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Sunday, 28 April, 2024
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श्रीलंका संकट के बाद चीन यह समझने में जुटा है कि दिवालिया घोषित करने का मतलब क्या होता है

चीन के राष्ट्रवादियों को श्रीलंका संकट और वहां हो रहे विरोध प्रदर्शनों के पीछे तख्तापलट की अमेरिकी साजिश दिख रही है, और शी जिनपिंग की सरकार ‘सकारात्मक भूमिका’ निभाना चाहती है.

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कोलंबो में भारी जन-प्रदर्शनों की खबरें दुनिया भर में सुर्खियों में प्रसारित हो रही है, तो यह चीनी सरकारी मीडिया और सोशल मीडिया पर छा रही हैं. श्रीलंका द्वारा देश के दिवालिया होने की घोषणा और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे द्वारा इस्तीफा देने की घटनाओं पर चीनी सोशल मीडिया में व्यापक चर्चा छिड़ गई.

हैशटैग ‘श्रीलंका प्रेसिडेंट ऑफ़िशियली अनाउंसेज हिज़ रेजिग्नेशन’ को ‘वेबो’ पर 7.8 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया. चीनी सर्च इंजन ‘बायडू’ ने श्रीलंका की घटनाओं की जानकारी देने के लिए एक स्पेशल पेज बना दिया है. पेंच क्या है? चीनी राष्ट्रवादियों ने फौरन अमेरिका पर आरोप लगाया कि वह श्रीलंका में प्रदर्शनों के पीछे की वजह है. कई लोगों ने श्रीलंका के कर्ज संकट के लिए चीन की इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को जिम्मेदार बताया है. लेकिन चीन का निशाना कहीं और है. कई लोगों का मानना है कि इस द्वीप देश में ‘सीआईए के नेतृत्व में तख्तापलट’ और ‘रंगभेद क्रांति’ चल रही है.

बीजिंग में बसे ताइवानी गायक हुआंग एन ने कहा, ‘श्रीलंका में प्रदर्शनों का आयोजन ‘यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल ऐड’ करवा रही है और सीआईए का प्रेत हर जगह मौजूद है. उसने पश्चिमी देशों से इन प्रदर्शनों में दखल न देने को कहा है क्योंकि यह रंगभेद क्रांति है. श्रीलंका ‘बेल्ट ऐंड रोड’ परियोजना में एक अहम पड़ाव है और अमेरिका इसे समझने की कोशिश कर रहा है.’

‘वेबो’ पर हुआंग के समर्थकों की संख्या 60 लाख से भी ज्यादा है.

दूसरे यूज़रों ने ‘एसएनमिलिटरी’ नामक हैंडल के एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट शेयर किया जिसमें दावा किया गया था कि श्रीलंका में प्रदर्शन ‘यूएसऐड’ करवा रहा है. ट्विटर हैंडल ने यह भी कहा कि ये ‘पश्चिमी राजनयिकों’ के समर्थन से चल रही ‘रंगभेद क्रांति’ है. अकाउंट का दावा है कि वह नौसेना के सेवानिवृत्त का है और वह ज़्यादातर रूस समर्थक ट्वीटों को शेयर करता है.

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‘एसएनमिलिटरी’ के एक ट्वीट के हवाले से वेबो के एक यूज़र ने कहा कि ‘श्रीलंका में तख़्ता पलट सीआईए ने करवाया है, यह एक हकीकत है. पश्चिमी राजनयिकों ने उनका समर्थन किया और उनसे दखल न देने को कहा. श्रीलंका में रंगभेदी क्रांति चल रही है.’

सीना वेबो पर आए ट्वीट की लोकप्रियता बताती है कि श्रीलंका संकट पर रूस समर्थक प्रचार का चीनी जनमत पर कितना असर है.

चीन जानना चाहता है कि ‘दिवालिया होने का क्या अर्थ है

अमेरिका पर दोष मढ़ने के अलावा मीडिया कमेंटेटरों ने श्रीलंका के आर्थिक संकट और उसके कारण हुई राजनीतिक उथल-पुथल के कारण भी बताने की कोशिश की. गुयांगझाऊ की दक्षिणी साप्ताहिकी में 10 जुलाई को छपे लेख ‘क्राइम्स ऐंड पनिशमेंट ऑफ श्रीलंकाज़ बैंकरप्सी क्राइसिस’ को वेबों पर 11 लाख बार पढ़ा गया. लेख में श्रीलंका की दुविधा के आंतरिक कारणों पर विचार किया गया है.

