चीन ने एक हाइपरसोनिक मिसाइल के साथ अंतरिक्ष में अपनी नई मारक क्षमता का टेस्ट किया है, जिसकी जानकारी सबसे पहले द फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में सामने आई है. माना जाता है कि गोपनीय तौर पर यह टेस्ट अगस्त 2021 में किया गया था. यह रिपोर्ट अमेरिकी खुफिया समुदाय के विशेषज्ञों की तरफ से दी गई जानकारी आधारित है और हो सकता है कि इसे जानबूझकर लीक किया गया हो. बहरहाल, इसने किसी भी देश के रणनीतिक समुदाय के सबसे संवेदनशील तार को तो छेड़ ही दिया है.
इस सूचना के बाद आई टिप्पणियों की बाढ़ ने पूरा परिदृश्य बदलकर रख दिया. यह बात कोई ज्यादा मायने नहीं रखती कि इस घटनाक्रम ने अमेरिका के बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) या इसे तैनात करने वाले अन्य देशों के लिए खतरा पैदा नहीं किया है. बीएमडी भेद्य होने को लेकर अतिसंवेदनशीलता तो पहले से कायम है, और यही वजह है कि बीएमडी सिस्टम तैयार करने के सभी प्रयास 2001 से चली आ रही एक कड़ी का ही हिस्सा हैं—जब अमेरिका ने बीएमडी हथियारों की रेस शुरू की थी क्योंकि वह सोवियत संघ के साथ 1972 की बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस ट्रीटी से हट गया था. फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट संकेत देती है कि चीन की तकनीकी प्रगति ने अमेरिका को काफी नुकसान पहुंचाया है. बीजिंग की बढ़ती तकनीकी और सैन्य क्षमता के विशाल नैरेटिव के आगे वह कहीं पीछे छूट गया है.
परस्पर भेद्यता का कमजोर होना
इस रिपोर्ट को लेकर जिस तरह की अतिसक्रियता दिखाई जा रही है, अगर किसी को उसे समझना है तो उसे जनवरी 2020 में द बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स द्वारा प्रकाशित लेख ‘कूल योर जेट्स: सम पर्सपेक्टिव ऑन द हाइपिंग ऑफ हाइपरसोनिक वेपन्स’ जरूर पढ़ना चाहिए. सच्चाई यह है कि बीएमडी को भेदने की आक्रामक क्षमता विकसित करने के प्रयासों ने इसकी रक्षात्मक क्षमता से आगे निकलना जारी रखा है.
2002 में संधि तोड़ने के मौके पर व्हाइट हाउस की तरफ से जारी जॉर्ज डब्लू. बुश प्रशासन का वक्तव्य बताता है—‘अब जब हमने संधि को पीछे छोड़ दिया है, हमारा काम सीमित मिसाइल हमलों के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा प्रणाली विकसित करना और उसे तैनात करना है. जैसा 11 सितंबर की घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है, हम अब शीत युद्ध की दुनिया में नहीं रहते हैं जिसके लिए एबीएम संधि तैयार की गई थी. अब हम उन आतंकवादियों के नए खतरे का सामना कर रहे हैं जो सामूहिक विनाश के हथियारों और लंबी दूरी की मिसाइलों से लैस दुष्ट देशों की तरफ से हमारी सभ्यता को मिटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. इन खतरों के खिलाफ अमेरिकी लोगों की रक्षा करना कमांडर-इन-चीफ होने के नाते मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है.’
1972 की बीएमडी संधि बेलगाम परमाणु हथियारों की होड़ विवेकपूर्ण तरीके से रोकने की कोशिश का नतीजा थी. इसने परस्पर भेद्यता को रणनीतिक स्थिरता की धुरी के रूप में स्थापित किया. संधि का आधार यह था कि यदि किसी पक्ष ने सुरक्षा के लिए बीएमडी का निर्माण किया, तो यह दूसरों को आक्रामक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगा और आक्रामक-रक्षात्मक हथियारों की एक निरंतर होड़ शुरू हो जाएगी. संधि के तहत छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के खिलाफ रक्षात्मक क्षमता विकसित करने को अनुमति दी गई थी.
2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले ने उन आतंकवादियों से रक्षा की जरूरत को जन्म दिया जो मिसाइल हथियारों को अपने कब्जे में ले सकते हैं. आतंकी खतरे से बचाव पर जरूरत से ज्यादा जोर दिए जाने से सामरिक स्थिरता की आधारशिला—परस्पर भेद्यता—ही कमजोर हो गई. मिसाइल डिफेंस सिस्टम का बहुतायत में विकास किया जाने लगा. लेकिन कोई भी सिस्टम एक स्तर से आगे जाकर सुरक्षा के प्रति पूरी तरह आश्वस्त करने में सक्षम नहीं है. आक्रमण की क्षमताओं का विकास हमेशा इसके खिलाफ बचाव से आगे रहा है. सितंबर 2019 में सऊदी अरब की सबसे महत्वपूर्ण तेल सुविधाओं में से एक पर हमला सबसोनिक क्रूज मिसाइलों के खिलाफ रक्षात्मक क्षमता तक के भी भेद्य होने का संकेत था.
