जीत लेगी. इससे पहले भाजपा 75 सीटें या 2019 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही थी.

दूसरी ओर विधानसभा में विपक्ष के नेता और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ‘नसीहत’ दे रहे हैं कि भाजपा योगी जैसा कोई मुगालता न ही पाले तो ठीक क्योंकि प्रदेशवासी उससे इतने त्रस्त हैं कि उसको 80 की 80 सीटें हरा देंगे.

‘ठीक है, लेकिन बुरी तरह बिखरे विपक्ष में वे किस पार्टी को जिताएंगे?’ पूछने पर पहले प्रतिप्रश्न सामने आता है: भाजपा का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन कुछ कम बिखरा है क्या? फिर दावा: भाजपा को हराने का संकल्प ले चुके लोग अपने वक्त पर यह भी तय कर लेंगे कि उन्हें किसे जिताना है. याद कीजिए, 1977 में उन्होंने कांग्रेस को हराना तय किया तो उस जनता पार्टी को जिता दिया था, जो तब तक ठीक से गठित तक नहीं हुई थी. तब अविभाजित उत्तर प्रदेश की 85 सीटों पर किसी और पार्टी का खाता नहीं खुला था. उसका बनाया क्लीन स्वीप का रिकार्ड अब तक अटूट है, जबकि भाजपा उक्त चुनाव में सभी सीटें हारने के कांग्रेस के रेकार्ड की बराबरी करने वाली है.

लेकिन निष्पक्ष प्रेक्षकों को न योगी को अभीष्ट चमत्कार मुमकिन दिख रहा है, न अखिलेश को.

कारण? प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का चमत्कार तो भाजपा 2014 व 2019 के लोकसभा चुनावों की मोदी लहर या कई पूर्ववर्ती चुनावों की राम लहर के बावजूद नहीं कर पाई थी. 2014 में उसने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए इनमें से 71 लोकसभा सीटें जीती थीं, जो 2019 में 62 हो गई थीं. हां, दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल ने भी जीती थीं.


यह भी पढे़ं: सत्ताएं बदलती हैं, नियति नहीं बदलती’-‘बेस्ट’, ‘फिटेस्ट’ और ‘रिचेस्ट’ के तंत्र में बदल रहा हमारा गणतंत्र


भाजपा की सीटें लगातार घटीं, लेकिन अखिलेश हराने में रहे नाकाम

विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2017 में उसने रेकार्ड 312 सीटें जीती थीं, लेकिन 2022 के चुनाव में महज 255 जीत पाई. सवाल है कि घटत के इस सिलसिले को तोड़कर 2024 में वह 80 सीटें कैसे जीत पायेगी? उसके लोग कहते हैं, ‘मोदी है तो मुमकिन है’ लेकिन तटस्थ जानकार उनसे इत्तेफाक नहीं रखते.

यह भी अब तक शायद ही कोई समझ पाया हो कि जो अखिलेश 2014, 2017, 2019 और 2022 के लोकसभा व विधानसभा चुनावों में सारा कसबल लगाने के बावजूद भाजपा को सत्ता से बेदखल तक नहीं कर पाये, 2024 में उसका सूपड़ा साफ कर देने का सपना कैसे देख रहे हैं?

यों, न भाजपाइयों के पास योगी के दावे के समर्थन में तर्कों की कमी है, न सपाइयों के पास अखिलेश के दावे के समर्थन में. भाजपाई कहते हैं कि अपने कब्जे वाली पांच दर्जन से ज्यादा सीटों पर तो भाजपा के समक्ष कोई चुनौती ही नहीं है, जबकि मिर्जापुर और राबर्ट्सगंज सीटों पर काबिज उसका सहयोगी अपना दल भी आश्वस्त है. बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, अमरोहा, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, गाजीपुर, घोसी, जौनपुर और लालगंज की सीटें उसे बसपा से तो संभल, मुरादाबाद व मैनपुरी सपा से और रायबरेली सीट कांग्रेस से छीननी है.

इनमें मुश्किल से दर्जन भर सीटों पर ही कड़ा मुकाबला है, जिसमें पार पाना उसके लिए कतई कठिन नहीं है. फिर भी उसने इन्हें जीतने का ताना-बाना अभी से बुन डाला है. पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा व गृहमंत्री अमित शाह के अलावा राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष व पार्टी की प्रदेश इकाई तो बेहद समन्वयपूर्वक इस अभियान में लगी ही हैं, चार केंद्रीय मंत्रियों-नरेंद्र सिंह तोमर, डाॅ. जितेन्द्र सिंह, अश्विनी वैष्णव और अन्नपूर्णा देवी को भी इन्हें जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

भाजपाई यह भी कहते हैं कि लोकसभा उपचुनावों में सपा से आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा सीटें छीनकर और मैनपुरी में सपा को पूरी ताकत लगाने को मजबूर कर आत्मविश्वास से भरी भाजपा ने जता दिया है कि उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है. 2019 में अमेठी में राहुल को हराने का असंभव काम भी वह कर ही चुकी है.