सबसे पहले 21 अप्रैल को छपे इस लेख में कहा गया है— ‘महामारी के कारण पर्यटन उद्योग पर बुरी मार पड़ी और इससे जुड़े उड्डयन, होटल, केटरिंग उद्योगों में भी गिरावट आई. इसके कारण पिछले दो साल में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चरमरा गई. स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने भारी उधार लिया, जिसके कारण उस पर कर्ज का भारी बोझ पड़ा. इस तरह वह महामारी के बाद ‘सबसे पहले पतन’ करने वाली अर्थव्यवस्था बन गई.’


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श्रीलंका की खबरों ने सोशल मीडिया के यूजरों के मन में यह सवाल उठा दिया है कि ‘दिवालिया घोषित’ करने का क्या अर्थ है. हैशटैग ‘व्हाट डज डिक्लेयरिंग नेशनल बैंकरप्सी मीन?’ को वेबों पर 3 करोड़ बार देखा गया. ‘बीजिंग इकोनॉमिक न्यूज़’ ने एक वीडियो में बताया कि ‘राष्ट्रीय दिवालियापन शब्द को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 2002 में ईजाद किया था और इसे वह परिस्थिति बताया था जिसमें किसी देह की बाह्य परिसंपत्तियां उसकी बाहरी देनदारियों के मुक़ाबले कम हो जाती हैं. इसे कर्ज भुगतान में अक्षम होना कहते हैं.’

श्रीलंका की बदहाली के लिए कुछ लोगों ने पश्चिम के नेतृत्व वाले आईएमएफ को दोषी बताया है. अधिक अनुभवी चीनी विशेषज्ञों ने इस संकट को भू-राजनीति के नजरिए से देखने की कोशिश की है.

चीन की एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ एशिया-पैसिफिक ऐंड ग्लोबल स्ट्रेटेजी में शोधकर्ता शू लिपिंग ने लिखा है, ‘श्रीलंका के इस संकट के जवाब में अमेरिका, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर एक विदेश सहायता संघ बनाने के लिए एक ‘प्रतिनिधिमंडल का गठन’ करने की योजना बनाई है. ऊपर से तो ये चारों देश अपना फर्ज निभाते दिख रहे हैं मग कुल मिलाकर वे संकट से निबटने के लिए ‘क्वाड के तंत्र’ की ‘वैधता’ को मजबूत करना चाह रहे हैं. वास्तव में, ‘क्वाड’ एक छोटा गुट है जो चीन को दरकिनार करना और उसे प्रभावहीन बनाना चाहता है.’

अस्पष्ट भाषा, साफ संदेश

बीजिंग श्रीलंका में राजनीतिक उथल-पुथल की सही व्याख्या ढूंढने में जुटा है. उसकी सरकारी मीडिया ने श्रीलंका संकट के लिए ‘कर्ज के जाल’ वाले तर्क का खंडन करते हुए पुराने तर्कों को दोहरा रहा है. एक चीनी अखबार में अंग्रेजी में छपे एक संपादकीय का शीर्षक था— ‘श्रीलंका की परेशानियों की कई वजहें हैं’. संपादकीय में कहा गया है कि चीन तो जापान और एशियन डेवलपमेंट बैंक के बाद श्रीलंका का तीसरे नंबर का कर्जदाता है और उसके कुल कर्ज में चीन का हिस्सा मात्र 10 फीसदी है. उसने जो कर्ज दिया है उससे श्रीलंका के मुख्यतः इन्फ्रास्ट्रक्चर और आर्थिक विकास को हो मजबूती मिली है.

श्रीलंका के संकट का चीन कैसे सामना कर रहा है उसके कई विवरण दिए जा रहे हैं. चीन ने राजपक्षे की जगह लेने को उत्सुक किसी गुट का समर्थन नहीं किया है. शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ के सीनियर फ़ेलो लिउ जोंग्यी ने कहा, ‘चीन किसी भी गुट का समर्थन नहीं कर रहा है… इसलिए श्रीलंका की पिछली सभी सरकारों ने चीन के साथ दोस्ताना और सहयोगी संबंध रखा.’

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने मंगलवार को कहा कि ‘जहां तक श्रीलंका को चीन ने जो कर्ज दिया है उसकी बात है, चीन उनका उपयुक्त समाधान करने के लिए प्रासंगिक वित्तीय संस्थानों से वार्ता करने के पक्ष में है. हम सभी संबंधित देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर श्रीलंका में सकारात्मक भूमिका निभाने को तैयार हैं ताकि वह वर्तमान परेशानियों का मुक़ाबला कर सके, कर्ज के बोझ को घटा सके, और टिकाऊ विकास जारी रख सके.’

जाहिर है, चीन संकट के इस समय में इस द्वीप देश की ओर सहायता का हाथ नहीं बढ़ाना चाहता.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो फिलहाल लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (एसओएएस) से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. इससे पहले वो बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में एक चीनी मीडिया पत्रकार थे. वो @aadilbrar पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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