2018 में व्लादिमीर पुतिन ने हाइपरसोनिक हथियारों की तैनाती की घोषणा की जो अमेरिकी रक्षात्मक प्रणाली के लिहाज से अभेद्य थे. उन्होंने कहा कि यह कदम खासकर अमेरिका के बीएमडी को निरस्त करने की प्रतिक्रिया में उठाया गया है. चीन भी अब इस होड़ में शामिल हो गया है. अमेरिका, खासकर अपने सैन्य हथियारों के साथ, लंबे समय से हाइपरसोनिक व्हीकल का पक्षधर रहा है. रूस और चीन में नए घटनाक्रम के साथ पेंटागन की तरफ से हाइपरसोनिक रिसर्च के लिए बजट बढ़ाने का आग्रह किया जा रहा है. रेस अभी जारी है, और हर कोई अपनी खुद की क्षमता से ही आगे निकलने की होड़ में है. पेलोड, जो पारंपरिक या न्यूक्लियर हो सकता है, के बारे में जानबूझकर अस्पष्टता कायम किए जाने ने इस रेस को और जटिल बना दिया है.
भारत को रेस में बने रहना चाहिए
भारत भी इस रेस में शामिल है. रिपोर्टों के मुताबिक, यह अपने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल प्रोग्राम के हिस्से के तौर पर एक ड्यूल कैपेबल हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित कर रहा है. भारत ने जून 2019 और सितंबर 2020 में एक मैच 6 स्क्रैमजेट का सफल परीक्षण किया था. इससे पहले, 2000 के शुरू में—कारगिल जंग के बाद—देश ने बीएमडी सिस्टम विकसित करने का एक कार्यक्रम शुरू किया था जिसके पीछे इरादा पाकिस्तान से संभावित खतरों से बचाव करना था. हाल की रिपोर्टों में इसकी तैनाती का जिक्र किया गया है. रूस से एस-400 ट्रायम्फ मिलने और कुछ सालों में इसके ऑपरेशनल हो जाने से भारत की बीएमडी क्षमता काफी बढ़ जाएगी.
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बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों से खुद को बचाने की रेस में शामिल होने को लेकर भारत के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे. लेकिन अपने प्रयासों को किस हद तक बढ़ाना है, इसे लेकर उसे सावधान रहना चाहिए, क्योंकि रक्षा प्रणालियों पर काबू पाने की क्षमता प्राकृतिक अवस्था में ही बनी रहेगी. भारत को निश्चित तौर पर तब तक रेस में बने रहना चाहिए जब तक एक असंभव कार्य का कोई विवेकपूर्ण नतीजा नहीं निकलता, और एक इंटरनेशनल डायलॉग के जरिये रक्षात्मक प्रतिरोध को मजबूत करने के नाम पर भेद्य क्षमता बढ़ाने की अंधी होड़ को रोकने का प्रयास नहीं किया जाता.
भारत को अपर्याप्त राजकोषीय संसाधनों के बावजूद अपनी क्षमताएं संतुलित ढंग से प्रदर्शित करनी चाहिए. मिसाइल क्षमता को लेकर अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम को इसे एटमी ताकतों के बीच परमाणु निरोधक वार्ता के हिस्से के तौर पर देखना चाहिए. हालांकि, संक्षेप में कहें तो वार्ता एक-दूसरे को ये संदेश देना है कि ‘किसी भी परमाणु हमले का जवाब दिया जाएगा और तब आपके अपने बचाव के साधन कुछ नहीं कर पाएंगे.’ लेकिन एक तरह से देखा जाए तो यह मूक-बधिरों के संवाद जैसा ही है, क्योंकि हम सब जानते हैं कि इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है—‘आरंभिक एटमी हथियारों को दागे जाने के बाद क्या होता है?’ यह परमाणु रणनीति में आगे निकलने की कहानी भर है जो किसी भी समय आगे बढ़ाए गए प्रयासों की तुलना में अनुपातहीन ही रही है. हाइपरसोनिक व्हीकल इस होड़ में आगे निकलने का एक प्रयास भर हैं.
(लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) डॉ. प्रकाश मेनन तक्षशिला संस्थान, बेंगलुरु डायरेक्टर स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. वह @prakashmenon51 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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