भाजपा यादवों के वोटबैंक में सेंध लगाने की जुगत में

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का दावा है कि 2024 में यदुवंशियों (यादव) और रविदासवंशियों (जाटव) के साथ-साथ पसमांदा मुसलमान भी भाजपा को वोट देंगे. इसके लिए पार्टी के संगठनात्मक सर्वे में इन समुदायों की बड़ी संख्या वाले जिन 22 हजार बूथों को ‘काफी कमजोर’ माना गया था, उन्हें मजबूत करने के अतिरिक्त प्रयास किये जा रहे हैं. जहां भी संभव हो रहा है, यादवों व जाटवों को महत्वूपर्ण पद, मौका व सम्मान दिये जा रहे हैं.

गत जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य और अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि पर कानपुर में आयोजित गोष्ठी को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया तो उसके पीछे का उद्देश्य भी साफ था. सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण देने के पीछे भी यादवों को ‘समुचित सम्मान’ देकर उसका यादव वोट बैंक तोड़ने की ही नीयत है. इससे पहले गैर-जाटव दलित जातियों-कोरी, धोबी, पासी, खटिक व धानुक को भी भाजपा इसी राह पर चलकर पटा चुकी है.

लेकिन सपाई कहते हैं कि जाति की राजनीति को हिंदुत्व की राजनीति से प्रतिस्थापित और सपा के पिछड़े व अति पिछडे़ तो बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगा कर मूंछों पर ताव देती आ रही भाजपा की मंछें 2024 में तो नीची होनी ही होनी हैं, क्योंकि हिंदुत्व के नाम पर जाति अपमान सहते-सहते दलितों-वंचितों व पिछड़ों का अब उससे पूरी तरह मोहभंग हो गया है और ‘रामचरितमानस’ को लेकर उठा विवाद इसका साफ सकेत देता हैं.

चाचा-भतीजे (शिवपाल व अखिलेश) में एका से उत्साहित सपा को उम्मीद है कि यह मोहभंग 2024 तक प्रदेश में मंडल वाले दिनों की वापसी करा देगा, पिछडे़ व दलित भाजपा से पूरी तरह कन्नी काट लेंगे और सपा के बैनर पर दलित-पिछड़ा व मुस्लिम गठजोड़ अपराजेय हो जायेगा. इस कारण और कि तब मायावती से निराश होकर भाजपा की ओर गये दलित अनिवार्यतः उसकी ओर लौट आयेंगे.

रामचरित मानस विवाद से सपा देख रही है फायदा

कहते हैं कि इसी अजेयता की उम्मीद में अखिलेश ने रामचरितमानस के महिलाओं, आदिवासियों, दलितों और वंचितों का अपमान करने वाले अंशों को हटाने या बैन करने की मांग कर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को सपा का महासचिव बना दिया है और एक मंदिर में खुद को काला झंडा दिखाये जाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस सवाल के सामने खड़ा कर रहे हैं कि उनकी निगाह में वे शूद्र हैं या नहीं. बात सपा कार्यालय के बाहर ‘गर्व से कहो हम शूद्र हैं’ लिखे पोस्टर लगाने तक भी पहुंच गई है.

इस सबको लेकर पार्टी के अंदर-बाहर के विसंवादी सुर भी सपा को ज्यादा परेशान नहीं कर रहे क्योंकि वह भाजपा को रक्षात्मक होने को मजबूर करने में ‘सफल’ रही है. बड़बोलेपन व आक्रामकता के लिए मशहूर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इतना भर कहकर चुप हो गये हैं कि सपा उनकी सरकार के विकास कार्यों से ध्यान हटाने के लिए रामचरितमानस का सहारा ले रही है, जबकि सपाइयों का मानना है कि रामचरितमानस का आक्रामक बचाव भाजपा के निकट गये दलितों व पिछड़ों को फिर उससे दूर कर देगा और सपा उसकी इस कमजोर नस को जितना दबायेगी, बहुजनों की उतनी ही बड़ी पैरोकार बन जायेगी. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के यह कहने को भी सपा अपनी सफलता ही मान रही है कि जातिगत ऊंच-नीच भगवान की नहीं पंडितों की देन है.

जो भी हो, बिहार के एक मंत्री द्वारा टिप्पणी से उपजे रामचरितमानस विवाद पर अब उत्तर प्रदेश में ज्यदा राजनीति हो रही है तो कारण साफ है: सपा इसे कमंडल की काट और मंडल की वापसी के अवसर के तौर पर ले रही है और खुश है कि पिछले दिनों इसको लेकर कई शहरों में प्रदर्शन हुए, रामचरितमानस की प्रतियां जलाई गयीं और स्वामी प्रसाद मौर्य पर मुकदमे दर्ज किये गये.

लेकिन सपाई तर्कों को नकारते हुए भाजपाई कहते हैं कि सपा अभी बसपा व कांग्रेस से आगे निकलकर भाजपा के मुकाबले में आने की कोशिश भर कर रही है और जानती है कि 2024 में उसके मंसूबों की 5वीं शिकस्त तय है. लेकिन इससे परे आम प्रदेशवासियों के निकट लाख टके का सवाल यही है कि क्या 2024 में उत्तर प्रदेश में वाकई चमत्कार होगा-भाजपा सभी 80 की 80 सीटें जीत लेगी या सबकी सब हार जायेगी?

(कृष्ण प्रताप सिंह फैज़ाबाद स्थित जनमोर्चा अखबार के पूर्व संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढे़ं: भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को दिया दूसरा मौका, ‘अपरिपक्व’ होने की इमेज खत्म हुई


 

share & View comments