चीन में बना एक गुब्बारा 1 फरवरी को अमेरिका के मोंटाना राज्य के ऊपर काफी ऊंचाई पर उड़ता देखा गया. मोंटाना वह राज्य है जहां अमेरिका के ऐक्टिव परमाणु मिसाइलों के तीन भूमिगत अड्डों में से एक स्थापित है. अमेरिकी सरकार ने अधिकृत बयान में कहा कि यह एक टोही गुब्बारा था जिससे तत्काल कोई सैनिक या और कोई खतरा था, लेकिन जल्दी ही उसने इस शुरुआती आकलन को रद्द कर दिया. चीन ने दावा किया कि वह गुब्बारा एक गैर-हानिकारक ‘गैर-फौजी हवाई गुब्बारा’ था जो भटककर अमेरिकी हवाई क्षेत्र में चला गया था. लेकिन चीन के इस दावे के बावजूद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने बीजिंग की अपनी यात्रा 3 फरवरी को रद्द कर दी, जिसकी काफी उम्मीद की जा रही थी. इसके बाद 4 फरवरी को अमेरिकी सेना ने उस गुब्बारे को साउथ कैरोलिना समुद्रतट के ऊपर मार गिराया और और अब वह उसका मलबा समेटने की कोशिश कर रही है.
चीन ही नहीं अमेरिका भी आसमान में काफी ऊंचाई पर उड़ने वाले ऐसे गुब्बारों का लंबे समय तक प्रयोग करता रहा है. जुलाई 2022 में ‘नासा’ ने हवाई रोबोटिक गुब्बारे का परीक्षण किया था, जिसका काम एक अंतरिक्ष में चक्कर लगाने वाले ऑर्बिटर के साथ मिलकर शुक्र गृह का वैज्ञानिक मापन करना था. अगस्त 2022 में, ब्रिटेन ने वायुमंडल क्षेत्र में संचार, जासूसी, निगरानी और टोही गतिविधि चलाने वाले मानव रहित प्लेटफॉर्म का प्रदर्शन करने के लिए एक अमेरिकी कंपनी का चुनाव किया था. उसे लंबे समय तक काम करने वाले मिशन की जरूरत थी जो धरती पर कहीं भी लक्ष्य की पहचान कर सके.
एक अमेरिकी सोच यह है कि चीनी गुब्बारे वाली घटना एक कहीं बड़ी और चिंताजनक दिशा का हिस्सा है. कमांड एवं कंट्रोल, निगरानी, संचार और खुफियागिरी के लिए वायुमंडल के इस्तेमाल की संभावनाओं को बेहतर तरीके से समझने के लिए ले.जनरल पी.आर. शंकर (रिटा.) का यह लेख पढ़ें. गुब्बारे काफी सस्ते हो सकते हैं और ज्यादा समय तक भटक सकते हैं और इस तरह अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित उपग्रहों की तुलना में लक्ष्यों की निरंतर निगरानी कर सकते हैं. दुनिया में भू-राजनीतिक टकराव जिस तरह फैल रहा है, उसमें अंतरिक्ष में बढ़ रही होड़ के लिए तैयार हो जाइए. यह भारत को भी गहरे रूप से प्रभावित कर सकती है.
यह भी पढ़ेंः राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की प्रतीक्षा न करें, सबसे पहले थिएटर कमांड सिस्टम लाओ
तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत?
इसमें शायद ही कोई संदेह रह गया है कि अंतरिक्ष, हवा और समुद्री क्षेत्रों में फौजी गतिविधियां बढ़ रही हैं. अगर यूक्रेन युद्ध में, संयोग से ही, नाटो भी शामिल हो गया है, तो खुदा ही जाने आगे क्या होगा.
क्या तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हो गई है? सरसरी तौर पर तो ऐसा ही लगता है, बाकी हम कुछ कह नहीं सकते. फिर भी, इतिहासकार लोग ही, जो बाकी बचे हैं, बता सकते हैं कि यह कब शुरू हुआ.
बदकिस्मती की बात यह है कि जिस गुब्बारे को अमेरिका ने अपने प्रारंभिक बयानों में कोई खतरा नहीं माना था, उसके कारण उस संवाद को टाल दिया है जिसकी जरूरत उस दिशा की ओर बढ़ने से रोकने के लिए थी जिस दिशा में दुनिया के लिए कोई अच्छी बात नहीं होने वाली थी. अमेरिका ने कहा है कि गुब्बारे का मामला संप्रभुता के उल्लंघन का मामला है, और 4 फरवरी तक की बात यह है कि दूसरा गुब्बारा दक्षिण अमेरिका के ऊपर देखा गया है और उसे भी चीन ने अपना माना है.
