महान शक्तियों की पहचान संघर्षों में मध्यस्थता करने और अन्य देशों पर प्रभाव जमाने की उनकी क्षमता से होती है. फिर भी, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों को इस मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. चीन द्वारा 2023 में सऊदी अरब-ईरान समझौते में सफलतापूर्वक मध्यस्थता करने के बावजूद, चल रहे संघर्षों में इसकी प्रभावशीलता के बारे में संदेह बना हुआ है. इज़रायल-हमास संघर्ष छह महीने से अधिक समय से जारी है, जिसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है, और इस विवाद में अन्य देश भी शामिल हो रहे हैं. 13 अप्रैल 2024 को, इज़रायल पर ईरान के जवाबी ड्रोन और मिसाइल हमले ने तनाव बढ़ा दिया और पूरे क्षेत्र को पूरी तरह से युद्ध के मुंहाने पर लाकर खड़ा कर दिया.
अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं में से एक में, चीन ने सभी संबंधित पक्षों से आगे की स्थिति को रोकने के लिए संयम बरतने का आग्रह किया. अपने ईरानी समकक्ष होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के साथ फोन पर बातचीत के दौरान, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने 1 अप्रैल को दमिश्क में ईरानी वाणिज्यिक दूतावास पर हमले की कड़ी निंदा की और इसे “अंतर्राष्ट्रीय कानून का स्पष्ट उल्लंघन और पूरी तरह से अस्वीकार्य” बताया.
हालांकि, इस वाद-विवाद में यह बात नोट करने लायक थी कि इज़रायल के लिए उसी तरह की सख्त भाषा का प्रयोग नहीं किया गया था. ईरान के लिए एक मजबूत डिक्लेरेशन ऑफ अंडरस्टैंडिंग थी, जिसे क्षेत्रीय संप्रभुता के उल्लंघन के खिलाफ आत्मरक्षा के कार्य के रूप में तैयार किया गया था. चीन ने कहा कि दमिश्क में ईरान के वाणिज्यिक दूतावास पर हमला 1999 में बेलग्रेड में चीनी दूतावास पर नाटो द्वारा किए गए हमले की तरह था.
ऐसा प्रतीत होता है कि चीन सक्रिय भागीदारी से पीछे हट रहा है, जो संभावित रूप से गाजा युद्धविराम के लिए उसके समर्थन के कारण विवश है, जबकि इज़रायल ज़ोरदार पश्चिमी समर्थन प्राप्त कर रहा है. यह कहावत “मेरे दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त है” इस संदर्भ में पूरी तरह से ईरान पर लागू होती प्रतीत होती है, क्योंकि चीन इज़रायल पर प्रभाव डालने के लिए संघर्ष कर रहा है.
चीन मध्य पूर्व में संघर्ष कर रहा है
ईरान-इज़रायल संघर्ष पर चीन की प्रतिक्रिया पश्चिम के रुख से बिल्कुल विपरीत है, जो मुख्य रूप से इज़रायल समर्थक है. वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच चल रही प्रभुत्व को स्थापित करने की प्रतिद्वंद्विता की पृष्ठभूमि को देखते हुए, यह आश्चर्य की बात नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि चीन का रणनीतिक झुकाव अमेरिका की खुले तौर पर आलोचना करने वाले देशों के साथ संबंधों को प्राथमिकता देता है, जिससे ईरान की आलोचना करने में अनिच्छा पैदा होती है. चीन ने लगातार टू-स्टेट समाधान का समर्थन और वकालत की है और अक्सर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2728 का संदर्भ दिया है, जो इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में तत्काल युद्धविराम की मांग करता है.