इतिहास के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो दुनिया फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई है, और इस बार सिर्फ उसके कर्ताधर्ता बदल गए हैं. इसमें शक्ति-प्रदर्शन के विभिन्न रूप शामिल हैं, जिन्हें मुख्यतः टेक्नॉलजी आकार दे रही है. गौरतलब है कि आज नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, जबकि शीतयुद्ध के काल में वे केवल पांच देशों के पास थे. वैसे, आर्थिक और तकनीकी जुड़ाव आज सबसे बड़े स्तर पर है. 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में विभाजन करने की कोशिशें न केवल जारी हैं बल्कि तेज भी हुई हैं. वैश्विक सहयोग का काफी अभाव है और वह मुख्यतः अमेरिका, और चीन के नेतृत्व वाले खेमों में ध्रुवीकृत हो रहा है.
ध्रुवीकृत दुनिया में भारत का रुख
भारत की उत्तरी सीमा पर चीन के हमले के बाद भारत पश्चिम की ओर झुका है, खासकर समुद्री सुरक्षा और तकनीक के मामले में. आर्थिक मोर्चे पर उसने चीन से व्यापार जारी रखा है और रूस से सस्ते में मिल रहे कच्चे तेल का फायदा उठा रहा है. लेकिन जिस तरह वैश्विक तनाव बढ़ रहा है और टकराव बढ़ रहा है, भारत किसी एक खेमे का पक्ष लेने का दबाव महसूस कर सकता है, चाहे उसके हितों को लेकर भले कोई विवाद न भी हो. इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वह पड़ाव कब आएगा या नहीं आएगा. इसलिए, दुनिया जब ज्यादा से ज्यादा ध्रुवीकृत हो रही है, तब भारत को अपने संबंधों के बारे में एक विदेश नीति दस्तावेज़ तैयार करना चाहिए.
इस नीति में खेमों के आधार पर नहीं बल्कि संदर्भों के आधार पर सहयोग संबंध बनाने की बात स्पष्ट की जानी चाहिए. खुले और नियम आधारित हिंद-प्रशांत व्यवस्था स्थापित करने के लिए भारत अमेरिका और उसके साथियों से हाथ मिला सकता है. अगर आपसी हितों में मेल हो तो जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भारत चीन का भी सहयोगी बन सकता है. व्यापक रणनीतिक संदर्भों में, भारत के लिए चुनौती यह होगे कि वह विश्वयुद्ध, जिसकी संभावना निरंतर बढ़ रही है, में खींचे जाने से खुद को बचाए.
शांतिदूत बने भारत
भारत के रणनीतिकारों के दिमाग में भारत को शांतिदूत वाली भूमिका में लाने और उसकी भूमिका को महत्व दिलाने का विचार घूम रहा होगा. यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि अमेरिका और चीन के रिश्ते जिस हाल में हैं उसके कारण ऐसा कोई संवाद मुश्किल लगता है जिसमें द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और वैश्विक मसलों पर कोई व्यापक सहमति बने. यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा हस्तक्षेप से इनकार में भी परिलक्षित होता है, क्योंकि मामले से जुड़े बड़े पक्ष खुद ज्यादा ताकतवर सुपरपावर बनने की होड़ में हैं.
भारत शांति कराने की स्थिति में आ सकता है, और यह बात अमेरिकी बिजनेस इंटेलिजेंस सलाहकार फर्म की एक रिपोर्ट से भी पुष्ट होती है. इस सर्वे के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे मशहूर अंतरराष्ट्रीय नेताओं में शुमार हैं. 78 फीसदी की लोकप्रियता रेटिंग के साथ मोदी दूसरे नेताओं से काफी आगे हैं.
अगर चेहरा कोई प्रभाव डालता है, तो प्रधानमंत्री मोदी कुछ समय से जो दाढ़ी रख रहे हैं वह पहले की उनकी उग्र छवि के विपरीत एक शांतिदूत वाली छवि प्रस्तुत करती है. समय आ गया है कि भारत के रणनीतिकार भारत को एक शांतिदूत वाली भूमिका में लाने की संभावना की तलाश करें. यह काफी कठिन काम लग सकता है जिसे पूरा करना असंभव लग सकता है. लेकिन इसकी कोशिश न करने की कोई वजह नहीं हो सकती, क्योंकि मोदी देश में भी और विदेश में भी लोकप्रिय हैं.
[लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं]
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः बॉर्डर पर चीन के खिलाफ भारत का सबसे बड़ा हथियार है- ह्यूमन फोर्स