जबकि चीन ने सक्रिय रूप से खुद को शांति के लिए मध्यस्थ के रूप में तैनात किया है, खासकर मध्य पूर्व में, जहां वह अमेरिकी प्रभाव को कम करना चाहता है, उसकी महत्वाकांक्षाओं को बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो कि कभी-कभी इसे अपने घोषित लक्ष्यों से भटका देती हैं. ये बाधाएं चीन की अपनी साझेदारियों और हितों से उत्पन्न होती हैं. विशेष रूप से, चीन ईरानी तेल के शीर्ष आयातक के रूप में उभरा है, जिसने 2023 में देश के तेल निर्यात का 90 प्रतिशत हासिल किया है. इस प्रवृत्ति को अटलांटिक काउंसिल के एक लेख में स्पष्ट किया गया है, जिसमें तर्क दिया गया है: “चीन के रीजनल प्लेयर बने रहने की अधिक संभावना है जो कि यह एक दशक से था, जो कि मध्य पूर्व में व्यापार और निर्माण के लिए आया है, न कि नेतृत्व करने के लिए.
मौजूदा शांति समझौतों के संरक्षण को प्राथमिकता देना उस क्षेत्र के भीतर जटिल वार्ता शुरू करने की तुलना में एक सतर्क दृष्टिकोण के रूप में उभरता है जहां चीन का प्रभाव कई हितधारकों के बीच सीमित है. 15 अप्रैल को, जिस दिन वांग और अब्दुल्लाहियन ने बात की, उसी दिन चीनी विदेश मंत्री ने अपने सऊदी समकक्ष, फैसल बिन फरहान अल सऊद से भी संपर्क किया, और “ईरान के अन्य क्षेत्रीय राज्यों के प्रति गैर-लक्षित कार्यों” पर जोर दिया. पहले से मौजूद सौदों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, चीन उन कार्यों से बचना चाहता है जहां उसका प्रभाव सीमित है और संभावित बाधाएं सामने आती हैं, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर जोखिम कम हो जाता है.
बहरहाल, चीन के सीमित प्रभाव और हस्तक्षेप करने में उसकी अनिच्छा के बारे में चीनी सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच अलग-अलग धारणाएं हैं. एक वीबो यूज़र (2 मिलियन से अधिक फॉलोअर्स के साथ) ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की विडंबना पर प्रकाश डाला, जिसमें तनाव कम करने के लिए ईरान पर चीन द्वारा उसका उसके प्रभाव का लाभ उठाने का आग्रह किया, जबकि वॉशिंगटन साथ ही साथ फिलीपींस और चीन के बीच तनाव पैदा करता है.
चीन शांत क्यों है?
ईरान-सऊदी अरब समझौते के समापन के बाद से, संघर्षों में मध्यस्थता करने की चीन की क्षमता बाधित हो गई है. इसने रूस-यूक्रेन और इज़राइल-फिलिस्तीन दोनों संघर्षों में कुछ हद तक स्पष्ट रुख अपनाया है. जबकि चीन संभावित स्पिलओवर प्रभावों के बारे में आशंकित है, वह वर्तमान में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करने में अनिच्छुक प्रतीत होता है. बीजिंग की रणनीति में इज़रायल के साथ सीधे टकराव को दरकिनार करते हुए क्षेत्रीय साझेदारों के साथ अपने तालमेल को संतुलित करना शामिल है. प्राथमिक उद्देश्य अपने हितों की रक्षा करना और तेहरान-रियाद सौदे में किसी भी व्यवधान को रोकना है, साथ ही ईरान के साथ संबंधों को मजबूत करना भी है.
इसके अतिरिक्त, चीन आर्थिक चुनौतियों और दक्षिण चीन सागर और ताइवान से जुड़ी जटिलताओं सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों से जूझ रहा है. इन परिस्थितियों को देखते हुए, मध्य पूर्व में सक्रिय भागीदारी हाल-फिलहाल में होती हुई नहीं दिखती है. यह रुख चीन के सतर्क दृष्टिकोण और अपने हितों को प्राथमिकता देने की बात को दिखाता है, जिसका अर्थ है कि विशेष रूप से मध्य पूर्व में एक जिम्मेदार शक्ति या यहां तक कि मध्यस्थ की भूमिका निभाना फिलहाल ठंडे बस्ते में है.
(सना हाशमी, पीएचडी, ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन और यूएस-चीन संबंधों के लिए जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश फाउंडेशन में फेलो हैं. उनका एक्स हैंडल @sanahashmi1 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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